नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ऑपरेशन ए ए ए - मोहन मौर्य

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पैपर्बैक | पृष्ठ संख्या: 160 | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स 

किताब लिंक: अमेज़न 

समीक्षा: ऑपरेशन ए ए ए  - मोहन मौर्य


कहानी

राजनगर एक आम शहर है जहाँ आम शहरों जैसे ही लोग रहते थे। कुछ आम रोजमर्रा की ज़िंदगी से जूझते लोग, कुछ कानून को धता बताते अपराधी। कुछ अच्छे लोग, कुछ बुरे। इन्हीं लोगों में अनिल, असगर और अजित भी शामिल थे। तीनों ही अलग अलग धर्म के लेकिन भाई से बड़कर एक दूसरे को मानते थे। तीनों ही युवा एक साथ रहते थे और एक ही काम करते थे। ऐसा काम जो कानून की नज़रों में सही नहीं समझा जाएगा। 

और अब तीनों के ऊपर एक महती जिम्मेदारी आ चुकी थी। राजनगर में एक ऐसी घटना हो चुकी थी जिसके कारण वहाँ के हालात बद से बदतर हो सकते थे। वर्षों पहले जिस आग में राजनगर जला था वह आग फिर से लगने वाली थी। 

और इन तीनों के पास ही एक ऐसी जानकारी थी जिससे यह घटना होने से रुक सकती थी। 

आखिर अनिल,असगर और अजित कौन थे?  राजनगर में ऐसा क्या हुआ था? कौन सी आग दोबारा लगने वाली थी? और इन तीनों का इसमें क्या रोल था? 

ऐसे ही कई प्रश्नों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़ने पर मिल सकेंगे। 

मुख्य किरदार 

आशीष खन्ना - नगर निगम का क्लर्क 
धीरज - पुलिस इन्स्पेक्टर 
अनिल, असगर, अजित - राजनगर में रहने वाले तीन दोस्त 
करतार सिंह - अनिल,असगर और अजित के अभिभावक 
रॉकी - विधायक पप्पू मीणा का लड़का 
पूजा - एक लड़की जिसे रॉकी ने अपने प्यार के जाल में फाँसा था
विशाल - राजनगर नाइट क्लब का बार टेन्डर 
ऐश्वर्या - अनिल, असगर और अजित की दोस्त 
अहमद - आवाम पार्टी का एक कार्यकर्ता 
ज़ुबैर अंसारी - राष्ट्रीय आवाम पार्टी का लीडर 
परवेज नवाज - राष्ट्रीय आवाम पार्टी का लीडर जिसने जूबैर को पार्टी में स्थान दिलाया था 
रज्जाक - ज़ुबैर का दायाँ हाथ 
कार्लोस - एक कान्ट्रैक्ट किलर 
देवराज ठाकुर - इंडियन राष्ट्रवादी पार्टी का अध्यक्ष 
रीमा ठाकुर - देवराज ठाकुर की पत्नी 

मेरे विचार

ऑपरेशन एएए लेखक मोहन मौर्य का दूसरा उपन्यास है। ऑपरेशन एएए का प्रथम संस्करण वर्ष 2019 में प्रकाशित हुआ था। लेखक मोहन मौर्य  यह उपन्यास भी राजनगर नाम के उसी काल्पनिक शहर में बसाया गया है जिसमें उनका पहला उपन्यास एक हसीन कत्ल बसाया गया था। प्रस्तुत उपन्यास में न केवल उस उपन्यास का जिक्र मिलता है बल्कि उस उपन्यास का एक मुख्य किरदार इन्स्पेक्टर धीरज भी दिखाई देता है। हालाँकि इस उपन्यास का लुत्फ लेने के लिए आपका एक हसीन कत्ल को पढ़ा होना जरूरी नहीं है क्योंकि उससे जुड़ी बातें कम ही इधर होती हैं और जो होती हैं वो ऐसी नहीं है कि नये पाठक उससे कुछ अंदाजा नहीं लगा सकें। परंतु अगर आपने उस उपन्यास को पढ़ा है तो पाठक के रूप में मुझे लगता है कि आपके लिए यह बेहतर ही रहेगा। अगर नहीं पढ़ा है तो धीरज के विषय में अधिक जानने के लिए आप पढ़ना जरूर चाहेंगे। 

यह भी पढ़ें: एक हसीन कत्ल की समीक्षा 

उपन्यास के कथानक पर बात करने से पहले यहाँ यह बताना जरूरी है कि ऑपरेशन ए ए ए का कथानक दो भागों में बँटा हुआ है। जिस कहानी का आगाज ऑपरेशन ए ए ए से होता है उसका अंत उपन्यास चक्रव्यूह में जाकर होता है। अगर आप इसे पढ़ने की इच्छा रखते हैं तो बेहतर होगा कि दोनों भागों तक अपनी पहुँच बनाकर रखें। मेरे पास यह दोनों ही उपन्यास थे लेकिन दोनों भाग दो अलग अलग घरों में थे। ऐसे में ऑपरेशन ए ए ए खत्म करने के बाद चक्रव्यूह पढ़ने के लिए मुझे किन्डल अनलिमिटेड का सहारा लेना पड़ा क्योंकि प्रिन्ट कॉपी तक पहुँचने में तो वक्त ही लगना था। कई बार किन्डल इसलिए भी फायदेमंद हो सकता है आपकी किताबें ज्यादातर वक्त आपके साथ रह सकती हैं। 

खैर,ऑपरेशन ए ए ए पर वापिस आते हैं। चूँकि ऑपरेशन ए ए ए दो भागों में बँटा कथानक है तो इस भाग में केवल मुख्य कथानक की भूमिका ही बनाई गयी है। 

कहानी के केंद्र में अनिल,असगर और अजित नाम के तीन किरदार हैं। यह तीन युवा हैं, अनाथ हैं  और एक साथ करतार सिंह के साथ रहते हैं। यह तीनों ही ठग हैं और अपना जीवन यापन लोगों को ठग कर ही करते हैं। इनके गुजरी ज़िंदगी में ऐसा कुछ हो चुका है जिसने इन्हें सिखाया है कि अपना हक इस दुनिया में केवल छीन कर लिया जाता है और यह लोग इस पर विश्वास करते हैं। लेकिन इस सबके बावजूद यह लोग जानते हैं कि यह गलत कर रहे हैं और इस कारण ऐसे कार्य करते हैं जिससे आगे चलकर किसी बच्चे को इनका रास्ता न अपनाना पड़े। उनकी कमाई का ज्यादातर हिस्सा अच्छे कार्यों में ही खर्च होता है। 

वहीं यह लोग ठगी के लिए जिन लोगों का चुनाव करते हैं उसमें भी यह लोग खास ध्यान रखते हैं कि वह व्यक्ति कोई ईमानदार न हो। भ्रष्ट लोगों को ही यह अपना शिकार बनाते हैं।  उपन्यास में इन लोगों की तीन ठगियाँ दर्शाई गयी हैं और यही उपन्यास का मुख्य हिस्सा बनती हैं। इन ठगियों के दौरान पाठक इनके जीवन के फलसफे को जानने के साथ साथ इनके इतिहास  से भी वाकिफ़ हो जाते हैं। उपन्यास में दर्शाई गयी तीनों ठगियाँ रोचक हैं और मुख्य कहानी के लिए पुख्ता जमीन तैयार करती हैं। आगे जाकर यह तीनों जो करने वाले हैं वो क्यों करेंगे इसके लिए वह एक वाजिब कारण पाठक के सामने मुहैया करवाने में सफल होती है। 

अनिल,असगर और अजित के बीच का समीकरण भी उपन्यास को रोचकता प्रदान करता है। असगर और अजित के बीच की चुहलबाजी पढ़ने में मज़ा आता है। अनिल इन तीनों में लीडर है यह साफ दिखता है और कई बार इनके बीच के रिश्ते को देखकर लगता भी है जैसे वह इनका बड़ा भाई है। इन तीनों की पहली मुलाकात जिस तरह से दर्शाई गयी है वह भी एक पाठक के रूप में मुझे पसंद आई है। उस मुलाकात में अजित के माध्यम से लेखक काफी बड़ी बात कह जाते हैं। आजकल के जैसे हालात हैं विशेषकर सोशल मीडिया पर तो उसे देखते हुए अजित की वह बात और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है।

ऑपरेशन ए ए ए में इन्स्पेक्टर धीरज भी मौजूद है। धीरज फर्ज के लिए सब कुछ न्यौछावर कर सकता है यह बात एक हसीन कत्ल अगर आपने पढ़ी होगी तो आपको मालूम होगा। अब इस कथानक में उसकी एंट्री ने कुछ आस जगाई थी लेकिन ऑपरेशन ए ए ए में वह फिल्म के किसी मेहमान कलाकार की तरह दिखता है। वह उपन्यास के मुख्य कलाकारों से दो तीन बार टकराता जरूर है लेकिन अभी उसके करने लायक कुछ खास उपन्यास के अंत तक होता नहीं दिखता है। उम्मीद है अगले भाग की कहानी में उसे काफी कुछ करने को दिया जाएगा। 

उपन्यास की नायिका की बात की जाए तो ऐश्वर्या का किरदार ही फिलहाल नायिका लगता है। अनिल और ऐश्वर्या एक दूसरे को चाहते हैं। जहाँ ऐश्वर्या के साथ साथ अनिल के बाकी दोनों दोस्त इस बात को बार-बार उठाते हैं वहीं अनिल हमेशा अपने दिल की बात कहने से बचता है। ऐसा क्यों है इसका अंदाजा थोड़ा बहुत मुझे है लेकिन लेखक ने फिलहाल वह साफ नहीं किया है। ऐश्वर्या को कहानी के एक मुख्य बिन्दु पर लाया जाता है लेकिन मुझे उम्मीद अगले भाग में भी ऐश्वर्या का अच्छा किरदार रहेगा। हो सकता है उधर ही अनिल और ऐश्वर्या के बीच के रिश्ते का भविष्य भी निर्धारित हो। हाँ, ऐश्वर्या और अनिल कैसे मिले? इनके बीच रिश्ते इतने प्रगाढ़ कैसे हुए? यह बात भी बताई जाती तो अच्छा रहता। मुझे पढ़ने में मज़ा आता। 

यह उपन्यास चार अध्याओं में विभाजित है और कहानी का मुख्य भाग चौथे अध्याय में ही शुरू होता है। इससे पहले के दो अध्यायों में तीनों के किरदार के वर्तमान जीवन और एक अध्याय में उनके इतिहास का ही खाका लेखक ने खींचा है। चौथा अध्याय महत्वपूर्ण है और अगले भाग के लिए उत्सुकता भी जगाता है। जुबैर अंसारी और देवराज ठाकुर भारतीय राजनीति के दो कद्दावर नेताओं की याद दिलाते हैं। देवराज ठाकुर के विषय में पढ़कर तो पाठक आसानी से अंदाजा लगा देंगे कि उसके पीछे की प्रेरणा कौन है। यहाँ एक और बात थी। देवराज ठाकुर की पत्नी का नाम रीमा है और इन नामों को पढ़ते हुए बरबसर ही हिन्दी लोकप्रिय साहित्य के दो किरदारों के नाम आपके जहन में आ जाते हैं। मैं लेखक से यह जरूर जानना चाहूँगा कि उन्होंने क्या उन्हीं किरदारों पर यह नाम रखे या ये मात्र एक संयोग था। 

उपन्यास के किरदारों,अध्यायों और इसकी रोचकता के ऊपर भी एक चीज है जिस पर बात करना मैं व्यक्तिगत तौर पर जरूरी समझता हूँ। लेखक मोहन मौर्य का यह दूसरा उपन्यास मैंने पढ़ा है और इसमें भी मुझे वही दिखा है जो एक हसीन कत्ल में था। उनके उपन्यास अपराध साहित्य तो होते हैं लेकिन वह समाज से कटे हुए नहीं होते हैं। कई बार हिन्दी के अपराध साहित्य पढ़ते हुए लगता है उसके किरदार तो भारतीय हैं लेकिन वह अपनी एक अलग दुनिया में जी रहे हैं जिनका अपने समय की असल ज़िंदगी से कोई राब्ता नहीं होता है।  लेकिन मोहन मौर्य के उपन्यास भले ही राजनगर नाम के काल्पनिक शहर में क्यों न बसाये गए हों पर वह अपने समय और अपने समाज से जुड़े हुए हैं। उनके किरदार भारत में हो रही मुख्य घटनाओं पर बात करते दिखते हैं और इस माध्यम से लेखक समाज में चल रही विसंगतियों पर टिप्पणी करते रहते हैं। उनके पहले उपन्यास में भी उन्होंने एक मुद्दे को उठाया था और इस उपन्यास में भी वह एक मुद्दे को उठाने में कामयाब होते हैं। सांप्रदायिक मतभेद से आम आदमी ही पिसता है और नेता लोग अपनी कोठियाँ भरते हैं यह  भी उन्होंने इधर दर्शाया है। वहीं अनिल, असगर और अजीत के बीच की बातचीत से उन्होंने कुछ जरूरी मुद्दों फिर वो चाहे इरोम शर्मिला वाला हो या अखलाख वाला या मीडिया इन्हे कैसे देखती और दर्शाती है ही हो,पर बात की है जो कि सराहनीय है।  यह न केवल उनके चरित्रों को एक तीन आयामी रूप देते हैं बल्कि उनके उपन्यासों को एक आम अपराध साहित्यिक कृति से अलग भी बनाते हैं। यह एक तरह से अपने समय का दस्तावेजीकरण भी करते हैं। यही बात मुझे इनके उपन्यासों में ज्यादा पसंद आती है।  उम्मीद है अपने आने वाले कथानकों में भी वह ऐसा करना जारी रखेंगे। 

यह भी पढ़ें: लेखक मोहन मौर्य से एक बुक जर्नल की बातचीत

कहानी की कमी की बात करूँ तो कहानी पढ़ते हुए एक आध जगह ऐसा हुआ था कि किरदार का नाम बदल गया था जिससे पढ़ते हुए थोड़ा संशय उत्पन्न हुआ। साथ ही पुस्तक में थोड़ी बहुत वर्तनी की गलतियाँ भी मौजूद हैं जो कि पढ़ते हुए नजर में आई तो खटकी थी। इसके अतिरिक्त कहानी के संवादों में कुछ शब्द ऐसे इस्तेमाल किये गए हैं जो कई पाठकों को थोड़ा असहज कर सकते हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर उनसे दिक्कत नहीं होती है लेकिन चूँकि लेखक का पाठक वर्ग बड़ा है और अलग अलग तरह के लोग उसमें शामिल है तो पूरे शब्द न लिखकर उसका इशारा भर कर देना भी बात को समझा देता है। इससे उनके ऐसे पाठक जो ऐसे शब्दों को देखकर असहज होते हैं वो कम से कम असहज न होंगे और लेखक अपनी बात का मन्तव्य भी समझा देंगे। इसके अलावा एक और बात है जो मुझे विशेष रूप से खटकी थी और वह है इस उपन्यास का शीर्षक। यह शीर्षक क्यों रखा गया ये मुझे समझ नहीं आया। मुझे लगता है शीर्षक से मिलाने के लिए ही मुख्य किरदारों के नाम अ से शुरू किए गए हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि उपन्यास के लिए बेहतर शीर्षक चुना जा सकता था। हाँ, हो सकता है अगले उपन्यास में इसका अर्थ साफ किया जाए लेकिन फिर उसी वक्त के लिए यह शीर्षक रख देना चाहिए था क्योंकि फिलहाल कथानक पर यह मेरी नजर में फिट नहीं बैठता है। 

अंत मे अपने लेख का समापन करते हुए यही कहूँगा कि एक वृहद कथानक की भूमिका के रूप में ऑपरेशन ए ए ए संतुष्ट करता है। उपन्यास रोचक है और पाठक के रूप में आप यह जानने के लिए जरूर उत्सुक होंगे कि आगे क्या होता है। अनिल, असगर और अजित की तिकड़ी मुझे पसंद आई और अब देखना यह है कि उनके कंधों पर जो भारी जिम्मेदारी आ गयी है उसका निर्वाह वो कैसे करेंगे। 

लेखक के ऊपर भी यह महती जिम्मेदारी बन गयी है कि जिस कथानक की भूमिका वह इतनी सफलता से तैयार कर पाते हैं वह अपने अंत से भी पाठकों को संतुष्ट करने में उतना ही सफल हो। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अक्सर दो भाग वाले उपन्यासों में यह कमी दिख जाती है कि जो अपेक्षा पहला भाग जगा देता है वो दूसरा भाग अक्सर पूरी नहीं कर पाता है। देखना होगा यहाँ यह होता है या नहीं। 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आप इसके विषय में अपनी राय से मुझे अवगत जरूर करवाइएगा। 

किताब लिंक: अमेज़न 

आज का सवाल:

प्रश्न: पाठक के रूप में आपको किस तरह का उपन्यास पसंद आता है और क्यों? ऐसा उपन्यास जो काल्पनिक शहर में बसाया गया हो या ऐसा उपन्यास जो किसी असल शहर में बसाया गया हो? मुझे अपनी राय से अवगत जरूर करवाइएगा। 


नोट: आज का सवाल इस वेबसाईट के पाठकों से संवाद की एक कोशिश है। उम्मीद है आप अपने उत्तरों से मुझे अवगत करवाकर इस संवाद को बढ़ाएंगे ताकि साहित्य से जुड़े अनेक पहलुओं पर हम बातचीत कर सकें। 

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4 Comments
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  1. This book is very much new to me. But I think I must pick it up asap.

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  2. The book seems interesting. Liked your style of reviewing, Vikash.

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