नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

अंत तक बाँधकर रखती है मयूर दिदोलकर की द रियूनियन

संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 30 | एएसआईएन: B08MCM98M5

पुस्तक लिंक: अमेज़न

द रियूनियन - मयूर दिदोलकर

कहानी


जब सयाली राव को क्लास रियूनियन में जाने का निमंत्रण मिला तो उसने बिना झिझके उसे स्वीकार कर लिया। वह अपनी बीमारी के चलते काफी वक्त से दोस्तों से  कट गयी थी तो उसे लगा था कि यह वापिस लोगों से मिलने जुलने का एक अच्छा मौका था।  

सयाली कुछ समय से सिजोफ्रेनिया से ग्रसित रही थी  लेकिन डॉक्टर के अनुसार अब वह ठीक थी। उसके पति पीयूष को भी उसके ठीक होने पर विश्वास हो गया था और इसलिए उन्हें लगा था कि अपने पुराने दोस्तों के साथ पुणे के रिज़ॉर्ट में बिताया गया सप्ताहंत उसकी सेहत के लिए अच्छा रहेगा। 

लेकिन वो कहाँ जानते थे कि वहाँ उससे मिलने कौन कौन आने वाला है?

मेरे विचार

मयूर दिदोलकर मेरे पसंदीदा लेखकों में से एक बन चुके हैं। जब भी उनके द्वारा लिखा हुआ कुछ पढ़ता हूँ मुझे मालूम होता है कि पाठकों के लिए वह कुछ नया लेकर आने वाले हैं। उनकी यह कहानी द रियूनियन भी एक ऐसी ही एक कहानी है जिसमें वो एक अलग सा विषय चुनते हैं और उसे लेकर एक मनोरंजक कहानी पाठकों को परोसते हैं। 

मुझे आपका पता नहीं लेकिन छात्र जीवन मेरे जीवन के खूबसूरत पलों में से एक रहा है। जीवन में तब चिंताएँ नहीं थी और दोस्ती भी थी वह असल हुआ करती थी। स्वार्थ कम होता था उनमें। मुझे यह भी लगता है कि ज्यादातर लोगों के लिये यह बात सच है और इसलिए जब भी रियूनियन की बात चलती है तो ज्यादातर लोग इसमें जाने के लिए उत्साहित रहते हैं। मयूर दिदोलकर की यह कहानी भी एक ऐसे ही एक रियूनियन की है लेकिन इस कहानी में कहानी की नायिका से जो लोग मिलने आते हैं वह ऐसे रहते हैं जिनसे वह क्या शायद कोई भी मिलना नहीं चाहोगे।  

सयाली कहानी की मुख्य नायिका है जो कि सीजोफ्रेनिया से ग्रसित है। चूँकि इस बीमारी से ग्रसित लोगों को ऐसी चीजें सुनाई और दिखाई देने लगती हैं जिनका असल में अस्तित्व नहीं होता है तो कई बार उन्हें असल और काल्पनिक में फर्क करने में मुश्किल हो जाती है। ऐसे में अगर आप एक हॉरर स्टोरी लिख रहे हैं तो ऐसे किरदार के दृष्टिकोण से दर्शाई गयी कहानी एक हॉरर स्टोरी के लिए अच्छा मौका आपको दे देती है क्योंकि उस व्यक्ति को पता नहीं होगा कि जो चीज उसे दिख रही है वह असल है या नहीं। तो इस किरदार के रूप में लेखक को एक ऐसा कथावाचक मिल जाता है जिस पर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता है और इस कारण लेखक कहानी में काफी घुमाव डाल सकते हैं। चूँकि अब तक मैंने मयूर दिदोलकर की जितनी कहानियाँ पड़ी हैं उनमें आखिर में ट्विस्ट होता था तो मैं देखना चाहता था कि वह इस किरदार का उपयोग कैसे करते हैं। और यहाँ ये कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि पाठक को एक रोमांचक बाँधकर रखने वाला कथानक देने में वो सफल हुए हैं।  

यह कहानी 11 छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित है। कहानी की शुरुआत सयाली के रिज़ॉर्ट में दाखिल होने से होते है और एक बार रिज़ॉर्ट के अंदर दाखिल होती है उसके साथ ऐसी घटनाएँ होने लगती हैं जो पृष्ठ पलटते चले जाने के लिए आपको विवश कर देती है। उसको मिलने वाले लोग असल हैं या उसकी कल्पना ये पता नहीं लगता है और इस कारण आपको कई तरह का मोड़ कहानी में पढ़ने को मिलते हैं। 

मुझे यह कहानी बहुत पसंद आई। सयाली के साथ जो हो रहा था उसे देखकर बुरा जरूर लगा। सयाली और उस जैसे लोग किस तरह अपनी जिन्दगी बिता रहे हैं और उनके परिवार वाले भी किस तरह से इस कारण भुगगते हैं यह आपको दुखी जरूर कर जाता है। 

कहानी खत्म करने पर मुझे यह भी लगा कि सयाली के अंदर कुछ अलौकिक ताकतें थी जिस कारण उसे ये सब अनुभूतियाँ होती थी। अभी यह बात पक्के तरह से नहीं कही जा सकती क्योंकि इस कहानी के घटित होने से पहले उसे क्या चीजें दिखती थी यह हमें ये नहीं बताया गया है। मुझे लगता है बताया जाता तो ठीक रहता। अभी तो हम कयास ही लगा सकते हैं।  

आखिर में यही कहूँगा कि अगर आप एक अच्छी मनोरंजक और बाँधकर रखने वाले कथानक को पढ़ना चाहते हैं और आपको थोड़ा डार्क कहानियाँ पसंद हैं तो इस कहानी को जरूर पढ़ें। मुझे यकीन है आपको यह पसंद जरूर आएगी। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

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