नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

नायिका - बिमल मित्र | हिन्द पॉकेट बुक्स

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपर बैक | पृष्ठ संख्या: 196 | प्रकाशक: हिन्द पॉकेट बुक्स 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी 

मंजरी सेन बांग्ला फिल्मों की बड़ी नायिका है। उसके नाम से ही फिल्में हिट हो जाती है। यही कारण है कि प्रोड्यूसर उसके नाज नखरे उठाने के लिए तैयार रहते हैं।

ऐसा ही एक प्रोड्यूसर बलाई सान्याल है जिसकी फिल्म मंजरी कर रही थी। लेकिन बलाई सन्याल की हैरानी का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा जब उसे पता लगा कि मंजरी सेन शूटिंग में आने के बजाए घर से कहीं और चली गई थी।

बलाई जानता था कि अगर मंजरी नहीं आई तो शूटिंग रुक जायेगी और उसका पैसा बर्बाद हो जाएगा। ऐसे में उसे ढूँढ कर लाना जरूरी था।

आखिर मंजरी कहाँ चली गई थी?
वो जिधर गई थी उधर क्यों गई थी?
क्या बलाई सान्याल को मंजरी मिली?

किरदार 

बलाई सान्याल - फिल्म प्रोड्यूसर
विष्णु पद राय - कदमफूलि गाँव का जमीनदार
निरापद - मोहल्ले का लड़का 
गिरी गोविंद - विष्णु बाबू का मुनीम 
हीरक गुप्त - एक बड़ा व्यवसायी जिसका गाँव कदमफ़ूली था
माया - हीरक की पत्नी
वंशीवदन -  हीरक के पैतृक घर के ख्याल रखने के लिए रखा गया व्यक्ति
मंजरी सेन - एक अदाकारा
सत्य मल्लिक - रूपक नाटक कम्पनी का मालिक और डायरेक्टर 
भूपेन राहा - बलाई सन्याल के प्रोडक्शन हाउस का चीफ



विचार 

'नायिका' बिमल मित्र का उपन्यास है। यह उपन्यास प्रथम बार 1972 में हिन्द पॉकेट बुक्स में  प्रकाशित हुआ था। उपन्यास का यह संस्करण हिंद पॉकेट बुक्स, जो पेंगुइन द्वारा अधिकृत कर दिया गया है, ने प्रकाशित किया है। 

उपन्यास के कथानक की शुरुआत एक फिल्म सेट से होती है। फिल्म सेट में शूटिग की तैयारियाँ पूरी हो चुकने के बाद जब नायिका नहीं पहुँचती तो उसकी तलाश शुरू होती है। इसके पश्चात कहानी का ट्रैक बदल जाता है और लेखक नायिका को छोड़ कदमफ़ूली गाँव की ओर मुड़ जाते हैं। कदमफ़ूली गाँव का इतिहास, वहाँ के लोगों और वहाँ की संस्कृति से पाठक वाकिफ होते हैं। उपन्यास का अत्यधिक घटनाक्रम भी कदमफ़ूली गाँव में घटित होता है। पढ़ते हुए कई बार आप सोचते हैं कि मंजरी सेन से शुरू हुई कहानी कदमफूली की कहानी में क्यों बदल गई लेकिन जैसे जैसे आगे आप बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे इसका पता आपको चल जाता है। 

उपन्यास में तीन किरदार मुख्य हैं। ये हैं: मंजरी सेन, हीरक गुप्त और विष्णुपद राय

मंजरी सेन फिल्मों की एक बड़ी अदाकारा हैं। लेकिन यह सफलता उसे ऐसे नहीं मिली है। उसने बड़ी मेहनत से यह अर्जित की है और जिनके कारण उसे यह सफलता मिली है उनके प्रति वह आदर का भाव रखती है। यही कारण है कि वह जानते हुए अपना प्रयोग उनके लाभ के लिए होने देती है। वहीं वह जानती है कि फिल्म प्रोड्यूसरो के लिए वह एक सोने का अंडा देना वाली मुर्गी ही है जिसके नाज नखरे वो इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि उससे कई गुना ज्यादा मुनाफा वो कमाती है। ऐसे में वह भी उन्हें नखरे दिखाने से बाज नहीं आती है।  

हीरक गुप्त कभी कदम फ़ूली गाँव में रहा करता था। उस समय उसके और उसके परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब थी लेकिन अब एक बड़ा व्यवसायी बन चुका है। हीरक हर साल कदमफ़ूली आता है लेकिन इसके पीछे उसका पितृ भूमि के प्रति लगाव नहीं है। उसके यहाँ आने का एक विशेष कारण है। यह कारण क्या है यह उपन्यास पढ़कर ही जाना जाए तो बेहतर है। पर हीरक ने यह समझ लिया है कि इतना धन कमाने के पश्चात भी उसे वो आनंद नहीं मिल पाता है जिसकी तलाश में वो था। वह एक ऐसा जीवन जी रहा है जिसमें उसके पास धन संपदा तो है लेकिन संतोष और शांति नहीं है।  

विष्णु पद राय कदमफ़ूली गाँव के जमींदार थे और कभी समृद्ध थे लेकिन अब उनकी आर्थिक हालत खराब हो चली है। उनका कभी गाँव में सम्मान था। अभी भी लोग सम्मान करते हैं लेकिन वो जानते हैं कि उनका रुतबा अब कम हो रहा है। 

जैसे जैसे उपन्यास आगे बढ़ता वैसे वैसे पाठक इन किरदारों की परेशानियों, इनके इतिहास और इनके आपसी संबंध के विषय में भी जान पाते हैं। वह यह भी जानते हैं कि जहाँ विष्णु पद अपनी आर्थिक विपन्नता के कारण दुखी हैं वहीं मंजरी सेन और हीरक भी सम्पन्न होने के बावजूद उतने सुखी नहीं हैं। 

अक्सर अपने जीवन में अत्यधिक सफलता और धन अर्जित कर चुके व्यक्तियों को हम देखते हैं तो यह सोचते हैं कि उनका जीवन कितना सुखी होगा। उनके जीवन से ईर्ष्या का भाव भी कई बार मन में उत्पन्न होता है लेकिन क्या असल में वो अपने जीवन में उतने सुखी होते हैं। अत्यधिक सफलता और जरूरत से ज्यादा धन किस तरह से व्यक्ति को परेशान तो करता है लेकिन इससे उपजी परेशानियों के बावजूद किस तरह वह व्यक्ति को इतना मजबूर भी कर देता है कि वह उसे छोड़कर कहीं जा नहीं पाता है यही इस उपन्यास में दिखता है। 

इसके अतिरिक्त कदमफ़ूली में आ रहे बदलावों के माध्यम से लेखक ने यह दर्शाया है कि किस तरह गाँव और उसकी संस्कृति भी उस वक्त बदल रही थी।

उपन्यास का शीर्षक नायिका है लेकिन मुझे लगता है कि इसके लिए कोई दूसरा बेहतर शीर्षक होना चाहिए था। उपन्यास के केंद्र में नायिका मंजरी सेन जरूर है और बाकी दो मुख्य किरदार किसी न किसी तरह से उसके जीवन से जुड़े जरूर हैं लेकिन कहानी मंजरी की उतनी नहीं है जितनी इन तीनों की है। अगर मंजरी के दृष्टिकोण से भी कहानी हो तो शीर्षक थोड़ा जमता पर अभी ऐसा नहीं है। शीर्षक पाठक के मन में यह अपेक्षा जगात है कि उपन्यास नायिका के विषय में होगा या उसके दृष्टिकोण से होगा लेकिन उपन्यास का अधिकतर हिस्सा कदमफ़ूली, उसके इतिहास और उसके दो बाशिंदों के आपसी प्रतिद्वंदिता को दर्शाने में खर्च होता है तो उससे शीर्षक न्यायोचित नहीं रह पाता है। चूँकि मुख्य किरदार सुख, शांति और संतोष की तलाश में रहते हैं तो 'तलाश' भी इसका शीर्षक हो सकता था। अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको क्या लगता है? इसका शीर्षक क्या होना चाहिए था? बताइएगा जरूर। 

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप हैं। फिल्म बनाना एक कठिन काम है। साथ ही यह खर्चीला काम भी है। ऐसे में फिल्म कलाकारों के कारण किस तरह प्रोडक्शन पर असर पड़ता है और प्रोड्यूसरों पर इसका क्या असर होता है यह बलाई सान्याल के किरदार से जाना जा सकता है। वहीं निरापद, जो कि कदमफ़ूली के संस्कृति संघ का अध्यक्ष है, के माध्यम से ये जाना जाता है कि किस तरह छोटे से समारोह को करवाने के लिए भी कई तरह की तिकड़म आजमानी पड़ती है।  

प्रस्तुत संस्करण की बात करूँ तो इस संस्करण में यह नहीं दर्ज किया है कि यह अनुवाद है या नहीं। बिमल मित्र मूलतः बांग्ला के रचनाकार थे जिनके उपन्यास अक्सर हिंदी में अनूदित होते हैं। ऐसे में इसके भी अनुवाद होने की सँभवाना अधिक है। अगर ऐसा है तो इधर अनुवादक का नाम न होना थोड़ा खलता है। अगर ये अनुवाद है तो अनुवाद अच्छा हुआ है। पर इस संस्करण में प्रूफ रीडिंग की काफी आवश्यकता है। कई पृष्ठ में वर्तनियों की गलतियाँ हैं जो कि खाने में आए कंकड़ की तरह लगती हैं और पढ़ने की लय और अनुभव को खराब करती हैं। 

अंत में यही कहूँगा कि नायिका एक अच्छे थीम पर लिखा गया उपन्यास है। लेखक जो दर्शाना चाहते थे उसे दर्शाने में सफल भी हुए हैं लेकिन उपन्यास के कथानक को जिस तरह से बुना गया उसे बेहतर तरीके से इसे बुना जा सकता था। अभी इसका शीर्षक इस पर उतना सटीक नहीं बैठ पाता है। शीर्षक से जो अपेक्षा उपजती है वह पूरी नहीं होती है और उसके अनुसार उपन्यास में भटकाव अधिक महसूस होता है। हाँ, शीर्षक को किनारे रख कर अगर इसे बिना अपेक्षा के पढ़ें तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। बिमल मित्र को पहली बार पढ़ रहे हैं तो मेरी राय यही रहेगी कि किसी और उपन्यास से शुरुआत करें। उनकी लिखी दो चार पुस्तकें पढ़ने के बाद इस पर आ सकते हैं। 



पुस्तक लिंक: अमेज़न


यह भी पढ़ें 



FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल