नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

आज का उद्धरण

आसमानी  चादर | भूमिका द्विवेदी | हिन्दी कोट्स

वो सब कुछ जो हम चाहते हैं, अपनी किस्मत से, अपनी नियति से, प्रभु की असीम सत्ता से, वो मिल जाए तो फिर रोना ही किसी बात का रहेगा..कोई दुश्वारी भी ना रहेगी, कोई प्यास ना बचेगी, कोई दुआ, कोई फरियाद ना रहेगी, कोई खलिश, कोई कैसी भी तलाश नहीं रहेगी, कुछ भी कड़वा ना लगेगा, कोई गमख्वारी ना रहेगी। कोई उदासी ना रहेगी... ज़िंदगियाँ आसान हो जाएँगी। बेहद आसान.. लेकिन ये सारे अरमान 'ख-पुष्प' जैसे हैं...

धरती के सितारों जैसे कभी ना पूरे होने वाले खयालों की दुनिया जैसे हैं, शायद एक मजा भी है, इस कड़वाहट से भरी ज़िन्दगी तो कभी-कभी 'सुला' वाइन जैसी मजा दे जाती है। पहले-पहले कड़वा सा घूँट, धीरे-धीरे वही कड़वाहट खुमारी बन कर आनन्द देने लगती है। कमाल है ये ज़िन्दगी का बेस्वाद नशा भी। इस बेस्वाद में भी एक स्वादिष्ट जायका मिलने लगता है।

- भूमिका द्विवेदी, आसमानी चादर

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4 Comments
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  1. बात बड़ी गहरी है लेकिन समझकर दिल में उतारने के काबिल है । साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार विकास जी ।

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