नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

प्रलयंकारी मणि | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही | चंदु

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: नागराज 

टीम 

कथा: तरुण कुमार वाही | कला निर्देशक:  प्रताप मुलिक | चित्रकार: चंदु | सुलेख: उदय भास्कर  

पुस्तक लिंक: अमेज़न





कहानी 

गोगा और टॉम जब उस व्हेल नामक जहाज में चढ़े थे तो उन्होंने सोचा नहीं था कि उनके जीवन में आगे क्या होगा। उनका मकसद तो चुराई गई मूर्ति को बेचकर अच्छे दाम कमाना था। 

पर उस तूफान ने ऐसी परिस्थियाँ पैदा कर दी कि वह एक टापू पर आ गए। ऐसा टापू जहाँ पर थी वो मणि जिसे पाने का मन उन्होंने बना लिया था।  

कैसा था ये टापू?

टापू पर मणि क्या कर रही थी?

क्या गोगा और टॉम अपने मकसद में कामयाब हो पाए?


मेरे विचार 

'प्रलयंकारी मणि' राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक है जो कि 1986 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। अमेज़न पर जब मैंने यह कॉमिक बुक देखा तो इसके कवर पर लिखे नागराज और कवर पर बने नागराज के हाथों से निकलते सांपों को देखकर लगा था कि यह नागराज का कॉमिक बुक होगा। यह मुगालता इसलिए भी हुआ क्योंकि राज कॉमिक की पुरानी साइट में भी यह कॉमिक बुक नागराज की कॉमिक बुक के अंदर सूचीबद्ध है। पर असल में ऐसा नहीं है। 

प्रलयंकारी मणि एक बत्तीस पृष्ठों का कॉमिक बुक है। यह दो भागों में विभाजित कहानी है जिसकी शुरुआत तो प्रलयंकारी मणि से शुरू होती है लेकिन अंत शंकर शहंशाह में जाकर होता है। 

प्रस्तुत कॉमिक बुक की बात की जाए तो प्रस्तुत कॉमिक बुक गोगा और टॉम नामक दो चोरों की कहानी है। यह दोनों चोर किस तरह परिस्थितिवश नागद्वीप पहुँचते हैं और वहाँ पहुँचकर जो कुछ करते हैं वही कहानी बनती है। कई बार अनजान व्यक्ति की एक अच्छाई के चलते उस पर किए गए विश्वास से कैसे मुसीबत आ सकती है यह इधर दिखता है। कहानी सीधी सादी है। गोगा और टॉम को द्वीप पर एक ऐसी मणि दिखती है जिसे चुराने की वो योजना बनाते हैं। वह इसमें कैसे सफल होते हैं यह इधर दिखता है। 

चूँकि कॉमिक बुक का शीर्षक प्रलंयकारी मणि था तो मुझे लगा था कि मणि के अंदर कुछ ऐसी ताकत होगी जो कि प्रलय ला सकती होगी या फिर वो कुछ खतरनाक हथियार बनने की कुव्वत रखती होगी लेकिन ऐसा इधर कुछ नहीं होता है जो कि थोड़ा निराशाजनक रहता है। 

कॉमिक बुक का अधिकतर हिस्सा नागद्वीप में घटित होता है और आखिर का कुछ हिस्सा मुंबई में होता है। मुंबई का हिस्सा आखिर के दो पृष्ठों में आया है। यहाँ हमें एक स्वामी शंकर शहंशाह दिखता है।  यह आखिर के पृष्ठ का एक फ्रेम ही होता है जिसमें हमें नागराज भी दिखता है। इन दो चीजों से  आपको इतना पता लग जाता है कि नागराज से शंकर शहंशाह का टकराव होना है। यह जानकर अगले भाग की कहानी जानने की इच्छा जरूर जागृत हो जाती है। इसके अलावा शंकर के साथ एक और किरदार मौजूद रहता है तो यह प्रश्न कि, यह किरदार क्यों शंकर के साथ है, भी अगले भाग के प्रति आपकी रुचि जगाता  है।  

आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्टवर्क मुझे पसंद आया। चंदु द्वारा यह आर्टवर्क किया गया है। इस कॉमिक बुक में जैसा आर्ट वैसा आर्ट मुझे हमेशा से ही पसंद आता है। इसमें किरदार बॉडी बिल्डर टाइप नहीं हैं जैसा कि आगे चलकर राज कॉमिक में होने लगे थे। 

अंत में यही कहूँगा कि प्रलयंकारी मणि एक सीधा सादा कथानक वाला कॉमिक बुक है जो कि अगले कॉमिक बुक शंकर शहंशाह के लिए भूमिका बनाती है। नागराज के कॉमिक बुक में विसर्पी आगे जाकर एक महत्वपूर्ण किरदार हो गई थी। उसके परिवार के साथ क्या हुआ यह जानने के लिये यह कॉमिक बुक एक बार पढ़ी जा सकती है। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न



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