नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पार्टी स्टार्टेड नाओ - अजिंक्य शर्मा

 संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 144|  ए एस आई एन: B084DC9C99
किताब लिंक: किंडल

समीक्षा: पार्टी स्टार्टेड नाऊ - अजिंक्य शर्मा


पहला वाक्य:
उसके खून से सने हाथ काँप रहे थे।

कहानी:
राजीवनगर पंचमढ़ी के निकट मौजूद एक छोटा सा शहर था जो कि अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता था।

लेकिन राजीवनगर के बाशिंदे जानते थे कि राजीवनगर में प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा और भी एक चीज थी जो कि वहाँ के बाशिंदों के मन में बसी हुई थी। और वह था डेथफेस का खौफ। डेथफेस एक ऐसा शख्स था  जिसने 21 साल पहले कॉलेज के पाँच छात्रों की निर्ममता से हत्या कर दी थी और फिर हवा में कपूर की तरह गायब हो गया था। लोग मानते थे कि हो सकता था कि डेथफेस अभी भी शहर में मौजूद हो।

17 वर्ष की अविका जब दिल्ली से राजीवनगर वापिस आई थी तो उसे लगा था कि वह यहाँ तालमेल नहीं बैठा पाएगी।  

उसे क्या मालूम था कि यहाँ आकर सब कुछ बदल जाने वाला था। 

मुख्य किरदार:
इंद्र कुमार शुक्ला - पुलिस इंस्पेक्टर 
राधा - इंद्र की पत्नी 
अविका शुक्ला - इंद्र की सत्रह साल की बेटी 
आस्था - अविका की दोस्त 
सुदेश वर्मा - आस्था के पिता 
रीना, मोनिका, विकास, प्रिंस - आस्था के दोस्त 
प्रोफेसर श्याम - आस्था के प्रोफेसर जो कि प्रोफेसर किलर के नाम से कुख्यात थे 
योगेश महाजन - सब इंस्पेक्टर 
देवराज दीक्षित - एस पी 
राज सिंह - एक गरीब लड़का जो आस्था के कॉलेज में कार्य करता था 
राजवीर सिंह - राज के पिता 
देवेश गौतम - साइबर एक्सपर्ट

मेरे विचार:
पार्टी स्टार्टेड नाऊ अजिंक्य शर्मा का दूसरा उपन्यास है। यह उपन्यास एक स्लैशर नावेल है। 

स्लैशर हॉरर के अंतर्गत आने वाली एक उप शैली है। इस तरह के उपन्यासों या फिल्मों का एक तय फॉर्मेट होता है। अक्सर इन फिल्मों या उपन्यास में एक मानसिक रूप से विक्षिप्त हत्यारा होता है जो कि एक एक करके एक समूह के सदस्यों को मारता चला जाता है। फिर पूरी फिल्म या उपन्यास इस समूह के लोगों द्वारा इस हत्यारे से बचने पर ही आधारित होती है। इनमें से कुछ बचते हैं और कुछ हत्यारे का शिकार हो जाते हैं। स्लैशर की एक खासियत यह भी होती हैं कि इसकी कहानी ज्यादातर छोटे शहरों या सुनसान इलाकों में ही घटित होती हुई दिखाई गयी हैं और जिस के साथ यह घटनाएं घटित होती हैं उस समूह में शामिल लोग अक्सर युवा होते हैं। यह हत्यारा कौन है? समूह के सदस्य इससे खुद को बचा पायेंगे या नहीं? ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए दर्शक या पाठक इन फिल्मों या उपन्यासों को देखते या फिर पढ़ते चले जाते हैं।

हेलोवीन, हाउस ऑफ़ वैक्स,माय ब्लडी वैलेंटाइन, आई नो व्हाट यू डिड लास्ट समर, द हिल्स हेव आईज इत्यादि कुछ ऐसी ही प्रसिद्ध स्लैशर फिल्में हैं। 

वैसे तो अँग्रेजी में स्लैशर उपन्यासों काफी वक्त से लिखे जा रहे हैं लेकिन हिन्दी में इनकी कमी रही है। अगर अजिंक्य शर्मा का लिखा यह उपन्यास हिन्दी का पहला स्लैशर उपन्यास हो तो मुझे इसमें कोई हैरानी नहीं होगी। 

लेखक ने इस उपन्यास में स्लैशर विधा के लगभग हर तत्व को शामिल करने की कोशिश की है। उपन्यास उन्होंने राजीवनगर नाम के छोटे से कस्बे में बसाया है। यहाँ एक रहस्यमय हत्यारा भी है और साथ में कॉलेज के छात्रों का एक समूह भी है जो कि पाठक को पता है इस रहस्यमय हत्यारे का शिकार बनेगा। 


उपन्यास की कहानी की बात करूँ तो उपन्यास की कहानी 8 फरवरी 2020 से 14 फरवरी 2020 यानी छः दिनों  के बीच घटित होती है। उपन्यास की मुख्य किरदार अविका शुक्ला है जो कि अपने पिता के पास रहने के लिए आ चुकी है।  8 से 14 फरवरी के वक्फे में अविका के माध्यम से उपन्यास के दूसरे किरदारों से पाठकों की मुलाक़ात होती है। इस दौरान उनकी ज़िन्दगी में क्या क्या होता है यही उपन्यास का कथानक बनता है। उपन्यास का कथानक रोचक है और पाठकों पर पकड़ बनाने में कामयाब होता है। 

इन छः दिनों  में लेखक ने कॉलेज लाइफ का जीवंत वर्णन किया है। वहीं यदा कदा कभी डायलॉग के माध्यम से और कभी टिप्पणियों के माध्यम से लेखक ने कई जगह कई सामजिक समस्याओं के ऊपर बात करने की भी कोशिश की है। वह गरीबी के ऊपर बात करते हैं और गरीब लोगों के प्रति आम आदमी के व्यवहार की बता करते हैं। वह पुलिस के निष्टुर रवैये की बात करते हैं और महिलाओं पर बढ़ते हुए अपराध और अपराधियों के बढ़ते हुए हौसले पर बात करते हैं। उपन्यास के मुख्य किरदार अविका के माता पिता तब अलग हो गये थे जब वह पाँच साल की थी। ऐसे बच्चों पर माता पिता के अलग होने का क्या असर होता है वह भी इस उपन्यास में कई बार दर्शाते हैं।

पाठक उपन्यास के शुरुआत में ही यह समझ जाता है कि जिस पार्टी को लेकर  राजीवनगर के युवा इतने उत्साहित है उधर ही कत्लेआम होगा लेकिन यह क्यों होगा और ऐसा करने वाला कौन होगा यह देखने के लिए पाठक उपन्यास पढ़ता चला जाता है। उपन्यास का अंत रोमांच पैदा करने वाला है।


उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास में इंद्र कुमार शुक्ला और प्रोफेसर श्याम का किरदार मुझे रोचक लगा। इंद्र आम पुलिसिये जैसे नहीं है दर्शाए गये हैं। वह ईमानदार हैं और मृदुभाषी हैं। एक पुलिसिया अकड़ जो वर्दी पहनते ही लोगों में आ जाती है वह उनमें नहीं दिखती है। प्रोफेसर श्याम का किरदार भी रोचक है। वह ऐसा व्यक्ति है जो सिस्टम के काहिलपने से आजिज आ चुका और इस कारण क़ानून को हाथ में लेने से नहीं हिचकता है। क्योंकि वह समझदार है तो कानून के लूप होल्स से वाकिफ है और उसका प्रयोग यदा कदा करता रहता है। उपन्यास पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि प्रोफेसर श्याम अगर ऐसा बना तो कैसे बना। मैं उसकी कहानी जरूर जानना चाहूँगा। उपन्यास में साइबर एक्सपर्ट देवेश गौतम एक अतरंगी किरदार है। वह कम समय के लिए आता है लेकिन अपनी छाप छोड़ जाता है। वहीं उपन्यास में राज का किरदार भी रोचक है लेकिन उसे कम जगह मिली है। अविका के दोस्तों रीना, विकास, प्रिंस, आस्था इत्यादि के किरदार भी लेखक ने रोचक तरह से गड़े हैं। इनके बीच की चुहलबाजी पढ़ने में मजा आता है। 

उपन्यास में कुछ कमियाँ भी मुझे लगी जिनका जिक्र मैं इधर करना चाहूँगा। 

उपन्यास में थोड़ा बहुत प्रूफिंग की गलतियाँ हैं जो कि खीर में कंकड़ सी प्रतीत होती हैं। एक दो जगह नाम की भी अदला बदली हो गयी है जो कि खटकती है। 

उपन्यास को तीन हिस्सों  में विभाजित किया गया है और इनके शीर्षक तारीखों के हिसाब से दिए हैं। यह तारीखें  14 फरवरी 1999, 8 फरवरी 2020 और 14 फरवरी 2020 हैं। 8 फरवरी 2020 शीर्षक में 8 से 14 के बीच होने वाली घटना दर्ज की गयी हैं जो कि कंफ्यूज करती हैं। मुझे लगता है कि तारीखों के हिसाब से किताब का  विभाजन अगर करना था तो 8 के बाद सीधे 14 लाने से बचना चाहिए था। बीच की तारीखों को भी रखना चाहिए था। अगर ऐसा सम्भव नहीं था तो छोटे छोटे अध्यायों में कहानी को विभाजित किया जा सकता था।

उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो उपन्यास को सेटअप करने में काफी वक्त लिया गया है। इससे कथानक की गति थोड़ा धीमी लगती है। सभी लोग डेथ फेस की बात करते दिखते हैं लेकिन वह आखिर तक नहीं दिखाई देता है। यह बातें आधे से ज्यादा उपन्यास तक चलती हैं। स्लैशर में अक्सर कहानी की शुरुआत में ही कातिल आ जाता है या कत्ल शुरू हो जाते हैं। इससे कहानी में रोमांच बन जाता है। ऐसा ही इधर भी होता तो बेहतर रहता। 

कथानक का ही एक दूसरा पहलू कॉलेज के छात्रों का चित्रण है। मुझे लगता है लेखक अमरीकी फिल्मों से काफी प्रभावित हैं क्योंकि इधर चित्रण कुछ वैसा ही किया गया है। मुझे याद है जब मैं कॉलेज में था तो हमारे कॉलेज में छात्रों के पास बाइक्स होती थीं लेकिन इधर कारें आम दिखाई गयी हैं। एक पल को मान भी लिया जाए कि अविका के दोस्त सभी अमीर हैं लेकिन फिर राज नाम के किरदार के पास तक कार होना कुछ अजीब लगता है। एक व्यक्ति जिसके पास पहनने के लिए कपड़े न हो कार में घूम रहा है फिर वह चाहे कितनी ही पुरानी हो थोड़ा अजीब लगता है। हो सकता है 2020 में ऐसा भारतीय कॉलेज में होता हो लेकिन मुझे यह पचाने में थोड़ी दिक्कत हुई थी।

राज की बात आई है तो राज के पिता जिस हालत में हैं उसमें कैसे पहुँचे जिस पर भी कोई बात नहीं की गयी है। आखिर में राज द्वारा उनका इलाज करवाने की बात है लेकिन राज 20-21 साल का ही होगा और इलाज की शुरुआत उसके 15 सोलह साल के होने पर ही होगी। इन बीच के वर्षों में क्या हुआ इस पर भी बात नहीं की गयी है जो कि अजीब है क्योंकि राजवीरसिंह एक अहम किरदार है और इस पार बात की जानी चाहिए थी।

उपन्यास में डेथफेस कौन है यह एक राज रहता है और आखिर में खुलता है। लेकिन लेखक के यह राज खोलने से पहले ही इस बात का अंदाजा हो जाता है कि डेथ फेस कौन होगा। निकलता भी वही व्यक्ति है तो यह थोड़ा सा कहानी का कमजोर पहलू लगा। हाँ, उपन्यास का अंत इस तरह से किया गया है कि यह मन में कई प्रश्न यह छोड़ देता है। 

21 साल बाद यह कत्लेआम क्यों हुआ और उसके बीच क्यों नहीं हुआ? कत्ले आम की विडियो फुटेज किसने बनाई? डेथ ऑयज कौन है?  यह कुछ ऐसे प्रश्न है जो लेखक पाठक के लिए छोड़ देता है। यह चीज कथानक की समाप्ति पर असंतुष्टि का भाव जगाती है। मुझे लगता है बेहतर होता कि अगर लेखक एक झलक नाम के अध्याय को उपन्यास में रखते ही नहीं।

अंत में यही कहूँगा कि पार्टी स्टार्टेड नाऊ के साथ लेखक ने एक अच्छी कोशिश करी है। यह एक पठनीय स्लैशर उपन्यास है जो कि इस विधा के सभी तत्वों का इस्तेमाल करता है। अगर उपन्यास में सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर दे दिया जाता तो शायद बेहतर होता। उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है।

किताब लिंक: किंडल

© विकास नैनवाल 'अंजान'
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15 Comments
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  1. हार्दिक आभार विकास भाई। जानकर बेहद खुशी हुई कि उपन्यास आपको पसंद आया। उपन्यास का अगला भाग जल्द लाने का प्रयास रहेगा।

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    1. उपन्यास के अगले भाग की प्रतीक्षा है, ब्रजेश भाई... काफी प्रश्नों का उत्तर उसी के बाद मिलेंगे...आभार....

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    2. जी। अगला भाग शीघ्र लाने का प्रयास रहेगा।

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  2. नमस्कार विकार सर , मैंने अभी यह उपन्यास तो नहीं पढ़ा। पर लोग कहते अच्छा उपन्यास है । मे आपसे यह निवदेन करना चाहता हूं। की नए - नए उपन्यासों की समीक्षा दे। ताकि पाठक नए लेखकों के उपन्यास पढ़े ।

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    1. नमस्कार जयदेव सर.... उपन्यासों के मामले में मेरा तो यह मानना है कि अगर पाठक ने वो पढ़ा नहीं है तो फिर चाहे वो सौ साल पहले लिखा गया हो उसकी नजर में वह नया ही रहेगा...फिर भी उभरते हुए लेखकों के उपन्यासों के विषय में ज्यादा लिखने की कोशिश रहेगी...आभार...

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    1. चर्चा अंक में पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार,सर।

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  4. हिन्दी मे स्लैशर आने मे काफी देरी हो गई। ज़ी सेटरडे सस्पेंस देख रहा था। उसका पहला एपिसोड ही आई नो व्हाट यु डीड लास्ट समर की कॉपी थी। तब स्लैशर जॉनर का इतिहास छान मारा था। यह अब पहले जितना प्रचलित नही रहा पश्चिम मे। यहाँ भारत मे कुछ फिल्मे बनी थी, पर उन्हें उतना पसंद नही किया गया।
    आज के नेटफ्लिक्स युग मे तो ज्यादातर हॉरर प्रेमी स्लैशर फिल्मे देख ही चुके है और अब उसमे कुछ नया बचा नही है।

    अजिंक्य जी भारतीय पृष्ठभूमि के साथ प्रयोग कर सकते है और इस लगभग मृत जॉनर को पुनः जीवित कर सकते है।

    साथ ही नितिन मिश्रा की वेयर इज़ दी वेयरवुल्फ को भी हम स्लैशर कह सकते है। वह भी पहली भारतीय स्लैशर उपन्यास की दावेदार है। ऐसे मुझे इन दोनो उपन्यासों की प्रकाशन तारीख नही पता।

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    1. हिन्दी में देरी हो गयी है यह बात सही है। इस बात से सहमत नहीं कि यह जॉनर मृतप्राय है क्योंकि मूवीज लगातार आ रही है। यह फिल्में अक्सर कम बजट की होती हैं तो इतना प्रचार नहीं होता है। 2020 में भी कुछ स्लैशर फिल्में आई थी। रही बात नई की तो मुझे बाकी पाठकों का नहीं पता लेकिन मैं कुछ नया पाने के लिए अब उपन्यास नहीं पढता हूँ क्योंकि सही बताऊँ तो कहानियाँ रिपीट ही होती हैं। बस अगर लेखक अपनी लेखनी के जादू में बाँध सके तो यह मेरे लिए काफी होता है। इस मामले में सम्भावना काफी हैं। वैसे भी स्लैशर के प्रमुख पहलु रोमांच और रहस्य होते है और अगर लेखक यह दोनों चीजें बनाकर रख पाता है तो मैं संतुष्ट हो जाता हूँ। सही बताऊँ तो पाठक के रूप में मैं बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाता हूँ इसलिए हर तरह का साहित्य का लुत्फ़ भी उठा पाता हूँ।

      नितिन मिश्रा के उपन्यास की आपने सही याद दिलाई। वह स्लैशर ही है। उन्होंने थोड़ा बहुत फॉर्मेट बदल दिया था तो ध्यान नहीं रहा उसका। याद दिलाने के लिए आभार। हो सकता है ऐसे ही और भी छुपे हों।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, सर....

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  6. उत्सुकता जगाती समीक्षा

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