नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

खतरे की खोपड़ी - वेद प्रकाश काम्बोज

किताब 21 फरवरी 2020 से 23 फरवरी 2020 के बीच में पढ़ी गयी

संस्करण विवरण:
फॉरमेट: ई - बुक | प्रकाशक: डेली हंट



पहला वाक्य:
'हरीओम!'
जेलर के कमरे से बहर निकलकर दोनों ने एक-दूसरे की ओर मुस्कराकर देखते हुए नारा सा लगाया और फिर जेल से बाहर निकलने के लिए लोहे के विशाल फाटक की ओर बढ़ चले।

कहानी:
कलसिया में जो पहली बार आता उसकी नज़र बरबस ही कंकाल महल अपनी तरफ खींच लेता था। इनसानी खोपड़ी की तर्ज पर बना यह महल बहुत भयावह था और देखने वाले की रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करने के लिए काफी था। यह महल गुजरे जमाने के फिल्म अभिनेता मदन कपूर की सम्पत्ति थी।

हरि  ठाकुर और ओम चौधरी जब बीस साल की सजा काटकर जेल से बाहर आये तो उन्होंने ईमानदारी से जीवन जीने का फैसला कर दिया। इसी कोशिश में परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि वे लोग मदन कपूर के कहने पर कलसिया आ गये।

कलसिया में जब उन्होंने कंकाल महल को देखा तो उसे एक नया नाम दिया 'खतरे की खोपड़ी'। यह नाम इस महल पर फबता भी था क्योंकि इसका इतिहास ही ऐसा था कि जो भी इससे जुड़ा होता खतरे के बादल उस पर मंडराने लगते। अब यह खतरे की खोपड़ी हरी और ओम के जीवन में आ गयी थी।

और फिर खतरा भी जल्द ही उनके जीवन में तब आ गया जब वे लोग कलसिया में एक खून के जिम्मेवार समझे जाने लगे। यहाँ तक कि उनको बुलाने वाले मदन कपूर ने भी उनका साथ इस मौके पर छोड़ दिया था।

अब ओम चौधरी और हरी ठाकुर के पास एक ही चारा बचा हुआ था। उनकी जान साँसत से तब ही छूटती जब वो असली कातिल का पता लगा पाते।

क्या ओम चौधरी और हरी ठाकुर अपने ऊपर आई इस मुसीबत से पार पा पाए?
क्या उन्होंने असल से खून किया था? मदन कपूर इनका साथ क्यों नहीं देना चाहता था?
उस व्यक्ति कातिल कौन था और उसने यह कत्ल किस मकसद से किया था?

मुख्य किरदार:
ओम चौधरी, हरी ठाकुर - दो दोस्त और अपराधी जो बीस साल बाद जेल से रिहा हुए थे
मदन कपूर - एक फ़िल्म हीरो जो अब अभिनय छोड़ कलसिया में रहने लगा था
गंगाधर - पी पी पी नामक संस्था से जुड़ा व्यक्ति जो ओम और हरी की मदद करना चाहता था
जंगा डाकू - डाकुओं का एक सरदार
उदयवीर - मदन कपूर का ड्राइवर
नीरज शाह - एक जादूगर और मदन कपूर का जिगरी दोस्त
भूधर - मदन कपूर की खान में काम करने वाला व्यक्ति
इंस्पेक्टर वैद्यनाथ - लोहागढ़ का एक इंस्पेक्टर जो एक हत्या की साजिश की तहकीकात कर रहा था
चंद्रिका प्रसाद -लोहा गढ़ का बड़ा व्यापारी
चतरू - भूधर का चेला
देवीदीन -मदन कपूर का रसौइया
सुलोचना - मदन कपूर की बहन
फरीदा - सुलोचना की सहेली
आनन्द ,आनन्द की बेटी नीरा - मदन कपूर के मेहमान
योगेश(एक फ़िल्म डायरेक्टर), योगेश का बेटा रमेश - मदन कपूर के मेहमान जो मदन कपूर की बर्थडे पार्टी के उपलक्ष्य में कलसिया पहुँचे थे
सुमित्रा सेन - एक फ़िल्म हीरोइन
लवकेश गांगुली - म्यूजिक डायरेक्टर
प्रताप शर्मा - मदन का पूर्व सेक्रेटरी और अब फ़िल्म लेखक
प्रोफेसर सामरी - नीरज का गुरु जिसके पास उसने जादू सीखा था

मेरे विचार:
खतरे की खोपड़ी वेद प्रकाश काम्बोज जी का पहला उपन्यास है जिसे पढ़ने का मौका मुझे मिला। अब तक मैंने वेद जी का नाम तो बहुत सुना था लेकिन उन्हें पढ़ने का सौभाग्य नहीं मिला था। मैं हिन्दी अपराध साहित्य की दुनिया से इतनी देर से जुड़ा था कि तब तक वेद जी के उपन्यास बाज़ार में आसानी से मिलने बंद ही हो गये थे। ऐसे में जब डेलीहंट में मुझे वेद जी के उपन्यास दिखे तो मैंने एक उपन्यास इस कारण ले लिया कि वक्त लगेगा तो पढ़ लूँगा और यह वक्त आज लगा। यहाँ ऐसा नहीं है कि वेद जी के उपन्यास को ही मैंने डेलीहंट में नहीं पढ़ा है। इसके उलट डेली हंट में न जाने अभी और कितने ऐसे उपन्यास मेरे पास पड़े हैं जो अभी तक मैंने पढ़े नहीं है। इसका एक कारण यह भी है मुझे उपन्यास की हार्डकॉपी  संस्करण पढ़ने में जो मजा आता है वो ई बुक पढ़ने से कुछ अधिक है। फिर भी महीने की एक या दो ई बुक मैं पढ़ लेता हूँ लेकिन अक्सर ये किंडल पर होती थी।

खैर, उपन्यास की तरफ आये तो उपन्यास ओम चौधरी और हरी ठाकुर नाम के दो दोस्तों की कहानी है। यह दोनों दोस्त किसी जमाने में छ्टे हुए बदमाश हुआ करते थे। अपनी गुंडागर्दी और बदमाशी के कारण ही बीस साल की सजा इन्हें हुयी थी।  अब यह दोनों जेल से रिहा हो चुके थे। जेल से रिहा होने के बाद इन दोनों किरदारों की जिंदगी कैसी बीतती है मुख्य रूप से कहानी यही है।

ओम चौधरी और हरी ठाकुर रोचक किरदार हैं। यह लोग मजाकिया और हसोड़ हैं। इनके आपस बात कहने का नफासत भरा लहजा मजेदार रहता और पाठकों का मनोरंजन करता  है।

जहाँ जेल से छूटने के बाद इनकी जिंदगी में जो घटनाएं होती हैं वो कथानक में रोचकता बनाये रखती हैं और पाठकों को हँसाती और गुदगुदाती हैं।   वहीं कलसिया पहुँचने के बाद होने वाला एक खून उपन्यास में रहस्य का एक कोण जोड़ देता है और एक रोमांच का अनुभव पाठक करने लगते हैं।

कलसिया के कंकाल महल का इतिहास भी रहस्यों से भरा हुआ है और वह भी कथानक का हिस्सा बन रहस्य की परतों को गहरा करने में मदद करता है। फिर जैसे जैसे उपन्यास आगे बढ़ता जाता है वह एक हुडनइट का रूप अख्तियार कर देता है। कई संदिग्ध लोग  खड़े हो जाते हैं और उनमें से कत्ल किसने किया यह जानना इन तमीजदार गुंडों के ऊपर अब निर्भर करता है। किस तरह से यह लोग मामले के अंत तक पहुँचते हैं यह देखना रोचक रहता है और पाठक को कथानक से बांधे रखता है।

वैसे तो उपन्यास मुझे पसंद आया लेकिन एक दो कमी भी मुझे इसमें लगी।कातिल तक जिस तरह नायक  पहुँचते हैं वो एक संयोग सा रहता है तो इस कारण मेरी नजर में कहानी की कमी में शुमार होता है। मुझे लगता है अपराध साहित्य में संयोग जितने कम हो कहानी उतनी सशक्त होती है क्योंकि संयोग के न होने से मुख्य किरदार को जासूसी करने का पूरा मौका मिल जाता है।  अंत में कहानी में घुमाव भी आते हैं लेकिन जब इस की पृष्ठभूमि बन रही थी तब ही मैं उससे वाकिफ हो गया था।

डेली हंट से प्रकाशित किताबों में प्रूफ की गलतियाँ काफी रहती हैं और खतरे की खोपड़ी में भी यह थोक के भाव भरी हुई हैं। कई बार पढ़ते हुए यह सोचना पड़ रहा था कि आखिर कहा क्या जा रहा है। फिर अंदाजा लगता कि शब्द गलत लिखा है या वाक्य अधूरा छूटा हुआ है। ऐसी गलतियों के लिए प्रकाशक जिम्मेदार होता है लेकिन चूँकि यह उपन्यास पढ़ने के अनुभव को प्रभावित करती हैं तो लेखक को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसा लगता है लेखक आपको सफर पर तो ले जा रहा है लेकिन सड़क इतनी टूटी फूटी है कि गाड़ी हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ रही है।

हाँ, इधर यह कहना जरूरी है उपन्यास में मुझे मजा बहुत आया जिस कारण संयोग और घुमाव को दूर से देख पाने वाली बात ने मुझे इतना प्रभावित नहीं किया। हाँ, प्रूफ रीडिंग की कमी ने उपन्यास पढ़ने के अनुभव को थोड़ा खराब किया।बहरहाल, उपन्यास की खूबी इसके दो मुख्य चरित्र हैं जो कि अपने लहजे से पाठक के मन में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाते हैं। अगर यह उपन्यास आपको कहीं मिलता है तो अवश्य पढ़ें। उम्मीद है जिस तरह इसने मेरा मनोरंजन किया उसी तरह आपका भी करेगा।

इस उपन्यास को पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि वेद जी की चूँकि हास्य पर इतनी अच्छी पकड़ है तो क्या उन्होंने हास्य कथाएँ लिखी थीं? अगर नहीं तो उन्हें लिखनी चाहिए। वेद जी द्वारा लिखी हास्य कथाएँ और व्यंग्य मैं पढ़ना चाहूँगा। वह अब गम्भीर साहित्य की तरफ मुड़ गये हैं तो इस विधा पर ध्यान दे सकते हैं।
यह उपन्यास पढ़कर वेद जी के अन्य उपन्यास पढ़ने की ललक मन में जागती है। कुछ उपन्यास मेरे पास पड़े हैं। उन्हें जल्द ही पढ़ता हूँ।

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे अवगत करवाईयेगा।

रेटिंग: 3.5/5

पाठकों के लिए कुछ प्रश्न:
प्रश्न 1:  इस कहानी में कंकाल जैसी भयावह इमारत का जिक्र है। क्या आपने असल जीवन में कोई भयावह इमारत देखी है? और वह किस चीज से जुड़ी थी?

प्रश्न 2: अपराध साहित्य में हास्य किरदारों या हास्य पैदा करने वाली परिस्थिति की मौजूदगी को आप किस तरह देखते हैं?

प्रश्न 3:  क्या आपने वेद प्रकाश काम्बोज जी को पढ़ा है? अगर हाँ, तो वेद जी द्वारा लिखे हुए आपके सबसे पसंदीदा पाँच उपन्यास कौन से हैं?

यह प्रश्न आपसे सम्वाद करने की मेरी एक कोशिश है। अगर आप इनका जवाब देंगे तो मुझे अच्छा लगेगा और काफी चीजें हम दोनों ही जान पायेंगे।

नोट: उपन्यास का काफी हिस्सा जॉन डिक्सन कार के उपन्यास द कैसल स्कल से प्रभावित लगता है

हिन्दी पल्प के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी पल्प साहित्य

हिन्दी साहित्य की दूसरी कृतियों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी साहित्य


© विकास नैनवाल 'अंजान'
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4 Comments
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  1. उपन्यास के विषय में अच्छी जानकारी उपलब्ध करवाई। उपन्यास मिला तो अवश्य पढूंगा।
    उपन्यास में हास्य पात्रों की बात करें तो यह लेखक पर निर्भर करता है की वे उन पात्रों को कैसे प्रस्तुत करते हैं।
    मुझे टाईगर (JK VERMA) के उपन्यास के हास्य पात्र बहुत अच्छे लगते हैं। टाईगर के लगभग उपन्यासों में ऐसे पात्र मिल जाते हैं।
    - गुरप्रीत सिंह
    www.svnlibrary.blogspot.in

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    1. जी टाइगर का एक ही उपन्यास मैंने पढ़ा है। इच्छाधारी अम्मा और उसमें ऐसे किरदार की हल्की सी याद मुझे हैं। मुझे ये भी याद है कि अपने विनोदी स्वभाव के कारण ही वह मुझे पसंद भी आया था। हाँ, उपन्यास मिलता है तो जरूर पढ़ियेगा।

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  2. बढ़िया समीक्षा..... मैंने वेद जी का प्रेतों के निर्माता पढ़ा है जिसमें वेज जी पुराने जमाने की जासूसी यात्रा पे ले जाते है। मुझे मौका मिला तो वेद जी के जितने भी मिले, पढ़ना पसंद करूंगा....

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    1. जी,आभारहितेष भाई..मैं भी वेद जी के अन्य उपन्यास पढ़ना चाहूँगा....

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