नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

विमल श्रृंखला के कुछ रोचक किरदार - 1

विमल अपराध लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक के सबसे मकबूल किरदारों में से एक है। विमल को लेकर लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक ने 44 उपन्यास लिखे हैं।  विमल की प्रसिद्ध का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि पाठक विमल को न भूतो न भविष्यति कहते हैं। अर्थात विमल जैसा न पहले हुआ है और न आगे कभी होगा। 

शरद कुमार दुबे महाराष्ट्र के रहने वाले हैं और सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रशंसक हैं। उनकी रचनाओं पर यदा कदा लेख लिखते रहते हैं। इस बार शरद विमल श्रृंखला के ऊपर नये अंदाज में लिख रहे हैं।

उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आएगा।

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शरद कुमार दुबे जी
शरद कुमार दुबे
सुरेन्द्र मोहन पाठक सर, अपने उपन्यासों में बहुत से ऐंसे चरित्रों का बखूबी इस्तेमाल करते हैं, जिनका मुख्य कथा से कुछ खास लेना देना नहीं होता लेकिन वो आपको भरपूर मनोरंजन प्रदान करते हैं, आपको हल्के हल्के गुदगुदाते हैं और सदा याद रह जाते हैं। 

ऐसे पात्रों का मेला एक आध अथवा कुछ दृश्यों तक ही सीमित होता है और बाद के उपन्यासों में कभी जिक्र तक नहीं होता या कभी होता भी है तो एक आध फिकरे का।  ये पात्र कभी आपको भावनात्मक रूप से झिंझोड़ते हैं, कभी खूब हँसाते हैं, कभी मुख्य किरदार के चरित्र को ऊँचा उठाते हैं तो कभी कुछ और.......


विमल सीरीज के उपन्यास तो भरे पड़े हैं ऐंसे पात्रों से। जब कभी आप विमल की कहानी याद करते हैं तो कहीं न कहीं ऐंसे चरित्र भी आपको याद आ जाते हैं।

उपरोक्त के संदर्भ में ही प्रस्तुत है विमल सीरीज के 11वें उपन्यास हारजीत का कभी न भुलाया जा सकने वाला एक पात्र : मिसेज साराभाई

( विमल सीरीज पर कुछ लिखने के लिए इस बार मैंने एक अलग ही विषय को चुना है और उम्मीद की है कि, आप, पाठक सर के शैदाई पाठकों की पसंद पर खरा उतरेगा, पसंद आएगा : शरद कुमार दुबे ( गोंदिया, महाराष्ट्र )

सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित विमल श्रृंखला के कुछ रोचक किरदार

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दृश्य : 01

चादर से ढकी लाश को विमल ने सिर की तरफ से और नीलम ने पैरों की तरफ से संभाला। दोनों लाश को उठाए बेडरूम से बाहर निकले। वे अभी ड्राइंगरूम के मध्य में ही थे कि, एकाएक बड़े कर्कश भाव से कॉलबेल बज उठी।

कॉलबेल ऐंसे अप्रत्याशित ढंग से बजी थी और फ्लैट के स्तब्ध वातावरण में वह इस कदर गूँजी थी कि लाश दोनों के ही हाथों से छूटते-छूटते बची। दोनों की निगाहें पहले अपने आप ही फ्लैट के बंद दरवाजे की तरफ उठ गईं और फिर एक दूसरे से मिलीं।

विमल ने वापस बेडरूम की तरफ इशारा किया।

दोनों तेजी से बेडरूम में पहुँचे। उन्होंने लाश फिर पलंग पर डाल दी।

तभी कॉलबेल फिर बजी।

" कौन होगा ? " ---नीलम फुसफुसाई।

विमल ने अनभिज्ञता से कंधे झटकाए और नीलम जैसे ही स्वर में फुसफुसाया--- " जाकर देखो कौन है। अगर कोई अड़ोसी-पड़ोसी हो तो उसे चलता कर देना, लेकिन अगर आने वाला डोगरा से ताल्लुक रखता कोई आदमी लगे तो उसे भीतर बुला लेना। "

नीलम ने सहमति से सिर हिलाया और बैडरूम से निकलकर तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ गई।

विमल ने बेडरूम का दरवाजा आधा बंद कर दिया और उसकी ओट में हो गया। अपनी रिवॉल्वर निकालकर उसने हाथ में ले ली। वह बंद दरवाजे की ओट से बाहर झाँकने लगा।

नीलम ने फ्लैट का मुख्यद्वार खोला।

" मिसेज सिंह कहाँ हैं ? " ---बाहर से तनिक सकपकाई हुई जनानी आवाज आई।

" मिसेज सिंह ? " ---नीलम सकपकाई।

" सुरजीत कौर जी। "

" ओह! " ---नीलम संभली और सुसंयत स्वर में बोली--- " वे कहीं गई हैं। "

" कब तक लौटेंगी ? "

" कोई पक्का नहीं। आप सेवा बताइए ? "

" आप कौन हैं ? "

" मैं सुरजीत की बहन हूँ। पंजाब से आई हूँ। "

" ओह! आज ही आई होंगी। "

" नहीं, कल रात आई थी। "

" बम्बई पहली बार आई हो ? "

" हाँ। "

विमल जहाँ खड़ा था, वहाँ से उसे नीलम तो दिखाई दे रही थी, वह आगंतुक महिला दिखाई नहीं दे रही थी, जिससे कि वह बातें कर रही थी। नीलम यूँ दरवाजे पर अड़ी खड़ी थी कि वह महिला फ्लैट के भीतर कदम न रख सके और महिला के बातें करने के अंदाज से ऐंसा लग रहा था, जैसे बातों का उसे चस्का था और वह भीतर आकर इत्मीनान से गप्पें हाँकना चाहती थी।

" बड़ा लंबा सफर है पंजाब से यहाँ का। " ---महिला बड़े सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोली--- " तुम्हें अकेले आते डर नहीं लगा ? "

" मैं अकेले नहीं आई। " ---नीलम मन-ही-मन आगंतुक महिला की मौत की कामना करती हुई बोली--- " साथ में हमारे 'वो' भी हैं। "

" वो ? "

" जी हाँ। मेरे हसबैंड। "

" ओह! नई-नई शादी हुई मालूम होती है। "

" जी हाँ। "

" हनीमून के लिए बम्बई आए होंगे आप लोग। "

" जी हाँ। "

" शादी की बधाई हो। "

" शुक्रिया। "

" तुम मिसेज सिंह की छोटी बहन हो ? "

" जी हाँ। देखिए, मुझे जरा काम है। आप बताइए आप.......। "

" मेरा नाम मिसेज साराभाई है। मैं सामने वाले फ्लैट में रहती हूँ। "

" अच्छा! "

" मैंने जरा टेलीफोन करना था। "

" टेलीफोन तो खराब है। "

" ओह! फिर खराब हो गया ? "

" जी हाँ। "

" मैंने बहुत जरूरी टेलीफोन करना था। "

" आप कहीं और से कर लीजिए। "

" और कहाँ से करूँ ? मिसेज शिवाल्कर तो फोन करने नहीं देतीं। अच्छा-भला फोन होता है लेकिन झूठ बोल देतीं हैं कि, फोन खराब है। खुद फोन करना हो तो फोन जैसे जादू के जोर से ठीक हो जाता है। फ्लैट के भीतर से साफ-साफ डायल चलने की और हल्लो-हल्लो की आवाजें सुनाई दे रही होती हैं...। "

"अब दफा भी हो। " ---विमल दाँत पीसता हुआ मन-ही-मन बोला।

" हालांकि पैसे देते हैं। फोकट में फोन नहीं करते, लेकिन फिर भी कह देती हैं कि, फोन खराब है। एक और फोन सावंत साहब के फ्लैट में है, लेकिन उनके फ्लैट पर आज सवेरे से ही ताला झूल रहा है। "

" वे आसपास कहीं गए होंगे। " ---नीलम बोली--- " लौट आएँगे। "

" तुम जरा दोबारा देखो न, शायद फोन ठीक हो गया हो। "

" मैंने अभी देखा था, खराब है। "

" फिर देख लो। फोन तो बम्बई में ऐंसे ही चलते हैं। एकाएक चल पड़ते हैं, एकाएक डैड हो जाते हैं। "

" मैंने कहा न, फोन अभी खराब है। " ---नीलम बोली, उसके सब्र का प्याला बस अब छलकने ही वाला था।

" अच्छा-अच्छा। तुम कहती हो तो जरूर होगा। मिसेज सिंह कब तक आयेंगी ? "

" कहा न, कोई पक्का नहीं। "

" यूँ कभी टेलीफोन खराब होने पर आपकी बहनजी टेलीफोन ठीक होते ही मुझे खबर कर जाया करती हैं कि, मिसेज साराभाई टेलीफोन ठीक हो गया है, आओ आकर नंबर मिला लो। "

नीलम ने दाँत पीसे। महिला के मुँह पर फ्लैट का दरवाजा बंद कर लेने से उसने  अपने-आपको जबरन रोका।

" बड़ी अच्छी हैं आपकी बहनजी। " ---महिला अत्यंत संवेदनशील स्वर में बोली--- " कितने अफसोस की बात है कि, बेचारी भरी जवानी में विधवा हो गईं। फौज की नौकरी की यही तो मुश्किल है। जंग में तो ऐंसी ट्रैजेडियाँ हजारों की तादाद में होती हैं। लेकिन आपकी बहनजी के साथ तो यह ट्रेजेडी अमन में हुई। खामखाह प्लेन क्रैश कर गया आपके जीजाजी का....। "

" मुझे मालूम है। " ---नीलम बीच में बोल पड़ी--- " और टेलीफोन अभी भी खराब है और मुझे बहुत काम करने हैं। अभी मैंने अपने पति के लिए नाश्ता तक तैयार नहीं किया। "

" मैं कोई मदद करूँ ? मैं पाव-भाजी बहुत बढ़िया बनाती हूँ। "

" जी नहीं। शुक्रिया। "

" या मैं अपने यहाँ से बनाकर भेज देती हूँ। "

" जरूरत नहीं। आपकी जरूरी टेलीफोन कॉल को देर हो रही होगी। "

" हाँ, एक कॉल तो बहुत ही जरूरी थी। अच्छा, मैं चलती हूँ। "

" नमस्ते। "

" नमस्ते। वैसे टेलीफोन ठीक हो जाए तो मुझे सामने से बुला लेना। मेरा नाम मिसेज साराभाई है। मैं सामने वाले फ्लैट में रहती हूँ। मैं....। "

" जी हाँ। जी हाँ। टेलीफोन ठीक होते ही मैं आपको खबर कर दूँगी। "

" मेहरबानी। मैं चलती हूँ। मिसेज सिंह को बता देना कि, सामने वाले फ्लैट वाली मिसेज साराभाई आई थी। "

" मैं बता दूँगी। "

" तुम्हारे वो दिखाई नहीं दिए ? "

नीलम का जी चाहा कि, वह अपने बाल नोचने लगे या उसका सिर पकड़कर दीवार से टकरा दे।

शायद नीलम के मन के भाव उसके चेहरे पर प्रतिबिंबित हुए बिना रह नहीं सके थे, तभी तो इस बार मिसेज साराभाई ने हड़बड़ाकर " मैं जाती हूँ " कहा तो, सचमुच चली गई।

नीलम ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।

वह बेडरूम में वापस लौटी।

" कमीनी! " ---नीलम भुनभुनाई--- " दिमाग चाट गई। हर बात में से बात निकाल लेती थी। जी चाह रहा था कि, मुँह नोच लूँ कमबख्त का। "

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दृश्य : 02

फिर किसी तरह से उन्होंने लाश को रेफ्रिजरेटर में ठूँसा और उसको बाहर से ताला लगा दिया। चाबी विमल ने अपनी जेब में रख ली।

उसके बाद वे कितनी ही देर यूँ हाँफते हुए एक दूसरे के सामने बैठे रहे, जैसे पहाड़ चढ़कर आए हों।

तभी कॉल-बेल फिर बजी।

विमल फिर बेडरूम में दरवाजे की ओट में चला गया और नीलम ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

मिसेज साराभाई फिर आ गई थी।

" टेलीफोन अभी भी खराब है। " ---उसके कुछ कहने से पहले ही नीलम  बड़े खेदपूर्ण स्वर में बोल पड़ी।

" मैं अपना जरूरी वाला टेलीफोन तो पोस्ट ऑफिस से कर आई हूँ। बाकी टेलीफोन मैं जब यहाँ का फोन ठीक होगा, तब कर लूँगी। "

" हमारा टेलीफोन तो पता नहीं कब ठीक हो। "

" जल्दी ठीक हो जाएगा। " ---मिसेज साराभाई बड़े इत्मीनान से बोली।

" अच्छा! "

" हाँ। मैं डाकखाने वाले फोन से आपके टेलीफोन की कम्प्लेंट जो लिखवा आई हूँ। कम्प्लेंट के नंबर पर तो कॉल फ्री होती है। "

" यह तो बहुत अच्छा किया। " ---मन-ही-मन उस कम्बख्त औरत को हजार-हजार लानत भेजते हुए प्रत्यक्षतः नीलम बड़े कृतज्ञ भाव से बोली--- " जो आपने हमारी खातिर इतनी जहमत उठाई। "

" मैंने सोचा था कि, मिसेज सिंह घर पर नहीं हैं और पता नहीं कब घर लौटें, तुम लोग यहाँ नए आए हो, तुम्हें तो पता भी नहीं होगा कि, कहाँ कम्प्लेंट करनी है, कहाँ से कम्प्लेंट करनी है। "

" शुक्रिया। "

" तुम तो आते ही बहन के कामों में हाथ बटाने में जुट गईं। "

" जी! "

" रेफ्रिजरेटर की सफाई कर रही हो न। भीतर का सारा सामान बाहर टेबल पर जो पड़ा है। "

" ज....जी, जी हाँ। रेफ्रिजरेटर मुझे ऐंसा लगा, जैसे काफी अरसे से साफ नहीं किया गया था। सोचा मैं ही साफ कर दूँ। "

" फ्रीजर का भी जमी हुई बर्फ के कारण बुरा हाल होगा ? "

" जी हाँ। "

" लगता है आप लोगों के फ्रिज में ऑटोमेटिक डिफ्रॉस्टर नहीं है। "

" जी हाँ, नहीं है। "

" हमारे में तो है। हम तो सिर्फ एक बटन दबाते हैं और फ्रिज चलता भी रहता है और सारी जमी हुई बर्फ भी पिघल जाती है। पानी वैफल ट्रे में जमा हो जाता है, जिसे हम बाहर निकाल फेंकते हैं। आपकी तरह फ्रिज को खाली नहीं करते और न ही बंद करते हैं। "

" आपका फ्रिज तो फिर बहुत अच्छा हुआ। "

" हाँ, जी। इस मामले में तो अच्छा है। "

नीलम खामोश रही। वह उसके विदा होने की प्रतीक्षा करती रही।

" तुमने अपना नाम तो बताया नहीं ? " 

" मेरा नाम नीलम है। "

" तुम्हारी नई नई शादी हुई है न, इसलिए तुम्हारी तवज्जो पूरी तरह से घर-गृहस्थी की बातों की तरफ न रह पाना स्वाभाविक ही है। "

" जी! "

" मेरी भी जब नई नई शादी हुई थी "  ---वह बड़े बेहूदे ढंग से शरमाने का अभिनय करती हुई हँसी--- " तो मेरा ध्यान रात की बातों की तरफ ही लगा रहता था, इसलिए कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल जल जाती थी, तो कभी इस्त्री चालू ही रह जाती थी तो कभी कोई और बेवकूफी भरी गड़बड़ हो जाती थी। लगता है सारे हिंदुस्तान के हर कोने में नई ब्याही लड़की एक ही जैसी होती है। "

" मैं आपका मतलब नहीं समझी। "

" अब देखो न, वैसे तो तुम फ्रिज की सफाई कर रही हो, सारा सामान तक निकालकर बाहर रखा है तुमने और इंतजार कर रही हो फ्रिज के डिफ्रॉस्ट होने का, लेकिन फ्रिज डिफ्रॉस्ट कैसे होगा! बिजली का स्विच ऑफ करना तो तुम्हें याद ही नहीं रहा। "

नीलम को जैसे बिच्छू ने काटा।

" फ्रिज के ऊपर रखे वोल्टेज स्टैबलाइजर की लाल बत्ती मुझे यहीं से जलती दिखाई दे रही है। फ्रिज तो चालू है। डिफ्रॉस्ट कैसे होगा ? "

नीलम ने घबराकर फ्रिज की तरफ देखा।

वोल्टेज स्टैब्लाइजर की लाल बत्ती उसे एक खतरनाक, दहकती हुई आँख की तरह अपनी तरफ घूरती दिखाई दी।

" दरअसल " ---वह हकलाकर बोली--- " मैंने अपने उनको स्विच बंद करने को कहा था। "

" और वे भूल गए। " ---मिसेज साराभाई ने ठहाका लगाया--- " क्यों न भूलते ? सारा ध्यान तो उनका तुम्हारी तरफ लगा रहता होगा। हर घड़ी। हर वक्त। ये मर्द लोग सभी ऐंसे ही होते हैं। "

" जी हाँ। जी हाँ। "

" अब तुम तो बंद कर दो स्विच। खाली फ्रिज में तो बर्फ और भी तेजी से जमती है। "

" मैं कर दूँगी। "

" भूल जाओगी। " ---मिसेज साराभाई ने उसे बड़ी मीठी झिड़की दी--- " इस उम्र में याद रहती है कहीं कोई बात ? अभी की बात अभी भूल जाती है। "

" मैं अभी करती हूँ। "

नीलम को मजबूरन दरवाजे से हटना पड़ा।

उसके दरवाजे से हटते ही मिसेज साराभाई बड़े इत्मीनान से फ्लैट में घुस आई।

तब विमल ने पहली बार उसकी सूरत देखी।

वह एक लगभग पैंतालीस साल की अजीबो-गरीब शक्ल-सूरत वाली औरत थी। उसकी तीन ठोड़ियाँ थीं, जो उसके चलने से भी हिलती थीं और बोलने से भी। गर्दन जैसे थी ही नहीं। सिर सीधा कंधों पर ही रखा मालूम होता था। उसके बाल कटे हुए थे। उनकी जड़ें सफेद थीं और तीन चौथाई बालों की रंगत लाल थी। दोनों बातें साफ चुगली कर रही थीं कि वह खिजाब लगाती थी, लापरवाही से खिजाब लगाती थी। वह साड़ी पहने थी और वह उसके जिस्म के साथ यूँ लिपटी मालूम हो रही थी, जैसे किसी पेड़ के तने से लिपटी हो। उसकी कंजी आँखों के ऊपर भवें इतनी बारीक थीं कि बहुत गौर से देखने पर ही उनके अस्तित्व का आभास होता था।

नीलम डाइनिंग रूम की तरफ बढ़ी।

मिसेज साराभाई ने बैडरूम का रुख किया। प्रत्यक्षतः वह वहाँ टेलीफोन करने अक्सर आती थी, इसलिए उसे मालूम था कि फ्लैट में फोन कहाँ था।

विमल दरवाजे के पीछे से हटा। उसने रिवाल्वर को जल्दी से ड्रेसिंग टेबल की दराज में डाल दिया।

नीलम फ्रिज से सम्बद्ध बिजली का स्विच ऑफ करके जब तक वापस घूमी, तब तक मिसेज साराभाई बैडरूम की चौखट लाँघ चुकी थी।

भीतर बैडरूम में विमल को देखकर वह ठिठकी। फिर उसके चेहरे पर एक मशीनी मुस्कुराहट आई और वह बोली--- " हल्लो! "

" हल्लो! " ---विमल कठिन स्वर में बोला।

" तुम मिसेज सिंह के ब्रदर-इन-लॉ हो ? "

" जी हाँ। "

" वेरी हैंडसम, वेरी स्मार्ट यंगमैन। " ---वह प्रशंसात्मक स्वर में बोली--- " तुम्हारी बीवी बहुत खुशकिस्मत है कि उसे तुम्हारे जैसा हसबैंड मिला। "

" जी शुक्रिया। " ---विमल शरमाने का अभिनय करता हुआ बोला।

" लेकिन तुम तो...आई मीन... तुम तो वो...वो " ---उसने अपने एक हाथ को ऊपर उठाया और उसे अपने सिर के ऊपर गोल-गोल घुमाया--- " वो नहीं हो। "

" सरदार! " ---विमल उसका इशारा समझकर बोला।

" हाँ! हाँ! सिंह नहीं हो तुम ? या पहले थे, अब नहीं हो ? "

" मैं पहले भी नहीं था। "

" अच्छा! "

" दरअसल मैंने और नीलम ने लव-मैरिज की है। "

" ओह! "

तब तक नीलम भी बैडरूम में आ गई थी और खा जाने वाली निगाहों से मिसेज साराभाई को घूर रही थी।

" नीलम सीखनी है। " ---विमल बोला--- " मैं सिख नहीं हूँ। "

" तो क्या हुआ ? " ---मिसेज साराभाई बोली--- " प्यार में जात-पात-मजहब वगैरह नहीं चलता, यंगमैन। "

" यू आर राइट मैडम। "

" तुम्हारा नाम क्या है ? "

" विमल। "

"विमल। " ---मिसेज साराभाई ने नाम दोहराया--- " उस टेबल पर से टेलीफोन किधर गया ? "

विमल ने असहाय भाव से नीलम की ओर देखा।

" टेलीफोन " ---नीलम बोली--- " इन्होंने लाइन पर से उतारा था। "

" इन्होंने उतारा था ? " ---मिसेज साराभाई हैरानी से बोली--- " क्यों ? "

" ये कहते थे कि, कई बार कोई पेंच-वेंच ढीला होने से भी टेलीफोन डैड हो जाता था। "

" ओह! तो तुम टेलीफोन ठीक करना जानते हो ? "

" जानता तो नहीं " ---विमल खेदपूर्ण स्वर में बोला--- " लेकिन......। "

" लेकिन यूँ ही कोशिश की थी। " ---मिसेज साराभाई ने अट्टहास किया--- " वैरी क्लैवर ऑफ यू। वैरी क्लैवर ऑफ यू इनडीड। "

विमल खामोश रहा।

" अब जरा टेलीफोन को दोबारा लाइन पर जोड़ो। क्या पता तुम्हारे पेंच वगैरह कसने से टेलीफोन ठीक ही हो गया हो। "

विमल ने नीलम की तरफ देखा और एक गुप्त संकेत ऊपर पंखे की तरफ किया। जिस साड़ी से सुरजीत फाँसी लगाकर मरी थी, उसका आधा हिस्सा एक रस्सी की सूरत में अभी भी पंखे के साथ झूल रहा था। कैंची से साड़ी काटकर लाश नीचे उतारने के बाद विमल ने पंखे के साथ बंधी रह गई साड़ी की तरफ ध्यान नहीं दिया था। मिसेज साराभाई के जरा भी निगाह ऊपर उठाने पर साड़ी की वह रस्सी उसे दिखाई दे सकती थी और फिर वह उसके बारे में हजार सवाल कर सकती थी। न सिर्फ सवाल कर सकती थी बल्कि संदिग्ध भी हो सकती थी।

" हम अभी टेलीफोन लगाते हैं। " ---नीलम बोली--- " अगर वह ठीक हुआ तो हम आपको आपके फ्लैट से बुला लाएँगे। "

" अरे, अभी का अभी लगाओ न। " ---मिसेज साराभाई ने जिद की--- " एक मिनिट का तो काम है। "

पता नहीं उस औरत को सुरजीत से कितनी आत्मीयता थी। उनका उसके साथ रुखाई या बेअदबी से पेश आना उसे खल सकता था और वह इसी संदर्भ में इमारत के चार और लोगों से उनका कोई उल्टा-सीधा जिक्र कर सकती थी।

" ठीक है। " ---विमल बोला--- " लगाते हैं। "

" गुड। " ---मिसेज साराभाई पलंग पर उस टेबल के सामने बैठ गई जिस पर टेलीफोन रखा रहता था।

नीलम टेलीफोन उठा लाई। उसने उसे टेबल पर रख दिया।

विमल टेबल के इर्द-गिर्द निगाह डालने लगा।

" क्या ढूँढ रहे हो ? " ---मिसेज साराभाई बोली।

" पेचकस। " ---विमल बोला--- " पेचकस पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने। "

" यहीं कहीं होगा। "

" कहीं मिल नहीं रहा। "

" रखा कहाँ था ? "

" यहीं कहीं रखा था। "

" तो फिर कहाँ गया ? "

" क्या पता कहाँ गया। "

" हम पेचकस तलाश करते हैं। " ---नीलम बोली--- " वह मिल जाएगा तो....। "

" पेचकस मेरे फ्लैट में है। " ---मिसेज साराभाई उठती हुई बोली--- " मैं अभी लेकर आती हूँ। "

विमल और नीलम दोनों ने सहमति से सिर हिलाया।

मिसेज साराभाई वहाँ से चल दी।

उसके फ्लैट से निकलते ही विमल ने बैडरूम का दरवाजा बंद कर दिया। उसने पलंग पर एक मेज रखी और उसपर चढ़ गया। कैंची की सहायता से काट-काटकर वह पंखे पर से बाकी साड़ी को अलग करने लगा।

" वह हरामजादी अब मुझसे टेलीफोन जुड़वाएगी " ---विमल बोला--- " लेकिन मैं कैसे जोड़ूँगा टेलीफोन! मुझे क्या पता कौनसी तार कहाँ जोड़ी जाती है। मैंने तो कल तारों की तरफ झाँके तक बिना एक ही झटका मारकर फोन को उखाड़ दिया था। "

" टेलीफोन की तारों के बारे में तुम्हें कुछ नहीं मालूम " ---नीलम बोली--- " तो उसे ही क्या मालूम होगा ? तुम तारों को जैसे मर्जी जोड़ देना। टेलीफोन चल जाए तो ठीक है, न चले तो कह देंगे पीछे से खराब है। "

" ठीक है। "

" वैसे टेलीफोन चल ही जाए तो अच्छा है, क्योंकि लगता नहीं कि वह फोन किए बिना हमारा पीछा छोड़े। सारा दिन यही जानने के लिए वह फ्लैट की कॉल-बेल बजाती रहेगी कि फोन ठीक हुआ या नहीं, मिसेज सिंह लौटीं या नहीं। "

" तुम ठीक कह रही हो। "

तभी बैडरूम के बंद दरवाजे पर दस्तक पड़ी।

विमल ने पंखे पर से काट-काटकर उतारी साड़ी को नीलम की तरफ उछाल दिया। 

नीलम ने उसे पलंग के नीचे डाल दिया।

विमल झपटकर मेज पर से उतरा। उसने मेज को पलंग पर से उठाया और उसे यथास्थान रख दिया।

नीलम ने दरवाजा खोल दिया।

हाथ में पेचकस लिए मिसेज साराभाई वापस लौटी।

" दरवाजा काहे कू बंद किया ? " ---वह बोली।

दोनों में से किसी ने जवाब नहीं दिया। उन्होंने यूँ सिर झुका लिया, जैसे कोई गुनाह करते पकड़े गए हों।

" यू नॉटी यंग मैन। " ---मिसेज साराभाई यूँ कुत्सित भाव से हँसी, जैसे सारा माजरा उसकी समझ में आ गया था और जो कुछ उसकी समझ में आया था, स्वयं उसे भी उससे रतिसुख की अनुभूति हो रही थी। फिर वह नीलम की तरफ घूमी--- " यू लकी यंग लेडी। "

दोनों ने बनावटी शर्मिंदगी का इजहार किया।

" यह पेचकस पकड़ो। " ---वह पेचकस विमल की ओर बढ़ाती हुई बोली--- " और जल्दी से टेलीफोन जोड़ो। मेरी कॉल हो जाए तो मैं भी अपने काम-धाम में लगूँ और तुम लोग भी। " ---उसने बारी-बारी दोनों पर निगाह डाली--- " अपने काम-धाम में लग सको। डिस्टर्बेंस के बिना। "

विमल ने पेचकस ले लिया।

उसने टेलीफोन की तारें जोड़ीं।

टेलीफोन में डायल टोन आ गई।

उसने मिसेज साराभाई को खबर की कि, टेलीफोन ठीक हो गया था।

वह बहुत खुश हुई।

फिर वह टेलीफोन के सिरहाने बैठ गई और नम्बर पर नम्बर मिलाने लगी।

आधे घंटे से ज्यादा वह टेलीफोन से उलझी रही।

उस दौरान उसने कम-से-कम दस नम्बर मिलाए।

अंत में वह उठी। उसने अपने गिरहबान में हाथ डालकर एक छोटा सा पर्स निकाला और उसमें से एक मुड़ा-तुड़ा, रोता-कलपता पाँच का नोट बरामद किया। 

" यह टेलीफोन कॉल का पैसा ले लो। " ---वह नोट नीलम की तरफ बढ़ाती हुई बोली। वैसे उसने उसे थामा यूँ हुआ था, जैसे वह जान दे देती, लेकिन नोट हाथ से न छोड़ती।

" पैसे आप " ---नीलम बोली--- " बहनजी को ही दीजिएगा। "

" मिसेज सिंह तो टेलीफोन कॉल का पैसा हमसे कभी नहीं लेतीं। "

" तो फिर हम कैसे ले सकते हैं। "

" लेकिन....अच्छी बात है। " ---उसने नोट वापस पर्स में रख लिया और पर्स गिरहबान में ऐंसी चीजें रखने के लिए दुनिया-भर की औरतों की पसंदीदा जगह पर  महफूज कर लिया--- " थैंक यू वैरी मच। "

वह वहाँ से विदा हो गई।

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दृश्य : 3

तभी कॉल-बेल फिर बजी।

नीलम ने फिर दरवाजा खोला।

इस बार टेलीफोन कंपनी का मैकेनिक आया था।

" टेलीफोन तो ठीक हो गया है। " ---नीलम ने उसे बताया।

" देखना तो फिर भी पड़ेगा। " ---मैकेनिक बोला--- " रिपोर्ट करनी होती है। "

नीलम की निगाह सामने फ्लैट के दरवाजे पर पड़ी। उसे लगा जैसे दरवाजा थोड़ा सा खुला था और इस प्रकार बनी झिरी में से कोई बाहर झाँक रहा था।

" आओ। " ---वह मैकेनिक से बोली।

मैकेनिक भीतर आया। उसने टेलीफोन चैक किया, एक नंबर मिलाकर कहीं रिपोर्ट दी कि वह 'फाल्ट क्लियर' हो गया था और फिर वहाँ से चल दिया।

नीलम उसे दरवाजे तक छोड़ने आई।

इस बार मिसेज साराभाई भी अपने फ्लैट का दरवाजा खोल बाहर निकल आई।

" अब टेलीफोन पक्का ठीक हो गया होगा। " ---वह बोली।

" जी हाँ। " ---नीलम बोली।

" यह आदमी मेरी ही कम्प्लेंट पर आया होगा। "

" ऐंसा ही लगता है। मेहरबानी है आपकी। "

" मैंने और कोई फोन नहीं करना है। " ---वह बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोली।

" नहीं-नहीं। आप शौक से कीजिए। "

" मिसेज सिंह नहीं आईं अभी ? "

" नहीं। "

फिर वार्तालाप समाप्त हो गया।

नीलम ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।

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(शाम को इलाके की बिजली चली गई । रेफ्रिजरेटर बंद हो गया। पता लगा कि, चार-पाँच घण्टों तक बिजली नहीं आएगी तो नीलम और विमल रेफ्रीजरेटर सहित लाश को ठिकाने लगाने के इंतजाम के तहत टैम्पो की व्यवस्था करने हेतु फ्लैट को ताला लगाकर इमारत से बाहर गए)

दृश्य : 4

टैम्पो वाले का एक आदमी अपना था और दो उसने अड्डे से पकड़ लिए।

सब लोग टैम्पो पर सवार हो गए।

टैम्पो हिल रोड पर रूपाबाई मैंशन के सामने आकर रुका।

इलाके में तब भी अंधेरा था।

सब लोग दूसरी मंजिल पर पहुँचे।

नीलम ने फ्लैट का ताला खोला।

मिसेज साराभाई के फ्लैट का दरवाजा भी खुला और वह चौखट पर प्रकट हुई। छोटी-से-छोटी आवाज सुन लेने के लिए प्रशिक्षित उसके कान इतने ढेर सारे कदमों की आहट भला कैसे न सुन पाते।

अंधेरे में आँखें फाड़-फाड़कर उसने पहले नीलम की सूरत पहचानी और फिर बोली : " क्या बात है ? "

" कुछ नहीं " ---नीलम बड़े सहज भाव से बोली--- " बिगड़ा हुआ रेफ्रीजरेटर मरम्मत के लिए ले जा रहे हैं। "

" जल्दी क्या थी ? अपनी बहन को आ जाने देतीं। "

" वो किसलिए ? "

" तुम इस शहर में नई हो। या तो किसी ऐंसी उल्टी-सीधी जगह फ्रीज दे आओगी, जहाँ ठीक से मरम्मत नहीं होती होगी और या फिर उजरत में ठगी जाओगी। "

" कोई बात नहीं। फ्रीज मुझसे बिगड़ा है, इसलिए मैं इसे बहनजी के लौटने से पहले ठीक करा लेना चाहती हूँ। "

" यह तो इत्तफाक है। फ्रीज मिसेज सिंह के होते भी बिगड़ सकता था। "

" लेकिन नहीं बिगड़ा, कोई बात नहीं, आंटी। दस-बीस रुपए फालतू ही तो लग जाएँगे। हम अफोर्ड कर सकते हैं। हमारे ये बहुत पैसे कमाते हैं। "

" क्यों नहीं! क्यों नहीं! "

नीलम फ्लैट में दाखिल हो गई।

विमल ने मोमबत्ती जला दी।

रेफ्रिजरेटर के प्लग को वोल्टेज स्टैब्लाइजर के सॉकेट से अलग किया गया और चार जनों ने रेफ्रीजरेटर को उठाया।

ड्राइंगरूम की चौखट तक पहुँचते-पहुँचते एक मजदूर कह ही बैठा : " तौबा! यह तो बहुत भारी है। इसमें क्या पत्थर भरे हैं, बाप ? "

" किचन का सामान ही है, भाई। " ---विमल सकपकाए स्वर में बोला।

" समान तो निकाल लो, साहब। " ---टैम्पो वाला बोला।

" नहीं निकाल सकते। " ---विमल खेदपूर्ण स्वर में बोला--- " इसकी चाबी खो गई है। अंधेरे में उसे ढूँढना मुहाल है और फ्रीज आज ही हमने सांताक्रुज पहुँचाना है। "

अपने फ्लैट के दरवाजे की चौखट पर खड़ी मिसेज साराभाई के कान खड़े हो गए।

क्या माजरा था। उसके आदतन खुराफाती दिमाग ने सोचा। 

वे लोग फ्रीज के साथ सावधानी से सीढ़ियाँ उतर रहे थे।

नीलम ने फ्लैट को ताला लगा दिया।

वह बाकी लोगों के पीछे जाने को वापस घूमी तो मिसेज साराभाई ने उसे आवाज दी : " सुनो। "

" आकर सुनूँगी, आंटी। " ---नीलम व्यस्तता जताती हुई बोली--- " अभी जरा जल्दी है। "

" अरे, जरा तो रुको। "

" अगर टेलीफोन करना है तो बेशक फ्लैट की चाबी रख लो। "

" नहीं-नहीं वह बात नहीं। "

" तो फिर मैं लौटकर बात करूँगी। "

" तुम लौटोगी ? "

" क्यों नहीं लौटूँगी ? " ---नीलम हैरानी जताती हुई बोली--- " लौटूँगी नहीं तो, और कहाँ जाऊँगी ? "

मिसेज साराभाई चुप हो गई।

नीलम बाकी लोगों के पीछे लपकी।

नीचे रेफ्रिजरेटर टैम्पो में लाद दिया गया। तीन मजदूर पीछे रेफ्रीजरेटर के साथ उसको थामकर बैठ गए। विमल और नीलम आगे ड्राइवर के साथ बैठे। 

टैम्पो पर सवार होने से पहले नीलम ने एक निगाह इमारत पर ऊपर की तरफ डाली।

मिसेज साराभाई अपने फ्लैट की बालकनी में खड़ी थी और टैम्पो को ही देख रही थी।

अंधेरे में भी नीलम ने उसे साफ पहचाना।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

दृश्य : 5

मिसेज साराभाई का पति वसन्त साराभाई उतना ही दुबला-पतला था, जितनी कि मिसेज साराभाई मोटी थी और उतना ही धीर-गम्भीर था, जितनी कि मिसेज साराभाई वाचाल थी। वह स्थानीय एलफिंस्टन कॉलेज में सीनियर प्रोफेसर और हैड ऑफ फीजिक्स डिपार्टमेंट था और मिसेज साराभाई मुश्किल से मैट्रिक पास थी। उनकी इकलौती औलाद एक लड़का कैनेडा में नौकरी करता था और वे बांद्रा के उस फ्लैट में अकेले रहते थे।

प्रोफेसर साहब साधारणतया आठ बजे तक घर आ जाते थे लेकिन उस रोज वे दस बजे के करीब घर पहुँचे।

सारे इलाके में रोशनी तब भी नहीं थी।

मिसेज साराभाई ने उन्हें पानी पिलाया, उनके कपड़े तब्दील करवाने में उनकी मदद की और फिर किचन में चली जाने की जगह ---जैसे कि वह साधारणतया करती थी--- वह उनके सामने बैठ गई।

प्रोफेसर साहब ने मोमबत्ती की रोशनी में अपनी बीवी के अत्यंत गम्भीर और परेशानहाल चेहरे को देखा तो सशंक स्वर में बोले : " क्या बात है ? कोई बुरी खबर है ? "

" नहीं। " ---मिसेज साराभाई बोली।

" तो फिर यूँ उल्लू सा नक्शा क्यों ताने हुए हो ? "

" मुझे एक बात बताओ। "

" पहले तुम मुझे एक बात बताओ। "

" क्या ? "

" आज खाना बनाया है या नहीं ? "

" बनाया है। अभी परोसती हूँ। लेकिन पहले मेरी बात सुनो। "

" तुम्हारी बात इतनी जरूरी है कि उसे सुनाए बिना तुम मुझे खाना नहीं दोगी ? "

" उल्टा-सीधा मत बोलो। जो मैं कहने जा रही हूँ, उसे गौर से सुनो। "

" अच्छी बात है। बोलो। सुन रहा हूँ मैं। "

" सामने मिसेज सिंह के फ्लैट में ताजा ब्याहा हुआ जोड़ा आया है। लड़की अपने-आपको मिसेज सिंह की छोटी बहन बताती है। "

" बताती है क्या मतलब ? क्या हकीकत में नहीं है ? "

" सुनते जाओ। बीच में मत बोलो। "

" अच्छा। "

" जब से वे लोग सामने फ्लैट में आए हैं तब से मिसेज सिंह दिखाई नही दी है। वे कहते हैं कि अपने पति की पेंशन के चक्कर में मिसेज सिंह को एकाएक पूना जाना पड़ गया है। "

" तो क्या बड़ी बात है इसमें। "

" मिसेज सिंह की बहन की ताजी-ताजी शादी हुई है। वे लोग हनीमून मनाने पंजाब से यहाँ आए हैं। लेकिन मिसेज सिंह तो पिछले दो साल से एक दिन के लिए भी कहीं नहीं गई। क्या यह बात तुम्हें अजीब नहीं लगती कि मिसेज सिंह अपनी सगी बहन की शादी में शामिल होने न गई हो ? "

" नहीं लगती। मिसेज सिंह की अपने माँ-बाप से नहीं बनती होगी। या कोई और वजह होगी। "

" और वजह क्या ? "

" शायद मिसेज सिंह की छोटी बहन ने लव-मैरिज की हो। एकाएक। बिना किसी को खबर किए। "

" यह तो वह कहती थी। " ---मिसेज साराभाई के मुँह से निकला।

" कौन ? "

" नीलम। "

" नीलम कौन ? "

" मिसेज सिंह की छोटी बहन। "

" क्या कहती थी वह ? "

" कि उसने लव-मैरिज की थी। अपनी बिरादरी से बाहर। उसका पति सिख नहीं है। " 

" फिर ? अपनी शंका का समाधान तो तुमने खुद ही कर लिया। "

" अभी आगे सुनो। "

" अभी और भी शंकाएँ हैं ? "

" सुनो तो। "

" आज मुझे खाना नसीब होता नहीं दिखाई देता। "

" अब सुनो भी या अपनी हाँके जाओगे। " ---वह झल्लाकर बोली।

" सुन तो रहा हूँ। तुम कुछ कहो भी तो सही। "

" मैं सुबह उनके यहाँ टेलीफोन करने गई थी। उन लोगों ने रेफ्रिजरेटर का सारा सामान उसमें से निकालकर डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ था। मेरे पूछने पर नीलम ने मुझे बताया कि, रेफ्रिजरेटर की सफाई कर रही थी। "

" तो क्या बुरा कर रही थी। घर के काम-काज में जरूरी थोड़े ही है कि, हर कोई तुम्हारी तरह लापरवाह हो। "

" हनीमून के लिए बम्बई आई कोई लड़की बम्बई में कदम रखते ही यूँ ऊटपटाँग घरेलू कामों में जुट जाएगी ? तब जुट जाएगी, जबकि वह फ्लैट में अपने पति के साथ अकेली हो ?  "

" अगर बहुत सुघड़ होगी तो जुट जाएगी। शांताबाई, तुम्हें मालूम नहीं है। पंजाबी औरतें घर के काम-काज में बहुत मुस्तैद होती हैं। "

" होती होंगी। लेकिन मूर्ख भी। "

" वो कैसे ? "

" वह रेफ्रिजरेटर को डिफ्रॉस्ट करने के लिए उसे खाली किए बैठी थी, लेकिन बिजली का स्विच चालू था। "

" अरे, वह भूल गई होगी बिजली का स्विच ऑफ करना, बेचारी की नई-नई शादी जो हुई है। तुम्हें अपना याद नहीं, जब तुम्हारी नई शादी हुई थी तो तुम क्या कुछ नहीं भूल जाया करती थीं ? "

" यह बात मैंने भी उसे कही थी। ऐंसे ही कही थी। "

" शांताबाई " ---प्रोफेसर साहब आहत भाव से बोले--- " जब हर सवाल का वाजिब जवाब तुम्हारे अपने ही पास है और तुम ऐंसे जवाब भी इस्तेमाल कर चुकी हो तो अब मेरे कान क्यों खा रही हो ? "

" अभी आगे सुनो। "

" अभी और भी सुनना है! "

" हाँ। "

" बोलो, और भी बोलो। "

" रेफ्रिजरेटर आधे घंटे में डिफ्रॉस्ट हो जाता है और दस मिनिट में उसकी झाड़-पोंछ हो जाती है, लेकिन दोपहर तक भी उन्होंने उसे दोबारा चालू नहीं किया था। "

" तुम्हें कैसे मालूम ? "

" चौथे माले की सावित्री का आइसक्रीम का डोंगा उनके रेफ्रिजरेटर में पड़ा था। दोपहर बाद जब वह उसे लेने आई थी तो वह तब भी रेफ्रिजरेटर से बाहर डाइनिंग टेबल पर पड़ा था। "

" उसको वापस फ्रिज में न रखने की नीलम ने कोई वजह तो बताई होगी। "

" वह कहती थी कि, फ्रिज एकाएक खराब हो गया था। "

" तो ठीक कहती होगी। इतनी मामूली सी बात में भी कोई झूठ बोलना जरूरी होता है। "

" लेकिन जो फ्रिज चल ही नहीं रहा था, जो डिफ्रॉस्टिंग के लिए ऑफ किया हुआ था, वह खराब कैसे हो गया ? "

" होगी कोई वजह। आजकल चीज बिगड़ते पता लगता है ? "

" अब आगे सुनो। "

" हे भगवान! अभी भी आगे सुनूँ ? "

" हाँ। " ---मिसेज साराभाई ने हुक्म दनदनाया।

" सुनाओ। " ---प्रोफेसर साहब असहाय भाव से बोले--- "सुनाओ। "

" फिर शाम ढलते ही एकाएक सारे इलाके की बत्ती चली गई। "

" तो ? " 

" जो रेफ्रिजरेटर सुबह से खराब था, बत्ती चली जाने के बाद एकाएक उन्हें उसे मरम्मत के लिए ले जाना सूझा। "

" अंधेरे में वे लोग बोर हो रहे होंगे, खुद मेरा अंधेरे में दिल घबरा रहा है, वह काम उन्होंने कभी तो करना ही था। उन्होंने सोचा होगा, क्यों न अभी कर डालें। "

" कबूल। लेकिन वह रेफ्रिजरेटर जिसका सारा सामान मैंने अपनी आँखों से डाइनिंग टेबल पर पड़ा देखा था, चार आदमियों से, चार हट्टे-कट्टे आदमियों से उठाए नहीं उठ रहा था। "

इस बार प्रोफेसर साहब सकपकाए। उनकी रीढ़ की हड्डी एकाएक सीधी हो गई और वे सावधान की मुद्रा में तनकर बैठ गए।

" और सुनो। जब एक मजदूर ने शिकायत की कि, रेफ्रिजरेटर बहुत भारी था तो नीलम का मर्द बोला कि वे रेफ्रिजरेटर के भीतर का सामान निकाल नहीं सकते थे, क्योंकि रेफ्रिजरेटर का ताला लगा हुआ था और उसकी चाबी उनके फ्लैट में कहीं इधर-उधर रखी गई थी, जिसे कि अंधेरे में ढूँढना मुहाल था। "

" अच्छा! ऐंसा कहा उसने ? "

" और मैंने अपने कानों से यह सुना था कि, वे रेफ्रिजरेटर को मरम्मत के लिए सांताक्रुज ले जा रहे थे। अब तुम मुझे यह बताओ प्रोफेसर साहब, कि बांद्रा में क्या रेफ्रिजरेटर की मरम्मत करने वालों की कमी है ? "

प्रोफेसर साहब सोच में पड़ गए।

" जवाब दो। " ---मिसेज साराभाई चैलेंज भरे स्वर में बोली।

" तुम कहना क्या चाहती हो ? "

" मैं कुछ नहीं कहना चाहती। तुम मेरे से कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे और ज्यादा समझदार आदमी हो। तुम बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो ? "

प्रोफेसर साहब कुछ क्षण खामोश रहे, फिर एकाएक उनके नेत्र फैल गए और वे आतंकित स्वर में बोले : " शांताबाई, तुम यह तो नहीं कहना चाहती कि, उन लोगों ने मिसेज सिंह की हत्या कर दी थी और उसकी लाश रेफ्रिजरेटर में बंद की हुई थी ? "

" क्या ऐंसा नहीं हो सकता ? "

" नहीं हो सकता। "

" क्यों नहीं हो सकता ? "

" अगर उन लोगों का उद्देश्य, मिसेज सिंह की हत्या ही करना था तो हत्या करने के बाद तक---बाद ही नहीं बल्कि, बहुत बाद तक---उनका फ्लैट में ठहरे रहना क्यों जरूरी था, उनके लिए लाश को फ्रिज में बंद करना क्यों जरूरी था ? "

" मुझे क्या मालूम ? "

" अपने खुराफाती दिमाग पर जोर दो, कोई जवाब सूझ जाएगा। "

" फिर लगे मेरा मजाक उड़ाने। "

" मैं तुम्हारा मजाक नहीं उड़ा रहा। मैं तुमसे एक सवाल कर रहा हूँ। अगर वे लोग मिसेज सिंह के कोई रिश्तेदार नहीं थे और उनके यहाँ आने के पीछे उनका इकलौता उद्देश्य मिसेज सिंह की हत्या करना था तो हत्या कर चुकने के बाद भी वे फ्लैट में टिके क्यों रहे, उन्होंने लाश को फ्रिज में बंद करके फ्लैट से निकालने का निहायत खतरनाक और पेचीदा तरीका क्यों इस्तेमाल किया ? "

" मैंने ये कब कहा कि फ्रिज में मिसेज सिंह की लाश थी। " ---मिसेज साराभाई हड़बड़ाई।

" अच्छा! नहीं कहा ? "

" नहीं कहा। मैंने तो सिर्फ पूछा था कि, क्या ऐंसा नहीं हो सकता था। "

" अगर यह बात नहीं थी तो फिर तुम्हीं बताओ कि और क्या बात हो सकती थी, जिसकी वजह से फ्रिज चार आदमियों से उठाए नहीं उठ रहा था। "

" चोरी का माल। " ---मिसेज साराभाई के मुँह से निकला।

" क्या ? "

" मेरे ख्याल से वे दोनों कोई चोर थे, जो मिसेज सिंह की गैरहाजिरी में उसके फ्लैट में घुसे थे। उन्होंने फ्रिज को खाली करके फ्लैट का सारा कीमती सामान उसमें भर लिया था, फिर यह जाहिर किया था कि फ्रिज खराब हो गया था और उसकी मरम्मत कराने के बहाने वे उसे यहाँ से ले गए थे। "

" तुम पहले यह फैसला करो कि, सामने फ्लैट में चोरी हुई है या कत्ल हुआ है ? "

" कुछ-न कुछ तो हुआ ही है। "

" यानी कि जो होना था वो हो चुका है। "

" हाँ। "

" तो फिर---? जब साँप निकल गया तो अब लकीर क्यों पीट रही हो ? "

" मेरे ख्याल से हमें पुलिस को खबर करनी चाहिए। "

" किस बात की। चोरी की या कत्ल की ? "

" दोनों में से एक बात की। या दोनों की। "

" तुम्हारे ख्याल से अब वे लोग यहाँ नहीं आने वाले ? "

" सवाल ही नहीं पैदा होता। जो कुछ करने वे यहाँ आए थे, उसे कामयाबी से अंजाम दे चुकने के बाद वे अब क्यों आएँगे यहाँ ? "

प्रोफेसर साहब सोच में पड़ गए।

" उस छोकरी ने तो मेरे सर, फ्लैट की चाबी तक मढ़ने की कोशिश की थी। अगर उनका लौटने का इरादा होता तो क्या वह फ्लैट की चाबी मुझे सौंप जाने की कोशिश करती ? "

" यह क्या बात हुई ? "

मिसेज साराभाई ने बात बताई।

" हूँ। " ---प्रोफेसर साहब इस बार गम्भीर स्वर में बोले--- " शांताबाई, फर्ज करो तुम्हारी धारणा सही है। फर्ज करो सामने वाले फ्लैट में या चोरी हुई है, या कत्ल हुआ है, या दोनों हुए हैं या कोई और ऐंसा अपराध हुआ है, जिसे मिसेज सिंह के कथित रिश्तेदार कामयाबी से अंजाम दे चुके हैं और यहाँ से खिसक चुके हैं। ठीक ? "

" ठीक। " ---मिसेज साराभाई ने स्वीकार किया।

" इस लिहाज से तो वे यहाँ वापस लौटकर नहीं आने वाले। "

" सवाल ही नहीं पैदा होता। "

" उनके लौटकर आने का ? "

" हाँ। "

" लेकिन अगर वो आ गए तो ? "

" वे हरगिज नहीं आने वाले। अपना मतलब हल करके एक बार यहाँ से खिसक जाने के बाद अब क्या करने आएँगे वो यहाँ ? "

" मैं कहता हूँ अगर वो आ गए तो ? "

" वो नहीं आएँगे। "

" बेवकूफों जैसी अपनी जिद छोड़ो और मेरे सवाल का जवाब दो। अगर वे लौटकर आ गए तो ? "

मिसेज साराभाई को जवाब नहीं सूझा।

" तो कबूल करो कि दूसरा मतलब यह होगा कि तुम्हारी सारी धारणाएँ बेबुनियाद थीं और तुम्हारे खुराफाती दिमाग की गैरजरूरी उपज थीं। "

वह खामोश रही। उसने बेचैनी से पहलू बदला।

" शांताबाई, हमने पुलिस को खबर की और बात कुछ भी न निकली तो जानती हो हमारी कितनी खिल्ली उड़ेगी ? "

तभी एकाएक सारे फ्लैट की बत्तियाँ जल उठीं।

" शुक्र है। " ---प्रोफेसर साहब ने चैन की गहरी साँस ली--- " अंधेरे में तो मेरा दम घुट रहा था। "

" लेकिन अगर वे न लौटे, तब तो तुम पुलिस को खबर करोगे ? "

" जरूर करूँगा। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते करूँगा, एक पढ़ा-लिखा समझदार आदमी होने के नाते करूँगा। "

" और उनके लौटने का इंतजार कब तक करोगे ? " ---मिसेज साराभाई के स्वर में व्यंग्य का पुट आ गया--- " अगले हफ्ते तक ? "

" शांताबाई, खाना तो खिला दो। उसके बाद कहोगी तो मैं सीधा पुलिस स्टेशन ही चला जाऊँगा। "

" ठीक है। " ---वह बोली और अपने स्थान से उठी।

तभी बाहर सीढ़ियों पर पड़ते कदमों की आहट हुई।

किचन की तरफ बढ़ती मिसेज साराभाई ठिठक गई। वह फौरन फ्लैट के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ी।

प्रोफेसर साहब एक क्षण हिचकिचाए, फिर वे भी उठकर उसके पीछे हो लिए।

मिसेज साराभाई ने हौले से दरवाजा खोला। उसने सावधानी से बाहर झाँका।

उसे सामने फ्लैट के ताले को चाबी लगाती हुई नीलम दिखाई दी।

विमल उसके समीप खड़ा दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहा था।

" ये तो लौट आए। " ---मिसेज साराभाई के मुँह से निकला।

" यही हैं वो लोग जो तुम्हें हत्यारे और चोर लग रहे थे ? " ---प्रोफेसर साहब भी बाहर झाँकते हुए हौले से फुसफुसाए।

" हाँ। " ---मिसेज साराभाई ने कबूल किया।

प्रोफेसर साहब ने दरवाजा बंद कर दिया और अपनी बीवी को बाँह पकड़कर दरवाजे से परे घसीट लिया।

" शर्म करो शांताबाई। " ---वे उसे झिड़कते हुए बोले--- " क्या हो गया है तुम्हारी अक्ल को ? क्या हो गया है तुम्हारी आँखों को ? क्या हो गया है तुम्हारी नीयत को ? इतना नेकनीयत, भला मानस और शरीफ जोड़ा तुम्हें चोर और हत्यारा लग रहा था। अरे, ये बेचारे तो दो फाख्ताओं के जोड़े की तरह निर्दोष मालूम हो रहे हैं। शांताबाई, क्या बनेगा तुम्हारा और तुम्हारे इस फसादी दिमाग का। मुझे डर है, कहीं तुम पागल न हो जाओ। "

मिसेज साराभाई ने एक झटके से अपनी बाँह छुड़ाई और भुनभुनाती हुई किचन की तरफ बढ़ चली।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

दृश्य : 6

पहली तारीख।

वे सुबह से तैयार होकर बैठ गए और बड़ी बेकरारी से हरकारे के आगमन का इंतजार करने लगे।

फिर कोई साढ़े ग्यारह बजे के करीब वह आवाज फ्लैट में गूँजी, जिसको सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे।

विमल ने दरवाजा खोला।

दरवाजे पर एक हल्के नीले रंग की कमीज-पतलून पहने एक लगभग पच्चीस साल का दुबला-पतला लड़का खड़ा था।

" क्या है ? " ---विमल बोला।

" कुछ नहीं। " ---वह हड़बड़ाकर बोला--- " लगता है मैं गलत फ्लैट में आ गया हूँ। सॉरी। "

" तुम्हें मिसेज सिंह के फ्लैट की तलाश है ? "

" हाँ। "

" यही है उनका फ्लैट। "

" मैडम कहाँ हैं ? " ---वह बोला।

" भीतर हैं। " ---विमल बोला।

मिसेज साराभाई ने अपने फ्लैट का दरवाजा थोड़ा सा खोल लिया था और आदत से मजबूर वह औरत झिरी में आँख लगाए बाहर झाँक रही थी और कान खड़े करके बाहर चल रहा वार्तालाप सुनने की कोशिश कर रही थी।

" उन्हें जरा बुला दीजिए। " ---लड़का बोला।

" तुम्हीं भीतर आ जाओ। " ---विमल बोला।

" नहीं-नहीं। मैं यहीं ठीक हूँ। आप ही उन्हें.....। "

विमल ने हाथ बढ़ाकर उसका गिरहबान दबोच लिया और बड़ी सहूलियत से उसे भीतर घसीटकर पाँव की ठोकर से दरवाजा बंद कर दिया।

यह नजारा देख मिसेज साराभाई के छक्के छूट गए। वह धड़कते दिल से किसी नई, उससे ज्यादा भयंकर घटना के घटित होने की प्रतीक्षा में झिरी के साथ अपनी एक आँख चिपकाए खड़ी रही।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆


दृश्य : 7

"अपना सामान समेटो " ---विमल, नीलम से बोला--- " और यहाँ से कूच की तैयारी करो। अब यहाँ ठहरना बेकार है। "

नीलम ने सहमति से सिर हिलाया और एक एयरबैग में दोनों का सामान भरने लगी।

पाँच मिनट बाद वे फ्लैट से बाहर निकले।

विमल ने फ्लैट को ताला लगा दिया।

मिसेज साराभाई अभी भी शर्तिया अपने फ्लैट के दरवाजे के पीछे मौजूद थी। उसने शायद विमल को लड़के को फ्लैट के भीतर घसीटते देखा भी था और यह भी जरूर नोट किया था कि फ्लैट को ताला लग गया था, लेकिन लड़का उसके साथ बाहर नहीं निकला था। लेकिन अब विमल को इस बात की परवाह नहीं थी कि, वह औरत क्या सोचती थी, या क्या खुराफाती नतीजे निकालती थी, अब वे लोग वहाँ लौटकर नहीं आने वाले थे।


(उपरोक्त सभी अंश सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास हारजीत से लिए गये हैं।)

॥ समाप्त ॥

लेखक का विस्तृत परिचय निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
शरद कुमार दुबे 

हार जीत उपन्यास निम्न लिंक से खरीदा जा सकता है: 
पेपरबैक | किंडल


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3 Comments
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  1. पंकज कुमारJanuary 18, 2021 at 3:35 PM

    इसमे क्या रोचक है ? उपन्यास के कुछ अंश ज्यों के त्यों छाप दिये गए हैं इसमे नया अंदाज क्या है ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. उपन्यास को देखने का तरीका रोचक है। ज्यादातर लोग विमल के विषय में बात करते हैं तो विमल और उससे जुड़े मुख्य किरदारों पर ही ध्यान जाता है। इस श्रृंखला से वो उपन्यास के दूसरे रोचक किरदारों पर ध्यान दिला रहे हैं। आपकी बात सही है कि अंश का इस्तेमाल ज्यादा हुआ। अंश के माध्यम से किरदार के विषय में जो बताया वो लेख के माध्यम से होता बेहतर होता।

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