नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कठपुतली - वेद प्रकाश शर्मा

संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशन: डेलीहंट

पुस्तक लिंक: पोथी 




कहानी

भारद्वाज कंस्ट्रक्शन के मालिक विनम्र के पास वह सब कुछ था जो किसी इंसान की जीवन में चाहत हो सकती थी। उसका एक परिवार था, अच्छा खासा बिजनेस था और पास में एक प्यार करने वाली प्रेमिका थी। 

लेकिन फिर भी उसके अंदर कुछ ऐसा था जो उसे शैतान बना देता था। वह एक आवाज थी जो उसे कत्ल के लिए उकसाती थी। वह इस आवाज की कठपुतली बन जाता था। 

और फिर वही हुआ जिसका डर था। वह आवाज अपने मकसद में कामयाब हो गयी। उसने विनम्र से एक कत्ल करवा दिया। 

आखिर यह कैसी आवाज थी जो विनम्र को सुनाई देती थी? 

कठपुतली बन विनम्र ने किसका कत्ल किया? 

विनम्र के इस अपराध का उसके जीवन पर क्या असर पड़ा?

किरदार

विनम्र भारद्वाज - भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक जो कि 25 साल का युवा था
श्वेता - विनम्र भारद्वाज की प्रेमिका
चक्रधर चौबे - विनम्र के मामा जिन्होंने बिजनेस को संभाला था
बिन्दू -एक युवती जिसका काम लोगों को अपने रूपजाल में फाँसना था
नागपाल - एक ठेकेदार
गगोल - एक और ठेकेदार
पाठक - भारद्वाज कंस्ट्रक्शन का एक कर्मचारी
मारिया - मारिया बार नामक देसी दारू के अड्डे की मालकिन
बिज्जू - एक फ़ोटोग्राफर
दुर्गा प्रसाद खत्री - ओबेरॉय होटल का सफाई कर्मचारी
इंस्पेक्टर गोडासकर - एक पुलिस इंस्पेक्टर जिसके इलाके में होटल पड़ता था
क्रिस्टी - मारिया की बहन
नाटा - क्रिस्टी का पति
मनसब - एक अपराधी
बदनसिंह - ओबेरॉय होटल का अपराधी
दौलतराम - हवलदार
कुंती देवी - विनम्र की माँ
बिरजू - होटल नारंग में काम करने वाला लड़का
राजबीर - विनम्र का सिक्योरिटी इंचार्ज
पवन प्रधान- एक व्यक्ति जो चक्रधर को ब्लैकमेल कर रहा था
शैलेष - विनम्र का पिता
रूबी - शैलष की प्रेमिका

मेरे विचार

हिन्दी अपराध साहित्य में वेद प्रकाश शर्मा का अपना मुकाम रहा है। वह ऐसे लेखक रहे हैं जिन्होंने अपना एक स्टाइल बनाया और उसके बलबूते परअसाधारण लोकप्रियता हासिल की। अगर वेद प्रकाश शर्मा, अनिल मोहन और सुरेन्द्र मोहन पाठक को आधुनिक हिंदी अपराध कथा के तीन आधार स्तम्भ कहा जाए तो कहीं भी अतिशयोक्ति नही होगी। इन तीनों ने ही एक लंबी पारी खेल कर आधुनिक हिंदी अपराध साहित्य को एक मजबूती प्रदान की है। 

लेकिन यह भी सच है कि व्यक्तिगत रूप से जितना मैंने अनिल मोहन और सुरेन्द्र मोहन पाठक को पढ़ा है उतना वेद प्रकाश शर्मा को पढ़ने का मौका मुझे नहीं लग पाया। जो उपन्यास पढ़े  भी उनमें से कुछ ऐसे थे जो दो भागों में थे और मेरे पास उनके एक ही भाग उपलब्ध थे। चूँकि दूसरे भाग आसानी से उलब्ध नहीं थे तो एक ही भाग पढ़कर संतुष्टि करनी पड़ी। 

पर इस साल मैंने इस कमी को दूर करने का मैंने फैसला किया है। मेरे पास वेद प्रकाश शर्मा के कुछ उपन्यास पहले से मौजूद हैं तो उन्हीं को पहले पढ़ने का फैसला किया है।

वेद प्रकाश शर्मा का प्रस्तुत उपन्यास कठपुतली भी ऐसा ही एक उपन्यास है जो मेरे पास पहले से ही उपलब्ध था। डेली हंट एप्प में मैंने वेद प्रकाश शर्मा के तीन चार उपन्यास खरीदे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं लग पाया था। तो इनमें से मैंने सबसे पहले कठपुतली पढ़ने का फैसला किया। 

उपन्यास की बात करें तो कठपुतली एक रोमांचकथा है जिसके केंद्र में एक पच्चीस वर्षीय युवक विनम्र भारद्वाज है। उपन्यास की कहानी विनम्र के जहन में उठती आवाज से शुरू होती है। ऐसी आवाज जो विनम्र को एक कत्ल करने के लिए उकसा रही होती है। यह कैसी आवाज है और क्यों विनम्र को उकसा रही है आगे चलकर  ऐसे सवाल बन जाते हैं जिनके उत्तर पाने के लिए आप उपन्यास पढ़ने के लिए विवश कर देते हैं। यह आवाज कहानी को एक रहस्य का तत्व भी प्रदान करती है। 

चूँकि ये एक अपराधकथा है तो इतना तो तय है कि इसमें अपराध होना ही है और उपन्यास में दो तरह के अपराध होते दिखते हैं। उपन्यास में कत्ल तो होता ही है साथ में ब्लेकमेलिंग भी चलती है। । कातिल कौन है यह आपको पता रहता है। लेकिन अब इस कत्ल के चलते उसके जीवन मे क्या भूचाल आएगा और उससे बचने के लिए वह क्या क्या करेगा ये सब देखने के लिए आप उपन्यास के पन्ने पलटते चले जाते हैं। उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है उसमें नए नये किरदार आते हैं जो कि उपन्यास के कथानक में रोमांच बनाए रखते हैं। इन नए किरदारों में एक ब्लैकमेलरों  की टोली भी शामिल है जो कातिल के पीछे पड़ जाती है। यह दोनों तरह के अपराध आपस में गुँथकर एक रोमांचक माहौल तैयार कर देते हैं।  कातिल पुलिस से बचते हुए इनसे कैसे निपटता है यह देखना रोचक रहता है। 

उपन्यास की अच्छी बात यह है कि लेखक ने इधर अपराधी का महिमा मंडन नहीं किया है। वरना लेखक चाहता तो अंत ऐसा कर सकता था जिससे अपराधी साफ बचता हुआ लगता। वहीं अक्सर अपराधकथाओं में पुलिस वालों को नाकारा दिखाया जाता है लेकिन लेखक इस चीज से इधर बचा है जो कि मुझे पसंद आया। 

वेद प्रकाश शर्मा की खासियत कहानी में ऐसे घुमाव होते हैं जिन्हे पढ़कर पाठक चकरा जाता है। ऐसे घुमाव इस कथानक में भी हैं जो कि पाठकों को चौंकाते हैं और इस तरह से कथानक में उनकी रुचि बरकरार रखते हैं।

वैसे तो उपन्यास एक अपराध कथा है और इसलिए पूरा ध्यान लेखक ने अपराध के लिए तैयार की गयी परिस्थितियो पर ही लगाया है लेकिन चूँकि विनम्र एक बड़ा व्यवसायी है तो व्यवसाय में टेंडर लाने के लिए क्या क्या कारनामे किए जाते हैं यह भी उपन्यास का हिस्सा बन पड़ा है। समाज के एक स्याह पहलू को लेखक इस माध्यम से उजागर करते हैं। 

वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों की एक खासियत उनके द्वारा रचे गए किरदार भी होते हैं। वह पाठक पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं। इस उपन्यास में भी एक किरदार इंस्पेक्टर गोडासकर है जो काफी प्रभावशाली बन पड़ा है। वह एक तेज तर्रार ईमानदार पुलिस वाला है जिसके काम करने का ढंग अलग है और इस कारण उपन्यास में छा सा जाता है। उसका शरीर, उसकी आदतें और बातचीत की शैली ऐसी रहती है कि जिस सीन में वो होता है वो मनोरंजक हो जाता है। उसके और मुख्य किरदार के बीच चूहे बिल्ली का खेल चलता रहता है। क्या मुख्य किरदार उसके पंजे से बच पाएगा या वह उसके द्वारा धर लिया जाएगा? पाठक के मन में यह प्रश्न लगातार चलता रहता है जो कि पाठक को उपन्यास से चिपका कर रखता है।

उपन्यास के केंद्र में विनम्र है जिसकी हालत देखकर कभी आपके मन में दया उमड़ती है और कभी जिसे देखकर आपको डर लगने लगता है। उसके साथ क्या चल रहा है यह समझना मुश्किल हो जाता है।

उपन्यास में मारिया, क्रिस्टी और नाटा भी रोचक किरदार है। अपराध करने की सोचना और उसे असल में अमलीजामा पहना पाने में कितना फर्क है यह इन तीनों किरदारों को पढ़कर जाना जा सकता है। 

उपन्यास में बाकी किरदार कहानी के अनुरूप बने हुए हैं और कथानक के साथ न्याय करते हैं। हाँ, उपन्यास में बिन्दु का जिस तरह से सजीव विवरण लेखक ने दिया है वह कई पुरुष पाठकों को बिन्दु के दीदार करने को लालायित जरूर कर देगा। 

अगर उपन्यास की कमियों की बात की जाए तो कुछ ही चीजें ऐसी थी जो मुझे खली। 

मेरी नजर में उपन्यास का कमजोर हिस्सा केवल आखिर का प्रसंग है जिसमें विनम्र को आवाज की सच्चाई पता लगती है। वह हिस्सा थोड़ा खिंचा हुआ लगता है जिसे कम किया जा सकता था। वहीं जिस तरह से उसे दर्शाया गया है वह अतिनाटकीय बन पड़ा है जिससे बच सकते थे। 

वेद प्रकाश शर्मा अक्सर उपन्यास में ट्विस्ट लाने के लिए फेस मास्क और मिमिक्री का इस्तेमाल करत हैं। व्यक्तिगत तौर मुझे लेखक द्वारा इन दोनों तकनीकों का इस्तेमाल करना एक कमजोर कथानक की पहचान लगती है। इस उपन्यास मे फेस मास्क का उपयोग तो नहीं किया है लेकिन मिमिक्री का इस्तेमाल लेखक ने कर ही दिया है। इस चीज से बचा जा सकता था। जहाँ पर मिमिक्री का इस्तेमाल हो रखा है वहाँ पर नहीं भी किया होता तो भी चल जाता। 

उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पहलू विनम्र के जहन में उठती हुई आवाज है। यह चीज उपन्यास के शुरुआत में ही पाठक को बांधकर रख देती है। वह इसके पीछे के कारण को जानने के लिए ही उपन्यास पढ़ता जाता है। लेकिन आवाज का कारण अंत में जाकर पता चलता है। जो कारण दिया जाता है वो कुछ लोगों को अविश्वसनीय लग सकता है। लेकिन अपनी बात कहूँ तो लेखक ने तर्क में जो उदाहरण दिया है उसे अगर आप मानते हैं तो लेखक द्वारा दिये गए कारण को भी मानना पड़ेगा।  

अंत में यही कहूँगा कि कठपुतली एक अच्छी रोमांचकथा है जो मुझे पसंद आई। उपन्यास शुरुआत से ही आपके ऊपर अपनी पकड़ बनाकर चलता है और आपको पृष्ठ पलटते चले जाने के लिए विवश कर देता है। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार इसे पढ़ सकते हैं। 


पुस्तक लिंक: पोथी 

यह भी पढ़ें

क्या आपको वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास पसंद हैं? वेद जी के ऐसे कौन से पाँच उपन्यास है जिनको पढ़ने की सलाह आप नये पाठकों को देंगे? मुझे कमेन्ट में जरूर बताइएगा। 


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8 Comments
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  1. 1. शाकाहारी खंजर , कातिल हो तो ऐसा , मदारी

    2. बहु मांगे इंसाफ

    3. वो साला खद्दर वाला

    4. दहेज मे रिवालवर, जादू भरा जाल

    5. केशव पंडित के शुरूआती नावल


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    1. इन सभी को पढ़ने की कोशिश रहेगी....

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  2. वेदप्रकाश शर्मा जी मेरे पसंदीदा उपन्यासकार रहे हैं। 'कठपुतली' उपन्यास की काफी चर्चा सुनी है और समीक्षा पढकर उपन्यास पढने की इच्छा है।

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    1. जी आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। आपके पसंदीदा उपन्यास कौन से थे? अगर हो सके तो नाम अवश्य साझा कीजिएगा।

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  3. वेद प्रकाश शर्मा जी झटका स्पेशलिस्ट माने जाते हैं और प्रस्तुत उपन्यास पढ़कर ही आपको ज्ञात हो जाएगा कि यह यथार्थ है। कठपुतली उनके बेहतरीन थ्रिलरों में से एक है। मै नए पाठकों को उनके पाँच उपन्यास पढ़ने की राय दूँगा, जोकि उन्हें वेद जी का मुरीद बना देंगी।
    गूंगा
    डमरूवाला
    असली खिलाडी
    शिखंडी
    रामबाण

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    1. जी इन्हें पढ़ने की कोशिश रहेगी...

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  4. Replies
    1. जी आभार...वेद जी के उपन्यासों को पढ़ने का अपना अलग मजा है। आभार।

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