नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पुस्तक अंश: द ट्रायो

 



'द ट्रायो' लेखक अजिंक्य शर्मा की 'द ट्रेल' शृंखला का दूसरा उपन्यास है। शृंखला के पहले उपन्यास की तरह यह भी एक रहस्यकथा है। आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए अजिंक्य शर्मा के इस नव-प्रकाशित उपन्यास का एक रोमांचक अंश। उम्मीद यह अंश पुस्तक के प्रति आपकी उत्सुकता जगाने में कामयाब होगा। 

*****

देवसरिया ने अपनी कलाई पर बंधी रोलैक्स की कीमती गोल्डवॉच पर नजर मारी।

सात बजने में अभी पाँच मिनट थे।

ठण्ड के दिन होने के कारण बाहर अंधेरा छा चुका था। लेकिन फनहाउस में अंधेरे जैसी कोई बात नहीं थी।

वहाँ पर्याप्त से भी ज्यादा लाइटें लगी हुईं थीं, जिनसे पूरा फनहाउस जगमगा रहा था। लगभग हमेशा ही जगमगाता था।

कल का दिन उनके लिए, उन सबके लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था।

कल 'द ट्रायो’ की वो मीटिंग होने वाली थी, जिसके लिए वे लोग काफी अरसे से तैयारी कर रहे थे।

मीटिंग के बाद उनकी बिजनेस डील का रास्ता साफ हो जाना था।

मेड ओशन  की एक और बड़ी सफलता।

कोई हैरानी की बात नहीं होती अगर उस डील के फाइनल होने के बाद उनकी कंपनी फार्मास्युटिकल इण्डस्ट्रीज में टॉप पर पहुँच जाती।

जिसके विपुल रॉय ने सपने ही देखे थे।

और अब देवसरिया उन सपनों को सच बनाने वाला था।

देवसरिया ने सामने-घाटी के उस पार दूर छोटी-बहुत छोटी-दिख रही मैंशन पर नजर डाली। मैंशन में जलती लाइटों के कारण वो वहाँ से थोड़ी-बहुत दिख पा रही थी वरना अंधेरा और दूरी अधिक होने के कारण उतनी भी नहीं दिखती।

तभी प्रियांशु मेहरा उसके पास पहुँचा।

प्रियांशु, विपुल और प्रकाश, तीनों गहरे दोस्त थे। बिजनेस पार्टनर होने के अलावा अभिन्न मित्र भी थे। जानने वाले जानते थे कि तीनों एक-दूसरे पर टूटकर विश्वास करते थे।

''विपुल कहाँ है?’’-उसे देखकर प्रियांशु ने पूछा।

''उसी का इंतजार कर रहा हूँ।’’-देवसरिया बोला-''अभी-अभी साल्वे को मीटिंग के अरेंजमेंट्स के बारे में ही इंस्ट्रक्शन दे रहा था। कल मीटिंग की तैयारी कर ली?’’

''मीटिंग की मीटिंग में ही देखेंगें।’’-प्रियांशु बोला-''अभी तो जल्दी डिनर करने के बाद कम से कम एक घंटे कम्प्यूटर पर गेम खेलूँगा, उसके बाद आराम से सोऊँगा।’’

''वो बाल्कनी देख रहे हो?’’-देवसरिया उसे थोड़ी दूरी पर बालकनी की ओर इशारा करते हुए बोला।

''हाँ। क्या है वहाँ?’’-प्रियांशु उत्सुकता से बोला।

''वहाँ  जाओ और रेलिंग पर चढ़कर नीचे घाटी में कूद जाओ।’’

प्रियांशु हँसा।

''और क्या?’’-देवसरिया भुनभुनाया-''साला शादी-ब्याह करने की उम्र में बच्चों जैसे वीडियो गेम खेलते हो। शर्म तुमको मगर नहीं आती।’’

''अरे, इतना बुरा भी नहीं है वीडियो गेम खेलना। मुझसे ज्यादा उम्र के लोग भी खेलते हैं।’’

''बुढ्ढे भी खेलते होंगें। मरने के बाद रिमोट लेकर कब्र में चले जाते होंगें मेरी बला से। लेकिन मुझे ऐसे आदमी को अपना दोस्त कहते हुए शर्म आती है, जो इतना बड़ा बिजनेसमैन होकर भी बच्चों की तरह वीडियो गेम्स की बातें करता है। बल्कि बातें ही नहीं करता, खेलता भी है।’’

''सबके अपने-अपने शौक होते हैं। जैसे तुम्हारा शौक पैसे उड़ाना है।’’

''मैंने कौन से पैसे उड़ा दिए?’’

प्रियांशु और भी जोर से हँसा।

''अब क्या हुआ?’’-देवसरिया खीझकर बोला।

''तुम्हारी बात पर हँसी आ रही है। हम तीनों में सबसे ज्यादा फिजूलखर्च तुम ही हो और कह रहे हो कि तुमने कौन से पैसे उड़ा दिए। करोड़ों रूपए तो तुमने इन फालतू से रूम्स पर खर्च कर दिए हैं।’’

''कमाता हूँ तो उड़ाता भी हूँ। तुम्हारे बाप का क्या जाता है?’’

''तो मैं वीडियो गेम खेलता हूँ, इसमें तुम्हारे बाप का क्या जाता है?’’

''इसीलिए तो कह रहा था।’’

''क्या?’’

''कि वहां बालकनी में जाकर नीचे कूद जाओ।’’

''बेटेलाल, मुझसे पहले तुम्हारा नम्बर लगेगा।’’

''अच्छा?’’

''और नहीं तो क्या? अपनी उम्र देखो। 40 पार कर चुके हो।’’

''अपनी कमसिनी और मासूम शक्ल पर बहुत ज्यादा ही घमण्ड है तुम्हें। लेकिन कभी ये सोचा है कि क्या फायदा इतने स्मार्ट होने का, जब एक अदद लड़की तक न पटा सको।’’

''मुझे किसी को पटाना नहीं है।’’

''तो क्या संन्यासी बनकर जिंदगी गुजारने का इरादा है?’’

''मुझे सच्चे प्यार की तलाश है।’’

देवसरिया जोर से हँसा।

''अब क्या हुआ?’’-प्रियांशु बोला।

''सच्चा प्यार?’’-देवसरिया हँसते हुए बोला- ''जिस आदमी के पास इतना पैसा हो, उसे कभी सच्चा प्यार नहीं मिल सकता।’’

''क्यों नहीं मिल सकता?’’

''एक तो सच्चे प्यार जैसी कोई चीज दुनिया में होती ही नहीं। दूसरे, अगर होती भी है तो तुम्हारे जैसे पैसे वाले आदमी के लिए नहीं होती।’’

''ऐसा क्यों?’’

''क्योंकि तुमसे जो भी प्यार करेगी, वो कहीं-न-कहीं तुम्हारी दौलत से आकर्षित ही होगी।’’

''मैं अपने सच्चे प्यार की तलाश जल्द ही शुरू करने वाला हूँ।’’

''अच्छा? मैं भी तो सुनूँ सच्चे प्यार को कैसे तलाश किया जाता है?’’

''ये तो मुझे भी पता नहीं।’’

''हा हा हा।’’

प्रियांशु ने ऐसे हाथ हिलाया, जैसे उसे अवॉइड कर रहा हो।

''ये विपुल का बच्चा वहाँ रह गया?’’-देवसरिया ने फिर अपनी कलाई घड़ी पर नजर मारी-''सात तो कब के बज गये।’’

''अरे, वो कोई टीवी सीरियल का एपीसोड थोड़े ही है, जो सात बजे कह दिया तो ऐन सात बजे ही आएगा। थोड़ा सबर करो।’’

''मैं उसे कॉल करता हूँ।’’-देवसरिया जेब से मोबाइल निकालते हुए बोला।

''मेरी उससे बात हुई थी अभी दस मिनट पहले। उसने कहा था कि वो मैंशन से निकल चुका है।’’

''तब तो अब तक आ जाना चाहिए था।’’

''चलो भाई।’’-प्रियांशु गहरी साँस लेकर बोला-''चलकर देख लेते हैं।’’

दोनों फनहाउस के घाटी वाले हिस्से की ओर एक बरामदे जैसी जगह में पहुँचे, जहाँ वो कमरा था, जिसमें उन्हें विपुल के होने की उम्मीद थी।

कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। दोनों ने अंदर प्रवेश किया।

अंदर विपुल राय की लाश पड़ी हुई थी।

उसकी पथराई आँखें छत को घूर रहीं थीं और सीने में दो छेद थे, जिनसे निकले खून ने उसके सूट के सामने के हिस्से को भिगो दिया था।


*****


पुस्तक लिंक: अमेज़न


लेखक परिचय



अजिंक्य शर्मा ब्रजेश कुमार शर्मा का उपनाम है। ब्रजेश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द नामक नगर में रहते हैं। फिलहाल छत्त्तीसगढ़ में वे एक साप्ताहिक समाचार पत्र में कार्यरत हैं।

बचपन से ही किस्से कहानियों के शौकीन अजिंक्य शर्मा उपन्यासों और कॉमिक बुक्स पढ़ा करते हैं। किस्से कहानियाँ पढ़ते पढ़ते ही वो अब किस्से कहानियाँ गढ़ने लगे हैं।  वह अपने उपन्यास किंडल पर स्वयं प्रकाशित करते हैं।

उपन्यास निम्न लिंक पर जाकर पढ़े जा सकते हैं:
अजिंक्य शर्मा - उपन्यास

अजिंक्य शर्मा से आप निम्न माध्यमों से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
 फेसबुक  ईमेल


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

6 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. अंजिक्य शर्मा जी के उपन्यास पठनीय होते हैं।
    उपन्यास अंश रोचक है।

    ReplyDelete
  2. विकास भाई...आपकी समीक्षा पढ़ कर, लग रहा है उपन्यास जोरदार है......... 😊😊😊😊😊😊....... पर मुझे रिमझिम/बियांका..... का इंतजार है........ 😜😜😜😜😜😜😜😜

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह तो उपन्यास का अंश है। आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल