नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तीन प्रश्न | दृश्यम कॉमिक्स | राजीव तामहनकर

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि कॉमिक्स | प्रकाशक: दृश्यम कॉमिक्स | लेखक: राजीव तामहनकर | आर्ट एंड इंक: शंभु नाथ महतो | कलर: क्रिएटिव नॉट

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

समीक्षा: तीन प्रश्न | राजीव तामहनकर | दृश्यम कॉमिक्स

कहानी 

सुलभा के घर जब भी उसकी सहेलियाँ आती थीं वह केवल भूत प्रेतों की बात ही किया करती थीं। इस चीज से उसके पति को चिढ़ हुआ करती थी क्योंकि उसे लगता था कि भूत प्रेत जैसी किसी ताकत का अस्तित्व नहीं होता है। 

ऐसे में सुलभा ने जब कैलाश के कहने पर उसे एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाने की बात की जो कि उसे भूत प्रेत से मिलवा सकता था तो उसे वह व्यक्ति केवल ठग ही लगा। 

आखिर कौन था वो व्यक्ति? क्या वह व्यक्ति कैलाश को भूत प्रेत से मिलवा पाया?

मेरे विचार

प्रतिलिपि में वैसे तो दूसरे प्रकाशकों के कॉमिक बुक्स पढ़ने के लिए मिल जाते हैं लेकिन उनके द्वारा अपने प्रकाशन से भी कॉमिक्स प्रकाशित किए गए थे। यह कॉमिक दृश्यम कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित किये गए हैं और उसके लिए बनी अलग वेबसाईट पर जाकर पढ़े जा सकते हैं। अब तक मैं केवल प्रतिलिपि की मुख्य साइट पर मौजूद कॉमिक बुक्स ही पढ़ रहा था लेकिन फिर सोचा कि उनकी इस वेबसाईट पर मौजूद कॉमिक्स पढ़ी जाए और इस कारण पहले वहाँ मौजूद हॉरर कॉमिक्स को पढ़ने का मन बनाया। 


क्या भूत प्रेत होते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हर व्यक्ति अलग अलग देता है। कोई मानता है कि भूत-प्रेत असल में होते हैं और कोई नहीं मानता है कि ऐसा कुछ होता है। वहीं कई लोगों का दावा होता है कि उन्होंने या उनके किसी जानने वाले ने भूतों को देखा है और कई लोग इसे केवल कल्पना की उपज कह देते हैं। सच क्या है, ये शायद कोई नहीं जानता है? सबके अपने विश्वास हैं और सब उस पर अडिग दिखते हैं। प्रस्तुत कॉमिक तीन प्रश्न ऐसे ही व्यक्ति कैलाश की कहानी है जिसे लगता है कि भूत प्रेत नहीं होते हैं जबकि उसकी पत्नी को इस पर पूरा विश्वास है। ऐसे में सुलभा का विश्वास जीतता है या कैलाश का यह चीज ही कॉमिक की कहानी बनती है। कहानी का शीर्षक तीन प्रश्न भी उन्हीं प्रश्नों से आता है जिनके सही उत्तर पर सुलभा का विश्वास जीतना निर्भर करता है और गलत उत्तर पर कैलाश के विश्वास का जीतना। 

एक तरफ तो यह कैलाश के भूत प्रेतों पर विश्वास की कहानी है वहीं यह कहानी मनुष्य के जिज्ञासु स्वभाव की कमियों को भी उजागर करती है। मनुष्य हमेशा से जिज्ञासु रहा है। उसका यह जिज्ञासु होना उसे कई बार कितनी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है यह कैलाश के साथ जो घटित होता है उससे जाना जा सकता है। 

कहानी सीधी सरल जरूर है लेकिन आप इसे पढ़ते चले जाते हो। अगर आपको सिम्पल कहानियाँ पसंद आती हैं तो यह आपको जरूर पसंद आएगी। अगर जटिल कहानियाँ, घुमावदार कहानियाँ आपको पसंद हैं तो कहानी से आपको थोड़ी निराशा हो सकती है। कहानी का अंत मुझे पसंद आया। कोई आम सी लगने वाली बात किसी पर क्या प्रभाव डाल सकती है यह देखना रोचक था।  

कॉमिक बुक की एक खासियत इसका आर्टवर्क भी होती है। इस कॉमिक के आर्टवर्क की बात करूँ तो यह कहानी के साथ न्याय करता है लेकिन कुछ चीजें बेहतर हो सकती थीं।  यह कहानी 1974 के नागपुर की है लेकिन किरदारों के बालों के स्टाइल को छोड़कर और डॉक्टर के क्लीनिक के 1972 के कैलंडर को छोड़कर कोई भी चीज उस वक्त के नागपुर का अहसास नहीं दिलाती है। अगर कुछ और तत्व ऐसे जोड़े जाते जो पढ़ते समय उस वक्त का अहसास दिलाते तो अच्छा रहता। यह तत्व डायलॉग के माध्यम से हो सकते थे या फिर कुछ चीजों को दर्शाकर दिखाए जा सकते थे। 

अंत में यही कहूँगा कि कहानी सीधी सरल है। आप इसे एक बार पढ़ सकते हैं। अगर आपने इस कॉमिक बुक को पढ़ा है तो अपने विचारों से मुझे अवगत जरूर करवाईएगा। 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि


यह भी पढ़ें




FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल