नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

अंत तक कातिल का पता नहीं लगने देती है 'गोल्डन गर्ल'

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 304 | प्रकाशक: मनोज पब्लिकेशन्स | शृंखला: सुधीर कोहली #15

पुस्तक लिंक: अमेज़न 


कहानी 

अंतरा श्रेष्ठ को जो देखता वो यही सोचता कि खुदा ने उसे जब बनाया होगा बड़ी मोहलत में बनाया होगा। उसे देखते ही लोग उसके दीवाने हो जाते थे। सुधीर कोहली भी जब अपने दोस्त संजय सिंह के सदके उससे मिला तो वो भी अंतरा को देखकर अपना दिल काबू में न रख सका। 

लेकिन अंतरा श्रेष्ठ की खूबसूरती को छोड़कर एक और खासियत बाज लोग बताते थे। वह यह कि अंतरा किसी को भाव नहीं देती थी। वह गैलेक्सी थियेटर में होने वाले शो में एक गोल्डन गर्ल के रूप में कार्य करती थी और अपने काम से काम रखती थी। 

पर कोहली को यकीन हो चुका था कि अंतरा श्रेष्ठ ने अपने चारो ओर जो यह खुद को अलग रखने के लिए अभेद अदृश्य दीवार बनाई है वह उस दीवार को भेदने में कामयाब हो गया था। अब जल्द ही अंतरा को पाने की उसकी ख्वाहिश पूरी हो सकती थी। 

पर यह ख्वाहिश खावहिश ही रह गई। एक दिन शो के दौरान सभी के बीच, जिसमें सुधीर कोहली भी शामिल था,  उसका कत्ल कर दिया गया। 

आखिर क्यों किया था अंतरा का कत्ल?

शो वालो की माने तो वह एक निहायत ही शरीफ लड़की थी। ऐसे में कौन उसका दुश्मन पैदा हो गया था?

उसके कत्ल ने सुधीर को भी दुखी किया था और उसने फैसला कर लिया था कि वह अंतरा के कातिल को जहन्नुम रसीद कराकर रहेगा। 

क्या वो ऐसा कर पाया?

मुख्य किरदार 

सुधीर कोहली - यूनिवर्सल इन्वेस्टिगेशन का मालिक एक प्राइवेट डिटेक्टिव
संजय सिंह - इंडियन एक्सप्रेस का रिपोर्टर
अंतरा श्रेष्ठ - एक गोल्डन गर्ल (गैलेक्सी थियेटर में शो करने वाली लड़की) जिसका कत्ल शो के दौरान हुआ था
सोनिया रैना - एक गोल्डन गर्ल और अंतरा श्रेष्ठ की दोस्त
मदन परसीचा - स्टेज मैनेजर
बलिराम - शो का गार्ड जो कि गेट की निगरानी करता था
मतवाल चंद - स्टेज की लाइट का संचालन करने वाला फोरमैन
देवेंद्र यादव - पुलिस इंस्पेक्टर जो इंस्पेक्टर स्पेशल स्क्वाड था और केवल कत्ल के मामले देखता था
कृपाल सिंह - ए एस आई
उपासना नंदा - शो की स्टार
विशाल कपूर - शो का हीरो
दीपक सक्सेना - साइड हीरो
पूर्णिमा सान्याल - शो में उपासना की आंटी का रोल अदा करती है
महताब राय - शो का कैरेक्टर एक्टर जो कि एक चाकू फेंकने वाला भी था
कपिल थापर - शो का डायरेक्टर
चांद शिवपुरी - ऑर्केस्ट्रा कंडकटर
रजनी - सुधीर कोहली की सेक्रेटरी
आई एस जगतानी - मुंबई का एक व्यक्ति जिसने सुधीर को अंतरा के बारे में पता लगाने को बोला था
देविका शुभगांवकर - 
सुजाता मेहरा - एक लकड़ी जिसे सुधीर ने सुदीप खोसला की एजेंसी में नौकरी दिलवाई थी
भैरवनाथ - प्यानो ठीक करने वाला
मुकुंदलाल - एक सस्पेंड हुआ हवलदार  जिससे सुधीर कोहली छोटे मोटे काम निकालता था
भैरवनाथ की दुकान का नाम लाहौर म्यूजिक हाउस था
जेसिका रंधावा - एक और गोल्डन गर्ल
नवीन सेठ - मुंबई का डिटेक्टिव
खुराना - असिस्टेंट स्टेज मैनेजर
इंद्रजीत भास्कर - एक युवक जो 
ए एन भास्कर - इंद्रजीत का बाप
भूषण गुप्ता - एक व्यापारी 
अर्चना जाठार - इंद्रजीत की माशूक और भूषण की भी माशूक
परमार - ऑर्केस्ट्रा का वायलन वादक जिसने थापर की बेटी से शादी करने का फैसला कर लिया था

मेरे विचार

गोल्डन गर्ल (Golden Girl) सुरेंद्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) की सुधीर कोहली शृंखला (Sudhir Kohli Series) का उपन्यास है।  यह इस शृंखला का 15वां उपन्यास है जो प्रथम बार वर्ष 2002 में मनोज पब्लिकेशन (Manoj Publications) द्वारा प्रकाशित हुआ था। सुधीर कोहली से अगर आप वाकिफ नहीं है तो आपको बता दूँ वह 'यूनिवर्सल इन्वेस्टिगेशन' नामक जासूसी एजेंसी का मालिक है और एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। इस एजेंसी में जो मामले उसके पास आते हैं वही इस शृंखला के उपन्यासों का कथानक बनते हैं। 

हर इंसान के कई चेहरे होते है जिससे  कभी-कभार हमारे लिए यह पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा चेहरा असल है और कौन सा नकली। हो सकता है हमें जो चेहरा देखने को मिले वो अलग हो और जो चेहरा उस व्यक्ति का असल में हो वो अलग ही हो। फिर कई बार व्यक्ति की बाहरी सुंदरता ऐसी होती है जो कि शुरुआत में तो आपको आकर्षित करती है लेकिन जब आपको उसकी असलियत पता चलती है तो वह सुंदरता एकदम से मन से उतर जाती है। समझ आ जाता है कि  हर चमकती चीज सोना नहीं होती और यह भी कई बार खूबसूरती केवल शिकार को फांसने के लिए ओढ़ा आवरण भर होती है। 

प्रस्तुत उपन्यास इन्ही सब बातों के इर्द गिर्द लिखा हुआ है। उपन्यास की शुरुआत अंतरा श्रेष्ठ नामक लड़की के खून से होती है। अंतरा श्रेष्ठ गैलेक्सी थियेटर में काम करती थी और अपने ऐक्ट के कारण गोल्डन गर्ल कहलाती थी। पाठक को शुरुआत में पता लगता है कि शो के दौरान किसी ने चाकू फेंक उसकी हत्या कर दी है। इसके बाद पाठक जानते हैं हत्या के वक्त ऑडिएंस में सुधीर कोहली भी रहता है जो कि उन दिनों अंतरा पर इतना फिदा था  कि उससे शादी तक करने को तैयार था। सुधीर अपनी आंखों के सामने यह कत्ल होते देखता है तो कातिल को ढूँढने का जिम्मा अपने ऊपर ले लेता है। 

वह जैसे-जैसे तहकीकात करता है मकतूला के विषय में ऐसी ऐसी बातें निकलकर सामने आती है जो कि उसे सोचने पर मजबूर कर देती हैं की आखिर यह अंतरा बला क्या थी। वह जितना उसके विषय में जानने की कोशिश करता है उसकी ज़िंदगी उतनी रहस्यमयी उसे लगने लगती है।   

वहीं उसे यह भी पता लगता है कि इस मामले के तार मुंबई से जुड़े हैं। इस दौरान उसे एक और लड़की के पता लगाने का जिम्मा मिलता है और एक बार उस पर जानलेवा हमला भी होता है। वहीं थिएटर के लोगों जो कि संख्या में काफी अधिक हैं के बीच से कातिल का मकसद और कातिल का पता लगाना भी उसके लिए टेढ़ी खीर साबित होता है। उस पर जानलेवा हमला कौन करता है? कातिल का पता वो कैसे लगाता? और इस दौरान उसे अंतरा के विषय में क्या पता लगता है और सुधीर कोहली एक बार फिर लकी वास्टर्ड कैसे साबित होता है यही उपन्यास का कथानक बनता है। 

उपन्यास एक खालिस मर्डर मिस्ट्री है जिसमें रहस्य अंत तक बना रहता है। उपन्यास में सुधीर तहकीकात करता दिखता है जिससे कई लोगों के विषय में कई चीजें उजागर होती हैं। जैसा कि अक्सर रहस्यकथाओं में होता है कि उनकी गति कम होती है तो उपन्यास के साथ भी वही चीज है। इसकी गति कम है। ऐसा नहीं है कि बीच बीच में ऐसी घटनाएँ नहीं होती है जो कि रोमांच  बरकरार रखती हैं।  ऐसी घटनाएँ मसलन सुधीर पर हमला, कथानक में रहस्यमय आदमी की एंट्री जिसका पता सुधीर रोचक तरीके से लगवाता है, कथानक में अंतरा के जीवन की परतें और कथानक में अंतरा के अलावा होने वाले दो खून के रूप में मौजूद हैं। परंतु यह सब कुछ वकफ़े की तहकीकात के बाद होते हैं। वैसे गति की भरपाई रहस्य बाखूबी कर देता है क्योंकि लेखक कथानक में कई संदिग्ध खड़े करते हैं जो कि कातिल तक पहुँचना मुश्किल बना देते हैं। 

लेखक ने इस कहानी को एक थियेटरनुमा शो के इर्द गिर्द बुना है तो उस दुनिया का चित्रण भी इधर होता है। किरदारों, शो को लेकर उन किरदारों की बातचीत, तहकीकात के दौरान शो के विभिन्न हिस्सों के विषय में पूछे गए प्रश्नों और वहाँ मौजूद चीजों और हिस्सों के विवरणों के माध्यम से लेखक उस दुनिया का खाका खींचने में कामयाब होते हैं। ऐसे शो की उस दुनिया में किरदारों की आपसी राजनीति, उनके बैर, वहाँ का माहौल का जीवन्त चित्रण वो करते हैं। 

उपन्यास की एक खास बात किरदारों के बीच होने वाली बातचीत भी है जो कि मनोरंजक है। विशेषकर सुधीर की बातचीत फिर वो चाहे रजनी से हो, या देवेन्द्र यादव से या फिर कई संदिग्धों से सुधीर के अपने स्टाइल के कारण मनोरंजक लगती है। उपन्यास के बाकी किरदार, जो कि संख्या में काफी ज्यादा हैं, भी कहानी के अनुरूप हैं और कहीं भी उनका होना गैरजरूरी नहीं लगता हैं। विशेष रूप से कहूँ तो महताब राय का किरदार मुझे पसंद आया। वह पेशे से एक नाइफथ्रोअर रहता है यानी जो चाकू फेंकने में माहिर रहता है। उसका व्यवहार हो या पेशा मुझे दोनों ही रोचक लगे। उपन्यास के केंद्र में अंतरा श्रेष्ठ है और रोचकता के मामले में भी वह श्रेष्ठ ही है। उसकी खूबसूरती का विवरण आपको उसका दीवाना बनाने के लिए काफी है और उसके जीवन के इर्द गिर्द जो रहस्य का आवरण रहता है वह जब आप खुलते हुए देखते हो तो हैरान हुए बिना नहीं रह पाते हो। अपने जाती जीवन में भी कई लोगों से हम लोग मिलते हैं जिनकी बाहरी रूप को देखकर ही हम उन पर मोहित हो जाते हैं लेकिन असल में वह कैसे हैं यह जब पता लगता है तब तक बहुत देर हो जाती है। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद शायद हर व्यक्ति खूबसूरत चेहरे को देखे तो एक बार जरूर सोचे कि उसके पीछे क्या है? सुधीर जैसा हुआ तो शायद न भी सोचे। 

उपन्यास में सुधीर तहकीकत के लिए कई लोगों के मदद लेता है। इसमें देवेन्द्र यादव तो है ही साथ में मुकुंदलाल (सस्पेंड हुआ हवलादर), रजनी और नवीन सेठ भी है। इन सबके साथ उनकी ट्यूनिंग देखते ही बनती है।  नवीन, जो खुद एक प्राइवेट डिटेक्टिव है,  के विषय में बाजी उपन्यास में भी जिक्र था तो इसके बाद का ही उपन्यास है और मैंने इससे पहले पढ़ा था तो उससे मिलकर अच्छा लगा। मैं वह उपन्यास पढ़ना चाहूँगा जब इन दोनों की पहली बार मुलाकात हुई थी। मज़ा आएगा। अगर आपको पता हो इस विषय में तो बताइएगा। 

चूँकि यह सुधीर कोहली का उपन्यास है सुधीर मार्का हरामीपन इधर देखने को मिल जाता है। वो क्यों लकी बेस्टर्ड कहलाता है यह भी समय-समय पर दृष्टिगोचर होता है जो कि चेहरे पर एक मुस्कान ले आता है। वहीं सुधीर के सुधीर के किरदार का एक दूसरा पहलू भी इधर देखने को मिलता है। सुधीर कोहली के आपने कुछ उपन्यास पढ़े हुए हैं तो आप यह जानते होंगे कि उसकी कुछ हरकतें और बातें कई बार ऐसी रहती हैं कि वह स्त्री विरोधी सा जान पड़ता है। उसके वक्तव्य सुनकर कई बार लगता है कि वह औरतों से खार सी खाता है। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि अक्सर उसे स्त्रियों से धोखा ही मिला है। इस उपन्यास को पढ़कर भी काफी बार उसकी बातें सुनते हुए कोफ्त हो सकती है। 

लेकिन उसकी कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनमें  उसका वो रूप भी देखने को मिलता है जो कि वह छुपाकर रखता है। वह धोखा खाया इंसान है और इसलिए उसने एक आवरण सा खुद पर चढ़ा दिया है और उस आवरण के भीतर खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करता है। साक्षी और अब प्रस्तुत उपन्यास गोल्डन गर्ल में उसका यह रूप किसी किसी वक्त देखने को मिलता है। निम्न बातचीत देखिए आपको पता चलेगा मैं क्या कह रहा हूँ:

"शुक्रवार।"

"शुक्रवार! बम तो बुध हो फूटा था। ओह माई गॉड!" - मैं भौंचक्का सा रजनी का मुँह देखने लगा - "तू... तू दो दिन से यहाँ है?"

रजनी ने मेरे से आँख न मिलाई। 

"ये ही मैडम परसों दोपहर आपको यहाँ लायी थीं।" - नर्स बोली - "तब से ये एक मिनट के लिए भी आपके सिरहाने से नहीं हिली हैं। ये भी वजह है आपकी अर्ली रिकवरी की।"

कितनी देर मेरे मुँह से बोल नहीं फूटा। 

... 

"मेरी तरफ देख।"- मैं बोला। 

उसने सिर उठाया। 

"तूने क्यों किया ऐसा?"

"यूँ ही।" - उसने बात को हँसी में उड़ाने की कोशिश की - "कोई खास वजह नहीं।"

"रजनी"- मैं भर्राये कण्ठ से बोला - "मैं तेरी इतनी तवज्जो के काबिल नहीं। मैं किसी की इतनी तवज्जो के काबिल नहीं।"

"आपका वहम है ये।"

"मैं बहुत हकीर इंसान हूँ, मैं..."

"सुधर जाइए।"

"ऐसे ही हालात में एक बार पहले भी बोला था तूने ऐसा। "

"तब नहीं सुधरे तो अब सुधर जाइये।"

"अच्छा।"- मैंने गहरी साँस ली- "यहाँ का बिल सेटल करना होगा।" (पृष्ठ 133 -पृष्ठ 134)

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो मुझे कोई कमी इसमें नजर तो नहीं आई या मेरी आँखें किसी पर ठिठकी नहीं। 

अंत में यही कहूँगा कि अगर आप एक अच्छी रहस्यकथा पढ़ना चाहते हैं तो गोल्डन गर्ल आपको इस मामले में निराश नहीं करेगा। लेखक कातिल को उपन्यास के ज़्यादातर हिस्से तक छुपाने में कामयाब रहे हैं और रहस्य आपको पढ़ते चले जाने पर मजबूर कर देता है। और इस कारण एक अच्छी रहस्यकथा के मापदण्ड पर मेरे नज़रों में खरा उतरता है। अगर आप रोमांचकथाओं के शौकीन हैं उनके मुकाबले इसकी गति थोड़ा कम जरूर लग सकती है लेकिन रहस्य उस कमी को पूरा कर देता है। मेरी राय तो यही रहेगी कि उपन्यास को पढ़िए। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न 


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2 Comments
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  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच      "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर"    (चर्चा अंक- 4455)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

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    1. चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार...

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