नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

एक नई शृंखला और नये नायक का रोमांचक आगाज है 'रक्षपुत्र'

संस्करण विवरण:


फॉर्मैट:
ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 95 | प्रकाशन: फ्लाईविंग्स | शृंखला: रक्षपुत्र #1

पुस्तक लिंक: अमेज़न

समीक्षा: रक्षपुत्र - अनुराग कुमार सिंह

कहानी 

अरण्य शहर की सीमा से लगा हुआ था कंदवन। एक ऐसी जगह जहां अभी भी करुओं का राज्य था। वह करू जिन्होंने कभी राक्षसों की मदद की थी। 

इसी जंगल में रहता था वो युवक जिसे करू रक्षपुत्र के नाम से जानते थे। रक्षपुत्र और उसकी मां से करू नफरत करते थे। इतनी नफरत कि अगर उन्हें पता होता कि वह जिंदा है तो वह उसकी जान लेने से भी नहीं कतराते। 

लेकिन इन्हीं करुओं का रक्षक बनने वाला था रक्षपुत्र। और ये सब होने वाला था एक अंडे के चलते जो कि कंदवन में आसमान से आकर गिरा था। एक ऐसा अंडा जिसके चलते अरण्य शहर और कंदवन में भारी तबाही मचने वाली थी।

आखिर कौन था ये रक्षपुत्र? आखिर क्या थी उसके लिए की गई भविष्यवाणी? 

आखिर किसका था वह रहस्यमय अण्डा? उसके आते ही आसपास तबाही क्यों मचने वाली थी?


मुख्य किरदार

काई - करुओं की एक युवती 
रॉकी, रीमा  - काई के दोस्त 
किरीट - कबीले का सरदार और काई का पिता 
झाड़ी - करुओं के कबीले में काई की दोस्त 
असुरा - एक करू जिसने करुओं के नियम मानने से इंकार कर दिया था और अपना एक अलग दल बना लिया था
रुद्र - एक युवक जिसे करू रक्षपुत्र पुकारते थे
जीवा - रुद्र की माँ 
मारुति, जाम्बु, संपाती - कुरुओं के गुरु 
गिधारा - हुमायु सैनानायक 
कपोता और पंखुड़ी - हुमायु योद्धा
गिरिट - परजीवी गिरगिट रक्ष
डंकन और उलूक - दूसरे परजीवी रक्ष
आकाशवीर - एक हुमायु योद्धा जिसे आकाश का रखवाला कहते थे
होमपति - होमा योद्धाओं के राजा और आकाशवीर के पिता


मेरे विचार

फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन अपनी टैग लाइन 'किताबें कुछ हटके' के अनुसार अक्सर कार्य करता रहता है। ऐसा ही काम प्रकाशन ने अनुराग कुमार सिंह के उपन्यासों को पाठक तक पहुँचाने का किया है। अनुराग कुमार सिंह मूलतः एक कॉमिक बुक लेखक जो कि अब इस सुपरहीरो जॉनर को उपन्यास के फॉर्मैट में पाठकों के समक्ष लेकर आ रहे हैं। इससे पहले वह दो उपन्यास मुखौटे का रहस्य (सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित) और अमोघ पाठकों के लिए ला चुके हैं। जहाँ अमोघ का घटनाक्रम दिल्ली में घटित होता है वहीं मुखौटे का रहस्य का घटनाक्रम अरण्य शहर नामक काल्पनिक शहर में घटित हुआ था। अब इस अरण्य शहर के बगल में मौजूद कंदवन में होने वाली घटना लेखक पाठकों के समक्ष लेकर आ रहे हैं। वैसे तो मुखौटे का रहस्य और रक्षपुत्र की कहानियाँ बिल्कुल अलग-अलग किरदारों की हैं लेकिन मैं चाहूँगा कि आपने मुखौटे का रहस्य नहीं पढ़ा है तो रक्षपुत्र के बाद उसे भी पढ़ें। 

प्रस्तुत उपन्यास रक्षपुत्र की बात करूँ तो छोटे-छोटे ग्यारह  पठनीय अध्यायों में विभाजित इस उपन्यास में मुख्यतः दो दुनियाएँ आपको दिखती हैं। एक दुनिया धरती में कंदवन की दुनिया है और दूसरी दुनिया धरती से बाहर मौजूद जीवों की हैं।

जैसे कि शीर्षक से ही जाहिर होता है कि यह रक्षपुत्र की कहानी है और यह रक्षपुत्र कंदवन में रहने वाला 25 वर्षीय युवक रुद्र है। रक्षपुत्र कौन है, उसे रक्षपुत्र क्यों कहा जाता है और क्यों उसकी माँ ने उसे अपने कबीले से छुपाकर रखा था यह सब कुछ आपको कंदवन की कहानी में पता चलता है। वहीं कंदवन के करु कबीले और उसके इतिहास के विषय में भी आपको पता चलता है। उपन्यास में आप असुरा नामक करू से भी मिलते हैं जो कि करू जाति का तो है लेकिन उनका दुश्मन बन चुका है। उपन्यास पढ़ते हुए आपको पता चलता है कि कैसे कंदवन बाकि दुनिया से कटा हुआ है और यहाँ के अपने कायदे कानून हैं। वहीं उपन्यास के अंत में आप रक्षपुत्र को शहर में जाते हुए भी देखते हैं।

धरती के बाहर की दुनिया में जब लेखक आपको ले जाते हैं तो आपकी मुलाकात होमा पक्षियों से होती है, हुमायु योद्धाओं से होती है और रक्ष परजीवियों से होती है। आप रक्ष परजीवियों और होमा योद्धाओं के बीच होने वाले युद्ध को भी देखते हो।
 
कहानी के अंत तक आते आते धरती के बाहर रहने वाले और कंदवन के निवासी के दूसरे के समक्ष खड़े दिखते हैं। रक्षपुत्र कैसे करुओं का रक्षक बनता है और एक नया नायक किस तरह पैदा होता यह आप इस उपन्यास को पढ़ते हुए देखते हैं। 

यहाँ ये बताना भी जरूरी है कि 'रक्षपुत्र' में यह कहानी खत्म नहीं होती है। यहाँ पर कहानी का एक ही हिस्सा आपको देखने को मिलता है। कई सवाल अधूरे रह जाते हैं जिनके उत्तर आपको अगले भाग में देखने को मिलेंगे। 

हाँ, इतना मैं अवश्य कहूँगा कि इस भाग में लेखक ने तेज रफ्तार कथानक के साथ-साथ एक्शन से भरपूर कहानी दी है जो कि पाठक के रूप में आपका मनोरंजन करने में न केवल सफल होती है बल्कि अगले भाग के प्रति आपकी उत्सुकता भी जागृत करती है। 

उपन्यास  के किरदारों की बात करूँ तो धरती और धरती के बाहर दोनों ही दुनियाओं के किरदार कथानक के साथ न्याय करते हैं।  धरती के किरदारों की पहले बात करूँ तो काई का किरदार मुझे पसंद आया। काई और रक्षपुत्र के बीच का समीकरण रोचक है। आगे जाकर यह रिश्ता किस तरह विकसित होता है यह मैं देखना चाहूँगा। रक्षपुत्र का किरदार भी लेखक ने रोचकता से गढ़ा है। वह एक ताकतवर युवक है लेकिन एक तरह की मासूमियत उसमें मौजूद है। वह दुनिया से अब तक कटा हुआ रहा है और इस चीज को लेखक ने अच्छे तरीके से उभारा है। उपन्यास में असुरा भी एक खुर्राट किरदार है लेकिन अभी वह उतने खिलकर इस उपन्यास में नहीं आया है। मुझे लगता है इस उपन्यास में उसे थोड़ी जगह और देनी चाहिए थी। अभी ऐसा लगता है जैसे लेखक आधे उपन्यास में जाकर उसे भूल से गए हैं। 

धरती के बाहर की दुनिया की बात करूँ तो आकाशवीर हुमायु योद्धाओं में सबसे तेज तर्रार योद्धा है। उसका पराक्रम हमें इस उपन्यास में देखने को मिलता है। उसे आकाश का रक्षक कहा जाता है जिससे पता लगता है कि उसने कई युद्ध लड़कर इस तमगे को हासिल किया होगा। यह चीज उसके प्रति उत्सुकता जगाती है।  वहीं उसके बाकी साथी भी कथानक को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। यहाँ ये भी कहना चाहूँगा कि परजीवी रक्षों और हुमायु योद्धाओं की दुनिया मुझे रोचक लगी। उम्मीद रहेगी लेखक केवल परजीवी रक्षों और हुमायु योद्धाओं को लेकर भी कुछ लिखेंगे। इन जीवों की दुनिया को विस्तृत तौर पर मैं जानना चाहूँगा। 

उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो कुछ चीजें ऐसी थीं जिनका ख्याल उपन्यास में रखा जा सकता था लेकिन फिलहाल नहीं रखा गया है। अगर रखा होता तो यह उपन्यास और बेहतर होता।   

उपन्यास का एक प्रसंग है जिसमें काई और झाड़ी काई के दोस्तों, रीमा और रॉकी को असुरा के चंगुल से बचाकर ले जाती हैं। शुरुआत में वह लोग बेहोश होते हैं। फिर जब उन्हें होश में लाया जाता है तो वह काई और झाड़ी के साथ-साथ भागने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके साथ कुछ हुआ ही न हो। अपनी जान बचाने के लिए ऐसा करना लाजमी है लेकिन चूँकि रीमा और रॉकी काफी वक्त से बेहोश थे (यह बेहोशी तंत्र शक्तियों के कारण भी थी) तो अगर शुरुआत में उन्हें भागने में तकलीफ होती दिखाते तो शायद बेहतर रहता। अभी ऐसा लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। 

उपन्यास में कुछ बिंदु मुझे ऐसे लगे जिन्हें होना तो चाहिए था लेकिन वह न जाने लेखक ने क्यों नहीं रखे। जैसे ऊपर भी मैंने कहा कि उपन्यास में असुरा का एक सशक्त किरदार के रूप में शुरू में दिखता है। जिस अण्डे के कारण इतनी तबाही मचती है उसे धरती पर वही लेकर आता है लेकिन फिर उपन्यास में एकदम से वह गायब कर दिया जाता है। रक्षपुत्र उसके आदमियों से काई और उसके दोस्तों के बताता है। अपने आदमियों की इस असफलता का असुरा का क्या असर पड़ता है यह लेखक नहीं दिखाते हैं। वहीं उसकी आगे की योजनाओं पर भी लेखक एक मौन धारण कर लेते हैं जो कि खटकता है। मुझे लगता उस घटना के बाद कम से कम एक बार तो असुरा को दिखाकर उसकी आगे की योजना के विषय में इशारा लेखक को करना चाहिए था। 

इस उपन्यास का कुछ भाग शहर में भी घटित होता है। चूँकि कंदवन के बगल में अरण्य शहर ही तो मैं ये मानकर चल रहा हूँ कि यह अरण्य शहर ही है।  यहाँ रक्षपुत्र हुमायु योद्धाओं से दो चार होता हुआ दिखता है वहीं होमा पक्षी भी काफी उत्पात मचाता है। इस उत्पात के दौरान अरण्य में त्रिमूर्ति नहीं दिखाई देते हैं। अगर आप त्रिमूर्ति से वाकिफ नहीं हैं तो जैसे कि मैंने ऊपर बताया कि त्रिमूर्ति लेखक के पहले उपन्यास मुखौटों का रहस्य के किरदार हैं जिनकी कहानी अरण्य शहर में घटित होती है। ऐसे में इतनी बड़ी घटना के दौरान इन तीनों का उधर न दिखना खटकता है। हो सकता है इन दोनों घटनाओं की टाइमलाइन अलग अलग हों लेकिन ऐसा कुछ पता तो नहीं चलता है। ऐसे में अरण्य शहर में त्रिमूर्ति भी दिखते तो ज्यादा मजेदार रहता। कम से कम मुझे तो ऐसा लगता है। 

इसके अलावा उपन्यास में छोटी छोटी प्रूफ की गलतियाँ हैं जो कि खटकती हैं। यहाँ कुछ को दर्ज कर रहा हूँ इस उम्मीद में कि कम से कम ई बुक संस्करण में तो इसे प्रकाशक सुधार ही सकता है। उदाहरण के लिए:

उसका नाम काई था। (पूर्णविराम की जरूरत नहीं थी) जबकि दुसरी ('दूसरी' होना चाहिये था) लड़की और लड़के का नाम क्रमशः रीमा और रॉकी था। (पृष्ठ 8)

तुमलोग ('तुम लोग' होना चाहिए था) शायद जानती ('जानते' होना चाहिए था) नहीं हो आगे किन-किन चीजों से तुम्हारा पाला पड़ सकता है। (पृष्ठ 9)

रॉकी ने परेशान स्वर में टॉर्च को इधर-उधर घुमाया। उनको काई तो नहीं दिखी पर अँधेरे में रहने को अभ्यस्त ('पर इस टॉर्च ने अँधेरे में रहने के अभ्यस्त' होना चाहिए था ) चमगादड़ों के झुंड में हलचल जरूर मचा दी। (पृष्ठ 10)

दुसरी (दूसरी होना चाहिए था) तरफ वह जलता हुआ अण्डा (पृष्ठ 25

...बल्कि उनके सैकड़ों अण्डों  में  से किसी एक अण्डे से निकलने वाला शावक आकाश तत्व का धारक होता है जो हमारी चमत्कारी शक्तियों का श्रोत (स्रोत होना चाहिए था) है। (पृष्ठ 47

परंतु हम विवश थे इसलिए आपको सुचना (सूचना) देने यहां (यहाँ) आ गए। (पृष्ठ 48

बहुत ध्यान से देखने के बाद उनकी समझ में आया कि ये प्रकाश कुछ चमकीले पत्थरों से आ रही थी (पत्थरों से आ रहा था होना चाहिए था) जो गुफा में ही इधर-उधर लावारिस पड़ी हुई थी (पड़े हुए थे होना चाहिए था)।  

 

एक और चीज थी जो कि कमी तो नहीं है लेकिन फिर भी अगर संस्करण में होती तो बेहतर होता। चूँकि रक्षपुत्र एक तरफ का फंतासी उपन्यास हैं जिसमें कई रोचक किरदार हैं तो उन किरदारों को दर्शाते कुछ इलस्ट्रैशन भी होते तो बेहतर होता। मुझे लगता है प्रकाशक को रक्षपुत्र और इसके अलगे भाग का एक संयुक्त संस्करण निकालना चाहिए जिसमें ये चित्र होने चाहिए। चूँकि अनुराग कॉमिक बुक इंडस्ट्री से जड़े हैं तो मुझे नहीं लगता ये करना उनके लिए मुश्किल होगा। 

अंत में यही कहूँगा कि रक्षपुत्र के साथ लेखक अनुराग कुमार सिंह ने एक रोमांचक शृंखला की शुरुआत की है। बाल और किशोर पाठकों को विशेष रूप से यह उपन्यास भरपूर मज़ा देगा। अभी एक रोचक मोड़ पर लेखक कथानक को छोड़ देते हैं जो कि आगे आने वाली कहानी के प्रति उत्सुकता जगाए रखता है और अगले भाग को पढ़ने के लिए पाठक को मजबूर सा कर देता है। बस वो भाग जल्द उपलब्ध हो जाए। 

उम्मीद है पाठकों को रक्षपुत्र और उसकी दुनिया में वापिस दाखिल होने का मौका लेखक जल्द ही मुहैया करवाएँगे। त्रिमूर्ति शृंखला की तरह देरी नहीं करेंगे। आगे क्या होगा यह जानने के लिए मैं तो काफी उत्सुक हूँ। आप भी पढ़ेंगे तो अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाएँगे। 
 
यहाँ मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अगर लेखक या प्रकाशक इस उपन्यास और आने वाले उपन्यास को किसी स्टूडियो के समक्ष पिच करे तो एक अच्छी रोमांचक एनिमेशन फिल्म इस उपन्यास को आधार बनाकर बन सकती है। लेखक और प्रकाशक को इस दिशा में जरूर काम करना चाहिए। टीवी स्क्रीन इस दुनिया को देखना एक अद्भुत अनुभव रहेगा। 


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