नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

साक्षात्कार: आलोक कुमार

परिचय:
आलोक कुमार
लोक जी मूलतः बिहार से हैं। उनकी शुरुआती शिक्षा दिल्ली में हुई और इसके पश्चात इंजीनियरिंग करने के लिए वो झाँसी आ गये। झाँसी के बी.आई.ई.टी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के पश्चात अब वो बेंगलुरु में एक कम्पनी में कार्यरत हैं।

लिखने पढ़ने का शौक आलोक जी को हमेशा से रहा है। बाल पत्रिकाओं से होते हुए कॉमिक बुक्स और फिर प्रेमचंद से परिचय होने के पश्चात साहित्य के प्रति उनका अनुराग प्रगाढ़ ही हुआ है। तब से निरंतर पढ़ने का क्रम जारी है। 

अब बेंगलुरु में रहकर वह जॉब करते हुए पढ़ने, लिखने में ही अपना वक्त बिता रहे हैं। 

आलोक जी से आप निम्न माध्यमों के द्वारा सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

आलोक जी की अब तक निम्न पुस्तकें आ चुकी हैं:
दौलत का खेल (अनुवाद)
(किताबों को आप नाम पर क्लिक करके खरीद सकते हैं।)

एक बुक जर्नल की साक्षात्कार श्रृंखला में आज हम आपके समक्ष आलोक कुमार जी से हुई बातचीत प्रस्तुत कर रहे हैं। पेशे से इंजीनियर आलोक जी लेखक और अनुवादक हैं। उनका अब तक एक उपन्यास, तीन अनुवाद और एक कहानी संग्रह आ चुका है। इस बातचीत में हमने उनके लेखन और उनके द्वारा किये गये अनुवादों  के ऊपर बातचीत की है। हम आशा करते हैं कि यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

प्रश्न: आलोक जी सर्वप्रथम तो आप अपने विषय में पाठकों को कुछ बताएं? आप मूलतः किधर से हैं? शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई? फिलहाल कहाँ कार्यरत हैं?
उत्तर: मेरी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में हुई है जिसके बाद इंजीनियंरिंग करने मैं झांसी चला गया। वहां बी.आई.ई.टी से मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अभी फ़िलहाल रोजीरोटी के चक्कर में बेंगलुरु में डेरा डाल रखा है।

प्रश्न:  साहित्य के प्रति अनुराग कब विकसित हुआ? वह कौन से लेखक थे जिन्होंने लिखे हुए शब्दों के प्रति आपकी रूचि जगाई और आपको इस दुनिया में वक्त गुजारने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर: मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक लग गया और इस शौक को पूरा किया चंपक, नंदन, बालहंस, नन्हें सम्राट जैसी पत्रिकाओं नें। उसके बाद मैंने कॉमिक्स की दुनिया में कदम रखा और तब धुव्र और नागराज से मुलाकात हुई। इसके बाद फ़िर मैंने प्रेमचंद को पढ़ा और फ़िर तो जैसे दुनिया ही बदल गई। फ़िर पढ़ने का क्रम टूटा ही नहीं। अब तो मैं हाथ आई हर किताब पढ़ना चाहता हूँ।

प्रश्न: लेखन करने का ख्याल कब आया? वह कौन सी चीजें हैं जो आपको कलम उठाने को विवश करती हैं? आपकी पहली रचना क्या थी? क्या आपको याद है?
उत्तर: शायद यह आम बात है कि पाठक समय के साथ लेखक बन ही जाता है भले उसकी किताब छपे या नहीं। पढ़ते पढ़ते ऐसा हो जाता है कि कहीं भी देखी गई कोई बात दिमाग में कहानी की तरह घूमने लगती है और तब तक चैन नहीं मिलता जब तक उसे कागज पर न उतार दिया जाए। जहाँ तक मेरी पहली रचना की बात है तो वो मैंने तब लिखी थी जब मैं स्कूल में था। शायद कोई साइंस फ़िक्शन था।

प्रश्न: मैंने सुना है कि कॉलेज के अंतिम वर्ष में आपने एक पत्रिका का सम्पादन भी किया था। यह मौका कैसे लगा? इस अनुभव के विषय में आप पाठकों को कुछ बताएं?
उत्तर: कॉलेज में पत्रिका बनाने का मौका तो हमें अपनी यादों को सजा कर रखने के एक विचार से उत्पन्न हुआ था। अंतिम वर्ष में हमने सोचा कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए जिससे कॉलेज की यह बेहतरीन यादें साथ रह जाऐं। बस यही सोच कर पत्रिका बनाने का विचार आया और मुझे उसके संपादन का मौका मिला। संपादन का कार्य़ लेखन से बिल्कुल ही अलग है। जैसे लेखन में आपको अपनी रचना और उसमें इस्तेमाल हुए शब्दों पर ही ध्यान देना होता है किन्तु पत्रिका के संपादन के वक्त कौन सी रचना किस जगह रखी जाए इस पर ध्यान देना होता था।पत्रिका के विषय को ध्यान में रखते हुए आई हुई रचनाओं में से उपयुक्त रचनाओं का चुनाव करना होता था। किन्तु अलग ही सही, वो भी अनुभव ही था। जो शायद जाने-अंजाने काम आ ही जाता है।  

प्रश्न:  आलोक जी यह अक्सर कहा के लिखना आसान है लेकिन उस लिखे हुए को प्रकाशित करवाना कदरन मुश्किल है। आपका अपनी पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर: मैं तो कहूँगा कि आजकल के दौर में अगर आपकी कहानी में दम है तो उसे प्रकाशित करवाना कठिन नहीं है। अब तो बहुत ऐसे प्रकाशक हैं जो अच्छी कहानियाँ तुरंत प्रकाशित कर देते हैं।

प्रश्न: आपकी पहली किताब द चिरकुट्स कॉलेज के जीवन के इर्द गिर्द घूमती है। यह लिखने का ख्याल कब और कैसे आया?
उत्तर: 'the चिरकुट्स' लिखने का ख्याल कॉलेज से निकलने के बाद आया। जब उस दौर की याद हद से ज्यादा आने लगी तब उन यादों ने किताब की शक्ल ले ली।

प्रश्न:  जब यह किताब आई थी तो उन्ही दिनों हिन्दी में कैंपस नोवेल्स (वो उपन्यास जिनके कथानक कॉलेज के कैंपस में बसाये गये हैं या उनसे जुड़े हुए हैं ) लिखने का चलन था। ऐसे में अपनी किताब को आपने उनसे अलग रखने के लिए क्या किया? क्या इसको लेकर मन में  कोई संशय था?
उत्तर: हर कहानी खुद में अलग होती है। बेशक कथानक एक ही हो  किन्तु कहानी को कहने का तरीका किताब को अलग बनाता है। बाकि मेरी किताब में केवल कॉलेज की कहानी न होकर एक प्रेम कहानी भी थी इसलिए संशय जैसी कोई  बात नहीं थी।

प्रश्न: आप लेखन के साथ अनुवाद के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।  इस ओर आपका झुकाव कब और कैसे हुआ?
उत्तर: मैं खुद को लिखने में व्यस्त रखना चाहता था इसलिए जब तक कोई कहानी दिमाग में नहीं थी तब तक मैंने सोचा चलो अनुवाद ही कर लिया जाए। फ़िर जब राजकुमारी और शैतान बौने तथा जर्नी टू द सेंटर ऑफ़ द अर्थ जैसी किताबों के अनुवाद का मौका मिला तो मैं खुद को रोक न सका। ऐसी क्लासिक किताबों का अनुवाद करते हुए मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ था।

प्रश्न: एक अच्छे अनुवाद में आप क्या गुण देखते हैं? वह कौन सी मुख्य बातें हैं जिन्हें किसी भी रचना का अनुवाद करते समय आप सबसे ज्यादा तरजीह देते हैं?
उत्तर: अनुवाद में भाव बेहद महत्वपूर्ण होता है। किसी भी किताब का अनुवाद करते समय इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि लेखक ने जिस भाव से जो बात लिखी है अनुवाद में भी वही भाव दिखे, वरना किताब की आत्मा मर जाती है।

प्रश्न: हाल फिलहाल में जेम्स हैडली चेज के उपन्यास 'यू आर डेड विथआउट मनी' को आपने दौलत का खेल के रूप में अनूदित किया है। अपराध साहित्य के इस उपन्यास का अनुवाद करने का अनुभव कैसा रहा? इसमें क्या अच्छा लगा और क्या दिक्कतें आईं?
उत्तर: बतौर अनुवादक ऐसा कुछ खास अलग नहीं था। हाँ, किन्तु अपराध साहित्य का उपन्यास होने के कारण थोड़ी कठिनाई जरूर हुई। शब्दों के चयन को लेकर कुछ दिक्कतें आई थीं। जैसे अंग्रेजी उपन्यास में कई ऐसे शब्द होते हैं जो शालीन नहीं कहा जायेगा। ऐसे शब्दों के लिए हिन्दी के ऐसे पर्याय ढूँढने पड़े जिनसे बात भी कही जा सके और वह बात शालीनता के दायरे में भी रहे। लेकिन मजा आया।  

प्रश्न: आपकी नई किताब लाइफ आजकल एक कहानी संग्रह है। इस किताब के विषय में पाठकों को कुछ बताएं। मसलन, पाठकों को इस संग्रह में किस तरह की कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी। यह कहानियाँ आपने किस दौर में लिखी हैं? कहानियों को लिखने की प्रेरणा कब और कैसे आई?
उत्तर: आपने ठीक कहा कि लाइफ़ आजकल एक कहानी संग्रह है। इसमें अधिकतर प्रेम कहानियाँ है। कुछ कहानियाँ सामाजिक मुद्दों को लेकर भी लिखी गई हैं। इन कहानियों के लिखे जाने के पूरे दौर के बारे में किताब में ही विस्तार से बताया गया है। फिर भी मैं यह बता दूँ कि ये वो कहानियाँ हैं जिसके किरदारों ने उपन्यास में तब्दील होने से इंकार कर दिया था। बाकि इन कहानियों की प्रेरणा तो मुझे अपने आसपास से ही मिली है। अब अगर इनसे जुड़े कुछ प्रसंग आपको बता दूँ तो कहीं इनकी प्रेरणा मुझे जहाँ से मिली, मेरे आसपास के वो व्यक्ति नाराज न हो जाऐं। इसलिए वो बातें रहने देते हैं।

प्रश्न: आप फ़िलहाल कौन से प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं? क्या आप पाठकों को इन प्रोजेक्ट्स के विषय में बताना चाहेंगे?
उत्तर: अभी वैसे तो उपन्यास पर काम चल रहा है किन्तु जब तक पूरा न हो जाए, उसके बारे में क्या बात करना।

प्रश्न: आलोक जी आप लेखन के अलावा नौकरी भी करते हैं। लेखन एक एकाकी कार्य है। यह समय भी माँगता है और एक निरंतरता (कंसिस्टेंसी) माँगता है। ऐसे में नौकरी और लेखन में आप किस तरह सामंजस्य बैठाते हैं?  आप इसे किस तरह देखते हैं?
उत्तर: आपकी बात पूर्णत: सत्य है कि लेखन एकाकी कार्य है। किन्तु जब लेखन शौक हो तो नौकरी से कोई बाधा नहीं होती है। मुझे जब भी समय मिलता है मैं लिख लेता हूँ। नौकरी के कारण निरंतरता तो नहीं रहती है किन्तु कोशिश जारी है। अभी तक तो चल ही रहा है।

प्रश्न: एक लेखक के लिए क्या नौकरी करना जरूरी होता है। आप इसे कैसे देखते हैं? क्या नौकरी से अर्जित अनुभव लेखन में मदद करता है या उसमें अवरोध पैदा करता है?
उत्तर: अभी फ़िलहाल हम जैसे हिन्दी के लेखकों के लिए नौकरी अत्यंत जरूरी है। इसके बिना तो कलम में स्याही डलवाने के पैसे भी नहीं होंगे। इसमें सबसे बड़ी भूमिका प्रकाशकों की भी है। यदि वो समय पर रॉयल्टी का भुगतान करने लगें तो शायद वो दिन आ सके जब लेखक केवल लिख कर ही गुजारा कर सकेगा। किन्तु अभी तो नौकरी बेहद आवश्यक है। बाकि नौकरी से मदद मिलती या अवरोध यह तो समय-समय पर निर्भर करता है। हो सकता है कभी नौकरी के कारण लिखने का समय ही न मिले और कभी कोई ऐसी कहानी लिखी जाए जिसमें नौकरी के अनुभव खूब काम आऐं।

प्रश्न: हम अब कोरोना काल से गुजर रहे हैं। आप इस वक्त को कैसे देखते हैं? आप पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर: यह भी एक वक्त है, देर सवेर गुजर ही जएगा। बाकि मैं तो इस समय का उपयोग परिवार के साथ समय बिताने और पढ़ने-लिखने में कर रहा हूँ।

प्रश्न:  बातचीत तो आलोक जी कभी खत्म नहीं होती है। लेकिन फिर भी कहीं पर जाकर तो इसे विराम देना ही होता है। बातचीत का अंत करने से पहले आप पाठकों से कुछ संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: पाठकों से बस यही कहना चाहूँगा कि खूब पढ़ते रहें। मेरी किताब आ रही है उसे भी पढ़े और अपनी राय जरूर दें। बाकि स्वस्थ रहे, खुश रहें।

आलोक कुमार जी की किताबें
आलोक कुमार जी की किताबें

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तो यह थी आलोक कुमार जी से हमारे द्वारा की गयी बातचीत। आशा है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। इस बातचीत के प्रति अपनी विचारों से हमें जरूर अवगत कर्वाइयेगा। 

'एक बुक जर्नल' में मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:


© विकास नैनवाल 'अंजान'
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7 Comments
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  1. शानदार साक्षात्कार, बिल्कुल सही कहा आपने आलोक जी लेखक प्रेमचन्द जी के समय में भी गरीब था और आज भी।

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    1. जी प्रेमचंद के समय लेखक हो सकता है गरीब रहा हो लेकिन प्रेमचंद खुद गरीब नहीं थे।
      यह लेख पढ़िए:
      प्रेमचंद गरीब थे यह सर्वथा तथ्यों से विपरीत है

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    2. साक्षात्कार आपको पसंद यह जानकर अच्छा लगा, नृपेन्द्र जी। आभार।

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  2. दिल से दिया हुआ इंटरव्यू

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    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा, सर। आभार।

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  3. बेहतरीन साक्षात्कार 👌👌

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