नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बोध - लोकेश गुलयानी

उपन्यास मई 23 2020 से मई 24 2020 के बीच पढ़ा गया 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या: 130 
प्रकाशक: हिन्द युग्म
आईएसबीएन:  9789387464162
 
बोध - लोकेश गुलयानी
बोध -लोकेश गुलयानी

पहला वाक्य:
मैं यहाँ बार-बार आता जाता रहता हूँ और ऐसा सिर्फ मैं अकेला ही नहीं करता बल्कि यहाँ मौजूद मेरे जैसी लाखों आत्मायें करती हैं, हर दिन, हर घण्टे, हर पल।

कहानी:
मिराम एक आत्मा है जो कि जीवन-मरण के चक्र से परेशान हो गया है। उसकी अंश  आत्मा चामी उससे एक स्तर ऊपर के स्वर्ग में मौजूद है लेकिन वह अपनी अंश आत्मा के स्तर तक नहीं पहुँच पा रहा है। 

उसे पता है कि उसकी अंश आत्मा चामी भी इस कारण परेशान है। जब तक वह उसके स्तर तक नहीं पहुँचता तब तक वो भी अपने स्तर से उठ  नहीं सकती है। इस बार जब मिराम एक बार फिर असफल होकर अपने स्तर से ऊपर नहीं उठ पाता है तो वह एक निर्णय लेता है। यह निर्णय स्वर्ग के नियमों में बड़ा बदलाव कर सकता है। परन्तु केवल उसके चाहने से कुछ नहीं होगा। उच्चात्माओं को उसके इस निर्णय को मानना होगा। तभी वह इस निर्णय पर काम कर सकता है।

मिराम जीवनमरण के इस चक्र से उभरने के लिए क्या निर्णय लेता है?
क्या  मीराम की इच्छा पूर्ण होगी?
क्या उच्चात्मायें उसका साथ देंगी?

अकचुंग सिक्किम के बारफंग एक छोटे से गाँव रावंगला का रहने वाला लड़का है। उसका सपना अपने परिवार को एक उज्ज्वल भविष्य देने का है। उसके घर में उसके पिता हैं, जिन्होंने उसकी माँ के जाने के पश्चात अपने आप को शराब में डुबो दिया है और उसकी एक बहन है जो कि घर घर जाकर चूल्हा चौका करके घर सम्भालती है। अकचुंग अपने इसी परिवार को गरीबी के दिनों से उभारना चाहता है। 

लेकिन अकचुंग नहीं जानता है कि विधि ने उसके लिए कुछ और ही निर्णय ले रखा है। इसके बाद परिस्थितियों में ऐसे बदलाव आते हैं कि अकचुंग खुद को अच्छाई और बुराई के बीच हो रहे एक महायुद्ध के बीच में पाता है। 
जो अक्चुइंग केवल अपने परिवार को खुश देखना चाहता था उसे ही अब इस महायुद्ध में निर्णायक भूमिका निभानी है। 

क्या अकचुंग अपने  परिवार को वो खुशियाँ दे पायेगा जो वो देना चाहता है? 
क्या वो उन जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पायेगा जो कि परिस्थितियों ने उस पर लाद दी हैं? 
यह कैसा महायुद्ध था? 
महायुद्ध का परिणाम क्या होगा?

और सबसे जरूरी सवाल, मिराम और अकचुंग में क्या रिश्ता है? इन दोनों की कहानी आपस में कैसे जुड़ी है?
ऐसे ही सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़ने के बाद पता चलेंगे।
मुख्य किरदार:
मिराम - जीवन मरण के चक्र में फंसी एक आत्मा
चामी - मिराम का दूसरा अंश 
जोसेफ - मिराम का मेंटर और स्वर्गीय सीढ़ी का सुपरवाईजर
सीरी- मिराम के आत्मिक स्तर की प्रधान
नीरो - एक उच्चात्मा जो चामी के स्तर का प्रधान है 
रूश - एक उच्चतमा
सूला - एक बेहद शक्तिशाली आत्मा जो बुराई के पथ पर चलने लगी थी
राहु - एक बुरी आत्मा जो कि नर्क में रहती है 
केतु - एक बुरी आत्मा जो कि नर्क में रहती है 
अकचुंग - सिक्किम के रावंगला गाँव में रहने वाला एक बालक 
होशी - अकचुंग की छोटी बहन 
बाबा - अकचुंग का पिता 
लीला - अकचुंग की माँ जिसकी मृत्यु पहाड़ दरकने से हुई थी 
झुमरू - अकचुंग के गाँव में मौजूद झुमरू बार का मालिक 
कानू - अकचुंग का सबसे करीबी दोस्त 
तोशी - झुमरू के बार में काम करने वाला एक लड़का 
किशन - झुमरू के बार में काम करने वाला एक और युवक 
रिम्पा - झुमरू की बेटी
ओराम - स्वर्ग की आत्माओं का सेनापति
अंकारा - परीलोक का राक्षस 
मीमो - एक परा और इलियाना का दोस्त 


मेरे विचार:
'बोध' लोकेश गुलयानी जी द्वारा लिखा गया दूसरा उपन्यास है। इससे पहले मैंने उनका लिखा उपन्यास जे पढ़ा था जो कि मुझे पसंद आया था। जे को पढ़कर ही मैंने बोध खरीदने का मन बना लिया था। यह  उपन्यास पढ़ने के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि यह निर्णय सही था। 

बोध उपन्यास के शीर्षक की बात करूँ तो यह शीर्षक उपनयास के कथानक पर फिट बैठता है। बोध शब्द का अर्थ होता है जानकारी या ज्ञान होना और उपन्यास के अंत तक पहुँचने  पर उपन्यास के विभिन्न किरदारों को अपने विषय में अलग अलग चीजों का बोध हो जाता है। उपन्यास का आवरण चित्र भी उपन्यास के कथानक के अनुसार ही है।

उपन्यास की कहानी पाठकों को एक उच्चआत्मा के माध्यम से पता चलती है। वह आपको उपन्यास के विभिन्न किरदारों, उनकी दुनियाओं और उनकी इच्छाओं  से रूबरू करवाती है। उपन्यास में भली बुरी आत्मायें हैं, स्वर्ग नर्क है, मनुष्य हैं, परियाँ हैं, शैतान बोने हैं और परियों की दुनिया का राक्षस भी है। उपन्यास में इन सभी के होने से यह उपन्यास आपको एक फंतासी उपन्यास पढ़ने का अनुभव करवाता है।

उपन्यास में धरती पर होने वाला घटनाक्रम  सिक्किम के बारफंग के एक छोटे से गाँव में रावंगला के आस पास के इलाके में होता है। पहाड़ी जन जीवन, वहाँ की दिक्कतों से यह आपका परिचय करवाता है। इस हिस्से में मौजूद तोशी का किरदार मुझे काफी रोचक लगा। वह एक यादगार किरदार है। लेखक को उसे लेकर एक छोटी कहानी तो लिख ही देनी चाहिए।

उपन्यास में परियों की दुनिया और बोनों की दुनिया का भी जिक्र है। इन दुनियाओं के जीव भी उपन्यास में मिलते हैं। भले ही इन दोनों दुनियाओं का जिक्र ही केवल इधर है  लेकिन इनमें रचा  गया एक वृहद कथानक मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा।

उपन्यास मुझे पसंद आया। अपने किरदारों के माध्यम से लेखक ने कई ऐसे सवालों के जवाब तलाशें हैं जो कि व्यक्ति को कभी न कभी परेशान जरूर करते हैं। कई बार मिराम की तरह आप भी सोचते हैं कि आप अगर अलग परिवार में पैदा हुए होते तो वह बेहतर होता। लेकिन क्या ऐसा होना जरूरी है? क्या आपके कर्म इस पर निर्भर करते हैं? शायद नहीं। कई बार अकचुंग की तरह आप करना कुछ चाहते हैं परन्तु परिस्थितियाँ आपसे कुछ और कराना चाहती है। ऐसे मामले में आप अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ते हैं या उनका निर्वाह करते हैं यह भी उपन्यास आपको सिखलाता है। उपन्यास यह भी सिखलाता है कि बुराई भले ही शुरुआत में शक्तिशाली लगे और उसकी प्रताड़ना असहनीय लगे लेकिन अगर आप ठान लें तो आप उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उपन्यास यह सीख भी देता है कि हमे अपनी इच्छाओ के इतने आधीन नहीं हो जाना चाहिए कि पाने से ज्यादा खो दें और फिर पछताने के सिवाय कुछ और न कर सके।

लेखक ने जिस तरह से आत्माओं, स्वर्ग और नर्क को दर्शाया है वह भी मुझे पसंद आया। आत्माओं के युद्ध करने के तरीके, उनको एक दूसरे को यातना देने के तरीके में नया पन है। यह रोचक है।  उन्होंने एक रोचक दुनिया उपन्यास के अंदर बसाई है।

इस उपन्यास में हॉरर के तत्व भी मौजूद हैं। कुछ सीन इस तौर काफी बढ़िया बने हैं। अगर आपको हॉरर पसंद है वो सीन भी आपको पसंद आएंगे। 

उपन्यास में वैसे तो मुझे कमी नहीं लगी लेकिन फिर भी कुछ बिंदु मन में पढ़ते हुए उठे थे। उनको भी पोस्ट में सम्मिलित करना सही होगा।
 
उपन्यास एक महायुद्ध के इर्द गिर्द रचा गया है। इस युद्ध का अंत जिस तरह से हुआ है वह अटपटा लग सकता है। किरदार के अंदर वो बदलाव आना तब तो जंच  है जब वह असल जिंदगी में हो(क्योंकि तब वह तार्किक न होते हुए भी तथ्यात्मक होता है) लेकिन गल्प में उस पर विश्वास करना जरा मुश्किल होता है।

इलियाना और उसके आस पास बुना प्रसंग रोचक होते हुए भी अनावश्यक लग सकता है।  इलियाना का अंत में एक जरूरी रोल है लेकिन उसमें कुछ और भी सोचा जा सकता था। ऐसे ही कई बार यह भी लगा कि काफी सारी बातों को कम कम पृष्ठों में कहने की कोशिश की गयी है। अगर इन चीजों को थोड़ा फैलाव दिया होता तो शायद और बेहतर होता। 

अंत में यही कहूँगा कि बोध मुझे पसंद आया। यह काफी कुछ आपको सोचने के लिए दे जाता है। आपको एक बार इस दुनिया का सफर करके देखना चाहिए। उम्मीद है लेखक इस उपन्यास में दर्शाई गयी दुनिया में दोबारा जायेंगे और उधर से कुछ नये कथानक पाठकों के समक्ष लेकर आएंगे।

उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आई:
पहाड़ की ज़िन्दगी भी पहाड़ों की तरह ही होती है सख्त,ऊबड़-खाबड़, धूप-छाँव और जब यह जड़ से हिलती है और ढहती है, तो अपने आपको संभाल पाना मुश्किल होता है।

जैसे रात पसरने की इजाजत किसी से नहीं लेती। सुबह भी दबे पाँव रोज चली आती है बिना किसी का दुःख दर्द जाने। इन्हें बिताने वाला कैसी भी अवस्था में क्यों हों, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई जिए या मरे, भरपेट हो या खालीपेट, महल में हो या सड़क पर, इनकी बला से।

गरीब का पेट भरा हो तो हर दिन जन्मदिन है।

तेरे को पता है, इन बोतलों में क्या है?"
"दारू," यह तो उसे पता ही था।
"अबे! ज़िन्दगी है इसमें, जब ये खुलती है तो हर एक के लिए कुछ न कुछ निकलता है, इनमें से। किसी के सपनों की औरत, किसी की जमीन, किसी का मरा बाप, किसी को माँ दिखती है, कोई गालियों की बौछार कर डालता है और कोई पी कर शेर बन जाता है। सबके लिए कुछ न कुछ है इसमें। और हमारा काम है, इनको ज़िन्दगी की सप्लाई देते रहना। समझा? हे हे हे।"तोशी भद्दी हँसी हँसा।

बारिशों के बाद रात को बहने वाली पहाड़ी हवाओं में तल्खी आने लगती है, और ऐसे में नींद और गहरी आती है। ऐसी रातों में ढूँढने को कुछ नहीं होता। घरों से रात में बाहर वही निकलते हैं जो दिन में अपना वजूद खोजने में नाकाम रहते हैं।


रेटिंग: 3.5/5 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? उपन्यास के प्रति अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

अगर उपन्यास आप पढ़ना चाहते हैं तो इसे निम्न लिंक पर जाकर खरीदकर पढ़ सकते हैं:

लोकेश गुलयानी जी की अन्य किताबों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

फंतासी कृतियों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

©विकास नैनवाल 'अंजान'
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4 Comments
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  1. आप ही का जे की समीक्षा पढ़ मैने वह उपन्यास खरीदी थी और कल रात ही उसे खत्म की। बढ़िया पुस्तक थी।

    भविष्य मे मैं इसे भी पढ़ूँगा।

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    1. जी जे आपको पसंद आई यह जानकर मुझे अच्छा लगा। बोध के विषय में भी आप अपनी राय जरूर दीजियेगा।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया विकास इतनी विस्तृत आलोचनात्मक समीक्षा लिखने के लिए। कभी कभी बेहद ज़रूरी हो जाता है लेखक के लिए दिशा भान होना एवं ऐसा भी होता है कि लेखक कितनी ही बार अजीबोगरीब अनुभवों से गुज़र रहा होता है, ऐसे में एक समीक्षा उसे दिशा भान देती है एवं अपने लेखन के प्रति और दृढ़ता। मुझे खुशी है कि आपने कहानी को सराहा और पसंद किया। आशा है आपको इसी कड़ी में 'वो कहानी यही है' भी पसंद आएगी।

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    1. जी आभार लोकेश जी। 'वो कहानी यही है' जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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