नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ओरछा की राय प्रवीन के अद्भुत शौर्य और बुद्धिमत्ता की कहानी है इंद्रप्रिया

नीलेश पवार 'विक्रम' राज्य प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं। वह होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में रहते हैं। हिन्दी साहित्य और हिन्दी सिनेमा में उनकी विशेष रूचि है जिस पर वह अक्सर अपने विचार लिखा करते हैं। फेसबुक पर हिन्दी सिनेमा पर उनके लिखे पोस्ट जिन्हें वो विक्रम की डायरी से के अंतर्गत छापते हैं काफी चर्चित रहे हैं।

आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए लेखक सुधीर मौर्य के उपन्यास इंद्रप्रिया पर उनकी एक पाठकीय टिप्पणी।

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ओरछा की राय प्रवीन के अद्भुत शौर्य और बुद्धिमत्ता की कहानी है इंद्रप्रिया


साहित्य विमर्श प्रकाशन के पहले सेट में प्रकाशित लेखक सुधीर मौर्य की रचना इंद्रप्रिया हस्तगत हुई।  ओरछा की रानी इंद्रप्रिया के विषय में पहले से कुछ किवदंतियाँ और कहानियाँ सुन रखी थी सो निश्चित था कि सबसे पहले इसे किताब को पढ़ा जाए।


इंद्रप्रिया के पहले पेज से ही लेखक पाठकों को कहानी से संबद्ध कर लेते हैं और बहुत ही रोचक होती हुई  ये कहानी जब अंतिम पृष्ठ पर पहुँचती है तो जैसे आप एक सपने से जाग उठते हैं। इस किताब को पढ़ते हुए मुझे अद्भुत अनुभव हुआ। ऐसा लगा कि मैं बुंदेलखंड के उस काल और उस माहौल में खड़ा हूँ और मेरे समक्ष ही यह सब घटनाएँ हो रही हैं।


हमारे देश में नारीशक्ति ने समय-समय पर अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान के लिए शक्तिशालियो का दर्प तोड़ा है और उन्हें अपने कदमों में झुकाया है। राय प्रवीन के आत्मविश्वास और उसकी प्रतिभा के आगे मुगल शहंशाह अकबर भी नतमस्तक हो जाता है।


मैं निजी तौर पर हमेशा किसी भी प्रकार के वर्चस्व के खिलाफ हूँ, इसलिए किसी कम शक्तिशाली का अपने अधिकारों के लिए अधिक शक्तिशाली से लड़ना मुझे हमेशा पसंद आता है और मैं हमेशा कम शक्तिशाली को जीतते हुए देखना पसंद करता हूँ। 


इस उपन्यास में भी इंद्रप्रिया की जीत को देखकर मैं प्रसन्न हो गया। लेखक सुधीर मौर्य की जितनी तारीफ की जाए इस कथानाक को रचने में वह कम है। उन्होंने बिना एक भी शब्द अनावश्यक लिखे एक ऐसा सुगठित कथानक रचा है जो आपको भरपूर मनोरंजन प्रदान करने में सक्षम है।


साहित्य विमर्श प्रकाशन ने बहुत उम्दा साज सज्जा से किताब को आकर्षक बनाया है। किताब का आवरण पृष्ठ बहुत सुंदर है और किताब की क्वालिटी बहुत बढ़िया है।


प्रचलित मान्यताओं से परे जाकर अपने शोध के माध्यम से उस काल के सच को सामने लाना वास्तव में दुरूह कार्य है, परंतु सुधीर मौर्य जी ने अपनी लेखनी से राय प्रवीन जो ओरछा की महारानी है और इंद्रजीत की पत्नी है के अद्भुत शौर्य और बुद्धिमत्ता से पाठको को परिचित करवाया है।


पुस्तक की भाषा मन को लुभाने वाली है, प्रवाहमयी है। इस उपन्यास में वाक्य विन्यास, चरित्र चित्रण और संवाद उपन्यास की रोचकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

 लेखक की इस रचना में हिंदी भाषा की मिठास स्पष्ट नजर आती है। उन्होंने देश काल के अनुसार  उपयुक्त वातावरण रचा है। लेखक बहुत बधाई के पात्र है जो उन्होंने इतिहास के एक अल्प चर्चित लेकिन बहुत महत्वपूर्ण  प्रसंग को केंद्र बनाकर इस उपन्यास की रचना की ।

इधर हालिया दिनों में मैंने कई किताबें पढ़ी लेकिन इंद्रप्रिया मुझे बहुत पसंद आई है। मैं सभी मित्रों से आग्रह करूँगा कि इस किताब को तुरंत आर्डर करें और इसका रसास्वादन करें। साथ ही अपने विचारों से, अपनी भावनाओं से सभी मित्रों को अवगत कराएँ। हम सब का उत्तरदायित्व है कि हम किसी अच्छी रचना का प्रचार प्रसार करें। इससे हमारी मातृभाषा हिंदी को सक्षम और सफल बनाने में काफी मदद मिलेगी। लोगों में पढ़ने की रुचि जागृत होगी। लोग जब पढ़ना प्रारंभ करेंगे तो स्वाभाविक सी बात है कि उनके बच्चों में भी यह आदत विकसित होती चली जाएगी। आज के डिजिटल युग में यह नितांत जरूरी है कि हम लोग किताबों की तरफ आकृष्ट हो। बिना किताबों की खुशबू के कोई ज्ञान प्राप्त करना असंभव है, ऐसा मेरा मानना है और शायद आप भी यही सोचते होंगे।

किताब लिंक: अमेज़न साहित्य विमर्श

#इंद्रप्रिया  #साहित्यविमर्श

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18 Comments
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  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (18-06-2021) को "बहारों के चार पल'" (चर्चा अंक- 4099) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. चर्चाअंक में समीक्षा को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार मैम....

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  2. बहुत ही सुंदर

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  3. अति सुंदर सृजन ।

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  4. पुस्तक से परिचय करवाने और सुंदर प्रतिक्रिया पढ़वाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
    सादर

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  5. व‍िकास जी, अब तो उपन्यास इंद्रप्रिया पढ़ना ही होगा---तभी ये समीक्षा सार्थक होगी , है ना।

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    1. जी पुस्तक रूचि जगाती है तो आपको अवश्य पढ़ना चाहिए.. आपकी प्रतक्रिया का इन्तजार रहेगा मैम..

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  6. 'इंदुप्रिया' तो पढ़नी ही पड़ेगी विकास जी। एक बहुत पुरानी हिंदी फ़िल्म 'संगीत सम्राट तानसेन' (1962) में मैंने राय प्रवीन का पात्र देखा था जो कि बहुत प्रभावशाली बन पड़ा था।

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    1. किताब के प्रति आपके लेख का इंतजार रहेगा सर।

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. बहुत बढ़िया समीक्षा, अपने पास भी आ गयी है किताब जल्द ही पढ़ता हूँ।

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    1. किताब के प्रति आपके विचारों का इन्तजार रहेगा.....

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