नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

11:59 - मिथिलेश गुप्ता

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट:
ई-बुक | प्रकाशक: बुककेमिस्ट | पृष्ठ संख्या: 66| ए एस आई एन:B086KYCRTY
किताब लिंक: पेपरबैक किंडल 

समीक्षा: 11: 59 - मिथिलेश गुप्ता


पहला वाक्य:
कार की स्पीड लगभग 80 से 90 प्रति घंटा रही होगी।

कहानी:
शहर के उन जंगलों के बीच मौजूद रास्ते के विषय में कई तरह की कहानियाँ प्रचलित थीं। लोगों का कहना था कि अमावस्या की रात को वहाँ शैतानी ताकतें जागृत हो जाती थीं। उनका मानना था कि जो भी उधर से निकलता था उसके साथ कुछ न कुछ बुरा ही होता था। 

लेकिन अभिमन्यु इन सब बातों को नहीं मानता था। उसे लगता था कि यह सब लोगों के फैलाए अंधविश्वास थे और इन बातो में कोई सच्चाई नहीं थी। इसीलिए जब अपने बर्थडे पार्टी के लिए वो अपने दोस्तों के साथ अपने चाचा के फार्म हाउस के लिए निकला तो उसने जंगलों के बीच से जाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा। 

अभिमन्यु जानता था कि एक डेढ़ घंटे का सफर होने वाला था और उसे लगता था कि इतने वक्त उनके साथ क्या ही बुरा हो सकता था। 

आखिर जंगलों से जाने वाले उस रास्ते के विषय में कैसी कहानियाँ प्रचलित थीं?
क्या इन कहानियों में कोई सच्चाई थी या ये केवल कोरी गप थीं? 
आखिर 11:59 के पीछे क्या राज था?

मुख्य किरदार:

अभिमन्यु सिंह - कहानी का मुख्य किरदार 
संजना - अभिमन्यु की प्रेमिका 
रोनित - अभिमन्यु का दोस्त 
रूद्र - अभीमन्यु का चचेरा भाई 
टीना - अभीमन्यु की चचेरी बहन

मेरे विचार:

11:59 मिथिलेश गुप्ता की दूसरी हॉरर कृति है। इससे पहले उन्होंने वो भयानक रात लिखी थी जो कि उनके शहर से जुड़ी एक सत्य घटना से प्रेरित थी। 11:59 की कहानी की बात करूँ तो सबसे पहले यही कहूँगा कि यह कहानी वो भयानक रात की कहानी से ही जुड़ी हुई है। 11:59 में जिस घटना का उल्लेख किया है वह वो भयानक रात में दर्शायी गयी घटना के एक साल बाद उसी इलाके में घटित होती है। 
11:59 की कहानी मूलतः अभिमन्यु और उसके साथियों के उस सफर की कहानी हैं जो उन्होंने अपने घर से अपने फार्म हाउस तक जाने के लिए किया था। इस सफर के दौरान उनके साथ क्या क्या घटनाएं घटित होती हैं इसी को लेखक ने इसमें दर्शाया है। 

चूँकि यह कहानी उसी पृष्ठभूमि पर लिखी गयी है जिस पर वो भयानक रात लिखी गयी थी तो इसकी कहानी और  वो भयानक रात की कहानी में समानता होना लाजमी है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे इन समानताओं से उतनी परेशानी नहीं हुई क्योंकि हॉरर या किसी भी जॉनर फिक्शन में समानताएं होना लाजमी हैं। वो एक जैसी होते हुए भी कई मामलों में अलग होती हैं। 
ऐसे में 11:59 की कहानी को पढ़ना रोमांचक हो सकता था लेकिन कई कारणों से वजह से ऐसा नहीं हो पाया।
मेरी नजर में कहानी की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसे जरूरत से ज्यादा खींचा गया है। अभिमन्यु और उसके दोस्तों की कहानी को 11 दृश्यों में विभाजित किया गया है। इन ग्यारह दृश्यों में जो कहानी घटित होती है वह खींची हुई सी लगती है। कई बार किरदारों के डायलॉग भी बिना वजह बढ़ाये हुए लगते हैं। यहाँ पर कई चीजें सम्पादित होकर काटी जा सकती थी।

किताब की दूसरी कमी जो मुझे लगी वह इसका कहानी कहने का तरीका था। कहानी प्रथम पुरुष में है जिसके विषय में मेरा मानना है कि यह कहानी को काफी हद तक सीमित कर देता हैं क्योंकि पाठक केवल एक ही व्यक्ति के नजरिये से कहानी देख पाता है। उदाहरण के लिए इस कहानी को चूँकि हम अभिमन्यु की नजर से देखते हैं तो संजना के साथ कहानी में क्या होता है इसके विषय में हमें आखिर तक पता चलता ही नहीं है। वहीं टीना और रूद्र जब जंगल में भागते हैं तो उनके साथ क्या होता है यह भी पता हमें चलता तो है लेकिन वह रूद्र के वक्तव्य से पता लगता है जो कि सुनते हुए उतना रोमांच पैदा नहीं कर पाता है जितना की तब पैदा होता जब पाठक वह सब घटित होते हुए देखता। यह सब तभी मुमकिन था जब कहानी तृतीय पुरुष में होती। 

कहानी में कई जगह किरदार डर, डरावना जैसे  शब्दों का अत्याधिक प्रयोग करते हुए दिखते हैं जो कि वैसा डर पैदा करने की जगह कई बार खीझ पैदा करते हैं। बेहतर होता कि इन शब्दों का प्रयोग करे बैगैर दृश्यों के विवरण के माध्यम से लेखक ऐसी अनुभूति पाठक के मन में पैदा करने में सफल होते। लेकिन अभी ऐसा नहीं होता है। 

कहानी के अंत में कहानी में मौजूद परालौकिक तत्वों के विषय में जानकारी दी जाती है। वह कौन है यह भी बताया जाता है परन्तु इस बार भी यह नहीं बताया गया है कि इस रास्ते में ऐसा क्या है जो कि यह तत्व सक्रिय हो गये थे। इससे एक अधूरापन सा कहानी में मौजूद रहता है।

यह सब कमियाँ मिलकर कहानी को उतना प्रभावी नहीं बना पाते हैं जितना कि यह हो सकती थी।

अंत में यही कहूँगा कि 11:59 जल्दी में ही लिखी गयी लगती है।  अगर मुख्य कहानी थोड़ी छोटी भी होती तो यह कसी हुई होती जिससे रोमांच बरकरार रह सकता था जो कि अभी गायब है। वहीं चूँकि कहानी एक सफर की है जो कि वो भयानक रात के  समान है तो इस समानता को तोड़ा जा सकता था। इस समानता तो तोड़ने में लेखक सफल नहीं हुए हैं।  मुझे इससे इतना अधिक फर्क नहीं पड़ा लेकिन कई पाठकों को पड़ सकता है। मुझे लगता है  किसी दूसरे कोण से इस कहानी को कहा जाता तो बेहतर होता। उदाहरण के लिए इस कहानी में वो भयानक रात में घटित हुई घटना का जिक्र है तो अगर कहानी के किरदार एक आम सफर में जाने की जगह इन घटनाओं के तफ्तीश करने आते तो शायद एक बेहतर और अधिक रोमांचक कहानी बन सकती थी। यह चीज उस समानता को भी तोड़ती जो कि उनकी पिछली हॉरर किताब से अभी साफ़ महसूस की जा सकती है।

लेखक से मुझे काफी उम्मीदें हैं। आशा है अगली बार उनकी कलम से कोई सशक्त कहानी निकलेगी।

किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल 

© विकास नैनवाल 'अंजान'

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

6 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (27-01-2021) को  "गणतंत्रपर्व का हर्ष और विषाद" (चर्चा अंक-3959)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी चर्चा लिंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार....

      Delete
  2. क्या अपने रेटिंग देना बंद कर दिया अब!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, इस साल से रेटिंग हटा दी हैं। काफी दिनों से मैं हटाना चाह रहा था तो इस साल से उनसे किनारा कर ही दिया।

      Delete
  3. गहन समालोचना,कहानी में बहुत भटकाव है या फिर कसाव कम है फिर भी आपकी समीक्षा कहानी के प्रति आकर्षण उत्पन्न कर रही है ।
    कहानीकार और समीक्षक दोनों को बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी किताब अमेज़न पर उपलब्ध। पढ़कर देखिएगा। आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल