नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पुस्तक अंश: कसक

किताब परिचय: कसक - सुरेश परिचय


किताब परिचय:

अनम, अनामिका और मोहिनी तीन अलग अलग व्यक्तिव थे लेकिन इनके जीवन की डोर एक साथ जुड़ी हुई थी। कसक इन तीनों की कहानी है। यह उनके जीवन और उस जीवन में रह गयी कसक की कहानी है। 

मोहिनी एक अमीर बाप की लड़की थी जिसे अनम से प्रेम था और उसने उसे पाने के लिए उसने सब कुछ करा लेकिन उसे पाकर भी नहीं पा सकी। अनामिका और अनम एक दूसरे से प्यार करते थे लेकिन हालातों के चलते उन्हें अलग होना पड़ा।

आखिर क्यों मोहिनी अनम को पाकर भी न पा सकी?

आखिर क्यों अनामिका और अनम एक दूसरे को न पा सके?

और अनम के इस निर्णय ने इन तीनों के जीवन पर क्या असर डाला? यही कहानी आप इस उपन्यास में पढ़ सकेंगे। 

किताब लिंक: अमेज़न

पुस्तक अंश

कसक - बुक कवर

'यह मत भूलो मोहिनी... कि मैं भी किसी समय गरीब ही था.....।' धीमी लेकिन सधी हुई आवाज़ में कहा महेंद्रनाथ ने।

'आप संघर्ष करके...यहाँ तक पहुँचे हो पापा... आपको अमीरी फ्री में नहीं मिल गयी...।'

'मोहिनी..सही कहती है..पापा.. और फिर मुझे बिजनेस का एक्सपीरियंस भी नहीं है...हो सकता है मेरी बात गलत हो...।' अनम ने धीमे शब्दों में कहा।

'ऐसा नहीं है अनम बेटे... तुम्हारी बात अपनी जगह ठीक है...।' महेंद्रनाथ समझ गया कि मोहिनी की बातों से अनम दिल ही दिल में दुखी है।

'यह तुमने ठीक ही किया... कि अपनी हकीकत और औकात को जल्द ही याद कर लिया..' मोहनी ने अनम को सम्बोधित किया। मोहनी के इस रूप को देख महेंद्रनाथ आश्चर्यचकित रह गये।

'मोहनी..आखिर तुम क्या चाहती हो...।' चीख पड़ा महेंद्रनाथ। अनम ने भी चकित नजरों से महेंद्रनाथ को देखा।

'ज्यादा कुछ नहीं पापा..कल से ऑफिस मैं जाऊँगी और रही बात अनम की...इन्हें पाँच हज़ार रूपये जेब खर्च के लिए प्रति महीना मिलता रहेगा...।' शायद महेंद्रनाथ को भी मोहनी से ऐसी आशा नहीं थी। मोहनी की बात सुनकर हैरान और परेशान हो गया महेंद्रनाथ।

'मोहनी, तुम गलत कर रही है...।' दर्दीले शब्दों में कहा महेंद्रनाथ ने और लाचार आँखों से अनम की ओर देखा।

'गलत या सही का फैसला वक्त करेगा पापा...और फिर मैं अच्छी तरह जानती हूँ... कि बिजनेस कैसे करना है..।' मोहनी के शब्दों में अहंकार की बू आने लगी।

'इतना घमंड अच्छा नहीं होता बेटी...।'

'पापा.. आप इसे घमंड कह सकते हैं...।'

'मेरे लिए क्या आदेश होगा...मोहनी...।' शांत शब्दों में अनम ने मोहनी की ओर देखकर पूछा।

'हवेली में ही रहना है..।' कहने के साथ ही मोहनी अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।

'बेटे अनम ...मेरी बेटी ... अभी नादान है..इसे माफ़ करना... क्योंकि यह नहीं जानती.. कि इसने क्या कहा...।' कहते-कहते महेंद्रनाथ की पलकें भीग गयीं।

*****

कमरे में प्रवेश करते ही देखा, कि मैनेजर और मोहनी एक-दूसरे की बाँहों में बाँहें डालकर खड़े हैं। यह देखते ही अनम की आँखें आश्चर्य के कारण पलक झपकाना भी भूल गयीं।

तभी मोहनी की नजर अनम पर पड़ी। स्वयं को अलग करती हुई मोहनी धीमी चाल से अनम के ठीक सामने आ गयी।

'क्या तुम यह भी भूल गये..कि किसी के कमरे में जाने से पहले दरवाजा खटखटाया जाता है....।'

'मोहनी.. यह किसी और का कमरा नहीं है...मेरा अपना कमरा है...जिसमें मैं और मेरी पत्नी रहते हैं...।' जोश में आकर कह गया अनम और मोहनी के चेहरे की ओर देखा कि शायद चेहरे पर शर्मोहया का कोई भाव हो। लेकिन मोहनी के चेहरे पर शर्मोहया का रंचमात्र भी भाव नहीं आया।

'तुम्हारा कमरा...।' चेहरे पर हल्की मुस्कराहट आई, लेकिन अगले ही पल चेहरे पर क्रोध की लालिमा उभर आई, 'जानते हो क्या औकात है... इस हवेली में तुम्हारी...।'

पत्नी और पति के बीच बढ़ती कलह को देखकर मैनेजर चुपचाप कमरे से निकल गया।

'इस हवेली के नौकर हो तुम...।' पुनः कहना शुरू किया मोहनी ने। यह सुनकर अवाक् रह गया अनम।

'मोहनी...मोहनी..हो सकता है..कि तुम ठीक कह रही हो..लेकिन फिलहाल मैं तुम्हारा पति हूँ...।'

'हाँ... वास्तव में तुम मेरे पति हो.. यह बात मुझे अच्छी तरह से याद है..लेकिन शायद तुम ही भूल गये थे कि... तुम मेरे पति हो..लेकिन क्या तुम बता सकते हो कि पति का क्या कर्तव्य है....?'

'मोहनी, शायद तुम हद से आगे बढ़ रही हो...।' झल्लाया अनम।

'नहीं..अपितु.. तुम्हें... तुम्हारी हद बता रही हूँ...।' अचानक मोहनी की आवाज धीमी हो गयी, "मेरे प्यारे..पतिदेव..कृपया पति के कर्तव्य बताने का कष्ट करें...।"

'...।'  चुप रहा अनम।


******


किताब लिंक: अमेज़न

लेखक परिचय:

लेखक परिचय: सुरेश चौधरी
लेखक सुरेश चौधरी कैराना शामली के रहने वाले हैं। वह 2005 से लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 

अब तक उनके चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। दंगा और रेत का घर उनके आने वाले उपन्यास हैं।

विस्तृत परिचय: सुरेश चौधरी

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8 Comments
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  1. Replies
    1. आभार मैम....परन्तु यह समीक्षा नहीं है। केवल पुस्तक और लेखनी से परिचय करवाने की कोशिश मात्र है।

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  2. बहुत ही खूबसूरत कवर है।

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