नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

समीक्षा: चौरासी

समीक्षा: 84 - सत्य व्यास | राकेश वर्मा | Book Review: 84 by Satya Vyas

'चौरासी' लेखक सत्य व्यास की तीसरी किताब है। किताब प्रथम बार 2018 में प्रकाशित हुई थी।  हाल ही में उपन्यास के  ऊपर आधारित वेब सीरीज ग्रहण आयी है जिसे दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया है। सीरीज ने पाठकों के बीच उपन्यास को लेकर भी उत्सुकता जगाई है। ऐसे ही एक पाठक राकेश वर्मा है। उन्होंने 84 के ऊपर अपनी विस्तृत टिप्पणी लिखकर भेजी है। आप भी पढ़िए। 

किताब लिंक: अमेज़न


*******

चौरासी मेरे द्वारा पढ़ी गई सत्य व्यास जी की पहली किताब है। यह उपन्यास पहली बार 2018 में प्रकाशित हुआ था। सत्य व्यास जी की किताबों के बारे में सुन तो बहुत पहले से रहा था पर अब तक उन्हें पढ़ा नही था। चौरासी (84) 1984 के भयावह दंगे की पृष्ठभूमि पर आधारित एक प्रेम कहानी है। 1984 जिसका जिक्र आते ही सबके जहन में दो घटनाएं प्रमुखता से आती है। एक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और दूसरी सिख नरसंहार। सिख नरसंहार को लेकर सरकार, मीडिया रिपोर्टों और स्वतंत्र स्त्रोतों के अलग अलग आंकड़े है जो बताते है कि हजारों सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई और कई हजारों सिख ही पलायन कर गए। हाल ही मैं चौरासी पर वेब सीरीज 'ग्रहण' नाम से आई तो वेब सीरीज देखने से पहले मैंने नॉवेल ही पढ़ने का निर्णय किया। 


कहानी का सूत्रधार बोकारो शहर है। ऋषि एक शिक्षित नवयुवक है जो अपने पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए संघर्ष कर रहा है, साथ ही अन्य नौकरी के लिए परीक्षाएं भी देता रहता है। वह छाबड़ा साहब के घर मे किराए से रहता है। कॉलोनी में सबके कुछ न कुछ काम आता है। पर कॉलोनी के बाहर उसकी अलग ही छवि एक 'उच्छृंखल युवक' की  है। 

मनु छाबड़ा साहब की पुत्री है। जो स्वभाव से भोली-भाली है और ऋषि की ओर आकर्षित है। धीरे-धीरे इनकी प्रेम की खिचड़ी पकती है और ऐसे खट्टे मीठे किस्से आते है जो मनमोहक होते है। 

फिर आती है वो अभिशिप्त तारीख जो इन सबके जीवन को पूरी तरह से बदल देती है। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या होती है । दंगे भड़क उठते है। लोग भड़काये जाते है, उन्मादियों की रगों में सिखों के खिलाफ रोष, घृणा भरी जाती है। अफवाहें फैलाई जाती है। नरसंहार शुरू हो जाता है। और सब कुछ बदल जाता है। ऋषि जो अभी तक प्रेम ही डूबा था उसे ऐसी स्थिति का आभास भी नही था। वो भी इस कुचक्र में आ फंसता है और उसे इस भयावह स्थिति से अपने प्रेम को बचाना है।

मुझे रोमांस और प्रेम आधारित कहानियाँ कम ही पसंद आती है और इसलिए उन्हें ना के बराबर पढ़ता हूँ। चौरासी को भी पढ़ने की वजह इसका 1984 पर आधारित होना ही था। फिर भी कहना चाहूँगा कि ऋषि और मनु की कहानी मुझे बहुत पसंद आई।  

पूरे उपन्यास को दो भागों में बाँटा जा सकता है। उपन्यास के पहले भाग में जहाँ ऋषि और मनु का प्रेम है वहीं दूसरे भाग में दंगे की भयावहता दर्शाई गयी है। उपन्यास पढ़ते हुए अहसास होता है कि लोग बस कठपुतली होते है और उनकी डोर होती है उनके लीडरों के हाथों में जो अपना राजनीतिक फायदा लेने के लिये लोगो के जेहन में इतना उन्माद और घृणा भर देते है कि अच्छे बुरे का ज्ञान नही रहता। सिख पुरुष हो या महिला, बुजुर्ग हो या बच्चा उन्मादी भीड़ सबको रौंद डालती है। राजनेता तो अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते है और मासूम लोगों का जीवन स्वाहा हो जाता है। 

चौरासी अलग अलग अध्यायों में विभाजित है। इन अध्यायों के शीर्षक रोचक हैं और कहानी के प्रति उत्सुकता जगाते हैं जैसे सखी रे! पिया दिखे कल भोर, सखी रे, पियु नहीं जानत प्रेम, मैं कर आई ठिठोल सखी रीपियु का भेद न पाऊँ सखी री, पियु बिन बैरी रैन सखी री,सखी री, सुख कर आई पियु संग, सखी री, भोर लुटेरी, छूटत है पियु की नगरिया सखी री इत्यादि। 

सत्य व्यास जी की भाषा शैली अच्छी है और पाठक को कहानी से बाँध कर रखती है। मनु का किरदार मुझे विशेष रूप से बहुत पसंद आया। उसके संवाद और चंचलता भरी हरकते मन मोह लेती हैं। मनु के साथ सहानुभूति भी हुई की उसके साथ जो कहानी में होता है वो नहीं होना चाहिए था।

उपन्यास पढ़ते हुए कुछ बातें ऐसी थी जो मुझे खटकी थीं। चौरासी हिंदी नॉवेल है लेकिन फिर भी इसमें उर्दू के शब्द बहुतायत हैं। आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले शब्द तो समझ आ जाते है पर कुछ शब्द ऐसे भी है जिनका अर्थ कम ही लोगों को पता होगा जो कथानक की रवानगी में बाधा बन सकते हैं। मैंने घटनाक्रम के अनुसार ऐसे उर्दू शब्दो का अर्थ निकाला। मुझे लगता है आम पाठक के लिए फुटनोट में अर्थ देना चाहिए था। कुछ जगह उपन्यास में मौजूद वाक्य मुझे मेरी समझ से परे लगे। ऐसा हो सकता है कि ये शायद मेरे साथ ही हुआ हो। 

कहानी में एक जगह  लिखा गया है कि पेचकस गर्दन में घुसा दिया। फिर दूसरे ही वाक्य में लिखा गया है कि श्वास नली को भेद गया। यह प्रूफ की गलती मुझे लगी जिसे सुधारा जा सकता था।

चौरासी की सबसे बड़ी कमी मुझे यह लगी कि कहानी का सूत्रधार बोकारो शहर तो है पर वो वह घटनाएं भी सुना रहा है जो बोकारो शहर से बाहर घटी हैं। यह पढ़ना अटपटा रहता है। उसे यह सब कैसे पता? यह सोचने वाली बात है।

फिर भी अंत में ये कहना चाहूँगा कि इन कमियों का कहानी पर इतना बड़ा फर्क नही पड़ता  है। पढ़ते समय आप कथानक में इतना खो जाते हो कि यह सब कमियां अपने आप ही नजरअंदाज हो जाती है। मुझे तो यह उपन्यास बहुत पसंद आया। अब उपन्यास पढ़ने के बाद ग्रहण देखने का मन भी मैंने बना लिया है।

किताब: चौरासी | लेखक: सत्य व्यास | किताब लिंक: अमेज़न


राकेश वर्मा - परिचय

राकेश वर्मा - परिचय
राकेश वर्मा

राकेश वर्मा राजस्थान के जयपुर शहर के निवासी हैं। वह बी कॉम से स्नातक हैं। बचपन से उन्हें कॉमिक्स और कहानियाँ पढ़ने का शौक रहा है। 2015 से उन्होंने उपन्यास पढ़ने शुरू किये और अब उपन्यासों से उन्हें विशेष लगाव हो चुका है। पौराणिक-ऐतिहासिक गल्प और फंतासी श्रेणी के उपन्यास उनकी पहली पंसद रहती है।

एक बुक जर्नल पर राकेश वर्मा के लेख:
राकेश वर्मा

यह भी पढ़ें:

‘This post is a part of Blogchatter Half Marathon
FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

6 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (13-08-2021) को "उस तट पर भी जा कर दिया जला आना" (चर्चा अंक- 4155) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, चर्चा अंक में प्रविष्टि को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार,मैम....

      Delete
  2. ये किताब मुझे बहुत पसंद आयी। मैंने सत्य व्यास जी की दिल्ली दरबार भी पढ़ी है, मज़ेदार किताब है, चौरासी से बिल्कुल अलग। चौरासी को मैंने 2018 की पसंदीदा किताबों में शामिल किया था। मैंने ग्रहण भी देखी, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो चौरासी पर आधारित है। अच्छी है।

    बेहतरीन समीक्षा। और मुझे नहीं पता था कि आपको लव स्टोरीज़ नहीं पसंद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. राकेश वर्मा जी को पसंद नहीं है तरंग जी। ये तो एक गेस्ट पोस्ट है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे पसंद तो आती है लेकिन इतना कि खालिस प्रेम उपन्यास साल में एक या दो ही पढ़ सकता हूँ। हाँ, प्रेम के अलावा भी उपन्यास में कुछ है तो उसे पढ़ने में ज्यादा रुचि रहती है।

      Delete
  3. चौरासी , सत्य व्यास जी की पुस्तक पर राकेश वर्मा जी की शानदार समीक्षा ,जो पुस्तक के प्रति रोचकता बढ़ा रही है।
    बहुत सुंदर।

    ReplyDelete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल