नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कुछ अनकहा सा - तरंग सिन्हा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 42 |  एएसआईएन: B08YGJNY13

पुस्तक लिंक: अमेज़न

समीक्षा: कुछ अनकहा सा - तरंग सिन्हा | Book Review: Kuch Ankaha Sa - Tarang Sinha


कहानी

कबीर को हमेशा से लगता था कि उसके और आयशा के बीच में एक अनकहा सा रिश्ता। एक ऐसा रिश्ता जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है लेकिन जिसे महसूसना आसान है। पर अब कबीर को लगने लगा था कि उसे अपने दिल के जज़्बात आयशा को बता देने चाहिए थे।

पर कई बार जो दिल में होता है वो बताना भी मुश्किल हो जाता है। कई बार कहने से उस चीज के खोने देने का खतरा भी होता है जो न कहने के कारण इतने वक्त तक पास रही है। कबीर को भी ऐसा ही कुछ होने का डर था। पर फिर भी कबीर ने आयशा से अपने मन की बात कहने का फैसला कर दिया। 

कबीर द्वारा अपने जज़्बात जाहिर करने का क्या नतीजा निकला? 

कबीर आयशा से अपने दिल की बात बताने से क्यों घबराता था?

कबीर जो आयशा के लिये महसूस करता था क्या वही चीज आयशा फिर कबीर के लिये महसूस करती थी?

मेरे विचार

कुछ अनकहा सा लेखिका तरंग सिन्हा की एक उपन्यासिका है। तरंग सिन्हा हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा में लिखती हैं। मेरे लिये उनका लेखन अपरिचित नहीं है।  कुछ अनकहा सा उनकी तीसरी रचना है जिसे मैंने पढ़ा है। जहाँ इससे पहले जो रचनाएँ मैंने उनकी पढ़ी थी वो अंग्रेजी की थी और उनमें परालौकिक तत्व मौजूद थे, वहीं उनकी यह रचना हिंदी में लिखी गयी है और यह एक प्रेम कहानी है। इससे पहले उनकी लिखी कुछ हिन्दी लघु-कथाएँ मैं उनके ब्लॉग पर पढ़ चुका हूँ लेकिन अब मैं उनकी लिखी एक बड़ी रचना पढ़ना मैं पढ़ना चाहता था। ऐसे में जब यह उपन्यासिका किन्डल पर दिखी तो इसे पढ़ने का मन बना लिया।  

वैसे तो प्रेम दुनिया का सबसे सरल  सबसे खूबसूरत एहसास है लेकिन हमारे समाज ने इसे काफी जटिल बना दिया है। प्यार कब किससे क्यों हो जाए यह कोई नहीं जानता है लेकिन फिर भी समाज में रहने वाले हम लोग प्यार को एक परिपाटी  पर ही चलते हुए देखना चाहते हैं। इस परिपाटी से इतर किसी रिश्ते को हम देखें तो हम लोग उससे असहज हो जाते हैं और अपनी अहसजता को गलत न मानकर उस रिश्ते को गलत मानने लगते हैं। चूँकि लोग इसी समाज से आते हैं तो यही भावना कई बार ऐसे रिश्तों में शामिल लोगों में भी दिखती है और उन्हे असहज कर इन रिश्तों को बीच में तोड़ने के लिये विवश कर देती है। फिर चाहे वह रिश्ते के टूटने से खुद खुश न हों लेकिन खुद को वह लोग यही दिलासा देते हैं कि उनके प्रेमी के लिये उन्होंने जो किया सही किया है। 

कुछ अनकहा सा भी ऐसे ही एक प्रेम की कहानी है जो कि समाज की बनाई परिपाटी से इतर होता है। इस प्रेम के उजागर होने पर क्या होता है यही कहानी बनती है। ऐसे प्रेम के शामिल लोगों को समाज की सोच के साथ टकराव तो करना ही होता है लेकिन उन्हें कई बार उन्हेंअपनी खुद की सोच के साथ भी टकराव करना होता है। इस द्वन्द को लेखिका ने बहुत ही खूबसूरती के साथ कुछ अलग सा में दर्शाया है। 

कहानी के किरदार जैसे कबीर, आयशा और अमन अपने आस पास के लोग ही लगते हैं। कबीर की आँखों से हम इस कहानी को घटित होते हुए देखते हैं और वह जैसा है उससे एक जुड़ाव स हो जाता है। आयशा एक समझदार लड़की है जिसने जीवन में काफी कुछ सहा है। दूध का जला छाछ को भी फूक फूक पर पीता है यह वह चरितार्थ करती दिखती है। अमन के किरदार को जगह काफी कम मिली है लेकिन वह प्रभावित करता है। मुझे उसका किरदार पसंद आया। ऐसी परिपक्वता कम लोगों में देखने को मिलती है और पुरुषों को उससे सीखने की जरूरत है। कई बार लोग प्रेम को अहम से जोड़ देते हैं जो उनके प्रेमी के लिये ही नहीं बल्कि खुद उनके लिये भी जीवन भर दुख का बायस बन जाता है। ऐसे मौकों पर क्या करना चाहिए वह अमन से सीखा जा सकता है। 

उपन्यासिका की भाषा शैली काव्यात्मक है और पाठक को अंत तक बांध कर रखती हैं। लेखिका चाहती तो अंत को काफी फिल्मी कर इसे अतिनाटकीय बना सकती थी लेकिन उनका ऐसा न करना मुझे पसंद आया। 

अंत में यही कहूँगा कि यह उपन्यासिका मुझे पसंद आई और मैं यही कहूँगा कि अगर आप प्रेम कहानियाँ पढ़ते हैं तो इसे एक बार पढ़ सकते हैं। वहीं चूँकि हॉरर या परलौकिक रोमांचकथा (सुपरनैचुरल थ्रिलर) मेरे पसंदीदा जॉनर में से एक हैं और लेखिका अंग्रेजी में इस विधा में हाथ आजमाती रहती हैं तो मेरी एक पाठक के नाते उनसे यह उम्मीद होगी कि वह जल्द ही हिंदी में भी इस विधा में कुछ लिखेंगी।  

उपन्यासिका के कुछ अंश जो मुझे पसंद आए:

कभी-कभी दूरी आपको ये एहसास दिलाती है कि आप किसी के कितने करीब आ चुके हैं।

कितना  अजीब होता है ना, आपका सबसे अपना, जो आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, एक दिन अचानक कहीं नहीं होता है। 

कितना मुश्किल होता है अपने एहसासों को छुपा कर रखना। ऐसा लगता है मानो दिल दिल ना हो बल्कि एक भिंची हुई मुट्ठी हो, तमाम एहसासों को कैद किए, उनकी आजाद न करने की जिद पर अड़ी।

कभी कभी आँखें वो कह देती हैं जो दिल को भी मालूम नहीं होता। ... कभी कभी बेरुखी में भी एहसास छुपे होते हैं। 

 

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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4 Comments
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  1. Ye pushtak maine padhi hai. Meri pasandida ansh ye hai: "'आप उन्हें जानती भी नहीं।' कुछ पलों की चुप्पी के बाद उन्होंने बहुत धीरे से कहा, 'जानती तो शायद मैं तुम्हें भी नहीं।'"

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    1. अच्छा लगा यह जानकर कि यह उपन्यासिका आपको पसन्द आई। यह अंश भी अपने आप में काफी अर्थ लिए हुए है। आभार।

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  2. इस समीक्षा के लिए बहुत शुक्रिया। मुझे खुशी है कि आपको ये कहानी पसंद आई। 🙏

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