नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तहकीकात जनवरी 2022: चरित्रहीन - अहमद यार खाँ | इश्तियाक खाँ

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 29 | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय | अनुवादक: इश्तियाक खाँ | मूल भाषा: उर्दू

पुस्तक लिंक: अमेज़न


कहानी

गाँव के कुछ बाहर वह वीरान इलाका था जहाँ जमीन से निकलता हुआ हाथ गाँव वालों को दिखाई दिया था। हाथ का माँस जानवरों द्वारा खाया जा चुका था और वहाँ पर केवल हड्डियाँ ही दिखाई दे रही थी। इस दृश्य ने गाँव वालों के मन में दहशत पैदा कर दी थी। 

यही कारण था कि घबराए हुए गाँव वाले इस मामले की जानकारी देने थाने पहुँच चुके थे। 

आखिर जमीन से निकलता यह हाथ किसका था? 

क्या पुलिस इंस्पेक्टर इस गुत्थी को सुलझा सकें? 

उनकी तफतीश का क्या नतीजा निकला?


मेरे विचार

चरित्रहीन तहकीकात पत्रिका के जनवरी 2022 अंक में प्रकाशित संस्मरण है। चरित्रहीन मूलतः एक ट्रू क्राइम या सत्य कथा विधा की रचना है। अपराध साहित्य में सत्य कथा या ट्रू क्राइम एक प्रचलित विधा है जिसमें असल अपराध का सिलसिलेवार ब्योरा दिया जाता है। अक्सर इस विधा में लेखकों द्वारा मामले का उपन्यासीकरण कर दिया दिया जाता है। यहाँ पर यह कार्य मामले के इंवेस्टिगेशन अफसर रहे व्यक्ति द्वारा किया गया ।  

मूलतः उर्दू में लिखे गए इस संस्मरण को इश्तियाक खाँ ने हिंदी में अनूदित किया है। अनुवाद अच्छा है और पढ़ते हुए ऐसा लगता नहीं है कि आप कोई अनुवाद पढ़ रहे हैं। चूँकि उर्दू की व्याकरण हिंदी के समान ही है तो कई बार लोग पाठक को खाली नस्तालीक लिपि से देवनागरी में तब्दील करके ही अपने जिम्मेदारी की इतिश्री कर देते हैं जिसके कारण कई बार अरबी फारसी के कठिन शब्दों को पढ़ने में दिक्कत महसूस होती है लेकिन इधर ऐसा नहीं है। अनुवादक ने भाषा सरल रखी है और जहाँ पर उन्हें अनुवादक को कोई जटिल शब्द दिखा भी है तो वहाँ पर उन्होंने अर्थ कोष्ठक में दिए हैं जो उन्हें समझना सरल बना देते हैं। हाँ, अगर प्रकाशक अगली दफा से उन्हें कोष्ठक के बजाय फुट नोट में दे तो और अच्छा होगा इससे जिन्हें उन शब्दों का अर्थ पता होगा तो उनका प्रवाह नहीं टूटेगा।   

मूलतः उर्दू में लिखा गया यह संस्मरण ब्रिटिश इंडिया पुलिस में कार्यरत इंसपेकटर अहमद यार खाँ के एक केस को दर्शाता है। अहमद यार खाँ ने अपनी नौकरी के दौरान जो रोचक मामले सुलझाए उनको वो अपनी डायरी में लिखा करते थे और यही मामले बाद में अलग-अलग पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किये गए थे। 

प्रस्तुत रचना भी उनका एक ऐसा ही केस है जिसमें वह गाँव के बाहर मिली लाश की तहकीकात करते हैं। 

किस तरह कड़ियाँ एक के बाद एक जुड़ती जाती हैं, अपराधियों के झूठ पकड़े जाते हैं और सबूतों का दामन पकड़ लेखक मामले के अंत तक पहुँचते हैं यह देखना रोचक रहता है। शैली डायरीनुमा ही है जिसमें अधिकतर तथ्यों को जगह दी है लेकिन फिर बीच-बीच में लेखक पुलिस की जाँच प्रक्रिया, मानवीय स्वभाव और अपराधियों के मनोविज्ञान पर टिप्पणी करते रहते हैं जिसे पढ़ना रोचक रहता है। इसके साथ-साथ उस वक्त के समाज का कुछ हिस्सा भी इस रचना के माध्यम से देखने को मिलता है जो उस वक्त के समाज को समझने में मदद कर सकता है। 

कहानी का शीर्षक चरित्रहीन है जिसके विषय में ज्यादा कुछ कहना कहानी उजागर करना होगा। बस इतना कहूँगा कि कहानी के अंत से यह सीखा जा सकता है कि अपराध किसी बात का समाधान नहीं होता है। उसके बजाए कानूनी तौर तरीके अपनाए जाए तो वह बेहतर रहता है।  

वैसे तो रचना मुझे पसंद आई है लेकिन अगर कमी खोजनी ही पड़े तो यही कहूँगा कि क्योंकि यह असल मामला है उपन्यासों सी नाटकीयता इसमें नहीं मिलती है।  फिर इसकी लेखन शैली चूँकि डायरीनुमा और सरल है तो इसलिए भी इसे पढ़ते हुए खबर पढ़ने सा अहसास कई दफा होता है। मुझे लगता है लेखन शैली थोड़ा और सजीव या रंगीन होती तो यह रचना अभी जैसी है उससे थोड़ा और अधिक खिल सकती थी। 

अंत में यही कहूँगा कि मुझे यह रचना पसंद आई। एक बार इसे पढ़ा जा सकता है।  इसे पढ़ने के बाद मैं अब अहमद यार खाँ साहब की डायरी में दर्ज अन्य मामलों को मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा। वहीं उम्मीद रहेगी कि इश्तियाक साहब के सदके समसामयिक उर्दू रचनाओं के अनुवाद भी पढ़ने को मिलते रहेंगे।


उपन्यासिका के कुछ अंश:

कभी-कभी घास का एक तिनका जो इंसान और जानवरों के लिए सिर्फ घास होता है तफ्तीश करने वाले पुलिस ऑफिस के लिए सोने जैसा कीमती होता है और एक आदमी को फाँसी चढ़ा सकता है। 


वह थानेदार कमजोर समझा जाता था जिसके बारे में यह मशहूर जो जाए कि वह शरीफ आदमी है। डाकुओं और हत्यारों को पकड़ने और अपराध कुबूल करवाने के लिए शराफत नुकसान देती है। 

थानेदार शरीफ भी होते है लेकिन ज़बान के गंदे होते हैं जो बेहद आवश्यक होता है। 


कुछ प्रश्न करके संदिग्ध या आरोपी के शब्द नहीं सुने जाते, बल्कि उसके चेहरे को देखा जाता है कि उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है। चेहरे का रंग जो बदलता है वह हमारे प्रश्न का सही उत्तर होता है। 


(यह रचना तहकीकात पत्रिका के जनवरी 2022 अंक में प्रकाशित हुई थी।)


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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2 Comments
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  1. यह काफी रोचक लगा। अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान भारतीय, वह भी असल जासूस(इंस्पेक्टर वही है) की कहानी पढ़ने का मौका मिलना खज़ाना मिलने से कम नही है। न जाने ऐसे कई अफ़सर होंगे जिनके कई रोमांचक केस होंगे जो वक़्त की रेत मे दफन हो गए। जरूरत है अनुसंधान की और इन गुमनाम नायाको की कहानी दुनिया तक लाने की।

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    1. जी ये तो खुद ही लिखा करते थे अपने केस को इस तरह से। आपकी बात सही है। ऐसे मामलों को बाहर लाने की जरूरत है।

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