नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

भूत | तुलसी कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई बुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | लेखक: तरुण कुमार वाही | चित्र: अजय | रंग-संयोजन: रवि-राजू 

किताब लिंक: प्रतिलिपि 

समीक्षा: भूत | तुलसी कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही

कहानी

तेरह जनवरी की वह मनहूस रात थी जब तेरह नंबर के बंगले में रहने वाली बरखा को एक तरह के दौरे पड़ने शुरू हुए थे। वह अचानक से हिंसक हो चली थी और घर के बाकी सदस्यों के खून के प्यासी हो गयी थी। इस कारण घर के बाकी सदस्यों अमर,कांता, शेखर और सुनीता घबरा गए थे। 

बरखा की हालत दिल प्रतिदिन बिगड़ने लगी थी और फिर घर में ऐसी घटनाएँ होने लगी के घरवालों के होश उड़ गए। उन्हे लगने लगा कि घर पर किसी बुरी आत्मा का साया पड़ चुका था। 

आखिर बरखा को अचानक क्या हो गया था? उसे ऐसे हिंसक दौरे क्यों पड़ रहे थे?

घर में ऐसी कौन सी घटनाएँ हो गयी थी? 

आखिर कौन था जो घर के सदस्यों को परेशान कर रहा था? वह घर के सदस्यों को क्यों परेशान कर रहा था?


मेरे विचार 

प्रतिलिपि पर मैं अब तक कहानियाँ ही पढ़ता आया था। कुछ समय पहले मुझे पता चला कि उधर कॉमिक्स भी पढ़ी जा सकती हैं लेकिन वो पढ़ने का मौका नहीं लग पा रहा था। मेरे पास पहले से ही कुछ कॉमिक्स थी और मैं पहले उन्हें पढ़ना चाहता था। अब चूँकि मेरे पास मौजूद कॉमिक्स खत्म हो चुकी हैं तो मैंने सोचा क्यों न प्रतिलिपि कॉमिक्स पढ़ी जाएँ। चूँकि हॉरर सस्पेंस कॉमिक्स पसंद है तो भूत नाम के शीर्षक ने सहज ही मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर दिया था। फिर मैंने तुलसी कॉमिक्स से प्रकाशित कोई भी कॉमिक्स नहीं पढ़ी थी तो इसलिए सोचा उसका अनुभव कर लूँ। 

भूत की बात करूँ तो यह तरुण कुमार वाही द्वारा लिखी गयी सस्पेंस-थ्रिलर कॉमिक्स है। कहानी की शुरुआत बरखा के चीखने से शुरू होती है और फिर घटनाओं का ऐसा सिलसिला शुरू हो जाता है जो आपको ये सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि जो हो रहा है आखिर वो क्यों हो रहा है। आप कॉमिक बुक के पृष्ठ पलटते चले जाते हैं।  कहानी रोचक है लेकिन चीजें क्यों हो रही है उनके पीछे का मुख्य कारण आप आसानी से समझ सकते हैं। लेखक ने कहानी के आखिर में एक ट्विस्ट दिया है जो कि मुझे पसंद आया। कम से कम मैं उस ट्विस्ट की अपेक्षा नहीं कर रहा था। 

अगर आप कथानक में नयेपन की अपेक्षा करते हैं तो शायद अभी पढ़ने में आपको निराशा हो। जब यह कॉमिक्स आयी होगी तब यह जरूर नई रही होगी लेकिन आज के वक्त में आप इसे पढ़ेंगे तो आपके मस्तिष्क में इससे कई मिलते जुलते कथानकों की याद ताजा हो जायेगी। 

कथानक प्रतिलिपि पर पाँच भागों में बंटा हुआ है और आसानी से पढ़ा जा सकता है। कहानी में जो एक बात मुझे खटकी वह यही कि कहानी के आखिरी भाग में शेखर को बरखा जखमी कर देती है और सुनीता उधर से भाग जाती है। लेकिन अगले फ्रेम में घायल शेखर उससे पहले ही घर से बाहर चला जाता है।  यह कैसे हुआ? ये मुझे समझ नहीं आया?

कॉमिक बुक में चित्रांकन अजय द्वारा किया गया है जो कि ठीक ठाक है। पुराने अखबारों में जैसे कॉमिक स्ट्रिपस आते थे यह उसकी याद दिलाता है। 

अंत में यही कहूँगा कि कॉमिक बुक एक बार पढ़ा जा सकता है। अगर आपने इसे पढ़ा है तो आप कॉमिक के प्रति अपनी राय से मुझे जरूर अवगत  करवाइएगा। 

क्या आपने भी तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ये हॉरर सस्पेंस कॉमिक्स पढ़ी हैं ? इनमें से आपकी सबसे पसंदीदा कॉमिकस कौन सी थी? मुझे बताना न भूलिएगा। 

किताब लिंक: प्रतिलिपि 

यह भी पढ़िए


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल