नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

मिथिलेश गुप्ता से उनके नवीन उपन्यास 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' पर बातचीत

मिथलेश गुप्ता से उनके नवीन उपन्यास 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' पर बातचीत

मिथिलेश गुप्ता (Mithilesh Gupta)  लेखक और फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन (Flydreams Publication) के संस्थापक हैं। विभिन्न शैलियों में वह अपनी कलम चलाते रहते हैं। बाल साहित्य से उनका विशेष मोह है। हाल ही में फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन (Flydreams Publication) से उनका बाल फंतासी उपन्यास 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' (Jadui Jungle: Ashvmanvon Ki Wapsi) प्रकाशित हुआ है। उनके इस उपन्यास और बाल साहित्य से उनके जुड़ाव पर हमने उनसे बातचीत की है। आप भी पढ़िए। 


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मिथिलेश गुप्ता से उनके नवीन उपन्यास 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' पर बातचीत


प्र: नमस्कार मिथिलेश, सर्वप्रथम तो आपकी नवीन पुस्तक के लिए आपको हार्दिक बधाई। हॉरर, रोमांस के बाद आप बाल साहित्य और वो भी फंतासी के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ कि यह आपका पसंदीदा विषय है। पाठकों को बाल साहित्य के प्रति अपने प्रेम के विषय में बताएँ। आपको क्या आकर्षित करता है?

उ: धन्यवाद विकास, फाइनली बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी फंतासी विधा में ये किताब आप सभी तक पहुँच चुकी है। विश्व पुस्तक मेला के बाद जब मैं ये लिख रहा हूँ पहले संस्करण की सारी प्रतियाँ  समाप्त हो चुकी है यहाँ तक मेरे पास अब सिर्फ एक कॉपी बची हुई है! ऑथर कॉपी तक मैं खींच नहीं पाया (हा हा हा ) बाकी रीप्रिंट चल रहा है जो कुछ दिनों में दुबारा से उपलब्ध होगी ये किताब!

हिंदी साहित्य में अगर आज तक मैंने सबसे ज्यादा कुछ पढ़ा है तो वो बाल उपन्यास ही हैं। राज कॉमिक्स, चंपक, नंदन, बाल भास्कर के अलावा जो मुझे सबसे ज्यादा पढ़ना पसंद था वह थे ‘विश्व बाल साहित्य’ से प्रकाशित बाल उपन्यास  जैसे – खजाने की खोज, डूबे खजाने का रहस्य, स्काउट कैंप में चोरी, मनीष और नरभक्षी, शुक्र की खोज इत्यादि। इनके संपादक थे – विश्वनाथ जी, जो विश्व बुक्स के संस्थापक भी थे।  मैं इन कहानियों को इतना पसंद करता था कि स्कूल टाइम में शायद 2002 के आसपास की बात होगी उनके दिए ऑफिस नंबर पर एसटीडी से जाकर कॉल किया करता था। और एक रोज़ जैसे ही मेरी उनसे बात हुई तो मैंने उन्हें बताया मुझे उनकी किताबें कितनी पसंद है, इसके पहले मैं उन्हें कई पोस्टकार्ड भी लिख चुका था। इस तरह बाल उपन्यासों से मेरा पाठन शुरू हुआ।


प्र: अपनी नवीन पुस्तक के विषय में बताएँ? इस पुस्तक को लिखने का ख्याल कब आया? कोई विशेष विचार जिसने इसकी कहानी लिखने को प्रेरित किया हो?

उ: इस कहानी को मैंने सबसे पहले 2018 में लिखना शुरू किया था! तब मैं श्योर (आश्वस्त) नहीं था कि इसका अंत क्या होगा और ये कितने पेज में जायेगी , पर धीरे धीरे सब होता चला गया! लॉकडाउन के दौरान जब मैं घर वापस आया तो, मैं महीनों जंगलों में बाइक से घूमता रहा! और फिर दुबारा से इस कहानी में डूबता चला गया ! सतपुड़ा की वादियों में बसा मेरा होम टाउन ‘सारनी’, जो चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और उधर जंगल और हरियाली भरपूर हैं और शायद यही कुछ वजहें रहीं की जादुई कहानियों को पढ़ने के साथ-साथ मैं खुद की कहानियाँ भी लिखने लगा था। पहाड़ों से बहते झरने, नदियाँ, डैम और घनघोर जंगलों ने मुझे बचपन से बहुत आकर्षित किया है। सच तो ये भी है जादुई जंगल की ये कहानी कभी लिख ही नहीं पाता अगर मैं किसी बड़े शहर में पैदा हुआ होता।

मिथलेश गुप्ता से उनके नवीन उपन्यास 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' पर बातचीत
दिल्ली पुस्तक मेले में अपनी पुस्तक के साथ मिथिलेश


प्र: अच्छा बाल साहित्य और वयस्कों के लिए साहित्य लिखने में आप क्या फर्क महसूस करते हैं? दोनों तरह के लेखन का प्रोसेस कैसा रहता है?

उ: मुझे आजतक ये प्रोसेस वाली बात समझ नहीं आई, लेखक के मन में कहानी है - वो कहना चाहता है, लिखता रहे! जब मेरी पहली हॉरर किताब 'वो भयानक रात' हिट हुई तो अगली किताब रोमांस में आयी, अभी पिछली किताब 'ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ' के बाद ये बाल फंतासी लिखकर मजा आया। शायद मुझे इसे जितना लिखने में मजा आया उतना ही बाकि अन शैलियों की किताबों में भी आया! दरअसल मैं कभी ये सोच नहीं पाता कि ये बड़ों के लिए हैं ये बच्चो के लिए, क्योंकि मैं खुद हर तरह की कहानियाँ पढ़ता रहता हूँ, और मुझे याद नहीं 'जादुई जंगल' विश्व पुस्तक मेला में सिर्फ बच्चों ने ही खरीदी हो ? मेरे तो वे पाठक भी इसे ले गए जो हॉरर, रोमांस में मेरी किताबें पढ़ते हैं ! जाने क्यों लगता है कि मैं बस  कहानी के स्वरुप के हिसाब से अलग-अलग लेखन शैली में खुद ही फिट होने लगता हूँ! और शायद भविष्य में ऐसे ही अलग-अलग लिखता ही रहूँगा! क्योंकि मैं ये महसूस कर रहा हूँ कि जिसे हम जी जान से रचते हैं वे लोगों को जरुर पसंद आती है इस किताब से भी ऐसी ही उम्मीद है मुझे!


प्र: किताब पर लौटते हैं। किताब का कौन सा किरदार या हिस्सा ऐसा है जिसको लिखने में आपको अतिरक्त मेहनत करनी पड़ी और क्यों?

उ: 'सर्पांग' इस कहानी का खलनायक जो एक सर्पमानव है, और सच कहूँ तो इसे गढ़ने में अनुराग सिंह जी ने मेरी सहायता की! मैं कई महीनों इस पर कुछ सोच नहीं पाया। मुझे लगता था कि अरे एक फंतासी दुनिया का खलनायक नार्मल तो नहीं हो सकता न? फिर अनुराग जी से कई हफ़्तों की चर्चा के बाद उन्होंने मुझे इसे लिखने में सहायता की! ये पात्र जादुई जंगल के सभी पात्रों के लिए काल बनकर आया है, लेकिन अभी इसका ऑरिजिन (उत्पत्ति की कहानी) भी कभी लिखा जाएगा तब शायद और ज्यादा दिमाग लगाना होगा! क्योंकि इसके किरदार को एक किताब में समेटना भी मुश्किल है!


प्र: अच्छा कहते हैं लेखक की हर कृति में उसका अपना अक्स होता है। प्रस्तुत किताब में कौन सा ऐसा किरदार है जिसमें आपका अक्स मौजूद है?

उ: मैं वो अश्वमानव हूँ जो बच्चों को जादुई जंगल की दुनिया में लेकर जाता हूँ।  किताब के आवरण में आज भी अश्वमानव में खुद को और उन दोनों बच्चों में अपने भतीजी और भतीजे को देखता हूँ जिनका नाम मैंने किताब में लिखा भी है! वे इस पूरी कहानी को मुझसे कई बार सुन चुके हैं लेकिन अभी वे दोनों सिर्फ 5 साल के हैं, उम्मीद है जब वे बड़े होंगे तो इस कहानी को समझेंगे कि आखिर ये जादुई जंगल क्या है?


प्र: क्या आप अपने जीवन से प्रेरित होकर भी किरदारों की रचना करते हैं? प्रस्तुत किताब में क्या कोई ऐसा किरदार है जो कि आपके निजी जीवन से जुड़े व्यक्ति पर आधारित हो? अगर हाँ, तो वह कौन सी खास बात थी जिसने आपको उन पर आधारित किरदार रचने के लिए प्रेरित किया?

उ: किताब के दो मुख्य पात्र यानी दोनों बच्चें- मेरे घर में मौजूद बच्चों को ध्यान में रखकर लिखा गया है, और एक बात यह भी है कि जब मैं कोई किरदार लिखता था तो लगता था जैसे मैं उन्हें निर्देश दे रहा हूँ कि अभी ये करो अभी वो करो! ये कहानी दो बच्चों की बहादुरी भी दर्शाती है! 


प्र: पुस्तक का ऐसा कौन सा किरदार है जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है और कौन सा ऐसा किरदार है जो नापसंद है?

उ: 'दमदमी माई' जो जादुई जंगल की रचियता हैं, जो मुश्किल समय में भी आसानी से बिना विचलित हुए  सब कुछ ठीक कर देती हैं; यही किरदार मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। उनकी सोच पर मेरी सोच हावी होती है! बाकी एक पाठक के रूप में ‘सर्पांग’ नापसंद है जिसने अपनी विषैली शक्तियों से १३०० वर्षों से मेरे प्यारे जादुई जंगल को अपने आगोश में ले रखा है! जाने अश्वमानवों के वापसी से जादुई जंगल हरा-भरा हो पायेगा या नहीं ? यही इस कहानी में आपको पढ़ना है! 


प्र: अच्छा पुस्तक लिखते समय क्या कभी आप अटके थे या राइटर्स ब्लॉक का सामना करना पड़ा था? और आप ऐसे राइटर्स ब्लॉक से कैसे निकले थे?

उ: राइटर्स ब्लाक आते-जाते रहते हैं। मैं कहीं अटकता हूँ तो वीकेंड में बाइक लेकर किसी दोस्त के साथ आपने आसपास के जंगलों और पहाड़ों में भटकता रहता हूँ! सब सही हो जाता है, सच बताऊँ तो कई-कई दिनों तक तो मैं पूरा दिन लगातार अकेले भी ड्राइव करता हूँ तब जाने कितनी कहानिया मेरे दिमाग में घूमती रहती है! 


प्र: आपकी लेखन प्रक्रिया क्या है? क्या लेखन नियमित करते थे? आपका लेखन का एक आम दिन पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगे?

उ: कोई प्रोसेस फॉलो नहीं कर पाया आजतक।  बस कभी कभी १५- १५ दिन तक एक ही कहानी को लिखता रहता हूँ, तब न ऑफिस भी बंक कर लेता हूँ, कुछ होश नहीं होता।  ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ” में मैंने एक हफ्ता ऑफिस मिस कर दिया था! (हा हा हा) सभी कहानियों के साथ मेरी एक ऐसी कहानी जुड़ी हुई है! बस लिखों जब मन करें, जब न करे, मत लिखों! पता नहीं कितना सही है पर ये सिर्फ मेरी अपनी बात है! क्योंकि मैं एक साथ दो- तीन कहानियों पर भी काम करता रहता हूँ! 


प्र: वापस आपकी नवीन पुस्तक पर आते हैं। क्या यह पुस्तक एक शृंखला होने वाली है या ये एकल उपन्यास है?

उ: ये एकल कहानी ही थी, लेकिन अब श्रृंखला होगी! कहानी अब फ्लैशबैक में जायेगी, यानी इसे पढने के बाद संपादक ने इसी तरह के कई सवाल पूछे थे, फ़िलहाल मैंने सिर्फ एक कहानी बनाकर दी थी, अब शायद इस साल इस दुनिया पर बसाई गई एक नई कहानी लिखूँगा।  'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी’ वन शॉट में पढ़ी जा सकती है जिसके लिए आपको अगली कहानी की कमी नहीं खलेगी क्यूँकि अगली किताब जादुई जंगल के बनने की होने वाली है! तो इसके अगले भाग के चक्कर में इसे पढ़ना मिस न करें! 


प्र: हिंदी बाल साहित्य के विषय में आपके क्या विचार है? हम क्यों पाठकों के बीच वह जगह नहीं बना पा रहे हैं जो कि अंग्रेजी बाल साहित्य ने बनाया है। आप प्रकाशक भी हैं तो आप एक प्रकाशक और एक लेखक के नजरिए से बताइए कि इस क्षेत्र में क्या होना चाहिए?

उ: हिंदी बाल साहित्य आजकल सिर्फ स्कूल या अवार्ड्स तक सिमित दिखाई देता हैं।  बाल कथा साहित्य तो है पर बाल उपन्यास बहुत लिमिटेड हैं।  फ्लाई ड्रीम्स के चिल्ड्रन विंग्स से मैंने पिछले 4 सालों में 25 से ज्यादा किताबों को इस श्रेणी में आगे किया है, साथ ही विश्व बाल साहित्य का अनुवाद भी करवाया है।  एक बड़ा इन्वेस्टमेंट होता है - समय और पैसे का! लेकिन धीरे- धीरे जिस तरह से लोग मेरी इस मुहिम में जुड़ रहे हैं विश्व बाल साहित्य में बदलाव जरुर होगा, बस आप और हम सब इस पर कार्य करते रहें! मैं इस मुहिम में 500 किताबों का आंकड़ा छूने तक रुकने वाला नहीं हूँ! फिर हिसाब लगाऊँगा क्या बचा क्या किया! फ़िलहाल अच्छे-अच्छे लेखक भी इन कहानियों में मेरा साथ दे रहे हैं, नया लिख रखे हैं! ये अच्छी बात है! 


प्र: अंत में क्या आप पाठकों को कोई संदेश देना चाहेंगे? अगर हाँ, तो पाठकों को आप अपना संदेश दे सकते हैं।

उ: 'बाल उपन्यास' पढिए और घर के बच्चों को पढ़ाइए।  वैसे तो इन्हें बाल उपन्यास कहा जाता है लेकिन मेरा मानना है कि ये किताबें सभी के लिए हैं हर उम्र पाठकों के लिए होती हैं! आप इन्हें पढ़ते हुए अपने बचपन के दिनों में, उस मासूमियत में वापस चले जाते हैं जो कि बढ़े होते होते शायद कहीं खो जाती है।   फ्लाई ड्रीम्स, साहित्य विमर्श जैसे जो प्रकाशक इस पर कार्य कर रहें है उन किताबों का स्वाद जरुर लें! यही पाठकों से अनुरोध हैं! दुनिया एक दिन में नहीं बदलेगी, लेकिन हम सब चाहें तो बदल ही जायेगी ये 'किताबों की दुनिया'!

मेरी किताब पढ़ने और मुझसे जुड़ने वाले हर लेखक और पाठक का दिल से धन्यवाद ! और आभार विकास आपका जिन्होंने इस बाल साहित्य पर इतने अच्छे सवाल किये!


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यह थी लेखक मिथिलेश गुप्ता (Mithilesh Gupta) से हमारी एक बात चीत। 'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' (Jadui Jungle: Ashvmanvon Ki Wapsi) और बाल साहित्य (children's fiction) पर केंद्रित इस बातचीत पर आप हमें अपने विचारों से टिप्पणियों के माध्यम से जरूर अवगत करवाइएगा। 

'जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी' निम्न लिंक्स पर जाकर खरीदी जा सकती है:

कॉमिक्स अड्डा | उमाकार्ट | कॉमिक्स इंडिया 

 

नोट: साक्षात्कार शृंखला के तहत हमारी कोशिश रचनाकारों और उनके विचारों को  पाठकों तक पहुँचाना  है। अगर आप भी लेखक हैं और इस शृंखला में भाग लेना चाहते हैं तो contactekbookjournal@gmail.com पर हमसे संपर्क कर सकते हैं। 


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2 Comments
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  1. बाल उपन्यास समय की मांग है। मिथिलेश अच्छा काम कर रहे हैं।

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    1. जी सही कहा आपने। आजकल बाल उपन्यासों की कमी सी है। इस खाली जगह को अच्छी रचनाओं से भरना जरूरी है।

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