नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कुबड़ी बुढ़िया की हवेली - सुरेन्द्र मोहन पाठक

 संस्मरण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 96 | प्रकाशक: साहित्य विमर्श | प्रथम प्रकाशन: 1971

पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श


कहानी 


राजू और मिनी बहुत दिनो बाद अपने गाँव लौटे थे। इस बार गर्मियों की छुट्टियाँ उन्हें गाँव में बितानी थी।

गाँव में घूमते हुए जब वह कुबड़ी बुढिया की हवेली पहुँचे तो उस हवेली ने उनके बाल मन को कौतूहल से भर दिया। इस हवेली से जुड़ी कई ऐसी रहस्यमय बातें थी जिसने उनको आकर्षित कर दिया।

आखिर क्या थी ये कुबड़ी बुढ़िया की हवेली?
इस हवेली में क्या राज दफ्न थे?
क्या बच्चे उन राजों का पता लगा पाए?

मुख्य किरदार 

राजू - ग्यारह साल का बच्चा
मिन्नी - नौ साल की लड़की
हरी प्रकाश - एक वकील
मीना - राजू, मिन्नी की मां
शेरा - राजू मिन्नी का कुत्ता
मोती - राजू मिन्नी के दादा जी का नौकर
भोला - मोती का लड़का
सुंदरी - बोला की बंदरिया
ठाकुर कृपाल सिंह - कुबड़ी बुढ़िया की हवेली के पुराने मालिक जो 300 वर्ष पूर्व उस इलाके के राजा हुआ करते थे 
दुष्यंत - सीआईडी का इन्स्पेक्टर

मेरे विचार

स्कूल की छुट्टियाँ हमेशा से ही बच्चों के लिए ऐसा समय होती हैं जिसका वो पूरा वर्ष भर इंतजार करते हैं। चूँकि मैं पहाड़ से आता हूँ तो हमारे यहाँ गर्मी की छुट्टियों के बजाए सर्दियों की छुट्टियाँ पड़ा करती थीं। वहीं मैदानी इलाकों में मैंने सुना है कि गर्मी की छुट्टियाँ ही पड़ा करती हैं। इन छुट्टियों को लेकर कई योजनाएँ बच्चे वर्ष के आधे बीतने तक बनाने लगते हैं। फिर जैसे-जैसे छुट्टियाँ नजदीक आती हैं वैसे-वैसे बच्चों का उत्साह भी बढ़ता चला जाता है। आपका तो पता नहीं लेकिन हमारे यहाँ जब यह वार्षिक छुट्टियाँ पड़ा करती थीं तो अक्सर लोग दादा-दादी या नाना-नानी के यहाँ जाया करते थे। मैं भी अक्सर मामा लोगों के पास दिल्ली चला जाया करता था जहाँ काफी रोचक अनुभव मुझे हुआ करते थे। प्रस्तुत बाल उपन्यास 'कुबड़ी बुढ़िया की हवेली' (Kubdi Budhiya Ki Haweli) भी एक ऐसी ही छुट्टी की कहानी है।  

सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) वैसे तो मूलतः अपराध कथाकार हैं लेकिन उन्होंने सामाजिक उपन्यास (Social Novels) और बाल उपन्यास (Children Fiction) भी लिखे हैं। 'कुबड़ी बुढ़िया की हवेली' (Kubadi Budhiya Ki Haweli) उनका लिखा पहला बाल उपन्यास है जो कि प्रथम बार 1971 में प्रकाशित हुआ था। अब साहित्य विमर्श प्रकाशन (Sahitya Vimarsh Prakashan) द्वारा इन्हें पुनः प्रकाशित किया गया है। 

'कुबड़ी बुढ़िया की हवेली' (Kubdi Budhiya Ki Haweli) के केंद्र में राजू (11 वर्ष) और मिनी (नौ वर्ष) नामक दो बच्चे हैं जो कि अपने दादा-दादी के गाँव छुट्टियाँ मनाने पहुँचते हैं। दादा-दादी के गाँव पँहुच कर राजू और मिनी को न केवल खुला वातावरण मिलता है बल्कि साथ ही नए दोस्त भोला (11 वर्ष) और सुंदरी और एक रोमांचकारी अनुभव भी मिलता है। 

गाँव में एक हवेली है जो कि कुबड़ी बुढ़िया की हवेली (Kubdi Budhiya Ki Haweli) नाम से प्रसिद्ध है। जब बच्चे उस हवेली को देखने जाते हैं तो उन्हें पता लगता है कि हवेली अपने अंदर की रहस्य समेटे हुए है। हवेली का एक घंटा है जो कि आज भी बिना किसी कारण बज जाया करता है और गाँव वालों का कहना है कि यह घंटा कोई पारलौकिक शक्ति ही बजाती है। 

वहीं हवेली देखकर बच्चों के मन में यह ख्याल उत्पन्न हो जाता है कि हो न हो इस हवेली में कोई कोई गुप्त रास्ता जरूर होगा। इसी गुप्त रास्ते को खोजने की कोशिश इन बच्चों को किस तरह से एक रोमांचकारी अनुभव से दो चार कराएगी यही उपन्यास का कथानक बन जाता है। 

उपन्यास सीधा है और यथार्थ के निकट प्रतीत होता है। बचपन में गुप्त रास्ते खोजने की जुगत हमने भी काफी की है और उससे जुड़ी यादें इस उपन्यास को पढ़ते हुए स्मृति में कौंध गई थीं। कई बार आप कोई काम कुछ और सोचकर करते हो लेकिन वह काम आपको किसी और अनुभव से दो चार करा देता है। यही चीज इधर भी देखने को मिलती है। एक साधारण सा कौतहुल कैसे बच्चों को मुसीबत में डालता है और वह किस तरह अपनी सूझबूझ से उससे न केवल बाहर निकलते हैं बल्कि अपना नाम भी रौशन करते हैं यह उपन्यास में दृष्टिगोचर होता है। 

किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास में मौजूद राजू, मिनी और भोला के किरदार मुझे पसंद आए। मिनी और राजू के बीच का समीकरण पसंद आया। उनकी नोक झोंक मनोरंजन करती है।  वहीं उपन्यास में शेरा और सुंदरी भी मौजूद हैं। सुंदरी का किरदार लेखक ने रोचक तरीके से लिखा है और वह आपको गुदगुदाता है और अपनी छाप छोड़ने में सफल होता है।  उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। 

उपन्यास में टेक्स्ट तो है साथ ही पुस्तक में चित्र भी दिए गए हैं। चित्रों को गौर से देखने पर यह बात पता लगती है कि यह चित्र अनन्या सिंह द्वारा बनाये गए हैं। ये अनन्या सिंह कौन हैं और इन्हें चित्र बनाने के लिए चुनने की प्रक्रिया के विषय में प्रकाशक द्वारा कुछ जानकारी साझा की जाती तो बेहतर होता। 

अंत में यही कहूँगा कि पचास साल पुराना यह कथानक मुझे रोचक लगा और आठ से 12 वर्ष के बच्चों के लिए उपयुक्त रहेगा। हाँ, थोड़े ट्विस्ट कथानक में और होते तो मज़ा बढ़ सकता था। 

उपन्यास के अंत में राजू और मिनी भोला और सुंदरी को शहर आने का निमंत्रण देते हैं। मुझे लगता है इन सभी किरदारों को लेकर शहर में बसाई गई एक रोमांचकथा लिखी जा सकती है। लेखक को इस पर विचार करना चाहिए। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श


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4 Comments
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  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2022) को चर्चा मंच      नाम में क्या रखा है?   (चर्चा अंक-4420)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

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    1. चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

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  2. कुबड़ी बुढ़िया की हवेली की बहुत बढ़िया समिक्षा।

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