नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सिम्हा | फेनिल कॉमिक्स | बजरंगी #2 | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 21 | प्रकाशन: फेनिल कॉमिक्स | सीरीज: बजरंगी #1 

टीम

कहानी: फेनिल शरेडीवाला | लेखक: फेनिल शेरडीवाला, वीरेंद्र कुशवाहा | पेन्सिलर: आनंद जादव | कलरिस्ट: हरेन्द्र सिंह नेगी | सहयोग: व्योमा मिश्रा | शब्दांकन: संदीप गुप्ता | मुख्य पृष्ठ: आनंद जादव, भक्त रंजन

कॉमिक बुक लिंक: फेनिल कॉमिक्स | फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण 


सिम्हा | फेनिल कॉमिक्स | बजरंगी #2 | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा

कहानी 

वज्र बहुत समय बाद अपने गाँव देवीपुर लौटा था।

वह अब तक आपने गाँव के हालात, अपनी पहचान और अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ था लेकिन अब वह गाँव के विषय में जानना चाहता था। 

पर कोई था जो नहीं चाहता था कि वज्र गाँव में रहे। शायद इसीलिए उस पर जानलेवा हमला हुआ था।

आखिर कौन थे वो लोग जो वज्र के खिलाफ साजिश रच रहे थे?

इस हमले का क्या असर हुआ?

वज्र और उसके परिवार वालों ने क्या किया?


विचार

'सिम्हा' फेनिल कॉमिक्स के बजरंगी शृंखला का दूसरा कॉमिक बुक है। इससे पूर्व इसका भाग 1411 आ चुका है और इस कॉमिक बुक की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ 1411 की खत्म हुई थी। यहां 1411 की कहानी भले ही संक्षेप में दी गई है लेकिन अगर आपने वो नहीं पढ़ी है तो आपको इसे पढ़ने से पहले उसे जरूर पढ़ना चाहिए।

सिम्हा की बात की जाए इसमें वज्र की कहानी थोड़ा ही आगे सरकती है। 1411 के अंत में हम देखते हैं कि वज्र पर एक हमला होता है और वो हमलावर के पीछे एक गुप्त कमरे तक पहुँचता है। इसके बाद क्या होता है यही कहानी बनती है। सिम्हा केवल 19 पेज का कॉमिक बुक है तो इसमें कहानी बढ़ाने का इतना स्कॉप वैसे भी नहीं था। 

यहाँ इतना कहना काफी है कि वज्र के पिता के द्वारा  एक निर्णय लिया जाता है और उस निर्णय के बाद जो होता है वो नए कॉमिक बुक के लिए छोड़ दिया जाता है।

कथानक की बात करूँ तो यह आपको संतुष्ट नहीं कर पाता है। एक तो ज्यादा कुछ इस कॉमिक में होता नहीं है। ऐसे में आपको लगता है कि ये पार्ट केवल पार्ट बनाना है इसलिए ही बनाया गया है। चूँकि मैंने तीसरा भाग भी पढ़ लिया है तो मुझे लगता है कि दूसरा और तीसरा भाग मिलाकर एक ही भाग बनाया जा सकता था। ऐसे में वो भी पहले भाग की तरह 40+ पेज का बनता और पाठकों को संतुष्ट करने में सफल होता।

कथानक की लंबाई के अतिरिक्त अन्य  कमियों की बात करूँ तो एक दो कमी इसमें थीं जो मुझे लगी। उदाहरण के लिए: एक प्रसंग है जिसमें एक बेटे के सामने उसके पिता पर हमला होता है। लेकिन बेटा तब तक हमला होते हुए देखता है जब तक पिता बुरी तरह घायल होकर बेदम नहीं हो जाता है। ये  अजीब लगता है। जो बेटा अपने पिता की मौखिक बेइज्जती पहले भाग में नहीं सह पाया था उसका ऐसा आचरण उसके किरदार के विरुद्ध ही लगता है।

इसके अतिरिक्त खलनायक तलवार नुमा हथियार लेकर नायक पर हमला करते दिखते हैं। बताया गया है कि वो खूँखार हैं और ताकतवर हैं। नायक एक आम व्यक्ति है। उसके अंदर कोई सुपरहीरो जैसी ताकतें नहीं हैं।  अगर तलवार से चार पाँच लोग किसी पर वार करें तो उसके अंग क्षत विक्षित हो जायेंगे। हाथ पाँव कट कर अलग हो जायेंगे। पर ऐसा दिखता नहीं है। 

कहानी में एक बिंदु ऐसा आता है जब नायक के पास वार सहने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं होता है। लेकिन खलनायक इसमें भी कोई खतरनाक वार करते नहीं दिखते हैं। मतलब गर्दन पर वार किया जा सकता था। चार पाँच लोग नायक से लड़ते दिखते हैं। सबके हाथ में दो दो तलवारनुमा हथियार हैं, पर फिर भी  किसी का तलवार घोप कर नायक को न मारना थोड़ा अटपटा लगता है।

कॉमिक का नाम सिम्हा है। लेकिन ये क्यों है इसका पता कॉमिक के अंत तक नहीं लगता है। तीसरे भाग में पता लगता है कि एक सफेद बाघ, जो कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, का नाम सिम्हा रहता है। चूँकि उसे  इधर पहली बार दर्शाकर उसका परिचय पाठकों से करवाया जा रहा है तो नाम का औचित्य है। पर उसका नाम सिम्हा है ये इधर बताया रहता तो अच्छा था। अभी तो कॉमिक खत्म होने के बाद पाठक यही सोचता है कि इसका नाय सिंहा क्यों रखा गया है। अपनी बात करूँ तो जब तक मैंने तीसरा भाग नहीं पढ़ा था तब तक मुझे लगा था कि इसका नाम् सिम्हा की जगह व्याघ्र रखा जाता तो बेहतर होता। वैसे भी बाघ का नाम शेर रखना अटपटा ही होता है। 

आर्टवर्क की बात करूँ तो फेनिल का कमजोर पक्ष आर्टवर्क ही रहता है। यहाँ भी ऐसा ही है। आर्टवर्क ऐसा नहीं है कि जो आपको प्रभावित करे।

एक बार मुझे समझ नहीं आती। फेनिल कॉमिक के आर्टवर्क में मैंने एक बात नोट की है। इसमें ही नहीं इससे पहले मैंने जासूस बलराम के कॉमिक्स भी पढ़े थे उसमें भी ये नोट किया था। जहाँ अन्य कॉमिक्स अक्सर अपने नायकों के चेहरे मोहरे अच्छे से बनाते हैं वहीं फेनिल कॉमिक में बाकी किरदारों के चेहरे मोहरे तो ठीक ठाक होते हैं लेकिन नायकों के चेहरे बनाने में कम ही मेहनत की गई लगती है। यह इधर भी दिखता है। 

अंत में यही कहूँगा कि प्रस्तुत कॉमिक सिम्हा 1411 को थोड़ा सा आगे सरकाती है।  अभी अंत में भले ही यह अगले भाग के प्रति रुचि जागृत करने में सफल होती है लेकिन एक असंतुष्टि का भाव पाठकों के मन के इसे लेकर बना रहता है। ऐसा लगता है किसी ने खीर की कटोरी के बजाय दो चम्मच खीर आपको दी हो और कहा हो कटोरी अगली बार मिलेगी। अगर इसे और तीसरे भाग को मिलाकर एक कॉमिक बना देते तो मेरे ख्याल से बेहतर होता।


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