नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

रहस्य के कमजोर तत्वों के चलते एक तेज रफ्तार पर औसत कॉमिक बन कर रह गई है 'लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश'

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: डायमंड कॉमिक्स | प्लेटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखक: अश्वनी (आशु) | चित्रकार: सुरेन्द्र सुमन | संपादक: गुलशन राय

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

समीक्षा: लम्बू मोटू और पत्थर की लाश | डायमंड कॉमिक्स | प्रतिलिपि


कहानी

शहर में लाशों का मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था। इन लाशों की खास बात यह थी कि इनमें से कुछ इंसानी लाशें विशालकाय थी और पत्थर की बनी प्रतीत होती थी और कुछ लाशों की गर्दन की हड्डी टूटी हुई रहती थी। 

पुलिस इस मामले में आगे नहीं बढ़ पायी थी। पुलिस की तरफ से यह मामला इंस्पेक्टर गुप्ता देख रहे थे जिन्हें डॉक्टरों की इस दलील पर विश्वास था कि यह सब किसी नए अनजाने रोग के कारण हो रहा था। वहीं गर्दन टूटने से मरे लोगों को वो सामान्य अपराध मान रहे थे। 

लेकिन इंस्पेक्टर अंकल पुलिस के इस रवैये से ज्यादा खुश नहीं थे। यही कारण था कि वो चाहते थे कि लम्बू-मोटू इस मामले की जाँच करे। 

आखिर लम्बू मोटू की जाँच में क्या मिला?
क्या यह पत्थर की लाश के रहस्य को जान पाये?
आखिर कौन था इनके पीछे और क्यों ये लाशें मिल रही थीं?


मेरे विचार


एक तरफ जहाँ विज्ञान ने मानव जीवन को काफी आरामदायक बनाया है वहीं दूसरी तरफ मानवों द्वारा ऐसे आविष्कार भी किए गए हैं जो किए तो इंसानों की भलाई के लिए करे गए थे लेकिन गलत हाथों में पड़ने पर उन्होंने इंसानों को नुकसान ही पहुँचाया। लंबू-मोटू और पत्थर की लाश के केंद्र में  भी एक ऐसा ही आविष्कार है जो कि इंसानों को असीम शक्ति देने की कुव्वत रखता था लेकिन फिर उसका इस्तेमाल इस तरह से होने लगा कि शहर में लाशे गिरने लगी।

लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश लम्बू मोटू शृंखला का कॉमिक बुक है जो कि डायमंड कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। कॉमिक बुक प्रतलिपि एप्प पर जाकर पढ़ा जा सकता है। लम्बू मोटू के विषय में अगर आप नहीं जानते हैं तो यह दोनों भाई हैं जो कि अकेले रहते हैं और इंस्पेक्टर अंकल के कहने पर कई आपराधिक मामलों से जूझते रहते हैं। प्रस्तुत कॉमिक बुक में भी ऐसा ही होता है। 

कॉमिक बुक की शुरुआत में ही पाठक को पत्थर की लाश किस तरह बन रही है यह देखने को मिलता है। यहाँ इतना ही बता पाऊँगा कि यह सब एक दवा के असर से हो रहा होता है।  अगली सुबह जब यह लाश पुलिस को बरामद होती है तो इन्स्पेक्टर अंकल के कहने पर लम्बू मोटू लाश मिलने वाली जगह पर जाते हैं और तहकीकात शुरू कर देते हैं। पुलिस की तरफ से यह मामला इन्स्पेक्टर गुप्ता देख रहा होता है जिसकी छवि पुलिस डिपार्ट्मेंट में एक नाकाबिल पुलिस वाले की है। लाश मिलने की जगह पर लम्बू-मोटू को एक सुराग मिलता है जिसके पीछे जैसे वो आगे बढ़ते रहते हैं वैसे-वैसे वह इस मामले के नजदीक पहुँचते रहते हैं। इस दौरान उनको कई मुसीबतों से दो चार भी होना पड़ता है और एक बार जेल का मुँह भी देखना पड़ता है लेकिन अपने दोस्त इंस्पेक्टर अंकल का साथ पाकर वह इस मामले के अंत तक पहुँच ही जाते हैं।

कॉमिक बुक में कई ट्विस्टस भी आते हैं लेकिन किस्मत और इत्तेफाक का साथ पाकर लम्बू मोटू उन पर आगे बढ़ते चले जाते हैं। कॉमिक में एक्शन भी भरपूर है जो कि इसकी पठनीयता बनाए रखता है। वहीं कॉमिक के अंत में लम्बू मोटू के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ा एक तथ्य भी पाठकों को जानने को मिलता है।  

अगर एक रहस्यकथा के हिसाब से देखा जाए तो मेरी नजर में यह कमजोर रहस्यकथा ही कही जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि कथानक में लेखक ने ऐसे सबूत लम्बू मोटू के लिए छोड़े हैं जो उनका काम काफी आसान कर देते हैं। मसलन, सबसे पहले उन्हें एक ऐसा लॉकेट मिलता है जिसमें पहनने वाले व्यक्ति का नाम दर्ज होता है। लम्बू मोटू इस व्यक्ति तक पहुँचते हैं तो उन्हे उस जगह का पता लग जाता है जो इस मामले के केंद्र में हैं। कथानक में आगे बढ़ते हुए वह एक आध जगह पर फँसते हैं लेकिन वहाँ पर भी संयोग से ऐसी चीजें उनको मिल जाती है जो कि आगे बढ़ने में उनके लिए सहायक हो जाती हैं। मसलन, वह एक किरदार को फोन पर बात करते सुन लेते हैं तो उन्हें एक दूसरी जगह का पता चलता है जहाँ से कहानी आगे बढ़ती है। वहीं जिस रेस्टोरेंट में वह खाना खा रहे होते हैं वहाँ उन्हें इत्तेफाक से एक ऐसा किरदार मिल जाता है जो कि उन्हें यह यकीन दिला देता है जिस जगह के विषय में फोन वाले किरदार से पता चला था वह जगह ही मामले से जुड़ी है। ऐसा होने से लम्बू मोटू दौड़भाग तो करते हैं लेकिन चीजें उनके सामने खुलती जाती हैं तो निश्चित दिशा उनके पास रहती है। अगर उन्हें इस दिशा को प्राप्त करने में अतिरिक्त मेहनत करनी होती तो शायद बेहतर होता। कहानी में एक बार इंस्पेक्टर अंकल एक किरदार पर हाथियों को मारने वाली गन का प्रयोग करते हैं। अब पुलिस वाले रिवॉल्वर के स्थान पर हाथियों को बेहोश करने की गन लेकर कबसे चलने लगे यह सोचने वाली बात है। लेखक को जैसे जैसे जरूरत हुई वह वैसे वैसे चीजों को लिखता चला गया है। उसने ये नहीं देखा है कि इसके पीछे कोई तर्क है या नहीं।

उपन्यास के अंत में खलनायक के तौर पर एक ऐसे व्यक्ति को लिया गया है जिसे देखकर एक पल पाठक ही नहीं लेकिन लम्बू मोटू और बाकी किरदार भी हैरान हो जाते हैं। यह आपको झटका तो देता है लेकिन फिर यही चीज लम्बू मोटू के हाथ में आए पहले सबूत को लेकर प्रश्न चिन्ह खड़ी कर देती है। अगर वह किरदार इतना दिमाग वाला होता कि ऐसा खेल खेल सके तो पहला सबूत ही लम्बू मोटू के हाथ में नहीं लग पाता और कहानी आगे ही न बढ़ती।  तो यह बात अटपटी लगती है। वहीं ऐसा भी लगता है कि लेखक ने लिखते हुए यह सोचा कि कौन सा किरदार है जिस पर कम शक जाता है और उसे ही कातिल करार दे दिया। अगर कथानक में पहले से कुछ ऐसे सबूत छोड़े होते जिनके चलते लम्बू मोटू षड़यंत्रकर्ता की पहचान तक पहुँचते तो अच्छा रहता। तब शायद यह एक मजबूत रहस्यकथा बनती। 


हाँ, अगर एक बाल कथा के तौर पर देखा जाए तो यह एक ठीक ठाक बाल कथा कही जाएगी। परंतु मुझे लगता है कि अगर बाल पाठक एनिड बलाइटन, फेमस फाइव  जैसी अच्छी रहस्यकथाओं को पढ़ता होगा वह भी ऊपर दी गई बातों पर गौर करेगा लेकिन अगर किसी का जासूसी बाल उपन्यासों से कोई राब्ता नहीं रहा है तो वह इस पर इतना ध्यान नहीं देगा।

कथानक में एक और चीज मुझे अटपटी लगी। माना ही यह बाल कथा और लम्बू मोटू इन्स्पेक्टर को इंस्पेक्टर अंकल कहते हैं लेकिन कमिश्नर का भी इंस्पेक्टर के लिए यह सम्बोधन प्रयोग में लाना अटपटा ही है। वहाँ अंकल के बजाए इंस्पेक्टर होता तो बेहतर होता। 


अंत में यही कहूँगा कि 'लम्बू मोटू और पत्थर की लाश' एक तेज रफ्तार कॉमिक बुक है जिसमें काफी एक्शन है बस रहस्य के तत्व कमजोर हैं। इन तत्वों को भी थोड़ा मजबूत बनाया जाता तो यह एक बेहतरीन चित्रकथा बन जाती। अभी एक औसत कथा बनकर रह गई है। एक बार पढ़ सकते हैं।


कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि


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4 Comments
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  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-03-2022) को चर्चा मंच     "होली की दस्तूर निराला"   (चर्चा अंक-4371)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    1. चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार...

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