नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

एक्शन से भरपूर है लम्बू-मोटू और एक करोड़ की गोली | डायमंड कॉमिक | सूरज कानपुरी

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: डायमंड कॉमिक्स | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि | संपादक: गुलशन राय  | शृंखला: लम्बू-मोटू  

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

समीक्षा: लम्बू-मोटू और एक करोड़ की गोली | सूरज कानपुरी

कहानी 

आई जी साहब के बंगले पर जब वह घायल व्यक्ति पहुँचा तो वह उसे देख हैरान हो गए। 

मरने से पहले उस व्यक्ति ने आई जी साहब को जो बात बताई वह बेहद खतरनाक थी। 

वह व्यक्ति सीक्रिट सर्विस का एक एजेंट था जिसे कुछ चीनियों ने मारने की कोशिश की थी। एजेंट के अनुसार उसके पास एक ऐसी गोली थी जिसका सीक्रिट सर्विस के चीफ तक पहुँचना जरूरी था। 

चूँकि चीनी जासूसों का अब हर जगह पहरा होने वाला था तो आई जी साहब ने इंस्पेकटर अंकल के कहने पर गोली को चीफ तक पहुँचाने की जिम्मेदारी लंबू मोंटू को दी। 

आखिर उस गोली में ऐसा क्या था? 

उसे चीनी जासूस क्यों पाना चाहते थे? 

क्या लम्बू मोटू आई जी साहब द्वारा दिये गये इस कार्य में कामयाब हो पाए?


विचार 

डायमंड कॉमिक्स के किरदारों को इस माह मैं प्रतिलिपि के माध्यम से जान रहा हूँ। यह वो किरदार हैं जिनके विषय में बचपन में पता ही नहीं था। बचपन में मेरे लिए डायमंड कॉमिक्स का मतलब चाचा चौधरी, श्रीमती, बिल्लू, पिंकी के कॉमिक्स ही हुआ करते थे। शायद यही हमारे यहाँ आते भी थे लेकिन अब प्रतिलिपि के माध्यम से पता चल रहा है कि डायमंड कॉमिक्स ने दूसरे जौनर के कॉमिक बुकों में भी हाथ आजमाया था। लम्बू-मोटू डायमंड कॉमिक्स    के ऐसे ही किरदार हैं। प्रस्तुत कॉमिक बुक लम्बू मोटू और एक करोड़ की गोली इन किरदारों को लेकर लिखा गया वो पहला कॉमिक बुक है जो कि मैंने पढ़ा है। 

लम्बू-मोटू का यह कारनामा कब प्रकाशित हुआ था ये तो मुझे नहीं पता लेकिन चूँकि इसमें लम्बू-मोटू चीनी जासूसों से भिड़ते दिखते हैं तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शायद यह 70-80 की कहानी रही गयी। 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद भारत में ऐसे कई जासूसी  कथानक लिखे गए जिनमें चीन को दुश्मन देश के रूप में दिखाया है। 1971 में प्रकाशित हुआ  मनोहर मलगांवकर का उपन्यास स्पाई इन ऐम्बर भी एक ऐसा ही उपन्यास था जिसे कुछ वर्ष पहले पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। ऐसी कई फिल्मे भी उस दौरान बनी थी। ऐसे में यह कॉमिक बुक उन्हीं फिल्मों की याद दिलाता है। 

एक एजेंट के पुलिस के आई जी को एक रहस्यमय गोली देते हुए मरने से शुरू हुए कथानक में शुरुआत से ही रोमांच बना रहता है। लम्बू-मोटू जिस तरह से इस मामले से जुड़ते हैं और वह अपने मिशन को किस तरह पूरा करते हैं ये देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। 

कथानक चूँकि गुप्तचरी से जुड़ा है तो गुप्तचरी के दाँव पेंच इधर देखने को मिलते हैं। एक दूसरे पर नजर रखना, दुश्मन जासूस द्वारा नायकों को टॉर्चर करना, जासूसों को छकाना, ट्रांसमीटर पर बातचीत करना इत्यादि कई तरह से जासूसी से जुड़े तत्व यहाँ देखा जा सकते हैं। कथानक में एक्शन भरपूर है। लम्बू-मोटू किशोर हैं और जिस तरह के कारनामे कर जाते हैं उनमें से कुछ चीजें अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकती हैं लेकिन फिर कॉमिक है तो इतना होना लाजमी है।

कॉमिक के केंद्र पात्र लम्बू-मोटू किशोर जासूस है जो कि भारत के लिए कई खतरनाक मिशनों को अंजाम दे चुके हैं। मैं इनके शुरुआती कारनामें जरूर पढ़ना चाहूँगा। प्रस्तुत कथानक की बात करूँ तो जहाँ एक तरफ इनके एक्शन कहानी में रोमांच बनाए रखते हैं वहीं इनकी नोक-झोंक और हँसी मजाक भी कहानी को मनोरंजक बनाए रखते हैं। हाँ, इन्हें लेकर कथानक में एक चीज थी जो मुझे थोड़ी अजीब लगी। कथानक में लम्बू-मोटू के असली नाम नहीं दिये गए हैं। उनकी शारीरिक बनावट के आधार पर रखे गए ये नाम लम्बू-मोटू द्वारा  कहे जाना तो समझ आता है लेकिन आई जी और जासूसी संस्था के चीफ द्वारा कहा जाना थोड़ा अटपटा लगता है। 

कॉमिक के कथानक की कमी की बात करूँ तो इसकी सबसे बढ़ी कमी इसका शीर्षक है। कॉमिक का शीर्षक एक करोड़ की गोली है लेकिन वह एक करोड़ की क्यों है यह कॉमिक में कभी दर्शाया नहीं गया है। बस शीर्षक को साबित करने के लिए आखिर में मुख्य खलनायक द्वारा एक डायलॉग कहला दिया गया है जो कि हजम करना मुश्किल होता है। वहीं जिस कार्य के लिए बंदूक की गोली प्रयोग में लाई गयी है उसके लिए कोई और बेहतर वस्तु हो सकती थी क्योंकि कथानक में गोली विदेश से लाई गयी है और मुझे लगता है विदेश से गोली लाना थोड़ा दिक्कत देगा क्योंकि तलाशी में वह निकल जायेगी। वही  उसके कारण वह व्यक्ति किसी के शक के घेरे में भी आ सकता है। 

कॉमिक बुक में एक प्रसंग है जिसमें लम्बू मोटू एक तरफ से आते ट्रक और दूसरी तरफ से आती कार के बीच घिर जाते हैं। इसी प्रसंग में वह ट्रक को पलटाने में सफल हो जाते हैं लेकिन फिर वह ट्रक वाले रास्ते में आगे बढ़ने के बजाए कार की तरफ बढ़ने लगते हैं। उनका ये करना तर्कसंगत नहीं रहता है। उनका कार की तरफ बढ़ने का कोई ठोस कारण होता तो बेहतर रहता। अभी तो ऐसा लगता है कि लेखक ने अपनी सुविधा के लिए ये कार्य किया है। 

कॉमिक में एक प्रसंग है जब लम्बू-मोटू मुख्य खलनायक के ठिकाने पर हेलिकाप्टर लेकर आते हैं। कहा जा रहा है कि मुख्य खलनायक ऐसा है जिसे भारतीय जासूसों की अंदरूनी जानकारी भी प्राप्त हो जाती है लेकिन वह अपने ठिकाने पर आते हेलिकाप्टर को नहीं देख पाता है यह बात थोड़ी अटपटी लगती है। वो भी तब जब हेलिकाप्टर उसके ठिकाने के नजदीक सेना के आने तक एक घंटे तक उड़ता रहा था। वह अपने ठिकाने से तब भागना शुरू करता है जब सेना उधर हमला बोल देती है जबकि हेलिकाप्टर को मंडराते देखकर वह पहले ही रफूचक्कर हो सकता था। ऐसे में यह प्रसंग काफी कमजोर हो जाता है। मुझे लगता है इस प्रसंग पर कार्य करके इसे और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था। 

कथानक में मुख्य खलनायक चुँगचांग को न केवल जासूस लम्बू-मोटू के विषय में पता होता है बल्कि वह उनकी हर गतिविधियों पर नजर भी रखते हैं। मुख्य खलनायक को यह सब बातें कैसे पता थी इस पर भी रोशनी नहीं डाली गयी है। कॉमिक बुक में लम्बू मोटू का मिशन केवल खलनायक को पकड़ने का होता है और उनके इसमें कामयाब होते ही कहानी खत्म हो जाती है। उसका रहस्य गुप्त जानकारी है यह कहकर कॉमिक खत्म की जाती है जो कि एक अधूरे पन का अहसास करवाता है।

कॉमिक बुक के आर्टवर्क की बात करूँ तो इसका आर्टवर्क नीरद द्वारा किया गया है। नीरद भारत के जाने माने कार्टूनिस्ट हैं लेकिन कॉमिक बुक में की गयी उनकी चित्रकारी का स्तर बदलते हुए दिखता है। एक जगह ठीक है तो दूसरी जगह कमजोर है। एक्शन सीन्स पर भी और काम किया जा सकता था। कॉमिक में प्रतिलिपि में एक पैनल दो बार भी अपलोड हुआ है जिसे सुधारा जा सकता है। 

अंत में यही कहूँगा कि जासूसी कहानियाँ पसंद है तो इसे पढ़कर देख सकते हैं। इसमें रोमांच और एक्शन है। चूँकि बच्चों की कॉमिक है तो कुछ चीजों को सरल रखा गया है। वहीं अगर कहानी में ऊपर दिये बिंदुओं पर कार्य किया जाता तो कॉमिक बुक और बेहतर बन सकता था। मैं लम्बू-मोटू शृंखला के दूसरे कॉमिक जरूर पढ़ना चाहूँगा।  

क्या आपने लम्बू-मोटू के कॉमिक बुक पढ़ें हैं? आपके पसंदीदा कॉमिक बुक कौन से थे? बताइएगा जरूर। 


कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि


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