नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

हिम्मत सवार - अमिताभ शंकर राय चौधरी | चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 112 | प्रकाशक: चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट 



कहानी 

हरजोत के पिता जोगिंदर केदारनाथ में श्रद्धालुओं को अपने  घोड़े के माध्यम से यात्रा कराने का कार्य करते थे। उस दिन भी उन्हें किसी को यात्रा ले जाना था जब उन्हें अचानक उनकी बेटी के ससुराल जाना पड़ा।

अब उन श्रद्धालुओं को यात्रा पर ले जाने की जिम्मेदारी हरजोत की थी।

हरजोत यात्रा पर श्रद्धालुओं को लेकर अपने घोड़े सुलतान के साथ निकला  था।  वह अपना काम करके लौटकर या रहा था कि फिर जमीन थरथराने लगी और फिर उसी दिन केदारनाथ का वह भीषण हादसा हुआ जिसने सबकी साँस अटका दी। वहाँ अब बाड़ आ चुकी थी और हरजोत अपने घोड़े सुलतान के साथ कहीं खो गया था।

आखिर हरजोत और सुलतान के साथ इस बाढ़ में क्या हुआ?

हरजोत कहाँ गायब था?

गायब रहने के दौरान उसके साथ क्या क्या हुआ?

क्या वो वापस अपने घर लौट पाया?


मुख्य किरदार 

हरजोत - एक बालक 
फूलदेई - हरजोत की माता 
जोगिंदर - हरजोत के पिता 
लखेड़ा - हरजोत के दादाजी 
संतों - हरजोत की दादी  
गौंण - हरजोत का छोटा भाई 
देवली - हरजोत की बहन 
मोती -  एक झबरा कुत्ता 
इन्द्रनाथ - एक तीर्थयात्री 
अमृत - इंद्रनाथ का पुत्र 
नाथु, पान्याल, सेमवाल, बस्तीलाल - एक व्यक्ति जो कि घोड़े से तीर्थयात्रियों को दर्शन करवाते थे 
चक्रधारी - एक फौजी


मेरे विचार

अमिताभ शंकर चौधरी का बाल उपन्यास हिम्मत सवार सन 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी की पृष्ठ भूमि पर लिखा गया है। उपन्यास चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह बात भी उल्लेख करने योग्य है कि चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित बाल साहित्य की प्रतियोगिता में हिम्मत सवार को द्वितीय पुरुस्कार मिला था। 

उपन्यास की बात की जाए तो उपन्यास के केंद्र में हरजोत नाम का एक बालक है। हरजोत के पिता श्रद्धालुओं को घोड़े पर केदारनाथ तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। जब वह किसी कारणवश यह कार्य नहीं कर पते हैं तो हरजोत इस कार्य में उनकी मदद करता है। यह काम वह अपने पालतू घोड़े सुलतान की मदद से करता है जिसका वो परिवार के सदस्य की तरह ख्याल रखता है। दुर्घटना वाले दिन भी हरजोत सुल्तान की मदद से श्रद्धालुओं को छोड़कर आ रहा होता है कि वह हृदय विदारक घटना हो जाती है जिसने इतने श्रद्धालुओ और स्थानीय लोगों को हताहत किया था। मंदाकनी नदी का पानी उफान पर चला जाता है और  हरजोत अपने घोड़े सुलतान के साथ उफनते पानी की लहरों में खो जाता है। हरजोत के साथ इसके बाद क्या होता है? वह और सुलतान किन किन मुसीबतो से जूझकर बच निकलते हैं और इस दौरान उन्हें क्या क्या अनुभव होते हैं? यह वह सवाल हैं जिसका जवाब यह उपन्यास देता है। 

उपन्यास में हरजोत के साथ साथ एक बालक अमृत भी है। अमृत अपने परिवार के साथ केदारनाथ आया था और हरजोत के घोड़े में बैठकर केदारनाथ गया था। अमृत और उसका परिवार भी इस त्रासदी के दौरान फँस जाता है और किस तरह वह अपनी परेशानी से उभरते हैं। वहीं अमृत और हरजोत की जो दोस्ती थोड़े ही वक्त में हो गई थी उसकी लाज वो कैसे रखता है। यह भी उपन्यास पढ़कर पाठक जान पाते हैं। 

सरल सहज भाषा में लिखा गया यह उपन्यास हरजोत और अमृत की कहानी तो कहता ही है साथ ही इस कहानी की मदद से पर्यावरण पर पड़ते इंसानी दखल के दुष्प्रभाव, पहाड़ के जीवन और उनकी परेशानियाँ, पहाड़ी लोगों की संस्कृति,  केदारनाथ और उसके आस पास के दर्शनीय स्थलों की कहानियाँ भी दर्शाता है। चक्रधारी के माध्यम से फौजी और उनके जीवन के कई पहलुओं को भी यह उपन्यास दर्शाता है। जहाँ एक तरफ जब मनुष्य पर मुसीबत आती है तो कई लोग इकट्ठा हो जाते हैं लेकिन कई लोग किस तरह से भेद भाव करने लगते हैं यह भी इधर दिखता है। हरजोत के परिवार और अमृत के परिवार के बीच के हँसी मज़ाक के दृश्य भी बड़े रोचक बन पड़े हैं। हरजोत के छोटे भाई गौंण और अमृत की दादी की बातें चेहरे पर मुस्कराहट ले आती हैं।

उपन्यास रोचक शैली में लिखा गया है। हरजोत और अमृत किस तरह से अपनी अपनी मुसीबतों से निकलेंगे यह देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। चूँकि मैं खुद गढ़वाल सेआता हूँ तो केदारनाथ की संकृति हमारी संस्कृति ही है। ऐसे में लेखक द्वारा उनका प्रयोग करते देखना अच्छा लगा। इसने मुझे कथानक के साथ और अधिक जोड़ा। उपन्यास में एक गुलदार वाला प्रसंग है वो अत्यधिक रोमांचक बन पड़ा है। 

उपन्यास में ऐसी कोई कमी मुझे विशेष तौर पर नहीं दिखी। हाँ, आखिर में जब  हरजोत को बचा लिया जाता है तो यह भी दर्शाते कि उसके घावों की मरम्पट्टी की गई तो सही रहता। गुलदार के नाखून से लगे घाव इतनी आसानी से नजरंदाज नहीं हो पाते हैं। पर इधर उनकी बात नहीं होती है। 

ऊपर लिखी छोटी सी बात छोड़ दी जाए तो मुझे यह पठनीय उपन्यास लगा। चूँकि असल त्रासदी को आधार बनाकर लिखा गया है तो लेखक ने कल्पना के घोड़ों को थोड़ा थाम कर रखा है। पर यह ठीक भी है। उपन्यास पढ़कर देख सकते हैं। बाल पाठकों को यह पसंद आना चाहिए। 

नोट: मैंने यह उपन्यास नई दिल्ली पुस्तक मेला 2023 में खरीदा था। उस मेले के संस्मरण आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

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