नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कुसुमकुमारी - देवकीनन्दन खत्री

 संस्करण विवरण:
फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 144 | प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन 
किताब लिंक: पेपरबैक हार्डकवर

पुस्तक समीक्षा: कुसुम कुमारी - देवकीनन्दन खत्री


पहला वाक्य:
ठीक दोपहर का वक्त और गर्मी का दिन है। 

कहानी 

रनबीर सिंह ने जब बाग़ में वह दो मूर्तियाँ देखी तो उनके होश उड़ गये। रनबीर सिंह बिहार के राजकुमार थे जो कि अपने मित्र जसवंतसिंह के साथ शिकार पर आये थे और रास्ता भटकते भटकते मदद की तलाश में इस बाग़ तक पहुँचे थे। 

बाग़ की उन दो मूर्तियों में से एक मूर्ति उनकी खुद की थी और एक किसी अद्वितीय सुंदरी की थी। मूर्तियाँ इतनी सजीव लगती थी कि रनबीर सिंह उस सुंदरी की मूर्ति देखकर ही अपनी सुध बुध खो बैठे। जसवंत सिंह के पास अब उन्हें छोड़कर जाने के सिवा कोई चारा नहीं था तो वह मदद की तलाश में उन्हें बाग़ में छोड़कर निकल गये। 

लौटने पर जसवंत ने पाया कि रनबीर बाग़ में नहीं है। कोई था जिसने रनबीर को अगुआ कर लिया था। 

आखिर बाग़ में किस युवती की मूर्ती थी जिसे देख रनबीर ने अपनी सुध बुध खो दी थी?

रनबीर सिंह को किसने अगुआ किया था और उसका मकसद क्या था? 

जसवंतसिंह आगे क्या करने का इरादा रखता था?

मुख्य किरदार:

रनबीर सिंह - एक राजकुमार 
जसवंत सिंह- रनबीर सिंह का दोस्त 
चैतसिंह - एक सरदार 
हरिसिंह - चैतसिंह का सिपाही
कुसुमकुमारी - तेजगढ़ की महारानी जो कि रनबीर सिंह से प्रेम करती थी 
बोलेसिंह - एक क्षत्रीय जिसकी कुसम कुमारी से दुश्मनी थी 
सुमेर सिंह - कुसुमकुमारी का दीवान 
कालिंदी - सुमेर सिंह की पुत्री 
मालती - कुसुमकुमारी और कालिंदी की सखी 
बीरसेन - कुसुमकुमारी का सेनापति 
इंद्रनाथ - रनबीर सिंह के पिता
कुबेरसिंह - कुसुमकुमारी के पिता 
नारायणदत्त - बिहार के राजा

मेरे विचार:

कुसुमकुमारी बाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखा गया उपन्यास है। बाबू देवकीनन्दन खत्री हिन्दी के पहले रोमांचकथा लेखकों में से रहे हैं। अगर हिन्दी साहित्य में आपकी रूचि है तो शायद ही आपने उनके विषय में न सुना होगा। चन्द्रकांता और चन्द्रकांता सन्तति उनके सबसे प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक हैं। उनके उपन्यासों में अक्सर राज घरानों और वहाँ होते षड्यंत्रों को दर्शाया जाता था। इनकी पृष्ठ भूमि अक्सर  मध्ययुगीन भारत की होती है। विभिन्न राजघरानों के अलग अलग लोगों के आपसी षड्यंत्र ,रूप बदलने वाले अय्यार, गुप्त रास्ते,  खजाने और जोशीले राज कुमार जो कि किसी भी तिलिस्म से लड़ने की कूव्वत रखते थे इन उपन्यासों में मौजूद रहा करते थे। 

प्रुस्तुत उपन्यास कुसुमकुमारी भी ऐसा ही एक उपन्यास है। उपन्यास के केंद्र में तेजगढ़ की राजकुमारी कुसुमकुमारी है जो कि अपनी खूबसूरती के लिए आस पास के राज्यों में विख्यात है। कई लोगों ने उससे शादी की कोशिश की लेकिन वह अपना प्रेमी पहले ही किसी ओर को मान चुकी है। वहीं तेजगढ़ के पड़ोस के गाँव  में बालेसिंह नाम का व्यक्ति राज करता है जो कि कुसुमकुमारी पर दिल रखता है और उससे शादी करना चाहता है। वह कुसुमकुमारी के प्रेमी के विषय में जानता है और राजकुमारी को पाने के लिए हर हथकंडे अपनाता है। यह हथकंडे क्या हैं और इसका कुसुमकुमारी के जीवन पर क्या असर पड़ता है और वह कैसे इन मामलों से उभरती है यही उपन्यास का कथानक बनता है।

लेखक शुरुआत से ही पाठकों की रूचि उपन्यास में बनाने में कामयाब हो जाते हैं। कथानक ऐसे प्रश्न पाठकों के समक्ष खड़ा कर देता है जिसके उत्तर पाने के लिए वह उपन्यास आगे पढ़ते चले जाते हैं। एक प्रश्न का उत्तर मिलते ही पाठक के समक्ष नये रहस्य पैदा हों इस बात की पूरी व्यवस्था लेखक करके चलते हैं। जैसे जैसे कहानी आगे बढती है कुसुमकुमारी और उसके प्रेमी के जीवन के कई राज और उनसे जुड़े कई सवाल पाठक के समाने खड़े होते जाते हैं। वही कुसुमकुमारी और उसका प्रेमी जितना मिलने की कोशिश करते हैं उतना ही परिस्थितवश वह दूर होते चले जाते हैं। आखिरकार यह कैसे मिलते हैं और इनके जीवन से जुड़े कई सवालों के क्या जवाब रहते हैं यह उपन्यास के अंत में पता चल जाता है। 

उपन्यास शुरुआत से लेकर अंत तक रूचि बनाये रखने में कामयाब होता है। उपन्यास में रहस्य और रोमांच दोनों ही प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। उपन्यास की भाषा की बात करूँ तो इसकी भाषा आज के पाठकों को थोड़ी अटपटी लग सकती है लेकिन फिर भी यह इतनी जटिल नहीं है कि पाठक इसे पढ़ न पाए।

उपन्यास की एक और बात ऐसी है जो पढ़ते हुए मुझे काफी अटपटी लगी थी लेकिन अब उसके प्रति ज्यादा जानकारी पाने की इच्छा है। यह बात मुझे चन्द्रकान्ता पढ़ते वक्त भी लगी थी। मैंने काफी पहले चन्द्रकान्ता उपन्यास पढ़ा था। उसकी अब उतनी याद तो नहीं लेकिन वहाँ नायक कई बार दुःख के अतिरेक के  या आश्चर्य के कारण बेहोश हो जाता था। उस वक्त वह चीजें पढ़कर मुझे बहुत हँसी आई थी और बाद में उपन्यास के एक प्रमुख बिंदु के रूप में मुझे याद रह गया था। इस उपन्यास में भी किरदारों में यह प्रवृत्ति प्रचुर मात्रा में दर्शाई गयी है। रनबीर सिंह और जसवंत सिंह कई बार रोते हैं और दुःख या आश्चर्य से बेहोश भी हो जाते हैं।  उनका दुःख अधिक है यह इस बात से दर्शाया गया है कि रोते रोते उनकी हिचकी बंधी है या नहीं। 

मैं जब उपन्यास पढ़ रहा था तो ये सब पढ़ते हुए हँसी जरूर आती थी लेकिन अब सोचता हूँ कि लेखक ने ऐसे चरित्र क्यों लिखे होंगे? क्या उस वक्त यह आम बात थी? या ऐसे चरित्रों को दर्शाकर वह कोई विशेष बात कहना चाहते थे। अगर आपको इस विषय में कुछ पता हो तो बताइयेगा। 

उपन्यास के सभी किरदार कहानी के अनुरूप हैं। कुसुमकुमारी राजकुमारी है। वह खूबसूरत होने के साथ साथ एक आला दिमाग शख्सियत है। वह युद्धकला तो नहीं करती है लेकिन अपनी समझ बूझ से वह चीजें सम्भालना जानती हैं। रनबीर उपन्यास का नायक है जो कि एक अट्ठारह उन्नीस वर्ष का लड़का है। वह बहादुर है और ताकतवर है। एक आम नायक की ही तरह है। खलनायाक के रूप में बालेसिंह उभर कर आता है।  डाकुओं के  सरदार का किरदार भी मुझे रोचक लगा था। हाँ, उपन्यास में उसे इतनी जगह नहीं मिली लेकिन उसका जीवन एक अलग उपन्यास बन सकता है। उपन्यास में कालिंदी का किरदार भी मुझे रोचक लगा। वह भी एक खलनायक के रूप में उभर कर आती है। हाँ उसका अंत जितना खराब दिखाया है उतना तो मुख्य खलनायक का भी नहीं दर्शाया गया है।

उपन्यास में जसवंत सिंह भी एक महत्वपूर्ण किरदार है। मुझे लगता है उसे ढंग से लिखा नहीं गया है। जब रनबीर का अपहरण हो जाता है तो उसकी प्रतिक्रिया जिस तरह की होती है उससे उसका आगे के किरदार मेल नहीं खाता है। ऐसा कह सकते हैं कि कुसुमकुमारी के वजह से ऐसा हुआ होगा लेकिन फिर आगे जाकर हमें यह भी बताया जाता है कि रनबीर से उसकी दोस्ती शुरुआत से ही मात्र स्वार्थसिद्धि के लिए थी। यह बात उसके पहले वाले प्रतिक्रिया से मेल नहीं खाती है। मुझे यह थोड़ा अटपटा लगा।

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो मुझे ज्यादा कुछ कमी नहीं लगी। जसवंत का किरदार का रवैया ही थोड़ा अटपटा लगा था जिसके विषय में मैं ऊपर बता ही चुका हूँ। हाँ, उपन्यास के संस्करण के विषय में एक बात है जो कि मैं इधर जरूर कहना चाहूँगा। मेरे पास इस उपन्यास का पेपरबैक संस्करण (ISBN: 9788126700622) मौजूद है जिसके पृष्ठों की गुणवत्ता तो अच्छी है लेकिन फॉन्ट काफी छोटा आकार का इस्तेमाल किया है। इसलिए कई पाठकों, विशेषकर वयोवृद्ध या ऐसे पाठक जिनकी नजर कमजोर है, को इस संस्करण को पढ़ने में परेशानी हो सकती है। 

अंत में यही कहूँगा कि कुसुमकुमारी एक पठनीय और रोचक रोमांचकथा है। इसमें रहस्य है, षड्यंत्र है, युद्ध है और प्रेम है। यानी हर वह खूबी है जो कि एक अच्छे कथानक में होती है। कई बार किरदार अत्यधिक भावुक जरूर लग सकते हैं लेकिन फिर शायद उस वक्त यही चलन रहा होगा। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार इसे पढ़ा जा सकता है।

अगर आपने इसे पढ़ा है तो जरूर बताइयेगा कि आपको यह कैसी लगी?

किताब लिंक: पेपरबैक हार्डकवर

© विकास नैनवाल 'अंजान'

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2 Comments
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  1. बहुत सुन्दर समीक्षा प्रस्तुति।
    रंग भरी होली की शुभकामनाएँ।

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    1. आभार सर। होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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