नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

एक हसीन कत्ल - मोहन मौर्य

उपन्यास 15 नवम्बर 2019 को पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 160
प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स
आई एस बी एन: 9781943438136


एक हसीन कत्ल - मोहन मौर्य
एक हसीन कत्ल - मोहन मौर्य

पहला वाक्य:
"राज...राज कहाँ हो तुम?"

कहानी:
रिया, राज और सीमा शहर के एक अति प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र हैं। १२ वी के ये छात्र अपना जीवन जी रहे हैं। यह उम्र ही ऐसी होती है कि व्यक्ति इश्क और मोहब्बत के फेर में पड़ता है और इश्क में ही जीना मरना चाहता है। कहा गया है इश्क और जंग में सब कुछ जायज है। और कई बार इश्क ही जंग की वजह बन जाता है।

यही इन तीनों की भी कहानी है।

जहाँ राज और सीमा एक दूसरे को चाहते हैं वहीं रिया राज को चाहती है। सीमा के राज की जिंदगी में आने से पहले रिया और राज ही एक दूसरे के जीवन थे। वो एक दूसरे के सबसे अच्छे मित्र थे और राज का ज्यादातर वक्त रिया के इर्द गिर्द ही घूमता था। रिया भी बहुत खुश थी कि राज केवल उसको ही महत्व देता है  लेकिन फिर सीमा आई और सब कुछ बदल गया।

पर रिया ने हार नहीं मानी है। वह कुछ भी करके राज को पाने की चाहत रखती है।

क्या रिया अपने इरादों में कामयाब हो पाई? 
रिया ने अपने इरादों में कामयाब होने के लिए क्या हथकंडे अपनाए? 
इस प्रेम त्रिकोण का अंत कैसे हुआ?

ऐसे ही कई प्रश्नों का उत्तर इस उपन्यास को पढ़ने के पश्चात आपको मिलेंगे।

मुख्य किरदार:
राज - राजनगर पब्लिक स्कूल के कक्षा १२ वीं का छात्र 
रिया - राज की सबसे अच्छी दोस्त जो उसके साथ स्कूल में पढ़ती थी 
सीमा - राज की प्रेमिका जो कि उसके साथ ही स्कूल में पढ़ती थी 
विक्की - राज का सहपाठी 
धीरज - राज का बड़ा भाई जो पुलिस में इंस्पेक्टर था 
मंत्री मधुसुदन - सीमा के पिता जो कि बड़े नेता थे
कमीश्नर शर्मा - रिया के पिता 
सब इंस्पेक्टर शुक्ला - धीरज का मातहत
ऋषि - सीमा की कक्षा में पढ़ने वाला एक लड़का 

मेरे विचार:
मोहन मौर्य जी की यह किताब मैंने बहुत पहले ही खरीद ली थी लेकिन पढ़ने का वक्त नहीं मिलता था। अमेज़न की माने तो 2 जून 2016 को यह प्रति मैंने खरीदी थी। अब नवम्बर 2019 में इसे पढ़ रहा हूँ। मेरी लेट लतीफी का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं। ऐसे न जाने कितने उपन्यास है जो मैंने खरीद कर रखे तो हुए हैं लेकिन पढ़ नहीं पाया हूँ। उम्मीद है ऐसे ही उन्हें भी पढ़ पाऊँगा। इसी उम्मीद के साथ चलिए उपन्यास पर आते हैं।

स्कूल की ज़िन्दगी में इश्क सभी ने किया होगा। यह उम्र ही ऐसी होती है जहाँ व्यक्ति के होर्मोनेस इस तरह से कुलांचे मारते हैं कि आकर्षण होना लाजमी ही है। यह आकर्षण कई बार लोगों को जन्नत सा हसीन लग सकता है और कई बार इसी आकर्षण के वजह से आपको लग सकता है कि आप जीते जी नारकीय जीवन का अनुभव कर रहे हैं। नारकीय अनुभव अक्सर तब होता है जब आप जिस व्यक्ति पर आसक्त हैं वह आप पर न आसक्त हो किसी और को तरजीह देता हो। सभी ने यह अनुभव भी किया होगा। अतिवादी होना ही इस उम्र की पहचान है। जो कुछ होता है वो अति ही होता है। शायद शरीर में होते बदलावों के कारण यह हो लेकिन जो लोग इन बदलावों से गुजर रहे होते हैं वो इन्हें ऐसे थोड़े न देखते हैं।

ऐसे ही कुछ बच्चों की कहानी है एक हसीन क़त्ल। ये बच्चे उम्र के ऐसे ही पड़ाव से गुजर रहे हैं। राज सीमा और रिया और यह प्रेम त्रिकोण पूरे विद्यालय में चर्चित है। यही कारण भी है कि रिया को सीमा फूटी आँख नहीं सुहाती है। लेकिन फिर देखते ही देखते यह प्रेम त्रिकोण एक रहस्यकथा में बदल जाता है। एक कत्ल होता है और उस कत्ल को लेकर इतने संदिग्ध खड़े हो जाते हैं पता करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर क्या हो रहा है? आखिर कातिल कौन है? यह प्रश्न अंत में इतने घुमावों के बाद खुलता है कि आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं। कहानी में जिस तरह से ट्विस्ट हैं वो वेद प्रकाश शर्मा जी की याद दिलाते हैं। आपको लगता है कि यह कातिल निकलता लेकिन फिर अचानक से कोई दूसरा ही कातिल नजर आने लगता है।

जहाँ मुझे पहले लगा था कि कत्ल को आधे से ज्यादा उपन्यास गुजर जाने के बाद दिखलाना एक तरह से लेखक की कमी थी वहीं आखिर के चक्करघिरनी से घूमते कथानक को पाठको को समक्ष प्रस्तुत कर लेखक अपनी शुरुआती कमी से काफी ऊपर उभर जाते हैं।  हाँ, कुछ बातें हैं जो कि कभी कभी अति फ़िल्मी या यूँ कहें अतिनाटकीय लगती हैं लेकिन फिर लेखक ने यह दुनिया बनाई है और इस कारण मैं यह मानकर चलता हूँ कि उनकी बनाई इस दुनिया में यह सब मुमकिन है।

किरदारों की बात करूँ तो किरदार सभी कथानक के अनुरूप हैं। धीरज एक तरह से नायक जरूर है लेकिन उसका किरदार एक आम पुलिसिये के जैसा है जो कि कुछ अलग सा नहीं दिखता है। कुछ इक्का दुक्का यादगार किरदार अगर लेखक उपन्यास में रखते तो अच्छा होता लेकिन उनके न होने से भी उपन्यास में इतना कुछ फर्क नहीं पढ़ा है।

कहानी के माध्यम से लेखक ने काफी बातें कही हैं। एक तो उन्होंने समाज के धनाढ्य वर्ग में होने वाले उन्मुक्त व्यवहार को दर्शाया है। इस मामले में मेरे विचार हमेशा से रहे हैं कि समाज का सबसे अमीर वर्ग और सबसे गरीब वर्ग आचरण के मामले में एक जैसा ही रहता है। अमीर इसलिए कि उसे इस बात का फर्क नहीं पढ़ता है कि क्या नैतिक है या नहीं  और गरीब इसलिए कि उसकी पहली जरूरत जिंदा रहना होती है और इसलिए नैतिकता से उसे ज्यादा लेना देना नहीं होता है। हाँ, मध्यम वर्ग हमेशा से नैतिकता का झंडेबरदार रहा है क्योंकि उसके पास शायद ही चीज एक ऐसी होती है जो उसे बेहतर महसूस कराती है। कई मध्यम वर्गीय परिवार जब अचानक अमीर हो जाते हैं तो उनके व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता है। यह भी देखा गया है।

इस कहानी के माध्यम से एक और बात लेखक ने रखी है। सभी माँ बाप अपने बच्चों को प्यार करते हैं लेकिन  आखिर माँ बाप का प्यार कैसा होना चाहिये? इसको भी कहानी में दर्शाया गया है। अक्सर माँ बाप अपने बच्चे को इतना लाड करने लग जाते हैं कि उनका वही लाड उनके बच्चे के भविष्य को बिगाड़ देता है। आप अगर बच्चे को प्यार करते हैं तो उनकी हर गलत जिद को पूरा करना प्यार दिखाना नहीं बल्कि उनके भविष्य को बिगाड़ने के समान है। ऐसा ही मामला इधर भी होता है और उसे बाखूबी लेखक ने दर्शाया है।

कथानक आखिर में यह सीख भी दे जाता है कि प्यार को आप जबरदस्ती पा नहीं सकते हैं। दिल के मामलों में जबरदस्ती नहीं चलती है। या तो दिल मिलते हैं या नहीं मिलते हैं।

हाँ, अगर उपन्यास के बीच में यह संदेश भी कहीं  दिखाया जाता कि यह जरूरी नहीं है कि इस दुनिया में हमारे लिए एक ही इनसान बना है। अगर आपको लगता है कि आपके लिए एक इनसान बना है लेकिन उस इनसान को ऐसा नहीं लगता तो दुनिया खत्म नहीं हो जाती है। आपको ऐसा इनसान जरूर मिलेगा जिसके प्रति आपके और आपके प्रति उसके विचार एक से होंगे। बस आपको उसको देखना होगा। प्यार हासिल न होने से हमे लगता जरूर है कि दुनिया खत्म हो गयी है लेकिन होती नहीं है। बस यह सीख बच्चों को देने की जरूरत है।

उपन्यास में कमी तो मुझे नहीं लगी लेकिन एक दो जगह प्रूफ की कुछ गलतियाँ थीं। जैसे:

पृष्ठ 90 में राज को हथकड़ियाँ एक बार पहना दी गयी थी लेकिन फिर 91 में उन्हें दोबारा पहनाया जाता है

शुक्ला ने आगे बढ़कर राज को मधुसूदन से अलग किया और बोला - "सर प्लीज, आप कानून अपने हाथ में मत लीजिये। ये कानून का मुजरिम है, इसके किये की सजा उसे क़ानून देगा।" कहते हुए शुक्ला ने राज के हाथों में हथकड़ी पहना दी। (पृष्ठ 90)

"आप चिंता मत करिए सर",उसने कहा और राज के हाथों में हथकड़ियाँ पहना दी। (पृष्ठ 91)


पृष्ठ 132 में प्रूफ की  गलती है। जहाँ रिया होना चाहिए था वहाँ सीमा लिखा हुआ है।

अभी वो सीमा तक पहुँच भी नहीं पाया था कि इंस्पेक्टर धीरज ने उसे बीच में ही पकड़ लिया।
पृष्ठ 132

एक जगह राजनगर पब्लिक स्कूल का नाम महानगर पब्लिक स्कूल हो गया था। लेकिन अब मुझे उसका पृष्ठ संख्या याद नहीं है।

कमियों के हिस्से में केवल ऊपर लिखी बातें ही आई हैं। लेखक का यह पहला उपन्यास था तो इसकी बुनावट में वो दिखता है। कथानक की बुनावट बेहतर हो सकती थी। इस बात का ध्यान रखा जा सकता था कि क़त्ल थोडा जल्दी हो जाये और फिर उसके इर्द गिर्द पहले की बातें भी उजागर होती रहें। इससे यह होता है कि पाठक शुरू से किताब से बंधा रहता है। अभी यह शुरुआत में एक कॉलेज रोमांस है जिससे व्यक्तिगत तौ पर मुझे कोई दिक्कत नहीं है, मैंने तो इसका आनन्द लिया है, लेकिन कई पाठक शायद इतनी रूचि न ले पाएं। वहीं अगर कत्ल जल्दी हो तो वही पाठक फिर किताब से बंध से जायेंगे। यह केवल मेरे ख्याल हैं। हो सकता है कईयों की राय इससे जुदा हो। अगर आपने इसे पढ़ा है तो आपकी इस विषय में क्या राय है? एक बार जरूर बताइयेगा।

अंत में यही कहूँगा कि एक हसीन कत्ल मुझे पसंद आया। शुरुआत में कॉलेज रोमांस लगने वाला यह उपन्यास अंत तक आते आते अपने घुमावदार कथानक के कारण आपको इसे बिना रुके पढ़ते जाने को मजबूर कर देगा।

मेरी रेटिंग: 3/5
 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक से मँगवाकर पढ़ सकते हैं:
किंडल
पेपरबैक

एक हसीन कत्ल के अलावा मोहन जी की अन्य किताबें  भी आ चुकी हैं। उनकी किताबे अमेज़न में उपलब्ध हैं आप निम्न लिंक पर जाकर उन्हें खरीद सकते हैं:
मोहन मौर्य जी की किताबें

मोहन मौर्य के दूसरे उपन्यासों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
मोहन मौर्य

हिन्दी पल्प साहित्य के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी पल्प साहित्य


© विकास नैनवाल 'अंजान'
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12 Comments
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  1. बढ़िया समीक्षा विकास भाई पढ़ता हूँ जल्द ही ।

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    1. जी आभार। पढ़कर बताइयेगा के आपको कैसी लगी।

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    2. अंकुर मिश्रा जी इन्तजार रहेगा

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  2. जी मुझे आज तक प्रेम नही हुआ।

    साथ ही मैं यही मानता हूँ कि मर्डर मिस्ट्री मे प्रेम कहानी वगेरा नही होनी चाहिए। वह बस समय की बर्बादी होती है।

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    1. जी प्रेम तो जीवन का अभिन्न अंग है। व्यक्ति सबसे पहले प्रेम करना ही सीखता है। ज्यादातर मर्डर्स के पीछे भी लालच के बाद प्रेम का ही हाथ रहा है। प्रेम के बिना मर्डर मिस्ट्री बनाना बेहद जटिल हो जायेगा। आपको आजतक प्रेम नहीं हुआ यह जानकर दुःख हुआ। उम्मीद ही जल्द ही आप  भी इस अहसास को महसूस कर सकोगे।

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    2. अमन जी कहा जाता है कि दुनियां में जितनी भी लड़ाइयां हुई है वो जर, जोरू और जमीन के लिए हुई है और जिसमे भी देखा जाए तो औरत के लिये सबसे ज्यादा हुई है

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  3. बहुत बढ़िया समीक्षा है | मैंने यह नॉवेल रिलीज़ हुआ था तब पढ़ा था, अच्छा पठनीय उपन्यास है | स्टार्ट थोडा स्लो लगा था पर बाद में स्पीड पकड़ ली थी |

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    1. जी सही कहा। शुरुआत में यह एक स्कूल रोमांस लगता है जो आगे चलकर मर्डर मिस्ट्री बन जाता है। मैंने इसी तरह इसे पढ़ा तो मुझे स्पीड को लेकर दिक़्क़त नहीं हुई। अगर आप रहस्यकथा समझ कर पढ़ेंगे तो शुरुआत में ही कत्ल होने की अपेक्षा करेंगे और इस कारण यह उपन्यास धीमा लग सकता है।

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    2. धन्यवाद राकेश जी, अब आप लव स्टोरी कम ही पढ़ते है इसलिये शुरू में रफ्तार कम लगी होगी आपको।
      बाकी नए उपन्यास वो बेगुनाह थी में तो कहानी ही पुलिस के दखल से होती है

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  4. Vijay kumar BohraJune 1, 2020 at 4:02 PM

    बहुत ही अच्छा उपन्यास है । मुझे बस एक बात अखरी है,इस उपन्यास में । बहुत बड़ी बात नहीं है । पर, निजी तौर पर मुझे अच्छी नहीं लगी । अब मुझे अच्छी नहीं लगी तो इसका मतलब यह नहीं कि उपन्यास में कोई कमी है । उपन्यास 100% बेस्ट है। और लेखक ने जरूरत देखते हुए ही ऐसा किया होगा।
    उपन्यास में जो रेप वाला सीन है, वो मुझे बेमतलब लगा। मैं गलत हो सकता हूँ। लेकिन, बात बस अपनी अपनी पसंद की है।

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    1. जी उपन्यास में कुछ चीजें पसंद आती है और कुछ नहीं यह तो होता ही रहता है। ब्लॉग पर आने का शुक्रिया।

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    2. विजय जी रेप का सीन कहानी की मांग थी

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