नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

छाया मत छूना मन - हिमांशु जोशी | हिंद पॉकेट बुक्स

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 92 | प्रकाशक: हिंद पॉकेट बुक्स

पुस्तक लिंक: अमेज़न

छाया मत छूना मन - हिमांशु जोशी | हिंद पॉकेट बुक्स | समीक्षा

कहानी 

वसुधा घर की बड़ी बेटी थी। पिता के लकवाग्रस्त होने पर घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। पर वह इसे बखूबी निभाती थी। उसने अपना जीवन अब अपने परिवार के लिए समर्पित कर दिया था। इसके लिए उसने एक बड़ा त्याग भी दिया तः। अब वसुधा के घर वालों को लेकर कुछ सपने थे जिन्हें वो पूरा करना चाहती थी।

वसुधा ने घर वालों के लिए क्या त्याग दिया था? 
आखिर घर वालों के लिए देखे गए उसके सपने क्या थे? 
क्या ये सपने कभी पूरे हुए?

मुख्य किरदार 

वसुधा - नायिका
देवेन - वसुधा का दोस्त
कंचन - वसुधा की छोटी बहन
मीचे - वसुधा का छोटा भाई
शर्मा - वह व्यक्ति जिसके टाइपिंग स्कूल में वसुधा सीखती थी
परवीन कौर - वसुधा की माँ 
बिशन दास - परवीन कौर का दूसरा पति
चावला - वसुधा का सहकर्मी 
कुमार - वसुधा का एक सहकर्मी जो फिल्म बनाना चाहता था

मेरे विचार

देखा गया है कि कई बार परिवार में रिश्तों का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग होता है। कई लोग रिश्तों के लिए खुद को घिस देते हैं लेकिन अक्सर जिनके लिए वो ये सब कर रहे होते हैं उनके लिए इन कार्यों की कोई कीमत नहीं रहती है। वह लोग इसे उनका कर्तव्य मान लेते हैं और अपना हक। हिमांशु जोशी का प्रस्तुत उपन्यास 'छाया मत छूना मन' ऐसी ही युवती वसुधा की  मार्मिक कहानी है जिसने अपने आप को अपने परिवार के लिए होम कर दिया पर उसे उसका कोई सिला न मिल सका। उपन्यास में दर्ज जानकारी के अनुसार 1977 में उपन्यास का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था और प्रस्तुत संस्करण 2019 में पुनः प्रकाशित हुआ है।

उपन्यास के केंद्र में वसुधा नाम  है। उपन्यास की कथा उसके इर्द गिर्द ही घूमती है।  कथानक की शुरुआत देवेन के वसुधा के घर आने से होती है।  इसके बाद पाठक को पता चलता है कि देवेन कौन है और वसुधा से उसका क्या संबंध है। यह संबंध कब स्थापित हुआ और अब इसकी स्थति क्या है। 

फिर जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है वैसे वैसे वसुधा के परिवार के अन्य सदस्य जैसे उसकी माँ, उसके लकवाग्रस्त पिता, उसकी बहन कंचों, उसका भाई मीचो के विषय में  पाठक जानते हैं। इसके साथ ही वह परिवार के लोगों के आपसी संबंध और वसुधा के साथ उनके संबंधों के विषय में भी जानते हैं। 

पाठक देखते हैं कि वसुधा की माँ कैसी है और उसके जीवन के ऐसे कौन से अनुभव हैं जिन्होंने उसे ऐसा बना दिया है जैसा कि वो वर्तमान में है। उसके पिता कौन है और क्यूँ उसकी माँ उनकी कद्र नहीं करती है। वसुधा की छोटी बहन कंचों के अपने घर वालों से क्या रिश्ते हैं और वह किस तरह की इंसान है। पाठक देख पाते हैं कि वसुधा के अपने परिवार को लेकर क्या क्या स्वप्न है और उन्हें पूरा करने के लिए वह क्या त्याग करती है। साथ ही इस त्याग का उसे क्या खामियाजा उठाना पड़ता है यह भी उपन्यास में दिखता है। 

हाँ, वसुधा के छोटे भाई मीचो का जिक्र लेखक चलती चाल में करते दिखते हैं। जहाँ वसुधा की माँ और उसकी बहन के किरदार पर अधिक समय देते हैं। वो जैसे हैं वैसे क्यों हैं या जो वो कर रहे हैं उसके साथ उनकी जिंदगी में क्या होता है। यह अब वह अच्छे से दर्शाते हैं वहीं मीचे के विषय में इतना कुछ नहीं आता है। वह एक सीधा सादा लड़का प्रतीत होता है जो घर के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है। अगर उसके विषय या उसकी सोच को दर्शाते हुए भी थोड़ा लिखा होता तो बेहतर होता। वह भी काफी हद तक वसुधा की ही तरह था। 

वसुधा के परिवार वालों के अलावा पाठक वसुधा के दोस्तों और उसके सहकर्मी से भी इस उपन्यास में वाकिफ होते हैं। वसुधा एक ऐसे घर से आती है जहाँ आर्थिक रूप से उसके ऊपर जिम्मेदारी काफी है। ऐसे आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को उनके सहकर्मी कैसे देखते हैं और किस तरह से उनका शोषण करने के फिराक में रहता है यह इधर दिखता है। साथ ही समाज में स्त्री और पुरुष के जो दोहरे मापदंड लागू होते हैं वह भी इधर लेखक दर्शाते हैं।

आभावों के चलते कई बार लोग कैसे जवानी में भटक जाते हैं और उनकी यह भटकन किस तरह उनके जीवन पर असर डालती है यह भी इधर दिखता है। वहीं कई बार रिश्तों में मौजूद असंतुष्टि के चलते जब व्यक्ति रिश्ते से बाहर देखने लगता है तो इसका कैसा असर उसके परिवार पर पड़ता है यह भी इधर दिखता है। 
 
कई बार कई परिवारों में ऐसे लोग दिख जाते हैं जो ऐसे लोगों के लिए अपने आप को होम कर देते हैं जिन्हे शायद उनकी उतनी कद्र नहीं होती है या वो ये मान लेते हैं ऐसा करना तो इनका कर्तव्य है। ऐसे में उस व्यक्ति के मन में क्या बीतती है यह उपन्यास में दर्शायी वसुधा की कहानी से जाना जा सकता है। यह एक दुख भरी कहानी है जहाँ एक स्त्री अपनों की खुशी के लिए अपनी खुशी को भी दरकिनार कर देती है पर चीजें इस तरह से घटित होती हैं कि जो उसे अपनों की वो खुशी भी नहीं मिल पाती है जिसके लिए वो ये कार्य कर रही थी। हाँ, उपन्यास खत्म करते हुए बस ये अच्छा लगता है कि अपने जीवन के आखिरी क्षणों में उसे जो मिला उसने थोड़ा उसको राहत दी होगी। 

कई बार देखा गया है व्यक्ति खुद ही खुद चीजों से जूझता रहता है और अपनी खुद्दारी के चलते अपने चाहने वालों से भी अपनी परेशानी नहीं रख पाता है। यह भी इधर देखने को मिलता है। 

छोटे छोटे अध्याओं में बँटे इस उपन्यास में लेखक ने वसुधा के जीवन के संघर्ष को जीवंत रूप में चित्रित किया है।  उपन्यास के किरदार इस तरह से रचे हैं कि काल्पनिक होते हुए भी वह जीवंत लगते हैं और इन किरदारों में आप अपने आस पास मौजूद लोगों की छाया देख पाते हैं।

लेखक ने आम बोल चाल की भाषा उपन्यास में प्रयोग की है। यहाँ किरदार हिंदी के बीच अंग्रेजी के शब्द बोलते दिखते हैं। वहीं लेखक की भाषा कहीं भी अत्यधिक लकदक नहीं होती है। वह एक सीधी सदी भाषा में ये कहानी कह देते हैं। 

कहानी का शीर्षक गिरिजाकुमार माथुर की कविता 'छाया मत छूना' से लिया गया है। कविता बताती है कि व्यक्ति को अतीत के सुख और कल्पना जगत में विचरण करने के बजाय यथार्थ में जीना चाहिए। आप कविता पढ़ते तो सोचते हो कि वसुधा को भी क्या ये करना चाहिए था? क्या अपने लोगों के लिए देखे गए सपनों के कारण वसुधा यथार्थ में रहकर थोड़ा अपने सुख के लिए भी कार्य करती तो बेहतर न होता। शायद तब वह अपने लोगों का ज्यादा भला कर पाती। पर उपन्यास पढ़कर आप वसुधा के विषय में सोचने के सिवा कुछ कर ही कहाँ पाते हैं। अगर वसुधा जैसी कोई मिले, जो कि अक्सर आपके आस पास रहते हैं, तो शायद आप उन्हें यह कह दें कि कुछ समय के लिए अपने विषय में भी सोचो। जरा सा ही सही थोड़ा खुद के लिए जी लो। 

उपन्यास के इस संस्करण की बात की जाए तो इसमें वर्तनी की  काफी गलतियाँ देखने को मिलती हैं। यह छोटी छोटी गलतियाँ हैं पर पढ़ते हुए पढ़ने के बहाव को बाधित करती हैं और इस कारण पढ़ने के अनुभव को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए:

पृष्ठ 9 में लिखा है 'उसकी बिखरी किताबें, उसके इधर-उधर फले कपड़े...' यहाँ 'फले कपड़े' की जगह 'फैले कपड़े' होना चाहिए था। 

पृष्ठ 36 में लिखा है 'कंवो जान-बूझकर कहीं भाग गई हो।' जबकि 'कंचों जान-बूझकर....' होना चाहिए था। 

पृष्ठ 41 में लिखा है 'सोचती रही - ये लोन कौन हैं?' जबकि होना चाहिए था 'सोचती रही- ये लोग कौन हैं....'।  

पृष्ठ 49 में दर्ज है 'अशफयों की लूट और कोयलों..' जबकि 'अशर्फियों की लूट और कोयलों' होना चाहिए था। 

ऐसी छोटी छोटी वर्तनी की गलतियाँ आगे भी कई जगह आती रहती हैं। 

उपन्यास के इस संस्करण में लेखक का लेखकीय गायब है। मुझे वह लेखकीय पुस्तक डॉट ऑर्ग की साइट पर पढ़ने को मिला। पढ़कर लगा कि प्रकाशक को उसे छापना चाहिए था। उससे उपन्यास की कहानी के विषय में काफी कुछ पता लगता है। आपको उसे पढ़कर देखना चाहिए। उसे निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:


अंत  में यही कहूँगा कि 'छाया मत छूना मन' एक मार्मिक उपन्यास है जो कि आपके मन को छू जाता है। व्यक्ति को अपने परिवार के लिए तो जीना चाहिए लेकिन कुछ लम्हे अपने लिए भी देने चाहिए। अगर ऐसा वो नहीं करेगा तो वो उस परिवार के लिए भी ज्यादा समय तक कुछ नहीं कर पाएगा जिसके लिए वो इतना कुछ कर रहा है। यह इधर दिखता है। अगर वसुधा ने भी थोड़ा अपने लिए सोचा होता तो शायद वह सुखी होती और शायद फिर अपने परिवार को थोड़ा और सुख दे पाती। अगर नहीं पढ़ा तो आप एक बार इसे पढ़कर देख सकते हैं। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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