नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

लेखक जितेन्द्र नाथ के साथ उनके नवप्रकाशित उपन्यास राख पर एक छोटी सी बातचीत

लेखक जितेन्द्र नाथ के साथ उनके नवप्रकाशित उपन्यास राख पर एक छोटी सी बातचीत

लेखक जितेन्द्र नाथ मूलतः जींद हरियाणा के हैं। अब तक उनके दो काव्य संग्रह और दो साझा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके द्वारा किया गया जेम्स हेडली चेज के उपन्यास 'द सकर पंच' का हिन्दी अनुवाद पैसा ये पैसा सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ है।

हाल ही में उनका प्रथम उपन्यास राख सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। राख के प्रकाशित होने के उपलक्ष्य पर एक बुक जर्नल ने उनसे यह बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल

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लेखक जितेन्द्र नाथ के साथ उनके नवप्रकाशित उपन्यास राख पर एक छोटी सी बातचीत

प्रश्न: नमस्कार जितेन्द्र जी, सवर्प्रथम तो अपने नवप्रकाशित उपन्यास राख के प्रकाशित होने की बधाई स्वीकार करें। उम्मीद है हिन्दी अपराध साहित्य के पाठकों को यह पसंद आएगा। 

जितेन्द्र जी राख आपका पहला उपन्यास है। हालाँकि इससे पहले आपके द्वारा किया गया अनुवाद और आपकी रची कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। पाठकों को बताएं कि इस उपन्यास का विचार कैसे आया? 

उत्तर: नमस्कार विकास जी, आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

मेरी पहली प्रकाशित पुस्तक एक काव्य संग्रह थी जिसका नाम था 'मौन किनारे'। उसके बाद सूरज पॉकेट बुक्स से जेम्स हेडले चेज के उपन्यास का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ था जिसका नाम था 'पैसा ये पैसा'। 'राख' मेरी तीसरी प्रकाशित पुस्तक है और मेरा प्रथम स्वरचित उपन्यास है जो सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास का विचार कई सालों से मेरे दिमाग में घूम रहा था। कारण यह है कि अंग्रेजी उपन्यासों में आपको ऐसे बहुत से उपन्यास मिल जाएंगे जिसमें इन्वेस्टिगेशन कोई पुलिस अधिकारी करता है जैसे उदाहरण के तौर पर जो नेस्बो, कॉलिन डेक्सटर, रुथ रेन्डेल, इयान रैनकिन या मार्क बिलिंगम लेकिन भारतीय उपन्यासों में आमतौर पर कोई जासूस या पत्रकार ही यह कार्य करता है। मेरे मन में यह विचार बार-बार आता था कि क्यों नहीं किसी इंस्पेक्टर को मुख्य पात्र बनाकर उपन्यास लिखा जाए जो राख के रणवीर कालीरमण के रूप में साकार हुआ है।

प्रश्न: किताब का शीर्षक रूचि जगाता है। यह शीर्षक कैसे आया? क्या पहले से ही यह शीर्षक था या बाद में बदला गया?

उत्तर: विकास जी, यह उपन्यास प्रारंभिक तौर पर मैंने प्रतिलिपि पर लिखना शुरू किया था तो इसका शीर्षक प्रेमनगर था लेकिन बीच में शुभानंद जी ने 'पैसा यह पैसा' का प्रोजेक्ट मुझे सौंपा और मैं उसमें व्यस्त हो गया। उस प्रोजेक्ट को पूरा होने के बाद यह कहानी दोबारा मेरे दिमाग पर हावी होने लगी और ऐसा लगा कि जैसे कहानी के पात्र आकर शिकायत करने लग गए कि उनकी कहानी को बीच में छोड़ना अच्छी बात नहीं। 'पैसा ये पैसा' के बाद मनोबल थोड़ा बढ़ गया था और इस कहानी को पूरा किये बिना मैं आगे भी नहीं बढ़ पा रहा था। इसलिए यह कहानी पूरी की जो एक उपन्यास में कब बदल गई, पता ही नहीं चला।

शुरुआत से ही इस कथा का शीर्षक मैंने 'राख के सुराग' रखा था फिर बाद में Ash Trail भी रखने का सोचा था लेकिन अंत में सिर्फ 'राख' ही इसका शीर्षक निर्धारित किया। राख शुरू से ही दिमाग में आता था। यह शीर्षक रखने का कारण यह भी है कि यह इस कहानी में राख एक सिंबॉलिक या प्रतीकात्मक बिंदु है। जब पाठक इसे पढ़ेंगे तो राख शीर्षक उन्हें उपयुक्त जान पड़ेगा।

प्रश्न: राख का कथानक प्रेमनगर नाम के शहर में घटित होता है। क्या यह शहर असल है या आपकी कल्पना की उपज है? अगर यह शहर आपकी कल्पना से जन्मा है तो आपने इसे बनाते समय किन किन बातों का ध्यान रखा है? क्या प्रेमनगर को और अधिक उपन्यासों की पृष्ठभूमि बनाने का विचार है?

उत्तर: शुरुआत में प्रेम नगर की काल्पनिक शहर के तौर पर एक कल्पना की थी लेकिन दिल्ली आते हुए मैंने कई जगह है प्रेम नगर कॉलोनी के बोर्ड देखें तो इसे हम अब हकीकत ही कह सकते हैं। शुरुआत में यह मेरी कल्पना में ही था जिसको मैंने एक छोटे से कस्बाई शहर के रूप में सोचा था।

वैसे तो राख के मुख्य पात्र अब अब प्रेमनगर से आगे बढ़ चुके है लेकिन यदि पाठक इसे पसंद करेंगे तो हो सकता है किसी कहानी में फिर दोबारा प्रेम नगर की वापसी हो।



प्रश्न: राख में तहकीकात एक पुलिस इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण कर रहा है। पुलिस वालों के किसी भी तहकीकात को करने के अपने नियम और तरीके होते हैं। क्या आपने इसके लिए कोई रिसर्च की थी? अगर हाँ तो वह क्या थी? 

उत्तर: रणवीर कालीरमण को मुख्य पात्र बनाने के बाद मुझे इस चीज का एहसास हुआ कि मेरे हाथ बंध गए थे क्योंकि नियम और कानून को मैं अपने ढंग से मोड नहीं सकता था। कई बार कहानी ऐसे पॉइंट पर आकर अटक गई जहाँ उसको सोचने के लिए और आगे का सूत्र जोड़ने के लिए 15 -20 दिन लग गए और उन सूत्रों के लिए मुझे सभी नियम कानूनों के बारे में जानकारी लेनी पड़ी जो इंटरनेट के माध्यम से और पुस्तकों के माध्यम से मैंने हासिल करने की कोशिश की। मैं अब कहाँ तक सफल हुआ यह तो अब पाठक ही बेहतर ढंग से बता सकते हैं। 

प्रश्न: पुलिस के काम करने के तरीके के आलावा विषय के आलावा आपने उपन्यास के लिए और क्या क्या शोध किये थे?

उत्तर: यह कथानक लिखते वक्त मुझे पुलिस की कार्यप्रणाली के साथ-साथ फॉरेंसिक साइंस का भी ध्यान रखना था और ऑटोप्सी का भी। उस बात को देखते हुए भी काफी कुछ ध्यान में रखना पड़ा और उनके लिए भी रिसर्च करनी पड़ी । मेरा जीवविज्ञान का प्राध्यापक होना भी एक प्लस पॉइंट साबित हुआ है।

प्रश्न: आप अपने किरदारों की रचना किस प्रकार करते हैं? क्या वह पूर्णतः काल्पनिक होते हैं या उसमें आपकी या आपके जानने वालों की झलक होती है? इस उपन्यास के किस किरदार में आपकी झलक हैं और क्या कोई ऐसा किरदार है जो किसी और व्यक्ति पर आधारित हो?

उत्तर: राख मेरा पहला उपन्यास है और इसमें और आगे के उपन्यासों में मेरे किरदार यथार्थ के धरातल पर खड़े हुए ही मिलेंगे । सिर्फ कल्पना के आधार पर किसी पात्र की रचना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिखे हुए किरदार हमारे आसपास के लोगों में से या हमारे समाज से निकले हुए लोग होंगे। मेरे पिता एक पुलिस अधिकारी रहे हैं और उनकी दिनचर्या और उनके माध्यम से पुलिस को मैंने बहुत नजदीक से देखा है। एक पुलिस अधिकारी बनना मेरा सपना था पर ऐसा नहीं हो सका। रणवीर कालीरमण का किरदार एक तरह से मेरी अपने पिता को एक श्रद्धांजलि है और उनके बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि वह मेरा व्यक्तिगत क्षेत्र है। बाकी के किरदार कहानी की मांग के हिसाब से अपने आप ही सामने आकर खड़े हुए हैं चाहे वह पत्रकार के रूप में वरुण हो या वरयाम सिंह, या शमशेर सिंह गेरा। ये सब अपने आप ही साकार होते चले गए जिनमें वह सभी गुण हैं जो हम अपने आसपास के सामाजिक जीवन में देखते हैं।

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प्रश्न: उपन्यास के मुख्य किरदारों के आलावा ऐसा कौन सा किरदार है जो लिखते हुए आपको काफी मजा आया। और ऐसा कौन सा किरदार है जो आप अपने आगे के उपन्यासों में वापिस लाना चाहेंगे।

उत्तर: इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण तो अगले किसी उपन्यास में आ ही सकते हैं और जब वो आएंगे तो उनके साथ उनके जीवनसंगिनी सौम्या भी होगी । सभी करदार लिखने में मुझे काफी मजा आया खास तौर पर वरयाम सिंह का। आगे क्या होगा यह पता नहीं पर इंस्पेक्टर रणवीर और इस उपन्यास का सरप्राइज किरदार आगे जरूर मिलेंगे और साथ में एस पी प्रभात जोशी भी।

प्रश्न: राख के बाद आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन से हैं? और वह किस विधा के होंगे? क्या आप पाठकों इस विषय में कुछ बताना चाहेंगे?

उत्तर: मैं राख के बाद एक प्रोजेक्ट पूरा कर चुका हूँ जिसकी घोषणा यथासंभव प्रकाशक महोदय ही कर पाएंगे । फिलहाल एक उपन्यास लिख रहा हूँ जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य के हालात पर आधारित होगा या आप यूँ कह सकते हैं कि मर्डर मिस्ट्री से अलग हटकर एक सस्पेंस थ्रिलर होगा । कुछ  कॉन्सेप्ट्स इतिहास से संबंधित दिमाग में हैं जिनकी रिसर्च मैं पिछले डेढ़ साल से कर रहा हूँ और उनसे संबंधित साहित्य अब मेरे पास है । उम्मीद है इस साल के अंत तक उस प्रोजेक्ट को भी पूरा करने में कामयाब हो जाऊँगा।

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तो यह थी उपन्यास राख के लेखक जितेन्द्रनाथ के साथ एक बुक जर्नल की एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

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किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल


© विकास नैनवाल 'अंजान'

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10 Comments
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  1. बहुत सुन्दर 👌👌 जितेंद्र भाई को हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹

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  2. विक्रम ई. दीवानMay 16, 2021 at 12:03 AM

    बहुत अच्छी बातचीत। जितेंद जी के रूप में एक नया सितारा उभर रहा हैं।

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    1. बातचीत आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा विक्रम जी। आभार।

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  3. बढ़िया साक्षात्कार विकास जी.उपन्यास के बारे जानकारी से कथानक रोचक लगा .

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    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा, मैम। उपन्यास पढ़कर देखिएगा।

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  4. जितेन्द्र नाथ जी का उपन्यास 'राख' अभी पढ रहा हूँ।

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    1. वाह!टिप्पणी का इंतजार रहेगा।

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