यह आवश्यक नहीं कि एक लेखक के साथ-साथ उसके सभी पाठक उसकी बदलती मानसिकता के सब पड़ावों से गुज़रते रहें। हर पड़ाव पर किन्हीं पाठकों के साथ एक लेखक का सम्बन्ध टूट जाता है, और वहीं से एक नए वर्ग के साथ उसके सम्बन्ध की शुरुआत हो जाती है। ऐसा न होना एक लेखक की जड़ता का प्रमाण होगा। जीवन-भर एक ही मानसिक भूमि पर रहकर रचना करते जाना केवल शब्दों का व्यवसाय है, और कुछ नहीं।
- मोहन राकेश, 'मेरी प्रिय कहानियाँ 'की भूमिका से
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हिंदी के अमर नाटककार मोहन राकेश जी का यह कथन अक्षरशः सत्य है । इसीलिए सुरेन्द्र मोहन पाठक स्वयं को लेखन का व्यवसायी कहते हैं ।
ReplyDeleteजी लेकिन मुझे लगता है सुरेन्द्र मोहन पाठक ने खुद पर निरंतर बदलाव किया है। अगर वो ऐसे न करते तो अब तक अपने समाकालीन लेखकों के समान भुला दिए जाते। वहीं उनके लेखन के साथ नये वर्ग के लोग आज भी जुड़ते हैं। उदाहरण के लिए मैंने पाठक जी को 2015 के बाद पढ़ना शुरू किया। उससे पहले नहीं पढ़ता था। हाँ, मुझे लगता है उन्हें अब अपराध साहित्य से इतर भी कुछ लिखना चाहिए।
Deleteउनका यह लेख मुझे रोचक लगा था जो कि यह दर्शाता है कि वह व्यंग्य भी अच्छे लिख सकते हैं।
सरकारी नौकरी उर्फ़ एटर्नल रेस्ट: सुरेन्द्र मोहन पाठक
*2015 नहीं 2013 से पढ़ना शुरू किया था.....
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