नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सीताराम - बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय | डायमंड बुक्स

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 81 | प्रकाशक: डायमंड बुक्स | मूल भाषा: बांग्ला 

पुस्तक लिंक: अमेज़न





 कहानी

गंगाराम दास ने जो कदम उठाया था वो अपनी बीमार माँ की रक्षा के लिए उठाया था। 

अब फकीर की शिकायत ने उसके जीवन का अंत सुनिश्चित कर लिया था।

लेकिन गंगाराम की बहन श्री के मन में एक आखिरी उम्मीद थी। 

यह उम्मीद था सीताराम जो कि भूषणा नगरी का सेनापति था। उसे लगता था कि सीताराम गंगाराम का जीवन बचा सकता है। 

आखिर श्री को सीताराम से क्यों उम्मीद थी?
क्या सीताराम श्री की उम्मीदों पर खरा उतरा?
गंगाराम का क्या हुआ?


मुख्य किरदार

सीताराम - भूषणा नगरी का सेनापति
श्री - एक युवती
गंगाराम दास- श्री का भाई
चंद्रचूड़ - सीताराम का गुरु
राधा - सीताराम की पत्नी
नंदा  - सीताराम की पत्नी
जयंती - एक सन्यासिन
मृण्मय - सीताराम का सेनापति
तौरब खाँ - फौजदार 
गंगाधर स्वामी - एक महात्मा 


मेरे विचार

सीताराम बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का लिखा उपन्यास है जो कि पहली बार 1887 में प्रकाशित हुआ था। यह एक ऐतिहासिक गल्प है जिसमें पुस्तक के प्रकाशन की तारीख से 180 वर्ष पूर्व की कहानी लेखक द्वारा बताई जा रही है।

कहानी के केंद्र में सीताराम है जो कि भूषणा नगरी का सेनापति है। उपन्यास की कहानी तीन खंडों में विभाजित है जो कि सीताराम के अपने वादे के लिए जान लगा देने, एक नया राज्य तैयार करने और फिर उस राज्य के मटियामेट होने की स्थिति तक पहुँचने को दर्शाती है। एक तरह से कहा जाए तो यह उसके उत्थान और पतन की कहानी है। 

उपन्यास की शुरुआत गंगाराम के अपनी बीमार माँ के लिए चिकित्सक को लाने जाने से होती है जहाँ कुछ ऐसा होता है कि बाद में उसे कैद करके मौत की सजा दी जाती है।

ऐसे में श्री जो कि गंगाराम की बहन और उनकी माँ की मृत्यु के बाद गंगाराम की इकलौती रिश्तेदार बची है भूषणानगरी के सेनापति सीताराम के पास मदद की गुहार लेकर जाती है।

सीताराम और श्री का संबंध है और इस कारण सीताराम श्री की मदद को तैयार हो जाता है। 

मदद करने के चक्कर में सीताराम को क्या करना होता है और इस कार्य करने के कारण उसकी जिंदगी में क्या बदलाव आता है यही उपन्यास का कथानक बनता है।

उपन्यास भले ही 1887 में लिखा गया हो  लेकिन आज भी यह पठनीय है। उपन्यास में सीताराम के जीवन का बड़ा हिस्सा दर्शाया गया है और इस हिस्से के दौरान उसके अंदर क्या क्या बदलाव आते हैं यह देखना रोचक रहता है। यह बदलाव सीताराम के अंदर ही नहीं बल्कि गंगाराम, श्री और अन्य किरदारों के अंदर भी आते हैं।

उपन्यास के किरदारों की रोचक बात ये है कि इधर दर्शाया गया है कि कैसे समय गुजरने के साथ और ताकत पाने पर कई बार नायक खलनायक और अच्छा कैसे बुरा बन सकता है। यह चीज किरदारों को तीन आयामी बनाती है। 

चूँकि कहानी 1887 से भी 180 वर्ष पूर्व यानी 1707 वर्ष के करीब की है तो किरदारों की सोच भी विशेषकर स्त्रियों को लेकर एक तरह की दिखती है। यह सोच मर्दों की ही नहीं बल्कि स्त्रियों की भी खुद और दूसरी स्त्रियों के प्रति होती है।  फिर भी लेखक ने इधर मजबूत स्त्री किरदार रचे हैं। 

आज हम 2023 में हैं लेकिन आज भी कुंडली को लेकर लोगों के बीच में गहरा विश्वास है और इसके हिसाब से ही लोग निर्णय लेना पसंद करते हैं। ऐसे में 1707 में यह विश्वास कितना गहरा होगा ये सोचा जा सकता है। कुंडली में यह गहरा विश्वास भी कहानी का एक प्लॉट पॉइंट बनता है।

उपन्यास में लेखक ने घुमाव रखे हैं। किरदारों के बारे में चीजें धीरे धीरे पता चलती हैं। चूँकि राजा महाराजाओं के वक्त की बात है तो षड्यंत्र, गुप्तचरी इत्यादि भी कहानी का भाग बनती है। ऐसे में पाठक कहानी से बंध सा जाता है।

उपन्यास की पृष्ठभूमि ऐसे समय की है जब मुस्लिम राजाओं का राज था। ऐसे में हिंदू मुस्लिम समीकरण भी उपन्यास में देखने को मिलते हैं। इन समीकरणों का प्रयोग कैसे स्वार्थ साधने या अपना कार्य निकलवाने के लिए किया जाता है यह भी इधर देखने को मिल जाता है।

मेरे पास सीताराम का जो संस्करण है वो डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित किया  गया है। इस संस्करण में अनुवाद किसके द्वारा किया गया है ये तो मुझे नहीं पता लेकिन अनुवाद की गुणवत्ता ऐसी है कि पढ़ते हुए लगता है ये थोड़ी बेहतर हो सकती थी।

कहीं कहीं पर ऐसा भी लगता है कि कहानी को तेजी से आगे बढ़ाया गया है जो कि अनुवाद के विषय में सोचने पर मजबूर करता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इस संस्करण में सीताराम की कहानी 81 पृष्ठ में आ गई है जबकि बांग्ला संस्करण में ये 160 पृष्ठ की है। ऐसे में सोचा जा सकता है कि कहीं अनुवाद में कुछ संपादन न हुआ हो।

खैर, ये संस्करण पढ़ने के बाद मैं दूसरे संस्करण भी इसके पढ़ना चाहूँगा। उपन्यास रोचक है और पाठक को बांधकर रखने में सफल होती है। पढ़कर देख सकते हैं।

किताब में रबीन्द्रनाथ टागोर के उपन्यास गोरा का एक अंश भी दिया गया है। हाँ, पुस्तक में यह बताया नहीं गया है बस अभिनव शीर्षक दिया गया है। चूँकि मैंने गोरा पढ़ा है तो कुछ अंश पढ़कर मुझे ध्यान आ गया था। मुझे लगता है कि यह चीज इधर बताई जानी चाहिए थी और यह भी मुझे लगता है कि इसकी जगह बंकिमचंद्र की कोई रचना दी होती तो बेहतर होता। 

 

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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2 Comments
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  1. किताब को पढ़ने की उत्सुकता जगाती है आपके समीक्षाएं।

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    1. जी आभार मैम। लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

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