नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

निमष - ब्रजेश कुमार शर्मा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: | प्रकाशन: स्वयं | प्लेटफॉर्म: किंडल

पुस्तक लिंक: अमेज़न


कहानी 

निमिष शुक्ला एक पायलट था जो कि सान हुआन के एक प्रसिद्ध होटल सी पैलेस में अपनी छुट्टियाँ मना रहा था। ऐसे में जब उसे उसके पुराने दोस्त अभिजीत अस्थाना का फोन आया तो उसका हैरान होना लाजमी था।

अभिजीत को निमिष की मदद चाहिए थी। एक प्लेन था जिसे निमिष ने न्यू यॉर्क ले जाना था और इस काम को करने के निमिष को तगड़े पैसे मिलने वाले थे।

निमिष ने दोस्ती की खातिर हाँ तो बोला लेकिन वह कहाँ जानता था कि इस एक उड़ान से उसकी जिंदगी की दिशा बढ़ जायेगी। 

आखिर निमिष को किसको लेकर उड़ान भरनी थी?

इस उड़ान का नतीजा क्या हुआ?

निमिष की जिंदगी किस तरह से बदली?


मुख्य किरदार 

निमिष शुक्ला - एक पायलट
अभिजीत अस्थाना - निमिष का दोस्त पायलट
सुदीप राणा - फ्लाइट के लिए प्रोजेक्ट मैनेजर
स्कारलेट - एक युवती 
प्रोफेसर सिद्धार्थ महादेवन - प्रोजेक्ट डब्ल्यू एएम और भारत साइंस लीग के हेड
अवनी - प्रोजेक्ट डब्ल्यूएम में प्रोफेसर की सहयोगी और फ्लाइट की इंचार्ज
संजय,मोनिका - प्रोजेक्ट डब्ल्यूएम में कार्य करने वाले लोग
अनीता नारंग, अभय माधवन, ऐनी वेस्टनरा, प्रमेश कुमार   - प्रोजेक्ट डब्ल्यू एम के लिए फ्लाइट में जाने वाले यात्री
हैरिस नॉर्म - सनसेट आइलैंड में रहने वाला वैज्ञानिक 
केट - सनसेट आइलेंड में रहने वाली एक युवती 
जिम - हैरिस का बटलर 
शिल्पी भटनागर - डब्लू एम प्रोजेक्ट की एनर्जी डिपार्टमेंट की चीफ 

विचार 

क्या समय यात्रा संभव है? यह एक ऐसा सवाल है जिसे लेकर लोगों के मन में हमेशा से एक तरह का कोतुहल बना हुआ है। इस कॉन्सेप्ट ने कई लेखकों की सोचों की लगाम को भी पकड़ा है और उन्होंने इस पर अपनी कल्पना का घोड़े दौड़ाएँ हैं। अंग्रेजी के विज्ञान गल्प उपन्यासों और धारावाहिकों में अक्सर समय यात्रा और उससे जुड़ी समस्याओं या फायदों का प्रयोग करके लेखकों ने कई रोमांचक कारनामें पाठकों और दर्शकों को दिए हैं। पर अगर हिंदी भाषा की रचनाओं की बात करें तो शायद बहुत ही ऐसी रचनाएँ होंगी जिसमें लेखक ने इस चीज पर कोई कथानक रचा है। कहानियाँ तो शायद हो भी लेकिन उपन्यासों की संख्या शायद इतनी ही हो कि उँगलियों में गिने जा सके और ऐसे अधिकतर उपन्यासों के विषय में तो पाठकों को कुछ पता भी नहीं होगा। ऐसे में लेखक ब्रजेश कुमार शर्मा, जो कि अजिंक्य शर्मा नाम से हॉरर, थ्रिलर उपन्यास लिखते आए हैं और पाठकों के बीच अच्छे खासे मशहूर हैं, ने 'निमिष' लिखा है जो कि इसी समय यात्रा के विचार के इर्द-गिर्द लिखा है और पाठकों को एक नई दुनिया से अवगत करवाता है।

यह भी पढ़ें: लेखक ब्रजेश कुमार शर्मा से उनके नवीन उपन्यास 'निमिष' को लेकर बातचीत

उपन्यास की कहानी के केंद्र में एक पायलट निमिष है। अपनी छुट्टियाँ मनाते निमिष को कैसे एक फ्रीलांसर के तौर पर एक वैज्ञानिक मिशन के लिए प्लेन उड़ाने का मौका मिलता है और यह यात्रा किस तरह से उसकी जिंदगी बदल देती है यही उपन्यास का कथानक बनता है। 

लेखक ने एक थ्रिलर के रूप में इस कथानक को बुना हुआ है और अगर कथानक का एक हिस्सा छोड़ दिया जाए तो पूरे कथानक में वह थ्रिल और रोमांच बनाए रखने में सफल हुए हैं। 

कथानक का एक  मुख्य बिंदु निमिष द्वारा प्लेन को सान हुआन से न्यू यॉर्क ले जाना है।  फ्लाइट शुरू होने से पहले ही लेखक एक ऐसे किरदार का परिचय पाठकों से करवाते हैं जो कि कथानक में उत्सुकता जगाता है और फिर यह उत्सुकता लगातार बनी रहती है।

फ्लाइट के दौरान निमिष और उसके साथियों के साथ जो होता उससे वो कैसे निकल पाएँगे और इससे उनकी जिंदगी में क्या बदलाव होंगे ये सब जानने के लिए आप उपन्यास के पृष्ठ पलटते चले जाते हैं।

उपन्यास के केंद्र में  समय यात्रा तो है ही लेकिन लेखक ने उपन्यास में बर्मूडा त्रिकोण के रहस्य को भी जोड़ा है। बर्मूडा ट्राइऐंगल ऐसी जगह है जहाँ से उड़ते हुए और तैरते हुए कई जहाज गायब हो चुके हैं। इन्हें लेकर कई तरह की धारणाएँ प्रचलित हैं। लेखक पाठकों को इस कथानक में बरमूडा ट्राइऐंगगल के इस रहस्यमय इतिहास से वाकिफ तो करवाते ही हैं वहीं साथ में इस रहस्य को अपने कथानक के साथ बाखूबी रोचकता के साथ बुन भी लेते हैं। इसके अलावा उपन्यास के एक किरदार अभिजीत अस्थाना के माध्यम से लेखक ने हस्त रेखा शास्त्र को भी दर्शाने की कोशिश की है। 

इस कथानक में विज्ञान की थ्योरियाँ, रहस्य और रोमांच तो है ही साथ में लेखक ने हास्य का तड़का भी डाला है। उपन्यास में कई प्रसंग ऐसे हैं जो कि आपके चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। विशेषकर जिम का किरदार ये कार्य करने में पूर्णतः सफल होता है। 

कथानक की खूबी की बातें तो हो गयी। अब कमी की बातें करें तो इक्का दुक्का प्रूफरीडिंग की गलतियाँ हैं जो कि एक बार लेखक दोबारा पढ़ेंगे तो ठीक करे देंगे। इसके अलावा कहानी में एक प्रसंग है जहाँ पर एक विमान ब्लास्ट होता है लेकिन उसका असर उस विमान के इर्द-गिर्द मौजूद किरदारों पर उतना देखने को नहीं मिलता है। कम से कम उस दबाव का असर लेखक दिखा सकते थे क्योंकि इतने सामने अगर ब्लास्ट हो तो कुछ तो असर व्यक्ति पर पड़ेगा। 


दोनों तेज-तेज कदमों से प्लेन की ओर बढ़े। 

अभी वे प्लेन से कुछ ही दूरी पर थे कि तभी अँधेरे में एक नीली रंग की चमकदार किरण ____ के बगल से होते हुए सामने खड़े प्लेन से जा टकराई। 

दोनों जहाँ थे, वहीं रुक गए। 

किरण प्लेन से टकराने के कुछ ही सेकंडों में प्लेन का रंग बदलकर लाल होने लगा, फिर अचानक प्लेन आग की भीषण लपटों से घिर गया। प्लेन से थोड़े दूर होने के बावजूद उन्हें आग की तपन  महसूस हो रही थी। 

.

.

.

___ अवाक-सा ___ को बेहोश होकर जमीन पर ढेर होते देखता रहा। 

वो ___ की ओर घूमा। 

"ये तुमने कैसे किया?" - उसने पूछा। 

लेकिन ___ ने उसके सवाल पर ध्यान नहीं दिया। वो बेचैनी से जलते हुए प्लेन को देख रही थी। 

"हमें... हमें उसे बचाना होगा।" - वो बोली। 

"किसे? किसे बचाना होगा? हमारे सिवा यहाँ है ही कौन?"

"उसे।"- ___ ने पलने की ओर इशारा किया-"उस मशीन को।"

अगले ही पल एक धमाके के साथ प्लेन फट पड़ा। 

उस धमाके से ____ भी एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। 

उसके वापस लौटने की आखिरी उम्मीद भी उनकी आँखों के सामने ही खत्म हो गयी थी।  (पृष्ठ 110 )


लेख में मैंने ऊपर जिक्र किया है कि उपन्यास में एक जगह  रोमांच थोड़ा कम होता है। यह एक लम्बा वार्तालाप का प्रसंग है जिसमें लेखक निमिष और प्रोफेसर महादेवन की वार्तालाप के माध्यम से पाठकों के साथ समय यात्रा और उससे जुड़े कई और विचारों को साझा करते हैं। यह वार्तालाप कई पेजों (लगभग 15-20 पृष्ठ ) तक चलती है और इस दौरान कथानक थम सा जाता है। यह बातचीत लंबी है और विज्ञान से जुड़ी हुई है। अगर व्यक्ति की इसमें रुचि नहीं है तो वह इससे उकता भी सकता है। मुझे लगता है ये बातचीत एक साथ न रखकर उपन्यास में अलग-अलग जगह टुकड़ों में होती तो ज्यादा बेहतर होता। 

कथानक का एक मुख्य किरदार स्कारलेट है। आखिर में एक जगह पर ट्विस्ट देने के लिये लेखक अचानक से उसे ला जाते हैं। यह जगह एक सुरक्षित इलाका होता है। इस तगड़ी सुरक्षा के बीच वह कैसे वहाँ तक पहुँची यह वह दर्शाते तो बेहतर रहता। अभी यह ट्विस्ट चौंकाता तो है लेकिन जब यह किया कैसे गया इसका जिक्र नहीं होता तो अपना प्रभाव भी कम कर देता है। 

उपन्यास के विषय में एक और चीज है जो व्यक्तिगत रूप से मुझे खटकी और हो सकता है बाकियों को न खटके।  उपन्यास के मुख्य किरदार का नाम निमिष है। यह एक आम नाम नहीं है। निमिष पलक झपकने की क्रिया या पलक झपकने में लगने वाले वक्त को कहते हैं। उपन्यास पर भी यह शीर्षक फिट होता है क्योंकि पलक झपकते ही निमिष की ज़िंदगी बदल जाती है। लेकिन जो बात मुझे अटपटी लगी वह थी कि उपन्यास के इतने किरदारों में  से प्रोफेसर महादेवन को छोड़कर कोई और किरदार निमिष के नाम का अर्थ उससे नहीं पूछता है। कम से कम अवनी को तो पूछना चाहिए ही था। 

उपन्यास के कथानक के पश्चात अब इसके किरदारों की बात की जाए। उपन्यास के केंद्र में निमिष शुक्ला नामक किरदार है। वह एक पायलेट है। वह एक आम सा व्यक्ति है जो कि उपन्यास के अंत आने तक असाधारण बन जाता है। लेखक ने एक आम व्यक्ति से असाधारण व्यक्ति बनने के सफर को अच्छे से दर्शाया है। वहीं वह ऐसी जगह उपन्यास को खत्म करते हैं जहाँ पाठक इस किरदार के विषय में आगे जरूर जानना चाहेगा। 

उपन्यास में अवनी और स्कारलेट दो महत्वपूर्ण किरदार हैं। जहाँ स्कारलेट एक तरह की सैनिक है वहीं अवनी एक वैज्ञानिक। दोनों के ही किरदार प्रभावी हैं और मुझे उम्मीद है इनसे आगे मिलने का मौका लगेगा। स्कारलेट की दुनिया का भी लेखक के कम ही सही लेकिन रोचक खाका खींचा है। उम्मीद है वह स्कारलेट को लेकर कुछ लिखेंगे और इस माध्यम से उसकी दुनिया की यात्रा भी पाठकों को करवाएँगे। उपन्यास में किरदारों के अलावा साइंस लीग नामक संस्था भी है। यह संस्था भी रोचक लगी और उम्मीद है इससे जुड़े कथानक आगे भी मिलते रहेंगे। 

अंत में  यही कहूँगा कि निमिष हिंदी साहित्य में विज्ञान गल्प लाने की अच्छी कोशिश है। अभी तक हिंदी में मैंने जितने विज्ञान गल्प पढ़ें हैं उनमें कभी कथानक अच्छा होता है तो विज्ञान थोड़ा लचर होता है वहीं कभी विज्ञान अच्छा होता है तो कथा कमजोर या नीरस रहती है। प्रस्तुत उपन्यास में लेखक ने अच्छा संतुलन बनाया है। अगर आपने नहीं पढ़ा है तो इसे पढ़ना चाहिए। 

हाँ, लेखक ने अपने बाकी उपन्यासों की तरह इस उपन्यास का अंत ऐसे किया है कि लेखक आगे की कहानी जानना चाहेगा। लेखक अक्सर ऐसा करते हैं और फिर आगे की कहानी में वर्षों लगा देते हैं। उम्मीद है इसमें ऐसा नहीं होगा और जल्द ही निमिष का दूसरा भाग पढ़ने को मिलेगा। व्यक्तिगत रूप से मैं चाहूँगा कि लेखक ऐसा करने से बचे क्योंकि इससे उनके ऊपर एक कथानक को आगे बढ़ाने का अनावश्यक दबाव सा आ जाएगा। 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपकी इसके विषय में क्या राय है? हमें कमेंट के माध्यम से अपनी राय से अवगत करवाइएगा। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न



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6 Comments
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  1. Sounds intriguing. Although it is not set in the space, it reminds me of 'शुक्र ग्रह पर धावा', one of the sci-fi novels by Professor Diwakar. Oh, I had so many novellas by Professor Diwakar and enjoyed them a lot. Adding it to my TBR list. Thank you for this review.

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    1. And as you said it is an open ended story, like the first book of a series, can it be read as a standalone book?

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    2. It could easliy be read as a stand alone book. You should try to read it. I would definitely want to know your views about this one. I have heard a lot about Professor Diwakar but haven't had a chance to read any of his books. You should try to write an article of a sort regarding the books that you liked the most of him. That would be great to read.

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  2. Thank you. I'll buy this book. And here's an article on Professor Diwakar I wrote many years ago. http://tarangsinha.blogspot.com/2010/11/who-is-professor-diwaakar.html

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    1. Great article. I read some of his novels in my childhood and I'm a big fan of him. I searched his novel but found very few. 'लेडी रोबोट' and 'पांच यमदूत' were great novels. Sometimes I wonder why no one talks about that much great science fiction novels?

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    2. Great... How did i miss... Will give it a go.... Thanks...

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