नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

एक बातचीत फ्रीलांस टैलेंटस के संस्थापक मोहित शर्मा के साथ

एक बातचीत फ्रीलांस टैलेंटस के संस्थापक मोहित शर्मा के साथ


अगर आप हिन्दी कॉमिक्स बुक्स के प्रशंसक हैं और ऑनलाइन इससे संबंधित चर्चा में भाग लेते रहे हैं तो बहुत मुमकिन है कि आप मोहित शर्मा या  मोहित शर्मा 'ज़हन' (Mohit Sharma Zehan) या मोहित शर्मा ट्रेंडसटर (Mohit Sharma Trendster) से वाकिफ होंगे। यह तीनों ही नाम मोहित शर्मा के हैं जिनके माध्यम से वह अंतर्जाल में अपने डिजिटल कदमों के निशान छोड़ते रहते हैं। 

मोहित लगभग पंद्रह सालों से लेखन करते आ रहे हैं। हाल ही में उनका कहानी संग्रह कलरब्लाइंड बालम और कुछ मीटर पर ज़िंदगी  फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था जिसे लोगों ने काफी सराहा था। इसके अलावा कई ऑनलाइन साइट्स, ब्लॉग्स, प्लेटफॉर्मस से उनकी लिखी  काफी कॉमिक्स और रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ) प्रकाशित हो चुकी हैं। 

पर जिस चीज ने हमें यहाँ पर सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह है उनके द्वारा स्थापित किया गया फ्रीलांस टैलेंटस। यह अपने तरह का अलग उपक्रम है जिसके अंतर्गत वह स्वतंत्र कलाकारों के साथ मिलकर काफी सराहनीय कार्य कर रहे हैं। 

हाल ही में एक बुक जर्नल पर हमने मोहित से उनके द्वारा स्थापित इस संस्था फ्रीलांस टैलेंट्स के कार्यों और भविष्य की योजनाओं पर बातचीत की। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

लेखक मोहित शर्मा का विस्तृत परिचय: मोहित शर्मा

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प्रश्न. एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है मोहित। सर्वप्रथम तो आपको हाल ही में प्रकाशित अपने कहानी संग्रहों के लिए हार्दिक बधाई। पाठकों द्वारा आपका कहानी संग्रह कुछ मीटर पर जिंदगी और कलरब्लाइंड बालम काफी पसंद किया जा रहा है। लेकिन मोहित जी आज हम आपसे आपकी पुस्तकों के विषय में नहीं परन्तु आपके द्वारा स्थापित किये गये फ्रीलांस टैलेंटस के विषय में बातचीत करेंगे। 

पर फ्रीलांस टैलेंटस के विषय में बात करने से पहले एक व्यक्तिगत सवाल करना चाहूँगा। आपके ऑनलाइन साक्षात्कार पढ़े। उनसे पिताजी, भाई और बहन के विषय में तो पता चलता है परंतु माताजी के विषय में पता नहीं चलता है। कृपया अपनी माताजी के विषय में पाठकों को बताएं। उनका आपके लेखन और रचनाशीलता पर कैसा असर रहा है?

उत्तर: माँ, गृहणी हैं और देवबंद से हैं। मेरे अंदर के रचनाकार को बढ़ावा देने में उनका सबसे बड़ा योगदान है। वे अच्छा गाती भी हैं शायद उनका कुछ आशीर्वाद मेरी आवाज़ को भी मिल गया है। वे मज़ाक में मुझे दोष देते हुए बताती हैं कि जल्दी शादी होने के बाद शहर बदलना पड़ा और उनकी स्नातक की पढ़ाई आधी रह गई और जब कुछ सालों बाद उन्होंने दोबारा बी.ए. फाइनल करने का इरादा बनाया, तो मैं आ गया और उनको फिर से डिग्री नहीं मिल पाई। अब वे मेरी किताबें, रचनाएँ पढ़कर बहुत खुश होती हैं और ज़्यादा अच्छी लगने पर मज़ाक में पूछ लेती हैं - "यह तूने ही लिखी है न?" माँ जैसी गृहणियों की छाप करोड़ों बच्चों पर पड़ती हैं, लेकिन यह मलाल रहता है कि जब खुद माँ के बारे में बात हो तो दुनियादारी के पैमाने वाली उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ या अलग पहचान कहीं नहीं मिलती। खैर, एक और अहम बात जो मैंने उनसे सीखी...किसी इंसान को इज़्ज़त देने की लिए उसका सामान्य इंसान होना ही काफ़ी है, उसका पद, पैसे, नाम देखकर इज़्ज़त का नाप-तोल नहीं करना चाहिए। 

प्रश्न: आपकी मातजी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, मोहित।  हमारे समाज में अक्सर इज्जत व्यक्ति के पद, पैसे, नाम से दी जाती है परंतु हर व्यक्ति का व्यक्ति होना ही उसको इज्जत दिये जाने के लिए काफी है। यह बात कम व्यक्ति याद रख पाते हैं लेकिन यही एक बात याद रखे जाने लायक है।  यही हमें इंसान बनाती है। 

साक्षात्कार के मुख्य विषय पर वापिस आते हुए क्या आप पाठकों को बताएंगे कि फ्रीलांस टैलेंटस क्या है?

उत्तर: फ्रीलांस टैलेंट्स (Freelance Talents), एक स्वयंसेवी संस्था कह लीजिए या एक समुदाय जिसमें कई कलाकार और लेखक मिलकर अलग-अलग तरह के रचनात्मक काम करते हैं। मैं ऐसे कलाकारों को उनके काम के हिसाब से फ़ीस देता हूँ और उनकी कला ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने का काम करता हूं। 14-15 सालों से यह काम निरंतर सीमित स्तर पर चल रहा है। वैसे इसके प्रोजेक्ट व्यावसायिक कम होकर मुक्त कला की ओर ज़्यादा झुके होते हैं। 

हालाँकि, फ्रीलांस टैलेंट्स से मेरा संपर्क अलग विधाओं के बहुत से आर्टिस्ट से हुआ जिनमें से दर्जनों आर्टिस्ट के साथ काम करने का सौभाग्य भी मिला। कई कलाकारों के अनुसार फ्रीलांस टैलेंट्स उनके रचनात्मक सफर का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा या है जहाँ से उनपर बड़े प्रकाशनों या कंपनियों की नज़र पड़ी या उनके कई नए संपर्क बने जिनके साथ उन्होंने आगे चलकर काम किया। किसी भी कमाई से ज़्यादा मैं ऐसी बातों को अपनी पूँजी मानता हूँ।

प्रश्न: फ्रीलांस टैलेंटस की स्थापना कब हुई और इसके पीछे कौन कौन लोग आपके साथ थे?

उत्तर: फ्रीलांस टैलेंट्स या राइम करता फ्रीलैंस टैलेंट्स (जैसा मैं 2006-07 में इसे बोलता था) कुछ इंटरनेट के माध्यम से जुड़े दोस्तों की पहल थी। कुछ सुझावों के बीच इस नाम पर सबकी सहमति बनी जो किस्मत से मेरा इकलौता सुझाव था। मुझे ऐसा बोला जाता है कि मैं शीर्षक और नाम अच्छे रखता हूँ। :) उस समय इंटरनेट पर ऑरकुट के साहित्य, कॉमिक्स से जुड़े समुदाय और राज कॉमिक्स वेबसाइट पर हज़ारों-लाखों प्रशंसक सक्रिय थे। उनमें कई अच्छे चित्रकार और लेखक भी थे। शुरुआती दौर में उनमें से ज़्यादातर कॉमिक्स किरदारों पर फैन फिक्शन और फैन आर्ट बनाते थे।

उन्हीं में से हम चार लेखकों (अनुराग कुमार सिंह, राहुल शशांक, मयंक शर्मा, और मैं) ने एक समूह बनाया जो कलाकारों और लेखकों को कॉमिक्स, साहित्य, एनिमेशन जैसे क्षेत्रों में काम मुहैया कराने, कैसे शुरुआत की जाए, किन मुख्य लोगों से मिला जाए आदि जानकारी देने में मदद करता। हम लोगों ने कई कलाकारों की मदद भी की। हालाँकि, छात्र के तौर पर पहले कुछ सालों में हम यह समूह उतना नहीं बढ़ा पाए जितना हमनें सोचा था। धीरे-धीरे ज़िम्मेदारियों के चलते बाकी साथी व्यस्त हो गए। अब समस्या वही थी लेकिन लोग और कम हो गए थे। तो फिर अधिकांश मेरा और कुछ कलाकारों का काम मैं इस बैनर तले प्रकाशित करने लगा जो अब तक जारी है।

प्रश्न: फ्रीलांस टैलेंटस से अब तक आप कुल कितनी कॉमिक बुक्स प्रकाशित कर चुके हैं? कुछ इन कॉमिक बुक्स के विषय में बताएं?

उत्तर: हम अब तक 27 शार्ट कॉमिक्स और कुल 80 से ज़्यादा किताबें, ई-बुक, ऑनलाइन मैगज़ीन प्रकाशित कर चुके हैं। सीमित संसाधन में कॉमिक्स के पेज और डिटेल कम हो जाती थी। हालाँकि, इसके बाद भी कुछ कॉमिक्स 15 पन्नों से ज़्यादा की बनाई गईं। पगली प्रकृति, 3 रन का सौदा, लालची मौत, 84 टीयर्स, दोमुँहा आक्रमण, इंसानी परी, समाज लेवक, काव्य कॉमिक्स #4 इनमें सबसे लोकप्रिय रहीं। 


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प्रश्न:  कॉमिक बुक कहानी कहने का एक महँगा माध्यम है। एक कहानी को प्रस्तुत करने के लिए कई कलाकार इसमें लगते हैं। आप चूँकि फ्रीलांस कार्य करते हैं तो पाठको को बताये कि एक कॉमिक बुक को बनाने में अमूमन कितना खर्चा आ जाता है?

उत्तर: कॉमिक बनाने का खर्चा कई बातों पर निर्भर करता है। कभी लाभ की मंशा से नहीं बनाई गई कोई कॉमिक जिसमें बाकी कलाकार भी उसे समाज सेवा की तरह करने इच्छुक हों, तो ऐसी कॉमिक बिना लागत तैयार हो जाती है, तो कभी हज़ारों या लाखों भी लग जाते हैं। पेंसिल, कलरिंग/इंकिंग, कैलीग्राफी, लेखन, संपादन आदि में शामिल टीम और उनकी फीस अलग हो सकती है, फिर कॉमिक ऑनलाइन प्रकाशित करनी है या प्रिंट में, ब्लैक एंड वाइट या कलर - 22 पेज की कॉमिक में लागत 40 हज़ार से ढाई लाख तक आ सकती है। पैसों की यह शुरुआती अड़चन भी बड़ी वजह है जो कई प्रतिभाएं इस क्षेत्र में बढ़ नहीं पाती हैं। 

प्रश्न: आप कहानी भी लिखते हैं और कॉमिक्स भी। मुझे पाठक के तौर पर लगता है कि कॉमिक बुक लेखक को काफी बाँध देती है। लेखक को चूँकि कुछ पेनल्स में अपनी बात कहनी होती है तो कहानी शायद उतनी गहराई नहीं ले पाती है जितना कि उपन्यास या लघु-उपन्यास में ले सकती है। आप इसे कैसे देखते हैं?

उत्तर: मैंने कहीं पहले भी कहा था कि कॉमिक की विधा का अपना एक जादू है। कुछ आईडिया, कहानियाँ  ऐसा लगता है जैसे कॉमिक प्रारूप के लिए ही बनी हों। एक तरह से देखें तो कॉमिक्स मल्टीमीडिया का सबसे धीमा और सबसे असरदार रूप है। उपन्यासों में जो विस्तार दृश्य, किरादरों और जगहों के विवरण से आता है, वह कॉमिक में पाठकों तक पहुँचने से पहले ही लेखक और कलाकार आपस में तय कर लेते हैं। फिर पाठक को दृश्य दिखते हैं जो कई बातें बिना बताए समझा देते हैं। जैसे दृश्य किस कोण से होगा, कितने किरदार - किस हुलिये में क्या कर रहे होंगे वह एक क्रम से चलता रहता है। इसमें कलाकार कहानी के अनुसार अपनी कल्पना से कुछ चीज़ें जोड़-घटा सकते हैं। मैं मानता हूँ कॉमिक्स भी उपन्यास या कथाओं की तरह जादुई होती हैं बस उनका स्वाद कुछ अलग होता है।

यह तो हुई माध्यम की बात, लेकिन कई कलाओं के मिश्रण से चुनौतियाँ  बढ़ जाती है। जहाँ एक लेखक कम समय में विस्तृत उपन्यास लिख सकता है वहीं कॉमिक का काम अक्सर धीमा और एक से ज़्यादा लोगों के शामिल होने की वजह से रुकावटों से भरा होता है। ऐसे में समय पर तय सांचे में ढालने के लिए कई बार कहानी के पंख कुतरने पड़ते हैं।

प्रश्न: आपने फ्रीलांस टैलेंटस से कॉमिक निकाले हैं। हिन्दी में पहले कॉमिक बुक किरदारों पर उपन्यास या कहानियाँ या बाल उपन्यास भी लिखे जाते थे। उदाहरण के लिए डायमंड कॉमिक्स से चाचा चौधरी, ताउजी इत्यादी के ऊपर बाल उपन्यास आते थे और इन पर कॉमिक बुक्स भी आती थी। क्या फ्रीलांस टैलेंट इस दिशा में कुछ लाने की सोचता है? अगर ऐसा होता है तो कौन से किरदारों को आप उपन्यास के तौर पर लाना चाहेंगे?

उत्तर: फ्रीलांस टैलेंट्स की ज़्यादातर कॉमिक्स छोटी परिकल्पनाओं पर आधारित थी। हालांकि, कुछ में कहानी काफ़ी आगे बढ़ाने की गुंजाइश थी। वे विचार मैंने सेव कर रखे हैं और आशा करता हूँ भविष्य में उस पिटारे का अच्छा इस्तेमाल हो पाए। वहीं कुछ प्रकाशनों की स्थापित सीरीज में भी संभावनाएं दिखती हैं। 

यह एक ऐसी दिशा है कि जिसे अगर पकड़ लिया जाए तो इसका अंत ही न हो। हालाँकि, प्रकाशकों के कॉपीराइट अधिकार, व्यवसायिक नीतियाँ इसके पक्ष में नहीं दिखती। किसी स्थापित कॉमिक किरदार पर उपन्यास, बड़ी कहानियाँ  सिर्फ़ प्रकाशक की सहमति से हो सकती हैं जो वर्तमान परिवेश में संभव नहीं लगता। अगर हम अपने मन से लिखें, तो वह फैन फिक्शन यानी प्रशंसक की लिखी कहानी की श्रेणी में रखा जाएगा। "Heroes in real harsh world series" (2007, 2009) aur "Trendy Baba Series" (2009-2012) मेरी उन फैन फिक्शन कहानियों का संग्रह थी जो किस्मत से पुराने ऑनलाइन समुदाय और वेबसाइटें अचानक बंद होने के बाद भी मेरे ईमेल ड्राफ़्ट या किसी अन्य साइट पर पोस्ट होने की वजह से बच गईं। आगे फैन फिक्शन तो नहीं, लेकिन संबंधित प्रकाशक से संपर्क करके, लघु-उपन्यासों पर बात हो सकती है। वह भी कॉमिक बिक्री के बढ़ने पर निर्भर है।

प्रश्न: फ्रीलांस टैलेंटस ने शॉर्ट फिल्म्स का भी निर्माण किया है। फिल्म निर्माण की शुरुआत कैसे हुई? फिल्म निर्माण के अनुभव के विषय में बताएँ।

उत्तर: यह एक प्रयोग था कि फ़िल्म जिसमें अभिनय, जगह, आवाज़ आदि घटक आ जाते हैं उसमें हम कितने पानी में है यह जायज़ा लेना था। मिली-जुली प्रतिक्रियाओं के बीच यह कह सकता हूं कि शॉर्ट फ़िल्मों का अनुभव अच्छा रहा, लेकिन अभी बहुत सुधार की ज़रूरत है। आगे ज़रूर कुछ नया, बेहतर करेंगे।

फ्रीलांस टैलेंटस द्वारा निर्मित कुछ शॉर्ट फिल्में:

  1. बावरी बेरोज़गारी
  2. कठपुतली
  3. झोलाछाप टैलेंट


प्रश्न: अभी फ्रीलांस टैलेंटस किन प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहा है?

उत्तर: कुछ  सालों से लटके प्रोजेक्ट हैं जिन्हें कलाकारों को सौंपा है। अन्य ज़िम्मेदारियों के चलते इनके प्रकाशित होने में देर हो रही है। प्रिंट माध्यम से अलग कुछ करने की कोशिश जारी है, देखते हैं ऐसे प्रोजेक्ट पर क्या प्रतिक्रिया मिलती है।

प्रश्न: फ्रीलांस टैलेंटस को लेकर आपकी भविष्य की क्या योजनायें हैं?

उत्तर: आने वाले समय में मनोरंजन के अन्य माध्यमों में प्रवेश, ज़्यादा कलाकारों के साथ पर काम करने का लक्ष्य है। फ्रीलांस टैलेंट्स चैंपियनशिप (Freelance Talents Championship) और इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Indian Comics Fandom) के नए संस्करण भी आएंगे। एक 'लेवल अप' करने का इरादा है कि अबतक जिस स्तर पर काम हुआ उससे बेहतर क्वालिटी और बड़े मंच पर काम आए।

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तो यह थी फ्रीलांस टैलेंटस के संस्थापक मोहित शर्मा से हमारी बातचीत। आशा है आपको यह बातचीत पसंद आएगी। फ्रीलांस टेलेंटस से जुड़ी ज्यादा जानकारी आप उनके निम्न लिंक्स पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं:

फ्रीलांस टैलेंटस | फ्रीलांस टैलेंटस - फेसबुक पृष्ठ | यूट्यूब

लेखक मोहित शर्मा का विस्तृत परिचय: मोहित शर्मा

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8 Comments
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    2. बातचीत आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा, सर।

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  2. बहुत अच्छी लगी मोहित शर्मा जी से वार्ता

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    1. वार्ता आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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  3. Replies
    1. एक बुक जर्नल को समय देने के लिए हार्दिक आभार,मोहित भाई....

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