नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

मौत अब दूर नहीं - अजिंक्य शर्मा

किताब 16 अगस्त 2020 से 20 अगस्त 2020 के बीच पढ़ी गयी

संस्करण विवरण:
फॉरमेट : ई-बुक
पृष्ठ संख्या:  202
ए एस आई एन: B07ZKWX31T

मौत अब दूर नहीं - अजिंक्य शर्मा


पहला वाक्य:
जब लीना ने रेलवे स्टेशन चौक पर स्कूटी रोकी तो उस वक्त शाम के छः बजे से ऊपर टाइम हो चुका था तथा आसमान में घने काले बादलों के घिर आने के कारण अभी से हल्का अँधेरा सा होने लगा था।

कहानी:
भारत के पश्चिमी तट पर मुंबई से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित वैशालीनगर के लोग इन दिनों परेशान थे। कुछ दिनों पहले मौसम विभाग ने यह सम्भावना जताई थी कि वैशालीनगर आने वाले दिनों में तूफ़ान की चपेट में आ सकता था।
 
वहीं एक और तूफ़ान सौम्या की जिंदगी में आने वाला था। सौम्या वैशालीनगर में रहती थी और एक साल पहले उसका अपने पति से तलाक हो गया था। अब उसकी बहन चाहती थी कि वह जिंदगी में आगे बढ़े और इस कारण उसने सौम्या को एक ब्लाइंड डेट पर भेजा था। पर उस समय सौम्या के पाँव से जमीन खिसक गयी जब उसे पता चला कि जिस व्यक्ति के साथ उसकी डेट थी उसका उसी रेस्त्रों के शौचालय में बड़ी नृशंसता के साथ कत्ल कर दिया गया था, जहाँ पर वह उसका इंतजार कर रही थी।


मौत ने उसकी जिंदगी में  दस्तक दे दी थी और अब न जाने कब वह उसके पंजों में फँसने वाली थी। 

वहीं इस मामले को सौम्या के लिए और अजीब इस बात ने बना दिया था इस कत्ल की तहकीकात कपिल मिश्रा कर रहा था। वही कपिल मिश्रा जो कभी उसका पति हुआ करता था और जिससे वह अपनी डेट की बात छुपाना चाहती थी।

आखिर किसने किया था  सौम्या के ब्लाइंड डेट का कत्ल? उसका ब्लाइंड डेट कौन था?
क्या एक कत्ल करके कातिल रुक गया या उसकी योजना और भी कत्ल करने की थी?
क्या कपिल इस गुत्थी को सुलझा पाया?

ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़ते हुए पता चलेंगे।

मुख्य किरदार:
सौम्या -  वैशालीनगर में रहने वाली एक डॉक्टर और उपन्यास की नायिका
लीना -सौम्या की बहन 
कपिल मिश्रा - सौम्या का पति और पुलिस इंस्पेक्टर 
अर्णव मेहरा - कपिल और सौम्या का दोस्त 
रवि शुक्ला - वो व्यक्ति जिसके साथ सौम्या ब्लाइंड डेट पर आई थी 
रानी - गुड मील रेस्तौरेंट में एक वेट्रेस और सौम्या की दोस्त 
श्यामलाल - गुड मील रेस्टोरेंट का मालिक 
अमन शिंदे - सब इंस्पेक्टर और कपिल का मातहत और दोस्त 
डॉक्टर माधव - सौम्या का बॉस 
मिसेज मलिका माधव - डॉक्टर माधव की पत्नी 
कंचन माधव - डॉक्टर माधव और मलिका माधव की बेटी
कमलेश्वर -  पोस्ट मार्टम में काम करने वाला एक व्यक्ति 
वीरसिंह - पोस्ट मार्टम में कमलेश्वर का साथी 
सुहैल - पुलिस के साइबर क्राइम टीम का एक सदस्य 
जॉन स्मिथ - वैशाली नगर में रहने वाला एक व्यक्ति जो कत्ल के वक्त रेस्त्रों में मौजूद था 
क्लेयर स्मिथ - जॉन की बेटी 
 विजय भटनागर - एक डॉक्टर और सौम्या का सहकर्मचारी 
शीना सक्सेना - एक युवती 
विराज सक्सेना - शीना का भाई 
मालती माथुर - सौम्या की पड़ोसी 
मेनका लोखण्डे - वीरसिंह की पड़ोसी 

मेरे विचार:
मौत अब दूर नहीं अजिंक्य शर्मा का पहला उपन्यास है। जब से अमेज़न किंडल की किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग की सेवा शुरू हुई है तभी से इसने लेखकों को एक तरह की स्वंत्रता दे दी है। लेखक इस सेवा का इस्तेमाल करके अपने लेखन को स्वयं प्रकाशित कर सकते हैं और एक वृहद पाठकवर्ग के समक्ष अपनी रचना को रख सकते हैं। इस माध्यम से अब ऐसे लेखकों को भी मौक़ा मिला है जिन्हें अपनी रचना पर यकीन है और जो बिना किसी प्रकाशक  की चिरोरी करे अपनी किताब को प्रकाशित करना चाहते हैं। अजिंक्य शर्मा भी इन्हीं लेखकों में से एक हैं। यही कारण है कि इस केडीपी के माध्यम से अब तक उनके चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और उम्मीद है ऐसे ही उनके उपन्यास प्रकाशित होते रहेंगे।

प्रस्तुत किताब की बात करूँ तो इस पुस्तक में उपन्यास के कथानक के अलावा अजिंक्य शर्मा ने एक लेखकीय भी लिखा है। इस लेखकीय में उन्होंने जिक्र किया है कि कैसे हिन्दी अपराध साहित्य की जिस दुनिया को उन्होंने खत्म हुआ समझ लिया था, उसके न केवल जीवत होने बल्कि दोबारा फलने फूलने की खबर उन्हें सोशल मीडिया, जी हाँ! वही सोशल मीडिया जिसके विषय में अक्सर कहा जाता है इसने पढ़ने की आदत को लील दिया, से मालूम हुई और इसी खबर ने उन्हें अपनी रचनाओं को पाठकों के समक्ष रखने के लिए प्रेरित भी किया।  एक नवागुंतक लेखक का यह कहना वाकई मेरी इस धारणा को मजबूती देता है कि सोशल मीडिया ने लेखक और लेखन का दायरा काफी बढ़ाया है।  हम जब इसके नकारात्मक पहलूओं पर बात करते हैं तो कई बार इसके कई सकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर देते हैं जो कि हमे शायद नहीं करना चाहिए। 


यह तो थी उपन्यास के लेखकीय की बात और अब उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो 'मौत अब दूर नहीं' एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे अजिंक्य शर्मा ने वैशालीनगर नाम के काल्पनिक शहर में बसाया है। वैशालीनगर मुंबई से कुछ सौ किलोमीटर दूर स्थित एक तटीय शहर है जहाँ जब इस उपन्यास का घटनाक्रम घटित होता है तो उस दौरान समुद्री तूफान आने की सम्भावना मौसम विभाग ने जारी की होती है। यह तूफ़ान उपन्यास के घटनाक्रम के दौरान आता भी है और इससे एक थ्रिलर के लिए बहुत ही अच्छा माहौल का निर्माण हो जाता है। 

उपन्यास की शुरुआत एक व्यक्ति के कत्ल से होती है।  यह कत्ल क्यों हुआ है और इसके पीछे कौन है और इस कत्ल का उपन्यास के मुख्य किरदारों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा यह जानने के लिए पाठक उपन्यास पढ़ता चला जाता है। 

इस उपन्यास में कई रोचक किरदार है जिन पर लेखक ने काफी काम किया है। यह काम यह उम्मीद भी जगाता है कि वैशालीनगर में अभी काफी कहानियाँ बाकी हैं जिन्हें लेखक को हमें सुनाना बाकी है। एक पाठक होने के नाते मुझे इन कहानियों का इन्तजार रहेगा। उपन्यास के मुख्य किरदारों की बात करूँ तो यह सौम्या, लीना, कपिल और अर्णव ही दिखाई देते हैं।

सौम्या एक डॉक्टर है और उसका हाल ही में तलाक हुआ है।  वह एक अन्तर्मुखी लड़की है जो अपने पति से अलग तो हो चुकी है लेकिन फिर भी वह उसे भूल नहीं पाई है। सौम्या ही उपन्यास की नायिका है और उपन्यास के केंद्र में है। 

इस उपन्यास में कत्ल की तहकीकात कपिल मिश्रा कर रहा है। कपिल कभी सौम्या का पति था लेकिन अब उससे अलग हो चुका है। कपिल और सौम्या क्यों अलग हुए यह मैं जरूर जानना चाहूँगा क्योंकि इस उपन्यास में उनके बीच जो रिश्ते हैं उससे तो उनके अलग होने का कोई तुक ही समझ नहीं आता है। बहरहाल, कपिल अभी भी सौम्या को चाहता है और उपन्यास जिस मोड़ पर खत्म होता है उसके बाद उनके वर्तमान रिश्ते में क्या बदलाव आये यह जानने की इच्छा मेरे साथ साथ और अन्य पाठकों के मन में जरूर जागृत होगी।

लीना सौम्या की छोटी बहन है जो कि स्वभाव में सौम्या से एकदम उलट है। जहाँ सौम्या शांत और गम्भीर है वहीं लीना चुलबुली और शरारती है। उसके और कपिल के बीच होने वाली बातचीत भी रोचक रहती है और मनोंरजन करती है। उपन्यास के दौरान लीना और कपिल के मातहत और दोस्त अमन शिंदे के बीच में भी एक रिश्ता पनपता सा दिखता है। अगले उपन्यास में यह क्या रंग लाता है यह देखना रोचक रहेगा। 

अर्नब मेहरा उपन्यास का एक और  महत्वपूर्ण और रोचक  किरदार है। अर्नब एक अमीर व्यक्ति है जिसे जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक है और मौक़ा लगने पर जासूसी में भी हाथ आजमा लेता है। (इस उपन्यास में एक राजभूषण मर्डर केस का जिक्र है जिसमें अर्णव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस केस की कहानी भी उम्मीद है लेखक जल्द ही सुनाएंगे।)अर्णव मजाकिया भी है और उसके सीन चेहरे पर बरबस हँसी ला जाते हैं।  अर्नव कपिल का दोस्त है और जासूसी उपन्यासों का संग्रह करने के मामले में उसका पार्टनर भी है। वह कपिल के पुस्तकालय के लिए किताबें लाता रहता है और इस कारण दोनों में उपन्यास और उससे जुडी दुनिया को लेकर बातचीत होती रहती है जो कि एक पाठक होने के नाते मेरे लिए रोचक थी। हाँ, जिस तरह से कथानक की शुरुआत में अर्णव को दिखाया गया था उससे लग रहा था कि इस उपन्यास की गुत्थी सुलझाने में  उसका भी अहम रोल होगा लेकिन उतना महत्व उसे बाद में नहीं दिया गया है। हाँ, अंत में वह एक जरूरी काम जरूर करता  है लेकिन वह कार्य आसानी से कपिल भी कर सकता था क्योंकि उसे कातिल का पता तो लग गया था। उम्मीद है आगे की कहानियों में उसे ज्यादा महत्व दिया जायेगा। 

उपन्यास में क्लेयर नाम की एक और किरदार मौजूद है जिसके विषय में कहा जाता है कि वह भविष्यवक्ता है। उसके अंदर मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर के लक्षण भी दिखते हैं जो कि आपकी रूचि उसमें जगाते हैं। क्लैर से जुडी कई बातें उपन्यास में अधूरी छोड़ी गयी हैं जो कि कई प्रश्न एक पाठक के रूप में मेरे मन में जगाते हैं। इस बात का जवाब भी नहीं मिलता है कि क्या वो असल में भविष्य देख सकती थी?  इन प्रश्नों के उत्तर उपन्यास में ही दिए होते तो शायद बेहतर होता और एक अधूरापन जो उपन्यास में इस कारण आया है वह नहीं आता। 
 
उपन्यास  के कथानक की बात करूँ तो शुरू का तीन चौथाई से ज्यादा उपन्यास बहुत ही ज्यादा रोचक बन पड़ा है। उपन्यास में रोमांच बना रहता है और चीजें क्यों घटित हो रही है यह जानने की उत्कंठा मन में बनी रहती है। उपन्यास में बीच बीच में हास्य का तड़का भी लगाया है जो कि किरदारों से जुड़ाव महसूस करवाता है। मुझे मजाकिया लोग पसंद हैं तो इस कारण ऐसे किरदारों वाले उपन्यास पढ़ना भी पसंद आता है। 

पर उपन्यास, विशेषकर उसके अंत होने के करीब, में कुछ ऐसी बातें भी थीं जिन पर और काम किया जाना चाहिए था। यह बातें निम्न हैं:

चूँकि यह उपन्यास लेखक ने स्वयं प्रकाशित किया था तो शायद उन्होंने इसकी प्रूफिंग नहीं करवाई थी और इस कारण  इसमें प्रूफ की गलतियाँ हैं।  वाक्यों के बीच में कुछ शब्द गायब हैं, कई जगह शब्द गलत लिखे हैं और नामों के बीच में भी गड़बड़ हुई है; मसलन एक जगह अर्णव को विश्वास लिखा गया था। इन प्रूफ की गलतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि ये उपन्यास की पठनीयता पर असर डालते हैं। ऐसा लगता है जैसे स्वादिष्ट भोजन करते हुए मुँह में कोई कंकर आ गया हो। 

उपन्यास के कथानक को लेकर भी इक्का दुक्का बातें थी जो मेरे मन में आई। वह बातें निम्न हैं:

उपन्यास में कातिल को लेखक ने पाठकों के सामने कपिल के उस वक्त पहुँचने से पहले ही प्रस्तुत कर दिया है। शुरुआत में जब ऐसा हुआ तो मुझे लगा ये कोई रेड हेरिगं होगा जिसके बदले में लेखक कोई ट्विस्ट देगा लेकिन ऐसा नहीं है।  कातिल का दिखना एक तरह से अच्छा और बुरा दोनों ही है। एक तरफ तो कातिल कौन है यह जानने की इच्छा आपकी पूरी हो जाती है और इसके स्थान पर यह इच्छा बलवती हो जाती है कि इसने क्यों हत्या की लेकिन दूसरी तरफ एक सरप्राइज एलिमेंट लेखक गवाँ देता है। वैसे तो लेखक को क्या करना है यह उनका अधिकार होता है लेकिन अगर उन्होंने पाठक के सामने कातिल को प्रस्तुत न किया होता और आखिर में ही उसे दर्शाया होता तो मेरे हिसाब से बेहतर होता।

उपन्यास के आखिर में जो खुलासे हुए हैं वह कुछ ऐसे हैं जिन पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए कहानी में एक किरदार एक मेडिकल प्रोसीजर से गुजरता है उस प्रोसीजर में अमूमन साल लगते हैं लेकिन इसमें कुछ ही महीनों का वक्त बताया गया है। फिर इस प्रक्रिया में शायद आवाज पर भी सबसे पहले असर पड़ता है लेकिन इसमें ऐसा नहीं है।
 
उपन्यास के आखिरी में भी कातिल क्यों सौम्या के पीछे पड़ा है यह वह बताता है लेकिन कपिल को जो दूसरा किरदार कातिल के सौम्या के पीछे पड़ने की  कहानी बताता है वह थोड़ा अलग है। यह बात आखिर में भी साफ़ नहीं होती है कि असल मसला क्या है? ऐसा लगता है कहानी बैठाने के लिए यह कार्य किया गया है। 
 
उपन्यास में दो कत्ल होते हैं और दो कत्ल करने की कोशिश की जाती है लेकिन एक कत्ल ऐसा रहता है जिसके विषय में बात पूरी तरह साफ नहीं होती है। बस कुछ हिंट्स छोड़ दिए जाते हैं जिससे पाठक अंदाजा लगा सकता है। उम्मीद है अगले भाग में सारी बात साफ़ होगी और लेखक यह भाग लेकर आयेंगे।  यह भी एक तरह से एक अधूरे पन का अहसास ही दिलाता है। अगर इसे इधर ही साफ़ कर देते तो शायद बेहतर होता।


अंत, में बस यही कहूँगा कि वैशालीनगर जाना मुझे अच्छा लगा। कई नये रोचक से लेखक ने मेरा परिचय करवाया और एक तेज रफ्तार उपन्यास ने मेरा मनोरंजन किया। हाँ, उपन्यास के अंत पर थोड़ा और काम हो सकता था। अब अजिंक्य शर्मा के अन्य उपन्यास पढ़ने की इच्छा भी मन में होने लगी है। उन्हें भी जल्द ही पढूँगा।

किताब आपने अगर पढ़ी है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईएगा।

रेटिंग: 3/5

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अजिंक्य शर्मा के दूसरे उपन्यास जो मैंने पढ़े हैं:

दूसरी रहस्यकथाएँ जो मैंने पढ़ी हैं:

पाठकों से प्रश्न: 
(प्रिय पाठको इस सेक्शन में आपसे कुछ प्रश्न पूछता हूँ जिससे हमारे बीच एक संवाद कायम हो सके। उम्मीद है आप प्रश्नों के उत्तर देंगे और हम बातचीत कर सकेंगे)
प्रश्न 1: प्रस्तुत उपन्यास का घटनाक्रम वैशालीनगर नाम के एक काल्पनिक शहर में घटित होता है। उपन्यास संसार में लेखकों ने कई ऐसे काल्पनिक शहरों का निर्माण किया है।  अगर आपको एक काल्पनिक शहर में दिन बिताने का मौक़ा मिले तो आप किस शहर को इसके लिए चुनेंगे और क्यों?

प्रश्न 2: प्रस्तुत उपन्यास के एक किरदार क्लैरवोयन्ट यानी ऐसी शक्तियों की मालकिन है जिससे उसे  भविष्य में होने वाली चीजों का पता लग जाता है।  क्या आप ऐसी शक्ति में विश्वास रखते हैं? अगर आपको ऐसे प्रकार की कोई मानसिक शक्ति प्राप्त करनी हो तो आप कौन सी शक्ति प्राप्त करना चाहेंगे। 

आपके उत्तरों का इन्तजार रहेगा। 


© विकास नैनवाल 'अंजान'

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13 Comments
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  1. प्रस्तुत उपन्यास मेरे पसंदीदा उपन्यासों में से है। लेखक ने मर्डर मिस्ट्री के अतिरिक्त भी घटनाक्रम को रोचक रखा है।
    उपन्यास की तरह ही समीक्षा भी रोचक है।
    धन्यवाद।

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    1. जी सही कहा आपने। यह उपन्यास लेखक के अन्य उपन्यासों के प्रति रूचि जागृत करता है। मैं जल्द ही उन उपन्यासों को भी पढूँगा। आभार।

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    2. धन्यवाद गुरप्रीत भाई. आप लोगों का प्रोत्साहन से मुझे काफी उर्जा मिलती है.

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  2. भगवान लेखक को सफलता के शिखर पर अग्रसर होने में सहायता करें।इनका लेखन भरपूर उन्नति करते हुए साहित्य जगत को उन्नत करे और हमें इनकी नित नई रचनाएं पढ़ने को मिले ।हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. इस शानदार समीक्षा के लिए आभार विकास भाई. मेरा पहला उपन्यास होने के नाते ये मेरे लिए काफी खास उपन्यास रहा है. इस पर मैंने काफी मेहनत की थी. पाठकों द्वारा उपन्यास को जिस प्रकार सराहा गया है, उसके लिए मैं पाठकों का भी बेहद आभारी हूँ. उपन्यास में जो सवाल अनुत्तरित रह गये है, उन्हें सीरिज के आगामी उपन्यासों में स्पष्ट किया जायेगा. एक तेजरफ्तार नॉवल लिखने की कोशिश में लेखक को इतनी लिबर्टी लेनी पड़ी. जैसा कि आपने नोट किया होगा कि 200 से अधिक पृष्ठों का उपन्यास मुश्किल से डेढ़ दिन की कहानी है. शाम को सौम्या ब्लाइंड डेट पर रेस्टोरेंट की ओर जा रही थी, जिसके अगले दिन के घटनाक्रम के अगले दिन की सुबह के दृश्य पर कहानी समाप्त होती है. 'मौत अब दूर नहीं' के अगले भाग में सीरिज से सम्बन्धित सभी सवालों के जवाब अवश्य मिलेंगे.

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    1. जी, अगले भाग का इंतजार रहेगा...

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  4. अफसोस पूछे गए सवालो का जवाब नही दे सकता। फिक्शन मे कई बेहतरीन काल्पनिक नगर देखे है, मगर आज तक कभी दिल मे ख्याल नही आया कि काश मैं उस नगर मे जा सकता।

    फिर दूसरे सवाल की बात करूँ तो मैने पढ़ा था कि वैज्ञानिक ऐसा यंत्र बना पाए है जिससे हम एक दूसरे की मन की बातें सुन सके।
    भविष्य मे विज्ञान के शायद ऐसे कई चमत्कार देखने मिल सकते है। फिर भी आर विज्ञान हो या जादू, तो मैं माइंड रीडिंग चुनूँगा। मेरा सामाजिक कौशल बेहद घटिया है। इस शक्ति के ज़रिये शायद मैं लोगों से ढंग से बात कर सकूँ।

    फिर इस उपन्यास की बात करूँ तो ये समीक्षा/प्रतिक्रिया पढ़ मैं लेखक की तारीफ करूँगा। बस महज़ आधे दिन की कहानी को 200 पेजो मे लिखना, काबिलेतारीफ बात है।

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    1. जी माइंड रीडिंग भी अच्छी पावर है...बस इसकी कमी ये है कि अगर कोई अपना हमारे विषय में किसी वक्त बुरा सोच रहा है तो उसका पता भी हमको चल जाएगा..😂😂😂 कई बार गाहे बगाहे जिन्हें हम प्रेम भी करते हैं उनके लिए कुछ ऐसा मन में आ जाता है(गुस्से में या उनकी हरकतें देखकर) जिसे हम नहीं चाहेंगे कि वह उनके समक्ष उजागर हो...यही चीज उनके लिए भी लागू रखती है... इसलिए मोटी चमड़ी का होना जरूरी है...हाँ, उपन्यास डेढ़ दिन(1 1/2) की कहानी है और इसे 200 पृष्ठों से ऊपर तक ले जाना वाकई काबिलेतारीफ है....आभार...

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  5. मैंने अपना उपन्यास 'क़त्ल की आदत' किंडल पर बहुत देर से डाला मगर आख़िर डाल ही दिया । आपने 'मौत अब दूर नहीं' की बहुत ही सटीक समीक्षा की है । अभिनंदन आपका । आपकी निष्पक्ष समीक्षाओं से नवोदित लेखक बहुत कुछ सीख सकते हैं ।

    अब आपके द्वारा पूछे गए दो सवालों के लिए मेरे उत्तर :

    1. मैं सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित राजनगर में रहना चाहूंगा तथा वहाँ से समुद्र के किनारे स्थित नॉर्थ शोर, पर्यटन स्थल झेरी तथा ट्राउट फिशिंग के लिए प्रसिद्ध सुंदरबन भी जाना चाहूंगा ।
    2. मैं ली फ़ाक द्वारा रचित जादूगर मैन्ड्रेक जैसी हिप्नोटिक शक्ति प्राप्त करना चाहूंगा ताकि उसका दुष्टों के विरुद्ध उपयोग कर सकूं ।

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    1. जी कत्ल की आदत अब किंडल पर मौजूद है यह जानकर अच्छा लगा। उम्मीद है जल्द ही आपका दूसरा उपन्यास पढ़ने भी पढ़ने को मिलेगा।

      वाह! राजनगर में रहना रोचक रहेगा। उधर काफी रोचक किरदार से भी मिल सकेंगे।

      हिप्नोटिक शक्ति का चुनाव भी रोचक है। मुझे भी यही लगता है दिमाग की शक्ति का होना ही बेहतर है। उससे काफी काम किये जा सकते हैं।

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    2. मै अतीत मे जाना चाहता हूं,उन घटनाओ को कर्ताभाव से नही साक्षीभाव से देखना चाहता हूं जिनकी मुझे धुंधली सी यादे है|उन घटनाओ ने मेरा मानसिक संतुलन प्रभावित करके मेरे जीवन को विकट रास्ते पर धकेल दिया है|मै उन बुरी यादो से मुक्त होकर भविष्य की ओर उन्मुख होना चाहता हूं|मै अपनी अतीतजीवी जिंदगी से उकता गया हूं|

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