जिसने मसिहाई का दम भरा उसी की दुर्गत हुई। इस दौर में कोई आराम से रहा है तो सिर्फ चमचे आराम से रहे। रकाबियाँ बदल गईं, फूट गईं, टुकड़े-टुकड़े हो गईं मगर चमचा शायद हमेशा सलामत रहा। वह एक रकाबी से कूदा और दूसरी में चला गया और वहाँ चमचागिरी करने लगा।
- शरद जोशी, चमचागिरी का यह मुबारक दौर: राग भोपाली में संकलित
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व्यंग्यकार शरद जोशी जी ने लाख रुपये की बात कही है विकास जी । नोट करके रखने लायक है । साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteजी आभार....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-02-2021) को "विश्व प्रणय सप्ताह" (चर्चा अंक- 3970) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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"विश्व प्रणय सप्ताह" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिये हार्दिक आभार, सर....
Deleteबेहतरीन अंश चुना ....
ReplyDeleteसदा समसामयिक !!!
बढिया 👌👌👌👌
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