नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

जीने की सज़ा - सुरेन्द्र मोहन पाठक

उपन्यास 17 अगस्त 2019 से 19 अगस्त 2019 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई बुक
प्रकाशक: डेली हंट
प्रथम प्रकाशन: 1988
जीने की सज़ा - सुरेन्द्र मोहन पाठक
जीने की सज़ा - सुरेन्द्र मोहन पाठक


पहला वाक्य:
मैंने गोल्फ क्लब के मैन हॉल में कदम रखा तो एकाएक मेरा दिल जोर से उछला।

कहानी
दर्शन कोठारी की मृत्यु अपनी पत्नी कोकिला कोठारी द्वारा चलाई गयी गोली से हुई थी।

कोकिला कोठारी की माने तो उसने गलती से अपने पति पर गोली चलाई थी। अँधेरे में जब आहट हुई तो उसे लगा जैसे चिमगादड़ नाम के कुख्यात चोर ने उनके घर में चोरी के इरादे से कदम रखा था। इस कारण अपनी सुरक्षा के लिये उसने गोली चलाई और गलती से उसका पति इस गोली के चपेट में आ गया।

वहीं स्थानीय पुलिस का कहना था कि उन्हें कुछ ऐसे साक्ष्य मिले थे जिससे ये साबित होता था कि कोकिला ने जानबूझ कर अपने पति को मारा था और बाद में इसे दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की थी।

सच क्या था यह विशालगढ़ में किसी को नहीं पता था। कोकिला कोठारी विशालगढ़ के राज घराने से ताल्लुक रखती थी इसलिए उसका विशाल गढ़ में काफी रूतबा था।  यही कारण था कि यह मामला पूरे विशालगढ़ के आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।

हेमंत बजाज विशालगढ़ से निकलने वाले अखबार डेली एक्सप्रेस का रिपोर्टर था। लगभग ग्यारह साल पहले वो और कोकिला एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि कोकिला ने दर्शन से विवाह कर लिया। हेमंत अब भी कोकिला को चाहता था और उसका दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि कोकिला खूनी है। वह सच्चाई का पता लगाना चाहता था और कोकिला को जेल से छुडाना चाहता था।

क्या कोकिला ने गलती से अपने पति का कत्ल किया था या पुलिस के आरोपों में सच्चाई थी? 
दर्शन कोठारी क्यों रात गये चोरों की तरह घर में दाखिल हो रहा था?
हेमंत ने जब इस केस की तहकीकात की तो उसने इसमें क्या पाया?

ऐसे ही कई सवालों के जवाब इस उपन्यास को पढ़ने के बाद आपको मिलेंगे।


मुख्य किरदार :
कोकिला कोठारी- एक तीस वर्षीय महिला जो विशाल गढ़ के एक धनाढ्य परिवार से थी और चांदनी महल में रहती थी
दर्शन कोठारी - कोकिला का पति
प्रवीण - कोकिला का बेटा
हेमंत बजाज - विशालगढ़ के अखबार  डेली एक्सप्रेस में  एक रिपोर्टर
नमिता - हेमंत की गर्लफ्रेंड
डॉक्टर निरंजन भगत - एक डॉक्टर जो दर्शन कोठारी का दोस्त और उनका पड़ोसी था
रामनाथ बजाज - डेली एक्सप्रेस के मालिक और हेमंत के पिताजी
शकुन्तला बजाज - हेमंत की माँ
विष्णु प्रसाद - कोकिला का फूफा जो कि इकबालपुर में एक बैंक में मैनेजर था
अनुसूया - कोकिला की बुआ
चिमगादड़ - एक चोर जो कि विशालगढ़ में चोरियाँ कर रहा था
इंस्पेक्टर सिन्हा - विशालगढ़ पुलिस का एक अफसर
होतवानी - पुलिस का टेकनीशियन
वीर बहादुर - एक हवलदार
मीनाक्षी शर्मा - गजरा ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक युवती
दूधनाथ मिश्रा - विशालगढ़ का एक जाना माना वकील जो कि दर्शन का पार्टनर भी हुआ करता था
अशोक खेतान - एक सरकारी वकील
भूषण बंसल - भूषण बंसल एसोसिएट के एक पार्टनर
प्रभुनाथ कोठारी - दर्शन कोठारी का बाप
कलावती कोठारी - दर्शन की माँ


मेरे विचार:
जीने की सजा पाठक साहब का सीरीज के इतर लिखा गया एक एकल उपन्यास है। यह पहली बार 1988 में प्रकाशित हुआ था। मैंने इसका डेलीहंट द्वारा प्रकाशित ई बुक संस्करण पढ़ा है।

उपन्यास की घटनाएं विशालगढ़ नामक काल्पनिक कस्बे में घटती हैं। यह एक रहस्यकथा है। यहाँ ये यह  बताना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पाठक साहब के जो उपन्यास किसी श्रृंखला का हिस्सा नहीं है उन्हें लोग अक्सर थ्रिलर में रख देते हैं जबकि अपराध साहित्य में थ्रिलर और मिस्ट्री(रहस्यकथा ) दो अलग तरह के उपन्यास होते हैं। इसलिए दोनों से अपेक्षाएं भी जुदा होती हैं।

थ्रिलर में रोमांच प्राथमिकता होता है। कहानी में नायक को अपना मकसद जल्द से जल्द हासिल करना होता है नहीं तो कुछ बड़ा हो सकता है।  कहानी में रहस्य भी हो सकता है लेकिन उसको प्राथमिकता नहीं दी जाती है। प्राथमिकता रोमांच की होती है जो कि अक्सर तेज रफ्तार कथानक और एक ऐसे लक्ष्य, जिस तक जल्द से जल्द नायक का पहुँचना अत्यंत जरूरी होता है, से हासिल किया जाता है। वहीं रहस्यकथा में रहस्य जरूरी होता है।  वो कहानी का केंद्र होता है। कहानी की रफ्तार कम ज्यादा हो सकती है। जीने की सजा में भी चूँकि रहस्य केंद्र बिंदु है तो इसे हम रहस्यकथा ही कहेंगे न कि रोमांच कथा।

विशालगढ़ एक छोटा सा कस्बा है जहाँ लगभग हर कोई हर किसी को जानता है। हर छोटे कस्बे की तरह विशालगढ़ में भी कत्ल होना बहुत बड़ी बात मानी जाती है और फिर जब कत्ल ऐसे परिवार में हो जो कि राज घराने से ताल्लुक रखता हो तो उसका लाइम लाइट में आना लाजमी ही रहता है। यही चीज इस उपन्यास में होती है।

कत्ल को लेकर मुलजिम और पुलिस के अलग अलग ब्यान रहते हैं। आखिर असल में हुआ क्या है? क्या खून जानबूझकर किया गया है? अगर ऐसा है तो ये क्यों किया है? यह सारी बातें आपको उपन्यास पढ़ते जाने को विवश कर देती हैं।

उपन्यास की खूबी ये है कि अंत तक इस बात का अहसास नहीं होता है कि असल में हुआ क्या था? जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है वैसे वैसे रहस्य के परतें खुलती हैं और हम जान पाते हैं कि बंद घर के अंदर क्या चल रहा है यह बाहर बैठा व्यक्ति कभी भी शायद सही अंदाजा न लगा सके।

किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास का मुख्य किरदार हेमंत बजाज है। वह एक इश्कियाया हुआ व्यक्ति है। कहते हैं पहला प्रेम भुलाए न भूलता। उसके प्रति एक आकर्षण बना रहता है। यही चीज हेमंत के मामले में भी देखने को मिलती है। वह इस मामले की तहकीकात भी करता है तो उसका मकसद सच की तह तक पहुँचना कम लेकिन अपनी मोहब्बत की जान बचाना ज्यादा होता है। उसके इश्क की परिभाषा भी मुझे थोड़ी सी कंफ्यूजिंग लगी। उसका रिश्ता इस उपन्यास में नमिता नाम की एक लड़की से भी है। नमिता उससे दिलो जान से प्यार करती है लेकिन नमिता को पता है कि वह अपने पहले प्रेम को नहीं भूल पाया है। वह इस कारण उस पर कोई दबाव नहीं डालती है। यहाँ ये भी नोट करने वाली बात है कि हेमंत नमिता से कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता है। वह उसके मन में है जो भी है उसे बता देता है। लेकिन फिर भी वो नमिता से दूर होने की कोशिश नहीं करता है। उपन्यास में ही उसके पिता उसको इस बात के लिए टोकते भी हैं जिससे यह तो पता लगता है कि केवल मैं ही नहीं हूँ जिसे उसका व्यवहार आपत्तिजनक लगता है।

उपन्यास में हेमंत नमिता और कोकिला में से आखिर में किसे चुनेगा ये भी पाठक के लिए एक रोचक विषय रहेगा जिसे जानने के लिए वह उपन्यास पढ़ना चाहेगा।

जहाँ तक व्यक्तिगत रूप से मेरी बात है मुझे हेमंत का आखिरी निर्णय पसंद नहीं आया। जो कारण उसने दिया वो भी बेतुका ही लगा। मैं ज्यादा बोलूँगा तो उपन्यास का सस्पेंस खत्म हो जायेगा इसलिए इतना बोल सकता हूँ कि जो भी किया गया था उसमें करने वाले की इतनी गलती नहीं थी क्योंकि उसने मौका दिया था।

कहानी में एक पात्र मीनाक्षी शर्मा का है। जिस तरह से हेमंत मीनाक्षी को हैंडल करता है वो मुझे अच्छा लगा। ऐसी लड़कियाँ असल ज़िन्दगी में होती है जो कि ऊपरी तौर पर तो तेज तर्रार लगती हैं लेकिन अगर उन्हें जानो तो स्वभाव और मासूमियत उनके अंदर बच्चे जैसी ही होती हैं। यही कारण है कि इनका शोषण कोई भी व्यक्ति करता चला जाता है।

उपन्यास के बाकी किरदार कहानी के अनुरूप ही हैं।  उपन्यास में हेमंत और उसके पिता रामनाथ बजाज के बीच का वार्तालाप भी रोचक रहता है। उपन्यास के बीच में इन दोनों की तकरार पढ़ने में मुझे मज़ा आया।

आखिर में यही कहूँगा कि उपन्यास मुझे पसंद आया। यह एक अच्छी रहस्यकथा है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है।

रेटिंग: 3.5/5

आपने अगर इस किताब को पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

डेली हंट तो अब बंद हो गया और उसमें मौजूद उपन्यास आप नहीं खरीद सकते हैं लेकिन अमेज़न के किंडल पर काफी उपन्यास अभी मौजूद हैं। उधर आप सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के पुराने उपन्यास खरीद सकते हैं। किंडल में मौजूद पाठक साहब के उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं :
सुरेन्द्र मोहन पाठक- kindle

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के दूसरे उपन्यास मैंने पढ़े हैं। उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
सुरेन्द्र मोहन पाठक

हिन्दी पल्प साहित्य के दूसरे उपन्यास मैंने पढ़े हैं। उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी पल्प साहित्य

© विकास नैनवाल 'अंजान'
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12 Comments
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  1. बहुत बढ़िया समीक्षा

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  2. ये डेलीहंट बंद होने से थोड़ी तकलीफ हो गयी है. पाठक साहब के पुराने उपन्यास मिलने मुश्किल हो गए फिर से.
    रहस्य और रोमांच कथा में आपने जो अंतर बताया है वो अच्छा है. मैं भी रहस्य एलिमेंट्स ज़्यादा प्रेफर करता हूँ.
    अब ये उपन्यास तो नहीं मिलेगा, जो अमेज़न पे उपलब्ध है, उनमे कोई अच्छी रहस्य कथा आप रेकमेंड करेंगे? पाठक साहब या अन्य लेखक की

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    1. जी आभार। kindle में एक रहस्यकथा हीरोइन की ह्त्या है आनन्द कुमार जी की। वो मुझे पसंद आई थी। बाकी पाठक साहब के सुनील और सुधीर सीरीज के उपन्यास रहस्यकथा ही होते हैं। आप इन दो श्रृंखलाओं के उपन्यास kindle में देख सकते हैं। पाठक साहब का सुनील सीरीज का उपन्यास कॉनमैन हाल ही में प्रकाशित हुआ था। वहीं संतोष पाठक जी की लेखनी की भी मैंने काफी तारीफ़ सुनी है। उन्हें मैंने पढ़ा तो नहीं है लेकिन कई लोग कहते हैं कि वो अच्छा लिखते हैं।

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    2. जी धन्यवाद। यदि कॉनमैन पढ़ने का अवसर हो तो रिव्यु साझा कीजियेगा.

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    3. जी, पढ़ते ही साझा करता हूँ।

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  3. मैंने बहुत पहले इस उपन्यास को पढ़ा था। हेमन्त और बजाज साहब के संवाद वाकई बढ़िया हैं ख़ास तौर से शराब की खपत वाले। मुझे तो पसन्द आया था यह।

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  4. काफी नपी-तुली और शानदार समीक्षा बस रेटिंग से सहमत नहीं! कम से कम 4 और ज्यादा से ज्यादा 4.5 होनी चाहिए(मेरे मतानुसार) कथानक को सहज ही सामाजिक या फिर मुख्यधारा साहित्य की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है।

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    1. जी रेटिंग व्यक्तिपरक होती है। आपकी रेटिंग भी आपके अनुसार अच्छी है। कई लोगों को हीरा फेरी पसंद नही आई थी लेकिन मुझे वो बहुत पसंद आई थी। तो किताब में सभी तरह की बातें सही होती हैं।
      बाकी मेरे हिसाब से अपराध साहित्य मुख्यधारा का साहित्य ही होता है क्योंकि अक्सर वो इसी समाज का चित्रण करता है। फिर पाठक साहब के उपन्यास तो यथार्थ के निकट ही होते हैं। चूँकि उनमें फंतासी का छौंक नहीं लगा होता है तो उन्हें फंतासी की जगह आम साहित्य माना जा सकता है। जिसमें फंतासी और कल्पना का अतिरेक होता है उसे फंतासी में रखा जायेगा। लेकिन होगा वो भी मुख्यधारा ही। हम दूसरे के द्वरा किये गये वर्गीकरण को क्यों माने और क्यों उसका इस्तेमाल करें। है कि नहीं।

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  5. रोचक समीक्षा | नॉवेल मिला तो पढूंगा जरूर |

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    1. जी आभार। अब तो रीप्रिंट का ही भरोसा है। रीप्रिंट हुई तो पढ़ी जा सकती है।

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