नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तहकीकात 2: सुपर मॉडल का कत्ल - योगेश मित्तल

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 10 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय अंक: तहकीकात 2

पुस्तक लिंक: अमेज़न

तहकीकात 2: सुपर मॉडल का कत्ल - योगेश मित्तल

कहानी 

विज्ञापन का वह शूट सफलतापूर्वक निपट गया था। सभी लोग इस बात से खुश थे और सुपर मॉडल निशा की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। निशा राजनगर की सर्वोच्च सुपर मॉडल को थी।

लेकिन तभी एक गोली चली और निशा के सीने में पेवस्त हो गई।

सभी लोग हैरान थे। निशा को सभी लोग पसंद करते थे और ऐसे में किसी का उस पर हमला करने का कोई कारण साफ तौर पर नहीं दिखाई दे रहा था।

आखिर वो कौन था जो निशा को मारना चाहता था?
निशा पर हमला क्यों किया गया था?

इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर जानने शूटिंग के स्थल पर  पुलिस इंस्पेक्टर रामदयाल और विस्फोट अखबार के पत्रकार अनिल कुमार चक्रवर्ती पहुंचे थे।

क्या वो सच्चाई का पता लगा पाए?

विचार

'सुपर मॉडल का कत्ल' लेखक योगेश मित्तल की कहानी है जो कि तहकीकात के द्वितीय अंक में प्रकाशित हुई है। दस पृष्ठ की यह कहानी एक मर्डर मिस्ट्री है। 

कहानी राजनगर नामक शहर में घटित होती है जहां एक शूटिंग के दौरान सुपर मॉडल निशा को गोली से शूट कर दिया जाता है। मौके पर पुलिस पहुँचती है तो पाती है कि जहाँ एक तरफ निशा को अस्पताल ले जाया गया है वहीं दूसरी तरफ डायरेक्टर ने सभी को रोक के रखा हुआ है। अब कत्ल की तफ्तीश की शुरुआत होती है। इस तफ्तीश का जो परिणाम निकलता है वही कहानी बनता है। 

चूँकि कहानी का शीर्षक सुपर मॉडल का कत्ल है तो यह तो शीर्षक से पता लग जाता है कि निशा कहानी में मर जाती है। परंतु मरने से पहले वो नायकों राम दयाल और अनिल कुमार चक्रवर्ती को आगे बढ़ने का एक रास्ता दिखा जाती है।

कहानी की बात करूँ तो कहानी सीधी सरल है। लेखक कई संदिग्ध खड़े करके एक पल को नायक का काम मुश्किल करते हैं। इससे कथानक में रुचि बढ़ जाती है पर फिर वह इन संदिग्धों में से असली कातिल को जिस तरह ढुँढवाते हैं वह इतना आसान रहता है कि कहानी का मजा कम हो जाता है। मुझे लगता है कि हमारे नायक थोड़ी जद्दोजहद करके कातिल तक पहुँचते तो बढ़िया रहता। थोड़ा तफ्तीश करते। शक के घेरे में आए लोगों को इंटररोगेट करते और सबूत इक्कठा करके कातिल तक पहुँचते तो कहानी ज्यादा रोचक होती। अभी तो अंत में उन्हें एक किरदार रहस्य को थाली पर सजा के दे देता है जो कि कहानी का मज़ा थोड़ा कम कर देता है। 

कहानी के किरदारों की बात करूँ तो यह कहानी राजनगर नामक शहर में घटित होती है। हिन्दी लोकप्रिय लेखन में राजनगर एक ऐसा शहर रहा है जहाँ काफी कुछ घटित होता रहता है। कई लेखकों ने इस शहर में अपने कथानक बसाये हैं। तो लेखक ने इधर इसी परंपरा का निर्वहन किया है। 

इधर विज्ञापन फिल्म से जुड़े किरदार हैं जो कि कहानी के हिसाब से ही हैं। वहीं दूसरी तरफ इस मामले की तहकीकात करते कहानी के मुख्य किरदार इंस्पेक्टर रामदयाल, इवनिंग डेली विस्फोट का प्रसिद्ध पत्रकार अनिल कुमार चक्रवर्ती हैं। इस कहानी में अनिल का दोस्त होटल यूके का मालिक उमाकांत केलकर भी है जिसका भी कथानक में महत्वपूर्ण भूमिका है। कहानी के ये तीन किरदार राम दयाल, अनिल कुमार चक्रवर्ती और उमाकांत सुरेन्द्र मोहन पाठक के सुनील शृंखला के किरदार इंस्पेक्टर प्रभुदयाल, ब्लास्ट के पत्रकार सुनील कुमार चक्रवर्ती और यूथ क्लब के मालिक रमाकांत की याद दिलाते हैं। ऐसा लगता है जैसे यह कथा एक पैरलल यूनिवर्स (समानांतर ब्रह्मांड) में घटित हो रही है जिसमें चीजें अलग होते हुए भी समानता लिए हुए हैं। 

मेरी इस चीज को लेकर लेखक से बात हुई तो उन्होंने कहा कि 

ये नाम आदरणीय सुरेन्द्र मोहन पाठक और उनके चरित्रों के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने के लिए रखे थे, पर अन्य दो कहानियों के बाद बदलाव भी लायेंगे!

उम्मीद है आगे आने वाली कहानियों में बदलाव ऐसे हों कि यह चरित्र पाठक साहब की चरित्रों की छाया से बाहर निकलकर अपना एक अलग अस्तित्व स्थापित कर सकें। मैंने उन्हें इस चीज को लेकर एक सुझाव दिया था और बाकी लेखकों को भी वही सुझाव दूँगा कि जब आप कहानी अपनी लिख रहे हैं तो किरदार भी अपने यूनीक रखिए। किसी विशेष लेखक के प्रति अगर आप अपना सम्मान दर्शाना चाहते हैं तो अपने किरदारों के मुख से उस लेखक के किरदारों की तारीफ करवाकर भी अपना सम्मान दर्शा सकते हैं। आपको अपने प्रिय लेखक की भाषा शैली या किरदारों के नामों के जैसे अपने किरदारों को रचने की जरूरत नहीं है। ऐसे में आपका ही नुकसान होता है क्योंकि अगर किसी दूसरे लेखकों के किरदार की छाया आपके किरदारों पर पड़ती दिखती है तो आपकी मेहनत उस तरह  खिल कर उभर नहीं पाती है जितना कि उसे खिलकर उभरना चाहिए था।

अंत में यही कहूँगा कि प्रस्तुत कहानी सुपर मॉडल का कत्ल का अंत बेहतर हो सकता था। फिर भी कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है। लेखक की आने वाले कहानियों की प्रतीक्षा रहेगी। उम्मीद है उन कहानियों में वह नायकों से थोड़ा मेहनत करवाएँगे क्योंकि नायक जितनी मेहनत करते दिखेंगे उतना ही केस सुलझने पर पाठक को आनंद आएगा।       


पुस्तक लिंक: अमेज़न


यह भी पढ़ें



FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. सही है। बढ़िया है। आलोचना अथवा समीक्षा में ऐसी ही ईमानदारी होनी चाहिए। यह कहानी चूंकि तहकीकात के प्रथम अंक के ग्यारहवें पेज पर कहानी लिखो प्रतियोगिता के क्लू और तस्वीर को ध्यान में रखकर और शब्द संख्या सीमित रखने के दृष्टिकोण से लिखी गयी थी, इसलिये अंत शायद जरूरत से ज्यादा जल्दी किया गया है। पूछ-ताछ इन्वेस्टिगेशन आदि में पृष्ठ संख्या दस से बीस पेज तक बढ़ाई जा सकती थी। पर लेखक लिखने में अक्सर चूक करते ही हैं।
    बेहतरी के लिए जरूरी है -सभी विकास नैनवाल जैसी निष्पक्ष समीक्षा करें।

    जय श्रीकृष्ण।

    ReplyDelete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल