नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बैरिस्टर का प्रेत - ओम प्रकाश शर्मा | नीलम जासूस कार्यालय

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपर बैक | पृष्ठ संख्या: 104 | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय 

पुस्तक लिंक: अमेज़न





कहानी 

कृष्ण दास लखनऊ के एक नामी वकील थे। लखनऊ और इलाहाबाद में उनकी धाक थी। वहीं धार्मिक व्यक्ति होने के चलते उनका काफी सम्मान भी था।  लोग जानते थे कि वो जब लखनऊ में रहते तो रोज प्रातः चार बजे गोमती में जाकर स्नान करते थे।

उस दिन भी वो स्नान करने गए लेकिन लौट कर नहीं आए। 

पुलिस का कहना था कि वो शायद किसी दुर्घटना के शिकार हो गए थे।

वहीं उनका सहायक दिनेश चंद्र इस बात को मानने को तैयार नहीं था।

फिर जब कृष्ण दास की कोठी में उनका प्रेत देखा जाने लगा तो मामले ने नया मोड़ ले लिया।

अब दिनेश ने प्राइवेट जासूस कमल को इस गुत्थी को सुलझाने बुलाया था।

आखिर कृष्ण दास कहाँ गायब हो गए थे?

क्या सचमुच उनका प्रेत भटक रहा था या ये कोई साजिश थी?

कमल किस तरह से मामले की जड़ तक पहुँचा?


किरदार 


कृष्ण दास - लखनऊ के नामी वकील
लता - कृष्णदास की दूसरी पत्नी
जानकी - लता की मां
दिनेश चंद्र - वकील और कृष्ण दास का सहायक
कमल - प्राइवेट जासूस
शीला - कमल की सेक्रेट्री
नवाब बेअसर - दिनेश के दोस्त जो एक शौकिया जासूस थे
दुपई और महाराजिन - नौकर
रामलाल - कृष्ण दास का ड्राइवर 
अरुण - एक प्रोफेसर 
राजेश - खुफिया विभाग का बड़ा अफसर 
बाकर अली   - गोमती फॉरेस्ट रेंज के रेंजर 
रोशन सिंह - सब इंस्पेक्टर


विचार 

बैरिस्टर का प्रेत जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा का उपन्यास है। यह उपन्यास नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया गया। 

उपन्यास का घटनाक्रम लखनऊ में घटित होता है। यह एक जासूसी  उपन्यास है जिसमें प्राइवेट डिटेक्टिव कमल को इस बात का पता लगाने के लिए नियुक्त किया जाता है कि कृष्ण दास की कोठी में दिखते कृष्ण दास के प्रेत के पीछे क्या रहस्य है? कमल अपनी सेक्रेटरी शीला के साथ मिलकर इस मामले की क्या जाँच करता है। इस दौरान क्या बात उजागर होती है। जाँच का नतीजा क्या निकलता है और कैसे असल बात का पता चलता है? यह सब ही उपन्यास का कथानक बनता है। 

जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यासों की बात करें तो उनके जासूसी उपन्यासों में भी सामाजिक बात होती है। वह केवल मनोरंजन के लिए लिखे गए नहीं होते हैं। हमारे समाज में बेमेल विवाह की रवायत रही है। अक्सर कम उम्र की लड़कियाँ अमीर अधेड़ पुरुष से ब्याही जाती है। कई बार लड़की की सहमति भी नहीं ली जाती है। फिर इस लेनदेन के बाद जो जोड़ी बनती है उसमें प्रेम कम सौदे का भाव अधिक होता है। ऐसे विवाह से किस तरह से अनेक ज़िंदगियाँ बर्बाद हो सकती है यह भी इधर दिखता है। वहीं कई बार स्त्रियाँ भी पैसों के खातिर विवाह कर लेती हैं। वहीं कई स्त्रियाँ दो नाव की सवारी कर रही होती हैं। ऐसे में स्त्रियों का यह कृत्य जीवन पर असर डाल देता है यह भी दिखता है। उपन्यास में दो किरदार हैं और दोनों ही पीड़क और पीड़ित हैं। अक्सर ऐसे मामले आस पास देखने को मिल जाते हैं लेकिन फिर भी समाज इनसे सीख नहीं लेता है। ऐसे में कैसे कई ज़िंदगियाँ बर्बाद हो जाती हैं यह इधर दिखता है। 

उपन्यास के विषय में बात करूँ तो इसमें जासूस जरूर है लेकिन जासूसी काफी कम दिखती है। आखिर में भी  नायक को एक बात पता चलती है और वह अपने साथियों के साथ एक जगह पर पहुँचता है। फिर कुछ रोमांचक घटनाओं के बाद प्रेत के पीछे के व्यक्ति की पहचान उजागर होती है। उपन्यास का यह हिस्सा रोचक बन पड़ा है। 

उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो बैरिस्टर के प्रेत की हकीकत जिस तरह से उजागर होती है उसमें जासूसी का उतना लेना देना नहीं होता है। अगर नायक जासूसी करके प्रेतों का रहस्य उजागर करता तो शायद कथानक और अधिक रोमांचक बन सकता था।

कहानी के अंत में एक नवीन किरदार भी आता है जो लेखक द्वारा  कहानी को आगे बढ़ाने के लिए गढ़ा गया लगता है। अगर इस किरदार को कहानी के लगभग अंत में लाने के अलावा शुरुआत या बीच में भी इक्का दुक्का बार ले आया जाता तो यह रहस्य के तत्व को और बढ़ा सकता था।

उपन्यास का अंत दुखांत होता है। एक तरह से लेखक ने यह दर्शाया है कि ऐसे किरदारों के साथ नियति भी क्रूर हो जाती है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि उस अंत के बजाय दोनों किरदारों द्वारा बेहतर जीवन जीने की राह का चुनाव होते दर्शाया जाता तो शायद बेहतर होता। लेकिन यह मेरी व्यक्तिगत सोच ही है। 

किरदारों की बात की जाए तो यहाँ जासूस के रूप में कमल है। कमल एक प्राइवेट जासूस है जो अपनी सेक्रेटरी शीला के साथ मामले सुलझाता है। कमल और शीला के बीच का समीकरण रोचक है। उनकी बीच की नोक झोंक मनोरंजक है। कमल और शीला को लेकर अगर जनप्रिय जी ने और भी उपन्यास लिखे होंगे तो उन्हें भी मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा। 

उपन्यास में नवाब बेअसर नाम का एक किरदार है जो कि एक धनाढ्य परिवार से है और शौकिया जासूस भी है। यह किरदार भी रोचक बन पड़ा है और उपन्यास में हास्य पैदा करने में सबसे आगे रहता है। नवाब बेअसर जितने दृश्यों में आयें हैं उनमें मज़ा आया है। 

उपन्यास में राजेश भी मौजूद हैं। राजेश जिस तरह की समझदारी और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते हैं वह इधर दृष्टिगोचर होती है। बस एक बार उनका शांत स्वभाव डगमगाता है और वो गुस्से में आते दिखते हैं। यह आप पढ़कर जाने तो मज़ा आएगा। 

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप हैं। 

उपन्यास की भाषा की बात की जाए तो भाषा सहज सरल है। नवाब बेअसर के वजह से थोड़ी मज़ाकिया शायरी भी उपन्यास में पढ़ने को मिलती है जो कि मनोरंजन करती है।  

अंत में यही कहूँगा कि यह उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। हाँ, रहस्य और जासूसी के तत्व थोड़ा और अधिक मजबूत होते तो बेहतर होता लेकिन उसकी भरपाई लेखक रोचक किरदारों से कर देते है जो कि उपन्यास को पाठक के लिए मनोरंजक बनाकर रखते हैं। अपने रोचक किरदारों के लिए यह उपन्यास एक बार पढ़कर आप देख सकते हैं।   


उपन्यास का अंश जो पसंद आया

मानव मन की तुलना अगर हम दुर्गम चट्टान से करें तो अनुपयुक्त न् होगा। वज्र की तरह कठोर होता है मानव मन। वज्र की तरह कठोर मन का नियंत्रण होता है मानव स्मृति पर और मानव स्मृति प्रियजन की मृत्यु तक को भुला देती है। (पृष्ठ 43-44)


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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