नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

हे राम | राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता | तरुण कुमार वाही | मनु

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपर बैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता | शृंखला: डोगा

टीम
लेखक: तरुण कुमार वाही | परिकल्पना: विवेक मोहन | आर्ट: मनुसुलेख व रंग: सुनील पांडेय

हे राम | राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता | तरुण कुमार वाही | मनु


कहानी

हरिबाबू को लोग हरिबापू के नाम से जानते थे। अहिंसा के पुजारी हरिबापू ने इस गांधी जयंती को हिंसा के स्रोत हथियारों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया था।

अपने मकसद के लिए हरिबापू ने जो कार्य उसने उन्हें एक अपराधी 'दादा' के सामने लाकर खड़ा कर दिया।

दादा के लिए लोगों का खून बहाना कोई बड़ी बात नहीं थी। अपने दुश्मनों को गाजर मूली की तरह काटने में वह विश्वास रखता था। अब उसने हरिबापू और उसके साथियों से बदला लेने की ठान ली थी।

क्या हुआ इस टकराव का नतीजा?
डोगा की हरिबापू और दादा के बीच के टकराव में क्या भूमिका रही?


मेरे विचार

'हे राम' राज कॉमिक्स द्वारा मनीष गुप्ता द्वारा प्रकाशित डोगा डाइजेस्ट 19 में संकलित चित्रकथा है। यह तीन भागों में विभाजित कथानक का पहला भाग है। 'टॉर्चर' और 'जालियाँवाला' इस कथानक के अन्य भाग हैं। 

अहिंसा का मार्ग बहुत कठिन है। मनुष्य या यूँ कहें हर जानवर के भीतर हिंसा होती ही है। यह हिंसा गुस्से के रूप में फूटती रहती है। कई बार जब मनुष्य अपने से ताकतवर के सामने होता है तो इसे दबा देता है लेकिन कमजोर के सामने होता है तो इसे जाहिर कर देता है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति अहिंसा की बात कहे तो जाहिर है कई लोग यह समझ सकते हैं  कि वह अपनी कायरता को अहिंसा के आवरण तले दबाने की कोशिश कर रहा है। पर कई बार ऐसा नहीं होता है। अगर व्यक्ति अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अपने उसूलों से समझौता नहीं करता है तो उसके लिए सम्मान का भाव मन में जागृत होना लाजमी है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर सामने वाला हिंसा करने को आतुर हो तो अहिंसा का दामन थामे अपने उसूलों पर अडिग रहना बहुत ही अधिक बहादुरी का कार्य होता है। लेकिन फिर सवाल उठता है कि आज के जमाने में क्या ऐसा करना समझदारी है? क्या जुल्म करने वाले को अहिंसा के माध्यम से  हराया जा सकता है? और कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे क्या क्या कुर्बानी देनी होती है?

ऐसे ही सवाल और उनके जवाब आपको राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक 'हे राम' में मिलते हैं।  हरिबापू अहिंसा के मार्ग के राही हैं और इसलिए लोग उनकी इज्जत करते हैं। कॉमिक बुक की शुरुआत में ही आपको हरीबापू और उनके सिद्धांत की झलक मिल जाती है। पर मुंबई में इंसानों के साथ-साथ इंसानी खाल को ओढ़े ऐसे लातों के भूत भी रहते हैं जो कि बातों से नहीं मानते हैं। जैसे जैसे कॉमिक आगे बढ़ती है वैसे ही आपको ऐसे किरदार भी मिलते हैं। इन्हीं किरदारों में मुख्य किरदार दादा है जिसका मुंबई की आपराधिक दुनिया में अपना एक वर्चस्व है और जो कि अपने मकसद को पाने के लिए किसी भी तरह की हिंसक गतिविधि कर सकता है। वहीं मुंबई में ऐसे लोगों से निपटने के लिए मुंबई का बाप डोगा भी है। हरिबापू, दादा और डोगा किन परिस्थितियों में एक दूसरे के सामने आते हैं। इन परिस्थितियों का इन पर क्या असर पड़ता है। और यह कैसे आगे आने वाली कहानी की भूमिका स्थापित करता है। यह सब इस कॉमिक बुक में पता चलता है। 

यह तीन भागों में विभाजित कहानी है जिसमें पहले भाग के रूप में 'हे राम' मुख्य पात्रों का परिचय करवाने और उनके बीच के द्वंदों को दर्शाने में कामयाब होता है। कॉमिक बुक में एक्शन की मात्रा भरपूर है और कथानक इस तरह बुना गया है कि आप आगे के भाग पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। हिंसा और अहिंसा के बीच के इस युद्ध में कौन जीतेगा? डोगा भले ही हिंसा का रास्ता अपनाता हो लेकिन अहिंसा के पुजारियों की वह इज्जत करता है। वहीं वो यह भी मानता है कि भले ही अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है लेकिन पापियों का नाश करना भी हर एक व्यक्ति का धर्म है और जो ऐसा नहीं करता है वह एक तरह से धर्म के विरुद्ध कार्य करता है। ऐसे में उसके और हरीबापू के बीच में वैचारिक मतभेद होना लाजमी है। इस मतभेद को आगे के कथानक में कैसा दर्शाया गया है यह मैं जरूर देखना चाहूँगा। हाँ, अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले कायर नहीं होते हैं और असल में इस मार्ग में चला कैसा जाता है यह इस कॉमिक की कहानी में अंत तक आते आते दिख जाता है। 

कॉमिक बुक का मुख्य खलनायक दादा है। वह एक अपराधी है और कैसे कानून को धता बताते हुए वह अपराध करता है यह इधर दिखता है। हाँ, डोगा के साथ जो उसकी मुठभेड़ होती है उसमें डोगा उस पर भारी पड़ता दिखता है लेकिन कॉमिक का अंत जिस तरह होता है और इस शृंखला के आगे के कॉमिक बुक के विज्ञापन से यह पता चलता है कि अगले भाग में वह डोगा पर भारी पड़ने वाला है। वह डोगा और हरीबापू से कैसे जूझेगा और किस तरह अपना बदला लेगा ये विचार भी अगले भाग को पढ़ने की उत्सुकता जगाता है।

कॉमिक बुक की आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्ट मनु जी का है। मनु जी का आर्ट मुझे पसंद रहा है। विशेष रूप से किरदारों के अंगों के अनुपात वो अच्छे से बनाते हैं। किरदारों के चेहरों पर भावनाएँ साफ तौर पर दिखती है। भीड़ वाले दृश्यों में जिसमें अनेक किरदार होते हैं और उनके चेहरों पर दिखते भाव उन्हें दिखाने होते हैं उसमें भी वह कामयाब होते हैं। हाँ, शायद चूँकि यह कॉमिक पहले ये कॉमिक नॉर्मल साइज़ में प्रकाशित हुआ था तो शायद आर्टवर्क भी उसी हिसाब से बनी थी। अभी बिग साइज़ में पढ़ते हुए ऐसा कई बार मुझे लगा कि अगर नॉर्मल साइज़ में इस आर्टवर्क को प्रकाशित किया जाता तो शायद बेहतर होता। 

संस्करण की बात करूँ यह कॉमिक बुक राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता द्वारा बिग साइज़ में प्रकाशित डोगा डाइजेस्ट 19 में संकलित है। संस्करण की गुणवत्ता अच्छी है। वैसे मुझे व्यक्तिगत पुराने वाले नॉर्मल पेपर पर प्रकाशित कॉमिक बुक्स ही पसंद आते थे। ग्लॉसी पेपर में छपे कॉमिक्स मुझे इतने पसंद नहीं आते। मुझे ऐसा लगता है इससे कॉमिक की कीमत भी शायद बढ़ती है (मैं गलत भी हो सकता हूँ)। इसमें भी मोटा वाला कागज प्रयोग हुआ लेकिन चूँकि कीमत इतनी अधिक नहीं है तो इससे इतना फर्क नहीं पड़ता है। आज के समय में जब कॉमिक्स के दाम आसमान छू रहे हैं तब यह कॉमिक आपकी जेब पर इतना बड़ा छेद नहीं करता है। 


अंत में यही कहूँगा कि 'हे राम' एक एक्शन से भरपूर कॉमिक बुक है जो कि अगले भाग के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब होता है। अहिंसा और हिंसा के इस टकराव का क्या नतीजा निकलेगा यह मैं जरूर देखना चाहूँगा। 



This post is a part of Blogchatter Half Marathon 2023


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