नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

मौली घर चली - शिल्पा शर्मा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 53 | प्लेटफॉर्म: किंडल | कवर: रश्मि श्रीवास्तव

पुस्तक लिंक: अमेज़न

मौली घर चली - शिल्पा शर्मा |  Review

कहानी 

18 वर्षीय मौली की शादी को वैसे तो दो साल हो गए थे लेकिन अपने ससुराल गए हुए चार महीने ही हुए थे। ऐसे में जब वह एक दिन अपने मायके आकर अपनी माँ के पास आकर फूट-फूट कर रोने लगी तो उसकी माँ शांता का घबराना लाजमी ही था। 

आखिर मौली क्यों रो रही थी?

उसके ससुराल में ऐसा क्या हुआ था?

विचार 

'मौली घर चली' (Mauli Ghar Chali) लेखिका शिल्पा शर्मा (Shilpa Sharma) की उपन्यासिका है। यह उपन्यासिका किंडल पर प्रकाशित है। पुस्तक का आवरण चित्र रश्मि श्रीवास्तव द्वारा बनाया गया है और इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं। आवरण चित्र बेहद सुंदर बना है और मुझे बहुत पसंद आया (आवरण चित्र पर मेरा आलेख)। मैं चाहूँगा आर्टिस्ट और भी ऐसे ऐसे कवर बनाएँ। 

'मौली घर चली' एक 18 वर्षीय युवती की कहानी है जो अचानक से एक दिन अपने ससुराल से मायके आती है और अपनी माँ के सामने रोने लगती है। इसके बाद कहानी बैकफ्लैश में जाती है और आधी उपन्यासिका में आपको यह पता लगता है कि मौली रो क्यों रही थी। 

लेखिका ने रोचक ढंग से यह रचना लिखी है  क्योंकि एक बार मौली के रोने का  कारण पता लगने के बाद लेखिका एक और सवाल पाठक के लिए छोड़ देती हैं। यानी एक बात पता चलती है तो दूसरी बात लेखिका पाठक के सामने रखकर पाठक को कथानक से बाँध देती हैं।  यहाँ इतना ही कहूँगा कि इधर किरदार एक चीज की तहकीकात करते हुए भी दिखते हैं और कहानी में लेखिका ऐसे ट्विस्ट भी लाती है जिससे कथानक रोचक रहता है। 

यह उपन्यासिका एक आम सी लड़की की एक पठनीय कहानी है और उसके जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। मौली विरोधाभास से भरी लड़की है। वह एक ऐसी लड़की है जिसका जब छोटी उम्र में विवाह हो रहा होता है तो वह उसका विरोध तक नहीं करती है लेकिन जब जरूरत पड़ती है तो अपने आत्मविश्वास के चलते वह तहकीकात करने से भी नहीं चूकती है। 

मौली के जीवन के कई पहलू आपको इधर देखने को मिलते हैं। जहाँ आपको एक तरह शादी के बाद उसका विरह देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ ससुराल में आकार उसके जीवन में क्या बदलाव हुए यह भी देखने को मिलता है। मौली के माध्यम से आपको यह भी देखने को मिलता है कि जब एक लड़की ससुराल जाती है तो आपको यह भी कैसे उसे खुद को पल-पल साबित करना होता है। मौली चूँकि लड़ाई पसंद नहीं करती है तो जवाब देने में विश्वास नहीं रखती है। वहीं उसकी सास चूँकि एक तेज तर्रार औरत है तो एक द्वन्द आपको देखने को मिलता है। 

कई बार यह कहा जाता है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। यह चीज भी उपन्यासिका में दिखती है। एक स्त्री जो खुद पहले कभी बहू बनकर आई थी और उसे भी ससुराल आकर परेशानी उठानी पड़ी होगी। इसलिए उससे यह अपेक्षित किया जा सकता है कि जब उसकी बहू घर आए तो वह उसे वह परेशानियाँ न होने दे जो उसने देखी थी लेकिन ऐसा कम ही होता है। अक्सर सास उसे अपने वर्चस्व के प्रतिद्वंदी के रूप में देखने लगती है और यदा-कदा उसे नीचा दबाने की कोशिश करती है। लेखिका ने यह चीज इस जगह बिंदु और मौली के रिश्ते के रूप में दिखाया है। ऐसा नहीं है कि बिंदु बुरी है लेकिन बहु के आने से उसे अपना महत्व कम होने लगता है तो वह उसमें कमियाँ निकाल कर अपने महत्व को बचाए रखने की कोशिश करती है। 

'दिल की बुरी नहीं हूँ मैं, पर न जाने क्यों मौली के साथ ऐसा व्यवहार कर जाती हूँ।', मन में सोच रही थी बिन्दु।  (पृष्ठ 19)

"कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं इसलिए मौली से नाराज हो जाती हूँ क्योंकि उसके आने से मुझे लगता है कि मुझे कोई नहीं पूछता" (पृष्ठ 20)

मौली के अलावा बाकी के किरदार भी जींवत हैं। यहाँ संकल्प नाम का लड़का है। वह मौली का पति है।  वह मौली का पति है। वह बचपन से ही मौली को पसंद करता है और शादी होने के बाद गौना होने तक की तड़प को लेखिका ने इधर दर्शाया है। वह माँ और पत्नी के बीच में पिसता हुआ भी दिखता है। फिर भी वह काफी हद तक सही का साथ देता दिखता है। मौली के ससुराल में उसके ससुर पांडुरंगऔर देवर कल्पेश भी मौली के साथ खड़े ही दिखते हैं। हाँ, ये बात जरूर खटकती है कि 2021 में उसे 16 साल की बच्ची से शादी करने में गुरेज नहीं है। 

मौली के मायके में उसकी माँ शांति, पिता विलास और एक बड़ा भाई विकास है। मौली का इनके साथ रिश्ता प्रेममय है। उपन्यासिका में यह भी दिखता है कि शादी के बाद कैसे कई बार लड़कियाँ छोटी-छोटी बातें इसलिए नहीं बताती ताकि मायके वालों को बुरा नहीं लगे। 

पता नहीं लड़कियाँ इतनी जल्दी बड़ी कैसे हो जाती हैं? ससुराल में किस बात का दुख हुआ ये अपने माँ-बाप को पता ही नहीं चलने देना चाहतीं। उन्हें लगता है, बेकार ही माँ-बाप का दिल क्यों दुखाना? (पेज 30)

उपन्यासिका में मौली और उसके बड़े भाई विकास के रिश्ते को भी महत्व दिया गया है। वह अपनी बहन की परेशानी को समझता है। वहीं मौली भी उसे माँ के कड़वे वचनों से भी यदा कदा बचाती रहती है। विकास मौली की मदद करने को हर वक्त तैयार रहता है। बस एक ही चीज मौली और विकास के किरदार में खली। वह मौली की इतनी जल्दी शादी करने के पक्ष में कैसे हो गया। मुझे मालूम है आज भी कई घरों में लड़कियों के शादी जल्दी की जाती है लेकिन भाइयों का यह दायित्व रहता है कि वह पुरानी पीढ़ियों के माँ बाप के समक्ष अपनी बहन के लिए खड़े उठें क्योंकि लड़कियाँ अक्सर माँ बाप को ठेस न पहुँचे इसलिए इस चीज के लिए राजी भी हो जाती हैं।  

कहानी चूँकि लॉकडाउन के समय की है तो उस वक्त के जीवन की झलक भी इसमें दिखती है। एक आर्थिक रूप से विपन्न परिवार को उस वक्त किन परेशानियों से गुजरना पड़ा था ये भी इसमें दिखता है। वहीं चूँकि मौली के ससुर एक सोसाइटी में चौकीदारों एक सुपरवाइज़र हैं तो चौकीदारों को नौकरी पर जाते हुए किस तरह परेशानी हुई थी यह भी इधर दिखता है। 

जैसे कि ऊपर मैंने बताया कि उपन्यासिका के दूसरे हिस्से में एक छोटी सी तहकीकात भी मौली करती दिखती है। यह कथानक को रोचकता प्रदान करती है लेकिन जितना रोचक इसे किया जा सकता था उतनी रोचक यह तहकीकात बन नहीं पड़ी है। हो सकता है कि मैं क्योंकि अपराध साहित्य पढ़ता हूँ तो इसलिए इस पहलू को लेकर मेरी अपेक्षाएँ ज्यादा रहती हैं। अभी राज स्वीकारोक्ति से खुलता है वहीं जिस दिशा में काम हो रहा होता है वहाँ पर तहकीकात करने वाले कयास ही लगाकर रह जाते हैं। फिर भी लेखिका ने एक ट्विस्ट दिया है कहानी में तो वह मुझे अच्छा लगा फिर चाहे वो स्वीकारोक्ति ही क्यों न रहा हो। 

कथानक की कमी की बात करूँ तो एक दो बिन्दु ऐसे थे जिन पर मैं चाहता था कि लेखिका विस्तार से लिखती। 

सबसे पहले तो वह मौली की शादी की बात है। इस बात को लेकर सभी लोग इतने सहज दिखते हैं यह थोड़ा अटपटा लगता है। उपन्यासिका में पुलिस के आने का जिक्र भी है लेकिन दोनों परिवारों के जवान सदस्य भी जिस सहजता से इसे स्वीकार करते दिखते हैं वह हैरान करने वाला है।  लेकिन लेखिका फिर लिखती भी हैं कि यह कथानक एक सत्य घटना से प्रेतित है तो पाठक के पास इस अटपटेपन को पचाने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाता है। अगर तीस पैंतीस साल पहले की यह घटना होती तो शायद मुझे इतना अजीब नहीं लगता लेकिन 2020-21 में मुंबई के लोगों की इस चीज को लेकर इतनी सहजता थोड़ा खलती है।  विशेषकर उपन्यासिका के पढ़े लिखे युवा किरदारों (मौली, विकास, संकल्प, कल्पेश) की सहजता। 

फिर भी मौली का इस शादी को लेकर क्या सोचना था यह दिखता नहीं है और मुझे लगता है यह दिखाना चाहिए था। कथानक पढ़कर लगता है कि वह शायद इससे खुश थी लेकिन फिर भी जब उसकी साथ की लड़कियाँ नौकरी कर रही हों और उसकी शादी हो रही हो तो यह बात सोचने वाली है कि उस दौरान उसके मन में क्या घटित हो रहा था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मौली के मन में नौकरी करने की इच्छा है और बिना वजह लड़ाई भले ही न करना चाहती हो लेकिन वह अपने लिए खड़ा होना जानती है। इस चीज को लेकर मौली जैसी लड़की के मन के भाव जानना मुझे तो जरूरी लगा था। 

विकास और मौली का रिश्ता प्यारा है। लेखिका ने यह भी दर्शाया है कि मौली कैसे अपनी माँ के समक्ष अपने भाई विकास का पक्ष रखती है। ऐसी ही चीज विकास के तरफ से भी दर्शाई जाती। मतलब वह मौली की मदद करता है लेकिन मुझे लगता है जब वह अपनी बहन से उसके रोने का कारण पूछता है और वह मना करती है तो उस वक्त अगर विकास बचपन की ऐसी किसी घटना का जिक्र करता जहाँ उसने पहले भी मौली की परेशानी को समझा था तो अच्छा होता। यह किरदारों के बीच के प्रगाढ़ संबंध को और अधिक उजागर करता। वहीं मौली की शादी को लेकर उसके क्या विचार थे ये भी दर्शाये जाते तो अच्छा था। उपन्यासिका में तो उस वक्त तो वह यह काम करते हुए दिखता ही है। 

उपन्यासिका में एक प्रसंग है जो कि मौली के नाम से संबंधित है। उस प्रसंग में मौली कहती है कि बात लंबी हो जाएगी और सुनने वाली कहती है कि प्रसंग बड़ा रोचक है लेकिन न प्रसंग मुझे लंबा लगा और न बात इतनी रोचक। बात थोड़ा और रोचक होती तो बढ़िया रहता। 

अंत में यही कहूँगा कि लेखिका ने एक पठनीय रचना लिखी है। कहानी आपको बांध कर रखती है। मैं लेखिका की अन्य रचनाएँ जरूर पढ़ना चाहूँगा। 

 

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