नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

छोटी मगर विचारोत्तेजक चित्रकथा है वह कौन था? | प्रिंस कॉमिक्स | अंसार अख्तर

संस्करण विवरण: 

फॉर्मैट: पेपरबैक | प्रकाशक: प्रिंस कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 12 | लेखक: अंसार अख्तर | चित्रांकन एवं इंकिंग: हुसैन जामिन | कवर आर्ट: हरजीत सिंह | डिजिटल कैलीग्राफी: एन बाबू | संपादक: मोहित मिश्रा


कहानी 

वह एक सीक्रेट बेस  बेस एक्स था जहाँ पर भारत के अत्याधुनिक हथियार मौजूद थे। प्रोफेसर साही उस बेस का संचालन करते थे। लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि प्रोफेसर साही को बेस से स्थानांतरित करने का ऑर्डर दे दिया गया।

अभी प्रोफेसर साही बेस एक्स से निकले भी नहीं थे कि कुछ ऐसा हुआ कि बेस के संचार उपकरणों में खराबी आने लगी। बेस में मौजूद लोगों को लगा कि दुश्मन ने चाल चल दी है। 

आखिर प्रोफेसर साही को क्यों हटाया गया?
क्या सच में दुश्मन ने चाल चली थी?
इस चाल से भारत कैसे बचने वाला था?
भारत का अगला कदम क्या होने वाला था?


मेरे विचार

मनुष्यों के विकासक्रम के साथ साथ ही उसके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों का विकास भी होता रहा है। इसी विकास क्रम में वह अब तक ऐसे कई हथियार विकसित कर चुका है जो कि अगर किसी इलाके पर इस्तेमाल किए गए तो वह पलक झपकते ही ऐसी विनाश का ऐसा खेल खेल सकते हैं जिसके नतीजे वर्षों तक उस इलाके के मनुष्यों को भुगतने पड़ते हैं (हिरोशिमा नागासाकी में हुई तबाही इसका उदाहरण है)। आजकल हर देश विनाश के ऐसे हथियार जुटाने की होड़ में है जिसके चलते वह दूसरे को दर्शा सके कि उसके पास भी विनाश की उतनी ही ताकत है जितनी की किसी दूसरे देश के पास है। ऐसा लगता है हर कोई डरा हुआ है। इन देशों में ऐसे देश भी शामिल हैं जो अपने नाकरिकों को आम स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मुहैया नहीं करवा पाते हैं लेकिन अपने पैसों को इन हथियारों पर खर्च करना पहली जरूरत समझते हैं।  लेकिन क्या असल में किसी भी देश को ऐसे हथियारों की  जरूरत है या अपने अहम की तुष्टि के लिए ऐसे हथियारों का निर्माण हम कर रहे हैं? क्या ऐसे हथियारों का निर्माण कर हम विनाश की तरफ कदम नहीं बढ़ा रहे हैं? क्या हो अगर ये हथियार गलती से चल जाए या ऐसे व्यक्ति के हाथ में पड़ जाएँ जिसे इन्हें चलाने में ज्यादा सोच विचार की जरूरत न महसूस हो? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। कई बार इन बिंदुओं पर विचार करने के लिए कहने वाले व्यक्ति को लोग कायर समझते हैं। कई बार उन्हें देशद्रोही भी कहते हैं लेकिन क्या मनुष्यता का ख्याल रखना उनके देशद्रोही या कमजोर कहलाने के लक्षण है? 

ऐसे कई सवाल हैं जो हमें सोचने की जरूरत है और यह कॉमिक बुक ऐसे सवालों पर विचार करने की जरूरत को इंगित करती है। कॉमिक्स के केंद्र में प्रोफेसर साही है जो कि हथियारों और उससे होने वाले विनाश से परिचित हैं। वह जानते हैं कि ऐसे हथियारों का होना कितनी बड़ी तबाही ला सकता है लेकिन जब वह अपने इन विचारों को साझा करते हैं तो उन्हें कमजोर समझ उन्हें उनके पद हटाने का आदेश दिया जाता है। लेकिन क्या वह सचमुच कमजोर हैं या फिर उनके मन में मनुष्यता की अहमियत ज्यादा है? यही चीज कहानी से पता चलती है। 

वह कौन था? को प्रिंस कॉमिक्स द्वारा विज्ञान गल्प शृंखला के अंतर्गत रखा गया है। इसका एक हिस्सा विज्ञान से संबंधित जरूर है लेकिन कहानी का एक हिस्सा पारलौकिक तत्व लिए हुय भी है। ऐसे में मेरी नजर यह विज्ञान और पारलौकिक तत्वों का मिश्रण कहलायी जायेगी। कहानी छोटी है लेकिन अच्छी है। आपको बांधकर रखती है और चौंकाने में भी सफल होती है। 

कॉमिक बुक में आर्टवर्क हुसैन जामिन का है और कथानक के साथ न्याय करता है। हाँ, एक पैनल में एक वैज्ञानिक को फ्लाइंग किक मारते हुए दर्शाया गया है। वहाँ पर कोई और फाइट सीक्वेनस दर्शाया जाता तो बेहतर रहता। इसके अलावा बाकी सभी सीन्स कथानक और किरदारों के अनुरूप ही हैं। 

अंत में यही कहूँगा कि वो कौन था? शिक्षा देती हुई कहानी है जो कि अपने ध्येय में सफल होती है। हाँ, यह कहानी कुल बारह पृष्ठों की है जो कि कीमत के हिसाब से काफी छोटी लगती है। मुझे लगता है प्रकाशन को ऐसी छोटी छोटी दो चार कहानियों को संकलित कर एक साथ प्रकाशित करना चाहिए जिससे पाठकों को पढ़ने के लिए ज्यादा सामग्री मिले। इतनी छोटी कहानियों को इतने ऊँचे दाम में बेचकर वह शायद ही अपना वृहद पाठक वर्ग बना पाएँ।

  

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