नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तिजोरी का रहस्य - इब्ने सफ़ी

फॉर्मेट: पेपरबैक | प्रकाशक: हार्पर हिन्दी | श्रृंखला: जासूसी दुनिया #4पृष्ठ  संख्या: 133 | अनुवादक: चौधरी ज़िया इमाम

समीक्षा: तिजोरी का रहस्य - इब्ने सफी
तिजोरी का रहस्य -इब्ने सफ़ी

पहला वाक्य:
रात के लगभग साढ़े ग्यारह बजे थे।

कहानी:
शहर के पुलिस वाले लगातार हो रही अजीब डकेतियों से परेशान चल रहे थे। शहर में चोरों का एक गिरोह सक्रिय था जो कि शहर के धनाढ्य लोगों की तिजोरी में डाका तो डाल रहा था लेकिन वहाँ से कुछ चोरी नहीं कर रहा था। 

शहर के जाने माने रईस अग्रवाल के घर से शुरू हुआ यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। वहीं चोरी के पश्चात किसी रहस्यमय व्यक्ति ने अग्रवाल को गोली मारकर घायल भी कर दिया था।

इंस्पेक्टर जगदीश, जिसके इलाके में यह चोरियाँ हो रही थी, जब  इन बातों  का कुछ पता न लगा पाया तो वह मदद माँगने सी आई डी इंस्पेक्टर फ़रीदी के पास आया। फरीदी ने एक मामले में उसकी पहले भी मदद की थी जिसके चलते जगदीश को तरक्की मिली थी।  जगदीश को यकीन था कि इस बार भी फ़रीदी उसकी मदद करेगा। 

फ़रीदी ने मामले की तहकीकात करने का भरोसा जगदीश को दिया तो सही लेकिन फिर वह भी अचानक से गायब हो गया।  

आखिर इन अजीब चोरियों के पीछे किसका हाथ था?
वह क्यों चोरियाँ कर रहे थे? 
अग्रवाल को किसने गोली मारी थी?
फरीदी अचानक किधर गायब हो गया था?
क्या फरीदी और सार्जेंट हमीद की जोड़ी इन डकेतियों का पता लगा पाए?


महत्वपूर्ण किरदार:
सेठ अग्रवाल - शहर का एक नामी रईस 
जगदीश - अग्रवाल के इलाके के थाने का सब इंस्पेक्टर 
इंस्पेक्टर फरीदी - सी आई डी इंस्पेक्टर 
सार्जेंट हमीद -  फरीदी का मातहत 
शहनाज - फरीदी और हमीद की पहचान की एक युवती जिससे हमीद का इश्क चल रहा था 
दिलावरखान - एक नामी बदमाश 
संतोष - होटल नोवेल्टी का मालिक 
सब इंस्पेक्टर बनर्जी - एक सी आई डी अफसर

मेरे विचार:
तिजोरी का रहस्य जासूसी दुनिया श्रृंखला का चौथा उपन्यास है। यह उपन्यास प्रथम बार 1952 में प्रकाशित हुआ था। इस संस्करण का अनुवाद चौधरी ज़िया इमाम ने किया है और अनुवाद अच्छा हुआ है।

उपन्यास शहर में अग्रवाल के घर में हुई चोरी से शुरू होता है जहाँ चोर आते तो हैं लेकिन अग्रवाल के अनुसार कुछ चुराते नहीं हैं। यहीं से रहस्य शुरू हो जाता है क्योंकि पाठक को जल्द ही पता लगता है कि कुछ तो अग्रवाल के घर से चुराया ही गया है। वहीं चोरियाँ कौन कर रहा था यह भी पाठक को बहुत जल्द पता लग जाता है। चोर चोरी क्यों कर रहे हैं और उन्होंने अग्रवाल के घर से क्या चुराया यह बातें पाठक की उत्सुकता कथानक में बनाकर रखती हैं। इन बातों को जानने के लिए वह पृष्ठ पलटता जाता है। 

उपन्यास में कुछ राज उजागर होते हैं तो कुछ नये आ राज रहस्य बरकरार रखने के लिए उत्पन्न हो जाते हैं।उपन्यास में कई ऐसे दृश्य और संवाद भी हैं जो कि हास्य पैदा करते हैं। यह दृश्य और संवाद पाठक का भरपूर मनोरंजन करते हैं।

फ़रीदी और हमीद के बीच की बातचीत का एक उदाहरण देखिये:

"वाह बेटा... बड़े अच्छे रहे। जब इम्तहान का वक्त आया तो जान निकल गयी। तभी तो देखी जायेगी तुम्हारी बहादुरी।"
"लाहौल विला कूवत..." हमीद ने कहा। "कितनी बार आपको यकीन दिला चुका हूँ कि मैं इन्तहाई बुजदिल हूँ, मगर आप कुछ सुनते ही नहीं।"
"मैं जानता हूँ कि तुम मज़ाक करते हो।"
"जी नही...आप इस तरह मत जाना लिया कीजिये। मैं बहुत ही बुज़दिल हो गया हूँ।"

फ़रीदी और शहनाज के बीच की बातचीत:

"मेरी हर बात तो इसी तरह बेकार की होती है।"
"देखो, मैं अपना सिर फोड़ लूँगा।"
"नहीं, ऐसा करने की जरूरत नहीं, मैं अब कभी आपसे न मिलूँगी।"
"आखिर क्यों..."
"मुझे क्या पड़ी है कि आपसे बातें करके आपको सिर फोड़ने पर मजबूर करूँ।"
"खुदा की कसम, मैं हार गया। लो, बोलता हूँ... कुकडू कूँ...कुकडू कूँ,कुकडू....!"
"अरे अरे, चुप रहिये! फ़रीदी साहब क्या कहेंगे।" शहनाज घबरा कर बोली।
"नहीं साहब.... मैं तो बोलूँगा.. कुकडू कूँ..."

उपन्यास का कथानक तेज रफ्तार है और घटनाएं तेजी से होती है। 
और हर घटना के बाद मूल रहस्य जानने की उत्कंठा बढ़ जाती है। उपन्यास में कहीं ऐसी चीज  नहीं है जो कि फालतू पृष्ठ बढ़ाने के लिए रखी गयी हो। इससे उपन्यास के कथानक में कसावट रहती है।


हाँ, व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसे कथानक, जिसमें पाठक को मुख्य नायक से कम जानकारी होती है, पढ़कर थोड़ा असंतुष्टि होती है। यह मुझे एक तरह से रहस्य बनाने का सरल तरीका लगता है। जबकि मेरी व्यक्तिगत राय में एक अच्छी रहस्यकथा वह है जिसमें मुख्य नायक भी कथानक की शुरुआत में मामले से उतना ही अंजान होता है जितना की पाठक। फिर जब वह तहकीकात करते हुए रहस्य से पर्दा उठाता है तो पढ़ते हुए मजा आता है। यहाँ काफी बातें फ़रीदी को पहले से पता होती हैं और जो तहकीकात वो करता भी है तो  वह करते हुए उसे दर्शाया नहीं जाता है। बस आखिर में फ़रीदी कह देता है कि मैंने यह पता लगाया। इसलिए एक तरह की असंतुष्टि मन में बनी रहती है। मेरे ख्याल से उपन्यास की संरचना और बेहतर हो सकती थी।

इसके अलावा उपन्यास के अंत में जो पुलिस और खलनायकों के बीच का द्वंद है वह ज्यादा रोमांचक तरीके से करा जा सकता था लेकिन वह जल्दी में निपटाया गया लगता है। 

अंत में यही कहूँगा कि एक रहस्यकथा के रूप में उपन्यास सफल है। उपन्यास का फॉर्म मुझे पसंद नहीं आया पर रहस्य अंत तक बरकरार रहता है और पाठक को पढ़ते जाने के लिए विवश करता है।  उपन्यास में कई कॉमिक सीन्स हैं जो कि हास्य पैदा करते हैं और जिन्हें पढ़कर मजा आता है। इस कारण उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है।


    
उपन्यास आप निम्न लिंक से प्राप्त कर सकते हैं:
पेपरबैक

हार्पर हिन्दी  से प्रकाशित जासूसी दुनिया के सभी 8 उपन्यास दो भागों में उपलब्ध हैं। इन्हें निम्न  लिंक से खरीदा जा सकता है:
जासूसी दुनिया भाग 1 | जासूसी दुनिया भाग 2

© विकास नैनवाल 'अंजान'
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