लंदननामा: अंग्रेज़ी ज़ुबान में हिंदुस्तानी लफ्ज़ – हॉब्सन-जॉब्सन

लंदननामा: अंग्रेज़ी ज़ुबान में हिंदुस्तानी लफ्ज़ – हॉब्सन-जॉब्सन

अंग्रेजी भाषा ने कई हिंदुस्तानी शब्दों को आत्मसात किया है। ये शब्द अब अंग्रेजी में भी धड़ल्ले से प्रयोग किये जाते हैं। हालाँकि इनके उच्चारण में हुए बदलावों के कारण कई बार इनका रूप भी बदल भी जाता है। इन्हीं शब्दों से जुड़ी रोचक जानकारी संदीप नैयर इस लेख में दे रहे हैं। आप भी पढ़ें:

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कथा संरचना: पहली पंक्ति का महत्व - प्रवीण कुमार झा

कथा संरचना: पहली पंक्ति का महत्व – प्रवीण कुमार झा

गल्प लेखन में प्रथम पंक्ति का अपना अलग महत्व होता है। अलग -अलग लेखक किस तरह से पहली पंक्ति का प्रयोग करके उससे विभिन्न भाव जागृत करते हैं यह प्रवीण कुमार झा अपने इस लेख में बता रहे हैं। लेखन से जुड़े और लेखन की इच्छा रखने वालों को इस लेख से काफी कुछ सीखने को मिलेगी।

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लंदननामा: इंग्लिश ज़ुबान पर हिन्दुस्तानी ज़ायका - संदीप नैयर

लंदननामा: इंग्लिश ज़ुबान पर हिन्दुस्तानी ज़ायका – संदीप नैयर

लेखक संदीप नैयर पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन में रह रहे हैं। लंदननामा के अंतर्गत वह ब्रिटेन और यूरोप की संस्कृति को साझा करते है। भारतीय मसालों ने किस तरह ब्रिटेन के भोजन को प्रभावित किया है यह वह इस लेख में बता रहे हैं। आप भी पढ़िए।

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राइटर्स ब्लॉक कैसे तोड़ें? - प्रवीण कुमार झा | लेख | साहिंद

राइटर्स ब्लॉक कैसे तोड़ें? – प्रवीण कुमार झा

एक लेखक कभी नहीं चाहेगा कि उसकी चलती कलम में विराम लगे लेकिन फिर भी लेखक के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब उसे लगने लगता है कि उसकी कलम ने उसका साथ छोड़ दिया है। अंग्रेजी में इस स्थिति को राइटर्स ब्लॉक कहा जाता है जब लेखक को सूझता नहीं है कि वो जो लिख रहा था उसे पूरा कैसे करे या कुछ नए लिखने की शुरुआत कैसे करे?

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मैं ऐसा ही हूँ.... - संदीप नैयर | लेख

मैं ऐसा ही हूँ – संदीप नैयर

यूँ तो लगभग सभी का बचपन अलमस्ती और बेफिक्री में बीतता है, मगर मेरा कुछ अधिक ही था। मेरी बचपन और लड़कपन की बेपरवाही लापरवाही की सीमा तक थी। अधिकांश समय मैं दिवास्वप्नों में डूबा रहता। वे दिवास्वप्न आत्ममुग्धता में सने होते।

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कथेतर विधा पर दो टिप्पणियाँ - प्रवीण कुमार झा

कथेतर विधा पर दो टिप्पणियाँ – प्रवीण कुमार झा

लेखक प्रवीण कुमार झा ने साहिंद वेबसाइट में कथेतर विधा के ऊपर दो टिप्पणियाँ प्रकाशित की थीं। यह टिप्पणियाँ चूँकि एक दूसरे से सम्बंधित हैं तो हमने सोचा एक बुक जर्नल पर प्रकाशित करते समय इन्हें एक साथ ही रखा जाए। आप भी पढ़िए:

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साक्षात्कार: सुनील कुमार सिंक्रेटिक

“किताब एक प्रोडक्ट है, इसे बनाने में किसी की पूंजी लगी होती है” – सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’

लेखक सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ पशुओं की कहानियों में माध्यम से हमारे समाज और हमारे समाज की परेशानियों पर बात करते हैं। अभिषेक भारत ने उनसे यह बातचीत साहिंद के लिए दिसम्बर 2020 को की थी। बातचीत उनके लेखन और उस समय आयी उनकी पुस्तक बनकिस्सा पर केंद्रित थी। बातचीत अब एक बुक जर्नल में प्रकाशित हो रही है। आप भी पढ़िए।

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व्यंग्य: समोसा और जलेबी - प्रांजल सक्सेना

व्यंग्य: समोसा और जलेबी – प्रांजल सक्सेना

प्रांजल सक्सेना शिक्षक और लेखक हैं। अपनी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का तड़का वो लगाते हैं। आज एक बुक जर्नल में पढ़ें अहिष्णुता पर प्रांजल सक्सेना का व्यंग्य ‘समोसा और जलेबी’।

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मानवीय जीवटता का समय के प्रहार के विरुद्ध संघर्ष – फ्लेमेंको और बुलफाइट

लंदननामा: मानवीय जीवटता का समय के प्रहार के विरुद्ध संघर्ष – फ्लेमेंको और बुलफाइट

फ्लेमेंको और बुलफाइट स्पेन की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इन दोनों अंगों विशेषकर फ्लेमेंको और उसके इतिहास के ऊपर लेखक संदीप नैयर इस लेख में बता रहे हैं। उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आएगा।

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पुस्तक टिप्पणी: शर्तिया इश्क - शकील समर

पुस्तक टिप्पणी: शर्तिया इश्क – शकील समर

‘शर्तिया इश्क’ शकील समर का उपन्यास है। उपन्यास अंजुमन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। एक बुक जर्नल पर पढ़ें लेखक संदीप नैयर की इस उपन्यास पर टिप्पणी।

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पुस्तक टिप्पणी: अश्वत्थामा- यातना का अमरत्व - अनघा जोगलेकर | डॉ. कुमारसम्भव जोशी

पुस्तक टिप्पणी: अश्वत्थामा- यातना का अमरत्व – अनघा जोगलेकर | डॉ. कुमारसम्भव जोशी

‘अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व’ अनघा जोगलेकर का अश्वतथामा पर केंद्रित लघु-उपन्यास है। पढ़ें पुस्तक पर लिखी डॉ कुमारसम्भव जोशी की लिखी यह टिप्पणी।

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पंडी ऑन द वे - दिलीप कुमार

व्यंग्य: पंडी ऑन द वे – दिलीप कुमार

पुस्तक मेलों की अपनी एक अलग धमक होती है। अलग-अलग तरह के लोग वहाँ आते हैं। सबके अपने प्रयोजन होते हैं। पाठक,लेखक, प्रकाशक तो मौजूद रहते ही हैं लेकिन इनके अतिरिक्त भी कुछ लोग होते हैं जो पुस्तक मेलों में बहुदा देखे जाते हैं। लेखक दिलीप कुमार का व्यंग्य ‘पंडी ऑन द वे’ पुस्तक मेलों में मौजूद एक ऐसे ही चरित्र पर चिकोटी काटता है। आप भी पढ़ें।

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