नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पुस्तक अंश: प्यार के रंग - अरुण गौड़

रुण गौड़ अपनी लेखनी के माध्यम से जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर करने की कोशिश करते रहते हैं। उनके व्यंग्य और कहानियाँ देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं। 

प्यार के रंग अरुण गौड़ का दूसरा कहानी संग्रह है जो कि फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। उनका पहला कहानी संग्रह छोटू भी फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हो चुका है। 'प्यार के रंग' में उनकी कुल 7 प्रेम कहानियों को संकलित किया गया है।

लेखक अपने नव-प्रकाशित कहानी संग्रह के विषय में कहते हैं:

मैंने इस कहानी संग्रह में प्यार को पाने की चाहत, उसके लिये समर्पण, इंतजार और कोशिश को दिखाया है। मैंने कोशिश की है कि हर एक कहानी प्यार का एक अलग की रूप आपने सामने लेकर आये जो आपको हँसाए भी और कभी आपको सोचने को भी मजबूर करे। 

    
- विकास नैनवाल 'अंजान'


***********************************************************************
***********************************************************************


प्यार के रंग - अरुण गौड़


अधूरा इश्क

आज फिर से वह दिखी थी। शायद दस साल बाद। नहीं, उससे थोड़ा ज्यादा। उसका बदन पहले से थोड़ा-सा भारी हो गया था, लेकिन चेहरे पर वही पुरानी मासूमियत मौजूद थी, जैसी स्कूल के दिनों में होती थी।

जब पहली बार उसे स्कूल में देखा था तब भी उस पर नजर ठहर-सी गयी थी और आज अर्से बाद इस चेहरे को देखा है तो कमबख्त नजर उससे हट ही नहीं रही थी। करिश्मा, करिश्मा शर्मा नाम था उसका। दोस्त लोग उसे खुशी कहते थे और हम, हम तो कुछ कहते ही नहीं थे। क्योंकि हमारी कभी बोलने की हिम्मत ही नहीं होती थी उससे। बस उसे देखते थे चोर नजरों से।

फिर एक दिन स्कूल आते हुए वह परेशान-सी रास्ते में खड़ी हुई दिखायी दी। उसकी साईकल खराब हो गयी थी। मैंने दूर से ही उसे पहचान लिया। उसे ऐसे परेशान देखकर मेरे अंदर का दोस्त जागा। मन हुआ कि उसे आगे बढ़कर उसकी परेशानियों को अपने कंधे पर उठा लिया जाये। तत्काल उसकी साईकल सही कराई जाये। लेकिन फिर एक अंजान डर ने मेरे अंदर के दोस्त को रोक लिया। शायद सही ही किया उसने, क्योंकि दो दिन पहले की क्लास में जबरन हेल्प करने के बहाने से दोस्ती आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे चंदन को क्या लताड़ लगाई थी उसने। मुझे सबके सामने ऐसी लताड़ नहीं खानी थी। मुझे चंदन नहीं बनना था, इसलिये मैं तो सीधा ही चलता रहा अपनी राह पर।

तभी मुझे एक आवाज आयी, ‘हैलो, राहुल!’

हैलो।

यह शब्द सुनते ही मैं समझ गया था कि ये किसकी आवाज है! मेरा दिल बहुत जोर से धड़का। मैंने पलटकर देखा।

चेहरे पर परेशानी लिये करिश्मा हाथ हिलाकर मुझे पुकार रही थी। उसका थका हुआ चेहरा देखते ही मेरे हाथों ने दिमाग के कुछ आदेश देने से पहले ही जोर से ब्रेक लगाकर मेरी चलती हुई साईकल को रोक दिया।

‘अरे करिश्मा, क्या हुआ?’ सबकुछ जानकर भी अंजान बनते हुए मैंने कहा।

‘राहुल, मेरी साईकल की चेन पता नहीं कैसे फँस गयी है। निकल ही नहीं रही है। क्या तुम मेरी हैल्प करोगे, प्लीज?’ करिश्मा ने कहा।

‘हेल्प और मैं!’

कसम से खुशी के मारे दिल डांस-सा ही करने लगा था, लेकिन अपने अरमानों को खुद में ही कैद करके मैंने कहा, ‘हाँ, क्यों नहीं! अभी ठीक कर देता हूँ।’

मैं तत्काल अपनी साईकल से उतरा और अपने इंजीनियरिंग कौशल का परिचय देने लगा। सच में ही बहुत बुरी तरह से फँसी हुई थी चेन। निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी। लेकिन इस तरह उस खूबसूरत लड़की के सामने हार मानना भी तो नामुमकिन था। इसलिये अपना सारा जोर लगाकर मैंने चैन निकाल दी और करिश्मा की साईकल ठीक कर दी।

‘थैक्यू राहुल! तुमने मेरी हेल्प की। अब मैं स्कूल जा सकती हूँ, लेकिन तुम शायद आज स्कूल नहीं जा सकोगे।’

‘क्यों?’ मैंने आश्चर्य से पूछा।

‘मेरी हेल्प के चक्कर में तुम्हारी शर्ट खराब हो गयी है।’ उसने धीरे से कहा।

मैंने खुद को देखा। सच में मेरी शर्ट खराब हो चुकी थी।

‘हाँ, शायद मैं स्कूल नहीं जा सकूँगा। ठीक है करिश्मा, आप जाओ!’ मैंने अपनी साईकल वापस घुमाते हुए कहा।

वह साईकल लेकर चलने लगी। फिर रुककर बोली, ‘करिश्मा नहीं, खुशी। मेरे सभी दोस्त मुझे इसी नाम से बुलाते हैं।’ खुशी ने मुस्कुराकर कहा।

‘ओके, खुशी!’

कसम से यह नाम लेते हुए मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे। यह खूबसूरत लड़की मुझे दोस्त समझती है। यही बहुत था मेरे लिये।

अगले दिन मैं स्कूल के रास्ते में उसका इंतजार करता रहा, लेकिन वह नहीं आयी। हारकर मैं अकेला ही स्कूल पहुँचा। वहाँ खुशी पहले ही आ चुकी थी। आज उसके पापा उसे स्कूटर से छोड़कर गये थे। शायद उसकी साईकल में अभी भी कोई परेशानी थी।

मेरी नजर तो जाते ही उस पर टिक गयी थी, लेकिन जुबान से खुद पहल करके बोलने से इंकार कर दिया था। इसलिये उसे देखकर भी नजरअंदाज करके मैं क्लास में पहुँच गया।

अटेंडेस लग चुकी थी और मैम को आने में कुछ समय था। मेरे दोस्त मुझसे बातें कर रहे थे, लेकिन मेरा मन तो खुशी से बात करने में ही अटका हुआ था।

अचानक से वह पलटी। उसने मुझे देखा और मुस्कुरायी। बदले में मैं भी मुस्कुराया। उसने हाथ की घड़ी पर इशारा करके पूछा, ‘इतना लेट कैसे हो गये?’

मैंने बस मुस्कुराकर ही उसके सवाल को टाल दिया। अब ये तो नहीं कह सकता था कि तुम्हारे इंतजार में देर हो गयी।

हमारी नजरों की भाषा को मेरे दोस्त लोग भी पढ़ रहे थे, लेकिन गनीमत ये थी कि किसी ने इसमें अपनी टाँग नहीं अड़ायी।

क्लास शुरू हो गयी। उस दिन पढ़ने में एक नया ही उत्साह था।

लंच टाइम हुआ। सब खाना खा रहे थे, लेकिन यहाँ तो भूख ही गायब थी। भूख थी तो अपनी नई दोस्त से बातें करने की। लंच टाइम का समय मैं खाने पर वेस्ट नहीं करना चाहता था। लेकिन खुशी ने रोज की तरह अपनी सहेलियों के साथ लंच किया। शायद वह मुझसे बात करने के लिये इतनी आतुर नहीं थी, जितना कि मैं था।

मैंने उसका वेट किया। खुद आगे बढ़कर बात नहीं की। थोड़ी देर बाद वह अपनी सहेलियों के साथ बाहर आयी। उसने मुझे देखा और बोली, ‘हैलो राहुल!’

‘हैलो करिश्मा!’ मैंने कहा।

‘अब भी करिश्मा! मैंने कल बताया था न कि मेरे दोस्त मुझे खुशी कहते हैं।’ उसने नाराजगी दिखाते हुए कहा।

‘ओह हाँ, भूल गया था! क्या करूँ, पहले से करिश्मा नाम ही जानता हूँ आपका तो बस वही याद रहा।’

मैंने नासमझ बनते हुए कहा था, लेकिन सच तो यह था कि मैं उसके मुँह से एक बार फिर अपने लिये दोस्त शब्द सुनकर उसकी और अपनी दोस्ती को कन्फर्म करना चाहता था।

‘अब तो जान गये हो न मेरा नाम। अब मत भूलना, क्योंकि अगर फिर से तुमने मुझे करिश्मा कहा तो फिर हमारी दोस्ती खत्म।’ उसने अपनी बड़ी-सी आँखों को और बड़ा करते हुए कहा।

‘नहीं-नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा। सॉरी!’ मैंने कहा।

मेरे सॉरी बोलने पर वह मुझे देखती रही, फिर बोली, ‘तुमने मैंने प्यार किया मूवी देखी है?’

‘हाँ, देखी है! कुछ दिन पहले टीवी पर देखी थी।’ मैंने कहा।

‘तो तुम्हें याद होगा कि उसमें भाग्यश्री एक डायलॉग कहती है, दोस्ती में नो सॉरी, नो थैंक्यू।’ उसने कहा।

‘हाँ, कहती है यह डायलॉग वह।’ मैंने जवाब दिया।

‘मैं हमेशा इस डायलॉग को फॉलो करती हूँ और अगर तुम मेरे से दोस्ती रखना चाहते हो तो तुम भी इसे फॉलो करो। आज से नो थैंक्यू, नो सॉरी। समझे!’ उसने हँसते हुए कहा।

‘समझ गया मैडम और कोई रूल हो आपकी दोस्ती का तो बता दो। ताकि मैं फिर से कोई रूल न तोड़ सकूँ।’ मैंने हँसते हुए कहा।

‘नहीं, आज के लिये इतना ही काफी है।’ उसने कहा और हम दोनों हँसने लगे।

हमारी दोस्ती उस दिन से शुरू हुई। सच बात तो यह है कि उससे दोस्ती मेरा सपना था। सभी लड़के उससे दोस्ती करना चाहते थे, लेकिन वह किसी को भी भाव नहीं देती थी। कभी किसी को नॉर्मल हाय, हैलो से आगे नहीं बढ़ने देती थी।

पहले हम दोस्त बने। धीरे-धीरे से बहुत अच्छे दोस्त और फाइनली हम एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त बन गये। वह मेरे बारे में हर बात जानती थी और मैं उसके बारे में। उसे कोई परेशानी न हो, मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था। उसके बिना मुझे स्कूल काटने को आता था। बहुत खालीपन लगता था। शायद वह भी मेरे बिना ऐसा ही महसूस करती थी, क्योंकि जिस दिन स्कूल न आऊँ या उसे न मिलूँ, उसके अगले दिन वह कम-से-कम दस बार मुझसे पूछती थी कि कहाँ थे? कल क्यों नहीं आये? नहीं आना था तो पहले भी तो बता सकते थे।

हमारी दोस्ती इतनी क्लोज थी कि मेरे सभी दोस्तों को लगता था, हमारा अफेयर चल रहा है। लेकिन ऐसा नहीं था। मैं उसे मन-ही-मन चाहता था, लेकिन उसके लिये शायद मैं एक दोस्त ही था और मैं उसकी दोस्ती कभी खोना नहीं चाहता था। जो चल रहा था उसे ऐसे ही चलने देना चहता था।

एक दिन खुशी स्कूल नहीं आयी थी। उसकी सहेली पिंकी ने बताया कि उसे हल्का-सा फीवर है। खुशी के बिना स्कूल टाइम काटना भी मुश्किल हो रहा था। उस दिन हमारी मैंथ्स की मैम भी नहीं आयी थीं। पीरियड खाली था। सभी दोस्त खाली पीरियड में बैठे हुए बात कर रहे थे। बातों से बातें निकल रही थीं और निकलते-निकलते बात आ पहुँची मेरे और खुशी के रिलेशन के बारे में। दोस्तों को तो विश्वास था कि मेरा उसके साथ अफेयर चल रहा है और मैं भी उनका विश्वास बनाये रखता था। क्योंकि भले ही झूठ सही, लेकिन इस बहाने मैं उन सभी की नजरों में हीरो तो बना हुआ ही था।

‘अच्छा, क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच अभी?’ अजय ने पूछा।

‘क्यों, तुझे पता नहीं है क्या?’ मैंने बेफिक्री से पूछा।

‘हाँ, जो चल रहा है वह तो मुझे पता है। लेकिन उससे आगे क्या चल रहा है?’ अजय ने पूछा।

‘मतलब?’ मैंने नासमझ बनते हुए पूछा।

‘मतलब ये कि इतने समय से इस खूबसूरत फूल को देख ही रहा है या कभी छूआ भी है इसे? कभी पाया भी है?’ चंदन ने लगभग मेरी बेइज्जती-सी करते हुए कहा।

‘मैं उस फूल को देखता हूँ या सूँघता हूँ, इससे तुझे क्या?’ मैंने नाराज होते हुए कहा।

‘हा हा हा, मुझे क्या! अबे, मुझे पहले ही पता था! ये बस ऐसे ही उसके पीछे लगा रहता है। उसने कभी कुछ करना तो दूर, इसे छूने भी नहीं दिया होगा।’ चंदन ने हँसते हुए कहा।

‘नहीं, ऐसा नहीं है।’ मैंने कहा।

‘अच्छा, ऐसा नहीं है तो कैसा है? बता हम सबको।’ अजय ने चंदन के सुर में सुर मिलाते हुए कहा।

उसकी बातें न जाने क्यों मुझे अंदर तक चुभ गयी, इसलिये मैं जोश में बोला, ‘मैंने इस फूल को छूआ भी है और इसकी महक भी ली है और जिसे देखकर तुम सिर्फ लार टपकाते हो, मैंने इस मीठे रसगुल्ले को कई बार चखा है। अब कैसे चखा, कब चखा, ये मैं नहीं बताऊँगा।’ मैंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ झूठ बोलते हुए चंदन की हँसी और उसका मुँह बंद कर दिये।

मेरे यह शब्द कहने पर सारे दोस्तों में एकदम सन्नाटा-सा छा गया। क्लास की सबसे सुंदर लड़की को मैंने पा लिया था। उन सभी को मेरी किस्मत से जलन हो रही थी। उनकी जलन उनके मुरझाये हुए चेहरों से ही महसूस की जा सकती थी।

... आगे जारी है

पूरी कहानी आप उनके संग्रह में पढ़ सकते हैं। 

*****


कहानी संग्रह आप निम्न लिंक से जाकर मँगवा सकते हैं या अगर आप किंडल अनलिमिटेड सब्सक्राईबर हैं तो इसे बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के भी पढ़ सकते हैं:
किंडल


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 23-10-2020) को "मैं जब दूर चला जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3863 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि को शामिल करने के लिए शुक्रिया, मैम।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल