नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

लाल रेखा - कुशवाहा कांत | राजपाल एंड सन्स

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 188 | प्रकाशन: राजपाल प्रकाशन 

पुस्तक लिंक: अमेज़न


कहानी 

लाल और रेखा ऐसे दोस्त थे जिनके बीच प्रगाढ़ स्नेह था। वह साथ पढ़े लिखे थे और एक दूसरे के पड़ोस में रहते थे। 

लालचंद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए मंडल नामक संस्था में शामिल हो गया था। मंडल के सदस्य के रूप में उसे ऐसे ऐसे कारनामों को अंजाम देना पड़ता था जो उसकी जान साँसत में डाल देता था। पर मातृभूमि के लिए उसे अपनी जान न्यौछावर करने में भी कोई गुरेज नहीं था। लाल जिस रास्ते पर निकला था उसकी मंजिल मौत ही थी। 

रेखा पुलिस सुप्रीटेंडेंट की लड़की और लाल की दोस्त थी। लाल का ऐसा कुछ भी न था जो रेखा से छुपा रह सकता था। रेखा की दिली इच्छा भी देश सेवा करने की थी। वह भी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना चाहती थी। 

क्या लाल को अपनी मंजिल मिली? 

क्या रेखा की इच्छा की पूर्ति हुई?


किरदार 

मिस्टर शर्मा - पुलिस सुप्रीटेंडेंट 
रामलाल - सार्जेंट 
रेखा - मिस्टर शर्मा की बेटी 
दाई - मिस्टर शर्मा के घर काम करने वाली औरत जिसने रेखा को बचपन से पाला था
लालचंद - रेखा का सहपाठी और पड़ोसी 
चंद्रनाथ - मंडल का सदस्य 
मिस्टर सक्सेना - सेशंस जज 
सियावन - लखनपुर गाँव का एक व्यक्ति 
नयना - सियावन की बेटी 
मनोहर - लखनपुर का निवासी जो नयना पर मोहित था 

मेरे विचार

'लाल रेखा' (Laal Rekha) कुशवाहा कांत (Kushwaha Kant) का लिखा उपन्यास है जो कि 1950 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास अब राजपाल एंड संस (Rajpal and Sons) द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है। 

जैसे कि शीर्षक से जाहिर होता है उपन्यास के केंद्र में लाल और रेखा नामक दो किशोर हैं।  मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम के चलते इन दो किशोरों के जीवन में क्या क्या होता है?  उन्हें इस पथ पर आगे बढ़ते हुए किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है? इस पथ पर उन्हें क्या क्या बलिदान देने पड़ते हैं? यही सब उपन्यास का कथानक बनता है। 

उपन्यास एक ऐसे समय को दर्शाता है जब लोगों को सरकार के खिलाफ कार्य होना था। ये काम उन्हें गुपचुप तरीके से करना होता था। ऐसे में देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले लोगों चीजों को छुपाकर भी रखना पड़ता था। यहाँ भी रहस्य मौजूद हैं। ऐसे किरदार उपन्यास में आते हैं जो कि रहस्यमय रहते हैं और वह कौन हैं यह जानने के लिए व्यक्ति उपन्यास के पृष्ठ पटलता जाता है। 

उपन्यास चूँकि अंग्रेजी हुकूमत के वक्त है तो उस समय क्रांतिकारियों पर किस तरह के जुल्म किए जाते थे इसके प्रसंग भी उपन्यास में देखने को मिलते हैं। 

किरदारों की बात की जाए तो लाल और रेखा, जैसे कि उपन्यास के शीर्षक से जाहिर होता है, उपन्यास के केंद्रीय किरदार हैं। 

लाल को मातृभूमि की सेवा के लिए क्या क्या करना होता है और किस तरह उसकी जान साँसत में पड़ती है यही इधर दिखता है। एक युवा को मातृभूमि की सेवा के चलते क्या क्या बलिदान देने पड़ते हैं। कैसे परिवार, प्रेम और मातृभूमि में से चुनाव करना पड़ता है। और इस कारण प्रेम और परिवार की जिम्मेदारी से मुँह मोड़ना पड़ता है। यह सब भी इधर दिखता है।

रेखा लाल की सहपाठी और दोस्त है। वह पुलिस सुप्रीटेंडेंट की पुत्री है लेकिन वह भी अंग्रेजी सरकार से उतनी ही नफरत करती है जितना कि कोई भी देशभक्त करता है। वैसे  तो उसे लड़की समझ कर लोग कम आँकते हैं लेकिन वह उपन्यास में बार बार इस बात का परिचय देती है कि वह एक समझदार लड़की है जो किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं है। वह ऐसी चीजें ताड़ लेती है जो कि आम व्यक्ति के वश में नहीं होती। इससे दिखता है कि अल्हड़ सी लगती यह लड़की लड़कों से बीस ही है उन्नीस नहीं।  

उपन्यास में एक किरदार नयना का भी है जो कि गाँव की एक लड़की है। इस किरदार को बड़े ही फिल्मी तरीके से गढ़ा है। यह एक जिद्दी लड़की है जो कि लाल के चेहरे को देखकर मोहित हो जाती है और उसकी ये आसक्ति आगे क्या क्या परेशानी लाती है यह कथानक को और अधिक मनोरंजक बना देता है। वैसे मुझे  व्यक्तिगत तौर पर लगता है इस किरदार को और बेहतर तरीके से गढ़ा जा सकता था। कुछ ऐसे प्रसंग लाए जा सकते थे जो कि नयना के लाल के प्रति आसक्त होने को तर्कसंगत बनाते।

इनके अतिरिक्त उपन्यास में दाई का किरदार भी मौजूद है। वह एक आम सी नौकरानी है जिसकी इच्छा रेखा को खुश देखना और उसका ख्याल रखना है। रेखा और दाई के बीच की बातें भी मनोरंजक बन पड़ी है। उनके बीच नोक झोंक होती रहती है जिसे पढ़ने में मज़ा आता है। 

उपन्यास के अन्य किरदार कथानक के अनुरूप है। लाल मंडल नामक संस्था का सदस्य रहता है। इस संस्था का सदस्य एक रहस्यमय किरदार है जो कि इस तरह अपने कार्य को अंजाम देता है कि कोई उसकी पहचान बता नहीं पाता है। यह कथानक में रहस्य का पुट ले आता है। ऐसा ही एक किरदार लाल के प्रतिद्वंदी के रूप में भी आता है। यह भी उपन्यास में रहस्य का पुट बढ़ा देता है। 

यह सभी किरदार कथानक को रोचक बनाते हैं। उपन्यास के अधिकतर किरदार जीवंत लगते हैं। 

उपन्यास की भाषा शैली की बात करूँ तो यह उपन्यास सहज सरल भाषा में लिखा गया है। कुछ कुछ जगह लेखक का भाषाई कौशल उसके विवरणों में देखने को मिलता है। रेखा और लाल और छाया और लाल के बीच के डायलॉग्स भी रोचक बन पड़े हैं। जहाँ छाया और लाल के बीच के संवादों में रोमानियत अधिक है वहीं रेखा और लाल के बीच के संवादों में रेखा की क्रांति की लड़ाई में शामिल होने की जद्दोजहद देखी जा सकती है। हाँ, चूँकि उपन्यास लगभग 70 साल पहले लिखा गया था तो डायलॉग कई बार अतिनाटकीय भी लगते हैं।  

लोगों ने चाँद का हँसना देखा है, बादल का बरसना भी देखा है तो जाड़े की कँपाती अँधेरी रात में, घास के पत्तों पर चुपचाप ठिठुर कर बैठी हुई ओस की कुछ निरीह बूँदों का दर्द कौन समझे? (पृष्ठ 8)

ज़िंदगी में बहुत कम लोग आते हैं लेकिन आँखों में बहुत कम बस पाते हैं परदेसी! और जो आँखों में घर बना लेते हैं, वे जल्दी निकाले नहीं निकलते। (पृष्ठ 43) 

 उपन्यास की कमी की बात करूँ तो इसकी एक कमी नयना का किरदार है। नयना जिस तरह से लाल पर मोहित होती है वह प्रसंग थोड़ा बेहतर बन सकता था। इसके अतिरिक्त उपन्यास में जो रहस्यमय किरदार हैं उनका अंदाजा लेखक द्वारा उनकी पहचान उजागर करने से पहले हो जाता है। कहानी में ऐसे प्रसंग होते जो कि पहचान को लेकर थोड़ा और दुविधा उत्पन्न करते तो इनकी पहचान का उजागर होना पाठक के लिए आश्चर्य पैदा करने वाला होता जो कि उपन्यास की रोचकता बढ़ा सकता था। इसके अतिरिक्त उपन्यास के कुछ संवाद आज के समय के हिसाब से थोड़ा अतिनाटकीय लग सकते हैं लेकिन वो व्यक्तिगत रूप से मुझे इतना नहीं अखरे। 

अंत में यही कहूँगा कि कुशवाहा कांत की लाल रेखा रोचक उपन्यास है। उपन्यास पठनीय है और अपने प्रथम प्रकाशन के सत्तर वर्ष बाद भी यह मनोरंजन करता है। हाँ, कुछ चीजें समय के साथ साथ अतिनाटकीय लग सकती हैं और कुछ एक बिंदुओं को उस वक्त संपादन से बेहतर बनाया जा सकता था लेकिन फिर भी अगर आप इस बात का ध्यान रखें कि यह कब लिखा गया था तो उपन्यास का लुत्फ उठा पाएँगे। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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2 Comments
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  1. 'लाल रेखा' मैंने पढ़ा है. बहुत अच्छा है और अंतिम ट्विस्ट भौंचक्का कर देने वाला है. स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास 'खून दो आज़ादी लो' तथा 'बिच्छू' 'लाल रेखा' से ही प्रेरित थे. आपने आज के युग के पाठकों को इस क्लासिक उपन्यास से परिचित करवाकर सराहनीय कार्य किया है.

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    1. वाह!! आपने ये नवीन जानकारी साझा की। मेरी वेद जी के इन उपन्यासों को पढ़ने की कोशिश रहेगी। लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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