नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बाँकेलाल का कमाल | राज कॉमिक्स | पपिंदर जुनेजा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: बाँकेलाल 

टीम

लेखक: पपिंदर जुनेजा | चित्रांकन: बेदी

बाँकेलाल का कमाल | राज कॉमिक्स | पपिंदर जुनेजा



कहानी 

रामपुर गाँव में ननकू अपनी पत्नी गुलाबवती के साथ रहा करता था। जहाँ ननकू एक गरीब आदमी था जो कि गाँव के जमींदार के खेतों में काम करके अपने परिवार का भरणपोषण करता था वहीं गुलाबवती घर संभालती थी और शिव जी की अनन्य भक्त थी। 

यह शिव जी के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा का परिणाम था कि शिव जी ने उसे आशीर्वाद स्वरूप एक बालक दिया था। 

पर फिर ऐसा क्या हुआ कि शिव जी को उस बालक बाँकेलाल को श्राप देना पड़ा? 

इस श्राप का क्या नतीजा निकला? 

और ननकू और गुलाबवती के प्यारे बाँकेलाल ने ऐसे क्या कमाल किये कि वहाँ के राजा तक उससे मिलने के लिए व्याकुल हो गए?


विचार 

बाँकेलाल राज कॉमिक्स का एक ऐसा किरदार है जिसने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है। बाँकेलाल के अपने प्रशंसक रहे हैं और उसके कॉमिकों ने कई बार पाठकों को मुस्कुराने पर विवश कर दिया है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे भी बाँकेलाल के कॉमिक पसंद आते हैं। मैं जानता हूँ कि हास्य लिखना काफी मुश्किल कार्य होता है लेकिन कई बार बाँकेलाल के कॉमिक इसमें सफल होते हैं। बाँकेलाल की हरकते वैसे तो कई बार नीचता को छूती हैं लेकिन फिर जो उनके परिणाम निकलते हैं उन्हें देखकर मज़ा आ जाता है। एक व्यक्ति के तौर पर बाँकेलाल मुझे भले पसंद न आए लेकिन वो कहते हैं न कि अंत भला तो सब भला तो बाँकेलाल के कॉमिक यही  चरितार्थ करते हैं। ऐसे में बाँकेलाल की कहानी कहानी कहाँ से शुरू हुई यह जानने की मेरी इच्छा थी और 'बाँकेलाल का कमाल' से यह पूरी हो गई है। 

'बाँकेलाल का कमाल' बाँकेलाल का पहला कॉमिक बुक है। यह बाँकेलाल के जन्म के बाद से लेकर उसके विशालगढ़ राजा विक्रमसिंह के महल तक पहुँचने की कहानी है। बाँकेलाल कौन है? उसके जन्म के पीछे की कहानी क्या है? उसको शिव जी का श्राप क्यों मिला और उस श्राप के क्या नतीजे निकले यही इस कॉमिक में दिखता है। 

बाँकेलाल की कुटिल बुद्धि से आप इस कॉमिक में परिचित होते हैं और यह भी जानते हैं कि जिन्हें लेखक महोदय शरारत कहते हैं वह शरारत न होकर अपराध करने की भावना ही है। शरारत तो कॉमिक में मौजूद पहली दो हरकतें ही कही जाएँगी। उसके बाद तो अपराध की श्रेणी में आएँगे। वो तो भला हो श्राप का जिससे बाँकेलाल का दाँव गलत बैठ जाता है और इससे उत्पन्न हुई उसकी खीज और उसके मन के विचार पढ़ने से पाठक के रूप में आपके चेहरे पर एक मुस्कान सी आ जाती है।

पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि बाँकेलाल की तरह ही शिव जी अगर पूरी मनुष्य जाति को ये कर बुरा और हो भला का श्राप दे देते तो कितना अच्छा होता। मनुष्य की सारी परेशानियाँ ही हल हो जाती। 

कॉमिक बुक के आर्ट के विषय में बात करें तो आर्ट इसमें बेदी जी का है। आखिरी पैनल में एक नाम जितेंद्र बेदी लिखा है तो मेरी उम्मीद है कि शायद यही उनका असल नाम था। पहली बार उनका नाम पढ़कर अच्छा लगा। आर्टवर्क अच्छा है और कहानी में इजाफा ही करता है।  

अंत में यही कहूँगा कि बाँकेलाल का कमाल एक पठनीय कॉमिक है जिसे आप ये देखने के लिए पढ़ते चले जाते हैं कि बाँकेलाल की हरकते उन लोगों का क्या भला करेंगी जिनका वो बुरा करना चाहता है। कॉमिक एक बार पढ़ा जा सकता है। कॉमिक के अंत में बाँकेलाल विक्रमगढ़ पहुँच जाता है और इस कॉमिक का आखिरी पैनल इस तरह बनाया गया है कि वह शृंखला के अगले कॉमिक 'कर बुरा हो भला' के प्रति आपकी उत्सुकता जगाने में कामयाब हो जाता है। जल्द ही शृंखला के अगले कॉमिक 'कर बुरा हो भला' को पढ़ने की कोशिश रहेगी।


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