नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

काव्या का फैसला | रमेश बिजलानी | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | मोहित सुनेजा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्र: मोहित सुनेजा

पुस्तक लिंक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

काव्या का फैसला | रमेश बिजलानी | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | मोहित सुनेजा | Kavya Ka Faisla | National Book Trust | Ramesh Bijlani | Mohit Suenja

कहानी 

काव्या एक छोटी सी बच्ची थी जिसे उसके नाना ने यह शिक्षा दी थी कि कोई कुछ भी बने लेकिन सबसे जरूरी यह है कि वह अच्छा इंसान बने। लेकिन कुछ दिनों से काव्या एक उधेड़बुन से गुजर रही थी। एक ऐसी उधेड़बुन जिसने उसके मन में ग्लानि भर दी थी।

आखिर काव्या के मन में ग्लानि किस चीज ने पैदा की थी?

काव्या की उधेड़बुन का कारण क्या था?

आखिरकार काव्या ने क्या फैसला लिया?


मेरे विचार

पिछले वर्ष जब मैं शिमला पुस्तक मेले गया था तो वहाँ से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित बाल साहित्य की कई सारी पुस्तकें ले आया था। 'काव्या का फैसला' भी इन्हीं पुस्तकों में से एक थी।

'काव्या का फैसला' राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित सचित्र (इलस्ट्रेटेड) कहानी है। यह कहानी रमेश बिजलानी द्वारा लिखी हुई है और इसके चित्र मोहित सुनेजा द्वारा बनाए गए हैं।

30 पृष्ठों की इस  पुस्तक में काव्या की कहानी बताई गई है। कहानी को दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है। कहानी का पहला भाग प्रथम पुरुष में लिखा गया है और दूसरा भाग तृतीय पुरुष में लिखा गया हैं।

कहानी की शुरुआत काव्या द्वारा अपने नानाजी के बारे में बताने से होती है। वह आगे बताती है कि कैसे उसके नानाजी एक बार उससे पूछते हैं कि वह क्या बनना चाहती है। इस प्रश्न के उत्तर में वह एक जवाब देती है और फिर जब वह अलग-अलग लोगों से मिलती है तो उनसे प्रभावित होकर यह फैसला कर लेती है कि वह बड़े होकर उनका पेशा अपनाएगी। इस बारे में उसके नाना और मम्मी की क्या प्रतिक्रिया होती है और वह उसे क्या चीज बताते हैं यही इस कहानी का हिस्सा बनता है।  इस भाग में काव्या की बालसुलभ चंचलता देखने को मिलती है और उसकी कई बातें चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं। 

कहानी के दूसरे भाग तृतीय पुरुष में लिखा गया है। इस भाग में बताया गया है कि काव्या के साथ स्कूल में कुछ होता है और वह एक ऐसा कदम उठाती है  जिसे करने पर उसका मन ग्लानि से भर जाता है। वह इस ग्लानि से कैसे मुक्त होती है यही आगे की कहानी बनती है। 

'काव्या के फैसले' में मौजूद ये दोनों भाग कहानी के रूप में ऐसे नहीं है कि उन्हें पहले किसी बाल कहानी में न पढ़ा गया हो। अगर बाल साहित्य में आपकी रुचि है या बचपन में बाल साहित्य आपने पढ़ा है तो आप पाएँगे कि ऐसी या इससे मिलती जुलती कहानियाँ आप कई बार पढ़ चुके हैं। फिर भी काव्या और उसकी बातें पुस्तक को पठनीय बना देती हैं।

कहानी के पहले भाग में जहाँ इस बात को रेखांकित किया गया है कि व्यक्ति कुछ भी बने लेकिन सबसे जरूरी यह होता है कि वह एक अच्छा व्यक्ति बने। अगर वो अच्छा व्यक्ति नहीं है तो वह कितना भी बड़ा व्यक्ति बन जाए वह किसी काम का नहीं होता है। वहीं कहानी के दूसरे भाग में यह दर्शाया गया है कि अच्छाई का रास्ता कई बार कठिन होता है। आपको कई प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है। आपके सामने ऐसी स्थिति आती है जिसमें आपकी बुद्धि आपके गलत कार्यों को भी सही साबित करने की कोशिश करती है। ऐसे में व्यक्ति अगर अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबाए बिना सही कदम न उठाए तो वह अच्छा व्यक्ति नहीं बन सकता है।

पुस्तक में कहानी के साथ ही मोहित सुनेजा के चित्र मौजूद हैं जो पुस्तक की खूबसूरती को चार चाँद लगा देते हैं। पढ़ने के साथ चित्रों को देखना अच्छा लगता है।

काव्या का फैसला | रमेश बिजलानी | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | मोहित सुनेजा | Kavya Ka Faisla | National Book Trust | Ramesh Bijlani | Mohit Suenja
पुस्तक में मौजूद कुछ चित्र

 

कहानी की कमी की बात करूँ तो इसमें इक्का दुक्का जगह वर्तनी और कुछ जगह व्याकरण की गलतियाँ है जिनमें सुधार किया जाना चाहिए। चूँकि कहानी ज्यादा बड़ी नहीं है तो यह गलतियाँ खटकती हैं। 

उदाहरण के लिए पृष्ठ 7 में लिखा है "बमैं तो नहीं बता सकती।" यहाँ ब मैं के आगे गलत जुड़ गया है। एक दो जगह और कुछ गलतियाँ हैं। एक बार प्रूफ रीडिंग कर इन गलतियों को सुधारा जा सकता है। 

अंत में यही कहूँगा कि यह कहानी कहानी पसंद आई। कहानी साधारण है लेकिन बाल मन का चित्रण लेखक द्वारा अच्छे से किया गया है।  बाल पाठकों को पढ़ने के लिए दे सकते हैं।


पुस्तक लिंक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास



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